कहानी कुमार लालकिशुन नागफनी
प्रमिला की शादी बाल अवस्था में हो गई। पति बड़ा अफसर
बन गया तो उसने उसे छोड़ कर नई शादी कर ली। नारी हृदयों
की क्या प्रतिक्रिया हुई। एक भावपूर्ण कहानी।
अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक
घनश्याम और घनेनाथ दोनों गहरे दोस्त थे। एक ही स्कूल के विद्यार्थी थे और एक ही कक्षा में पढ़ते भी थे। मैट्रिक की परीक्षाएं सम्मिलित होकर दोनों ने उत्तीर्ण की और इसके साथ ही स्कूल से नाता टूट गया उनका। अब उनकी मुलाकात प्रत्येक शुक्रवार को लगने वाले साप्ताहिक हाट में होने लगी।
इधर कुछ दिनों से घनेनाथ के मन में एक बात उमड़ घुमड़ करने लगी थी, पर संकोच से मुंह खोल नहीं पा रहा था मित्र के पास। पर एक दिन संकोच से बाहर निकलकर मित्र से कहा उसने-
‘मित्र, मेरे मन में एक बात उठी है। कहो तो कहूं तुम से।’
‘मित्र हैं हम तो खुली किताब की तरह रहो न मेरे भाई। निस्संकोच कहो। क्या बात है तुम्हारे मन में।’
‘मैं चाहता हूं कि अपनी मित्रता को एक नया नाम दूं।’
‘किस तरह?’
‘रिश्ता जोड़कर।’
‘क्या होगा वह रिश्ता?’
‘वह रिश्ता होगा समधी का। मेरी लाड़ली बेटी को तुम अपने घर की बहू बना लो।’
‘विचार तो अच्छा है, पर मेरा प्रकाश विवाह करना चाहेगा क्या?’
‘चाहेगा तो नहीं, पर उसे मनाना होगा तुम्हें।’
‘पहले प्रकाश की मां से बात करनी होगी मुझे। वह हां कहेगी तभी बात आगे बढ़ेगी वरना—–।’
‘हां, तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है। घर की मालकिन की स्वीकृति तो चाहिए ही।’
घनश्याम को तो कोई आपत्ति थी ही नहीं। उसकी पत्नी ने भी रिश्ता जोड़ने की स्वीकृति दे दी। और माता-पिता दोनों ने मिलकर बेटे को विवाह के लिए मना लिया।
उनकी मंजूरी मिलने पर घनेनाथ खुशी से भर गया।
और कुछ ही दिनों में प्रमिला और प्रकाश का विवाह हो गया। अपने-अपने गांव के स्कूल में दोनों की पढ़ाई भी चलती रही।
प्रमिला जब ससुराल आती तो कई सप्ताह ससुराल में ठहर जाती। सासू मां का भरपूर प्यार मिलता था उसे। प्रमिला सासू मां को मां कहती और सासू मां उसे बेटी पुकारती।
ससुराल आने-जाने के चक्कर में प्रमिला की पढ़ाई थोड़ी बाधित होती रही, पर मैट्रिक की परीक्षा में उसने उत्तीर्ण कर ही ली। और प्रकाश ने बहुत अच्छे अंक लाकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर अपने स्कूल का नाम रोशन कर डाला।
शिक्षकों ने उसकी पीठ ठोकी और प्रधानाध्यापक ने शाबाशी देते हुए कहा यही ऊर्जा आगे भी बनाये रखना। जीवन में तुम्हें बड़ी सफल्ता मिले यही आशीर्वाद है मेरा।
बेटे की शानदार सफलता पर पिता काफी खुश होते रहे। उनका मन हिरण की तरह चौकड़ी भरता रहा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पिता ने प्रकाश का नामांकन शहर के नामी कालेज में करवा दिया।
