जून, 2025
लघु कथा
सीता राम गुप्ता
बनती हुई बात में भी कई लोगों की कमजोरी होती है कि वह उस में टांग मार दें। उन्हें इसी में आनन्द आता है,
कैसे-कैसे लोग।
रिश्ता तय हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियां बहुत खुश थी क्योंकि रिश्ता बड़े ही आराम से तय हो गया था। इस रिश्ते के बीच में थे प्रेम प्रकाश जो दोनों ही पार्टियों को अच्छी तरह से जानते थे और दोनों पर उनका अच्छा प्रभाव था। लड़की प्रेम प्रकाश के मित्र की थी तो लड़का उनके एक नजदीकी रिश्तेदार का था। रिश्ता पक्का हो चुका था फिर कुछ ही दिनों में ऐसा क्या हुआ कि रिश्ता एकदम से टूट गया?
रिश्ता पक्का होने के बाद लड़के के पिता ने एक दो बार फोन करके अपनी कुछ फरमाइशें रख दीं, जिससे प्रेम प्रकाश उत्तेजित हो उठे। उन्होंने लड़के की मां को फोन करके साफ-साफ कह दिया, ‘‘देखा बहन जी हरिराम जी जो कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। शादी बहुत अच्छी होगी इसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूं लेकिन छोटी-छोटी बातों को लेकर रोज-रोज फोन करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। यदि आपको लड़की या पार्टी दोनों में से कोई भी पसंद नहीं है तो साफ-साफ बतला दीजिए। रोज-रोज नाटक करने की जरूरत नहीं। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है।’’
‘‘नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं है। लड़की वाले अपनी खुशी से जैसा चाहें करें हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है। उन्होंने जो कहा है उतने से हम पूरी तरह खुश हैं। और अगर वे इसमें भी कटौती करना चाहें तो भी हमें कोई एतराज नहीं होगा।’’ लड़के की मां की बातों में ईमानदारी झलक रही थी। प्रेम प्रकाश भी संतुष्ट हो गए और बात आई गई हो गई। अचानक रिश्ता टूट ही गया। रिश्ता टूट जाने के बाद प्रेम प्रकाश को बहुत दुख हुआ क्योंकि उनके हिसाब से ये एक परफेक्ट मैच था। प्रायः सोचते रहते कि रिश्ता आखिर टूटा तो टूटा क्यों? रिश्ता टूटने के एक सप्ताह पहले की बात है। प्रेम प्रकाश एक शादी में गए थे। लड़के वालों का परिवार भी उस शादी में आया हुआ था। लड़के वालों के और भी कई परिचित परिवार इस शादी में आए हुए थे। प्रेम प्रकाश का भी अधिकांश परिवारों से अच्छा खासा परिचय था। कई परिवार तो उनके नजदीकी रिश्तेदार ही थे।
इन्हीं नजदीकी रिश्तेदारों में संतलाल अग्रवाल भी थे। संतलाल अग्रवाल प्रेम प्रकाश के पास आए और बोले, ‘‘प्रेम, सुना है हरिराम के लड़के का रिश्ता तूने करवाया है।’’ प्रेम प्रकाश के हां कहने पर संतलाल अग्रवाल ने प्रेम प्रकाश की पीठ पर हाथ रखकर कहा, ‘‘भाई ये तो बड़ी अच्छी बात है। आजकल तू बहुत बढ़िया काम कर रहा है। आज समाज में इस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है।’’ इसके बाद इधर-उधर की कुछ और बातें होती रहीं। थोड़ी देर बाद संतलाल अग्रवाल ने कहा, ‘‘अच्छा भाई मैं चलूंगा। हां प्रेम एक बात का जरूर ध्यान रखना हरिराम से हर बात पहले ही खोल कर लेना नहीं तो बाद में परेशान करेगा। बहुत झगड़ालू और लालची किस्म का आदमी है। इसके लड़के के पहले भी तीन रिश्ते पक्के होकर टूट चुके हैं।’’ प्रेम प्रकाश ने जवाब दिया, ‘‘नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा अग्रवाल जी। मैंने हरिराम जी से ही नहीं बहन जी से भी साफ-साफ बात कर ली है। कोई परेशानी नहीं होगी।’’
‘‘अच्छी बात है। शादी विवाह बिना किसी झगड़े के निपट जाए इससे अच्छी बात तो हो ही नहीं सकती,’’ संतलाल अग्रवाल ने प्रसन्नता का भाव व्यक्त किया और फिर कहा, ‘‘भई ये हरिराम ही गंदा आदमी है। इसकी बीवी सत्या तो बेचारी बहुत अच्छी है। वह तो चाहती है कि जल्दी से जल्दी लड़के की शादी हो जाए, कम से कम पोते का मुंह तो देख के मरें।’’
‘‘मतलब’’ प्रेम प्रकाश ने कुछ हैरान और ………………………………………….
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