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आया बसंत

कविता गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’

अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक

आया बसंत, आया बसंत।
स्वागत में हर्षित दिग्दिगंत।

खिल गए प्रकृति के अंग-अंग
मन ऊर्जा से भरता उमंग

प्रिय यौवन, जादू टोने से
अग-जग को करता प्राणवंत।

मंथर गति से बह रहा पवन
हो गए मुग्ध नव वन-उपवन

आशामय नवल जागरण से
द्युतिमान हो गए साधु-संत।

खेतों में है फूली सरसों
प्रियतम आएंगे कल परसों

बीते पल विकल प्रतीक्षा में
मिलने वाला है सुख अनंत।

आमों पर महके युवा बौर
मन भ्रमरों का हो गया और

कोयल कूका, तितली नाची
हो गया शीत का सुखद अंत।

तरुओं पर छायी हरियाली
सुरभित कुसुमित डाली-डाली

रस, रूप, रंग की वर्षा है
अब प्रश्न न कोई है ज्वलंत।
आया बसंत, आया बसंत।

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