प्रकाश आगे की पढ़ाई करता रहा और अपने बेहतरीन परीक्षाफल से सब को खुश करता रहा। और फिर शैक्षणिक डिग्री पूरी करके देश की बड़ी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने की तैयारी में जुट गया वह। अपनी तैयारी में इतना मशगूल रहने लगा कि उसने घर को लगभग भुला ही दिया।
एक लम्बे अर्से के बाद जब वह एक दिन घर पहुंचा तो पत्नी को समझाते हुए कहा उसने-‘प्रमिला, घर गृहस्थी में मुझे बांधने की इच्छा कभी मत करना तुम। एक बड़ा लक्ष्य है मेरा। उसके लिए एकाग्रचित्त रहने दो मुझे। तुम अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकी इसका मलाल मुझे है, पर किसी प्रकार की चिन्ता मत करना। असमय में हमारी शादी कराकर घर वालों ने अच्छा तो नहीं किया, पर अब उस पर सोचने का क्या लाभ? मेरे हृदय में तुम सदा रहोगी यह वादा रहा मेरा और ऐसा कहते हुए पत्नी को अपनी छाती से लगा लिया उसने।’
‘मेरी ओर से आप बिल्कुल निशि्ंचत रहें। आपके मार्ग का रोड़ा कभी नहीं बनूंगी। आप कुछ बन कर आवें, ईश्वर से यही मनाती रहूंगी मैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति में आप जुटे रहें। मैं इंतजार करूंगी आपका।’
‘वाह प्रमिला, वाह। बहुत सुन्दर बात कही तुमने। ठीक ही कहते हैं लोग कि पुरुष की तरक्की के पीछे स्त्री का मजबूत हाथ होता है। प्रमिला, अपना ख्याल रखना। मैं कल ही शहर लौट रहा हूं।’
प्रकाश की मां बगल के कमरे से उनकी बातें सुनी तो निराशा में डूब गयी। मां का मन कहने लगा कि जब ऐसे ख्याल हैं इनके तो दादी बनने का सपना तो बहुत दूर चला जायेगा। कैसे समझाऊं उन्हें?
अपनी समस्या के समाधान के लिए वह प्रकाश के पिता के पास पहुंचकर पहले बेटा बहू की बात सुनाती है और फिर अपने मन की बात भी सुना बैठती है।
‘प्रकाश की मां, तुम कुछ सोच रही हो और मैं तो कुछ और ही सोच में डूबा बैठा हूं।’
‘बताइए तो। ऐसा क्या सोच रहे हैं आप?’
‘हमारा प्रकाश थोड़े ही दिनों में एक बड़ी ऊंचाई को प्राप्त कर लेगा, यह मैं साफ देख रहा हूं।’
‘यह तो अच्छी बात होगी न।’
‘वह तो होगा, पर उस समय प्रमिला उसके सामने एकदम बौनी हो जायेगी। प्रकाश आकाश तो प्रमिला सपाट धरती। बिल्कुल बेमेल जोड़ी। सब हंसेंगे इन्हें देखकर।’
‘कुछ भी हो जाये, पर पति पत्नी तो रहेंगे ही न।’
‘तुम नहीं समझ पाओगी यह बात।’
‘ठीक है, पर मुझे यह तो बतावें कि आपके दिमाग में चल क्या रहा है?’
‘प्रमिला को प्रकाश की जिन्दगी से बाहर कैसे करूं यही उपाय ढूंढ रहा हूं मैं।’
पति की बात सुनकर वह आसमान से गिर पड़ती है। संभलकर कहती है-‘आपकी यह घटिया बात मेरे गले नहीं उतरती है प्रकाश के बापू। आप ऐसा उपाय ढूंढ रहे हैं, पर क्या हमारा प्रकाश ऐसा करना चाहेगा।’
‘जब उसका कद ऊंचा हो जायेगा तो न चाहते हुए भी प्रकाश वही करेगा जो मैं सोच रहा हूं। आज दुनिया में यह आम बात हो गयी है।’
घर की बात धीरे-धीरे हवा में फैलती गयी और घनेनाथ के कानों तक जा पहुंची तो उसके पांव तले की जमीन ही खिसक गयी।
‘बहुत परेशान से लग रहे हैं आप। क्या हुआ है मुझे भी तो बतायें?’
समधी की बातें सुनाकर पत्नी से कहा उसने-प्रमिला की मां जल्दबाजी में उठाये गये कदम का खामियाजा हमें भुगतना ही पड़ेगा, ऐसा लगने लगा है मुझे।
पर यह कितनी घटिया सोच है समधी जी की। क्या आज दुनिया में सभी बड़े-बड़े अफसरों की पत्नियां भी बड़ी अफसर बनकर गृहस्थी चला रही है? कुछ ऐसी जोडि़यां होंगी, पर सबके सब समान तो नहीं होंगे।’
‘तुम ठीक कहती हो, पर समधी जी के सिर पर सवार इस भूत को कैसे उतारा जाये?’
‘घर की ऐसी बातों से तो हमारी बेटी परेशान हो रही होगी। आप जाइए और बेटी को कुछ दिनों के लिए घर ले आइए।’
‘ठीक कहती हो। मैं कल ही जा रहा हूं।’
और दूसरे ही दिन घनेनाथ समधी के घर पहुंच गया। दोनों आपस में गले मिले और फिर थोड़ी देर तक घर गृहस्थी की बातें चलती रहीं उनके बीच।
‘प्रकाश बाबू का क्या समाचार है समधी जी?’
‘उसका तो कुछ पूछिए ही नहीं। वह तो घर को भुला ही बैठा है। ऊंचे लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित कर रखा है उसने।
‘भगवान करे इसका परिणाम अच्छा हो और अपने ऊंचे लक्ष्य को प्राप्त कर लें वे।’
‘वह तो होगा ही। अपनी मंजिल तक वह पहुंच ही जायेगा। यह मेरा अन्तर्मन कहता रहता है।’
‘समधी जी, अब यह बतावें कैसे-कैसे आना हुआ आपका।’
‘बेटी को कुछ दिनों के लिए साथ ले जाने आया हूं मैं। अगर आप हां कहें तो आज शाम को ही मैं वापस लौट जाना चाहूंगा।’
यह तो अच्छी बात है समधी जी, पर इसमे मेरे हां की क्या बात है भला। विवाहित लड़कियों के तो दो ही ठिकाने होते हैं न। एक पति गृह और दूसरा पितृ गृह। आज आप रुक जाइए कल सवेरे आपको बहू के साथ विदा करेंगे।
‘ठीक है। आपकी जैसी इच्छा।’
प्रमिला का मन मायके जाने के लिए तैयार तो था नहीं, पर जब मां की बात सामने आयी तो मन को मना लिया उसने, और दूसरे दिन मायके पहुंच गयी वह। मां की आंखों में आंसू देखकर बेटी ने कहा-‘हवा में जो बात है उससे चिन्तित नहीं होना है मां। प्रकाश एक अच्छे इंसान हैं। भरोसा है मुझे पति पर।’
‘अच्छी बात है बेटा, तुम्हारी बात सुनकर सुकून मिलता है मुझे, पर तुम्हारे पिता बहुत घबरा गये हैं। उन्हें निशि्ंचत करो, भरोसा दो उन्हें।’
‘ठीक है मां। ठीक है।’
‘पर बेटा, ससुर के ऐसे सोच की खबर तो तुम्हें पति को देनी होगी न।’
‘हां मां। उन्हें तो बताना ही होगा।’
‘तो इसमें और देर नहीं। कल ही प्रकाश बाबू को पत्र भेजो।’
प्रकाश को प्रमिला का पत्र मिला, पर प्रकाश का पत्र प्रमिला के पास पहुंचने में महीना लग गया।
प्रकाश ने पत्र में लिखा था——————–प्रमिला, पिता जी की बातों को अपने मन में जगह मत दो। एक कान से सुनो तो दूसरे कान से उसे बाहर निकाल दो। मुझ पर भरोसा रखो और निशि्ंचत रहो। अपने माता-पिता को भी मेरी ओर से निशि्ंचत करो। प्रमिला, जैसे अपनी छाया को अपने से कोई दूर नहीं कर सकता, ठीक वैसे ही मैं तुम्हें अपने से कभी दूर नहीं कर सकता हूं। तुम मेरी छाया हो और तुम्हीं मेरी ताकत भी हो। तुम्हें मेरा बहुत-बहुत प्यार और तुम्हारे माता-पिता को मेरा प्रणाम।
तुम्हारा ही
प्रकाश
पत्र पढ़कर सभी खुश हुए, खुश होते रहे।
समय भागता रहा। महीने पर महीने गुजर गये, पर न तो प्रमिला की ससुराल से किसी ने प्रमिला को याद किया और न प्रकाश का ही कोई पत्र शहर से आया।
तब पिता ने एक दिन बेटी से कहा-‘बेटा, कैसा लग रहा है तुम्हें सास-ससुर का आचरण और फिर तुम अपने प्रकाश को भी देखो। ऐसी स्थिति में भी क्या तुम ससुराल जाना चाहोगी बेटा?’
‘जाना तो होगा न पापा। क्यों घर तो वही है न मेरा।’
‘वह तुम्हारा घर कैसा जिसे तुम्हारी कोई चिन्ता ही नहीं।’
जैसा भी हो, पर है तो वही मेरा घर न पापा।’
‘पर लियावन के लिए कोई आवे तब न या फिर मुझसे कहे तब तो। ऐसे तो मैं तुम्हें ससुराल पहुंचाने नहीं जा सकता हूं।’
‘देखती हूं पापा, कुछ दिन और देख लेती हूं।’
‘देखने का समय नहीं है बेटा। समय तेजी से भागता चला जा रहा है। मेरी राय मानो बेटा और उस रिश्ते को खारिज कर दो।’ मां ने कहा।
‘नहीं मां, नहीं। ऐसा तो नहीं कर पाऊंगी मैं।’
‘प्रकाश का पत्र हमारे सामने है, पर उनकी नीयत तो उजागर हो रही है न। पत्नी को कोई इस तरह भुला बैठता है क्या? पर तुम आंखें बंद किये बैठी उनकी माला जप रही हो तो हम क्या करें?’
‘हठ छोड़ो बेटा और हमारी बात मान लो।’
‘नहीं मां, नहीं। यह कभी नहीं होगा मुझसे। पति मुझे भूल भी जायें, पर मैं——-। उनकी याद में मैं जी लूंगी मां।’
‘ठीक है। ऐसी बात है तो मैं और क्या कहूं तुम से। अब कोई बच्ची तो हो नहीं। अपना भविष्य संभालो बेटा। वैसे जब तक हम हैं ख्याल तो रखेंगे ही तुम्हारा, पर हमारे गुजर जाने के बाद–।
‘किसी का भरोसा नहीं करूंगी मैं। सिलाई कढ़ाई मुझे अच्छी आती है। जी लूंगी मैं। मेरी ओर से निशि्ंचत रहें। कोई दाग कभी नहीं लगेगा परिवार में मेरे कारण।’
छलकती आंखों को पोंछकर मां कहती है-‘बेटा, तुम्हारे भाग्य में प्रभू ने क्या लिखा है यह तो वही जानें।’
समय अपना पंख फैलाए अपनी राह चलता रहा। समय के विशाल फलक पर बहुत तरह की शुभ-अशुभ घटनाएं घटती रही।
प्रकाश देश की यू-पी-एस-सी- की परीक्षा में अच्छा रैंक लाकर उत्तीर्ण हुआ। उसके परीक्षाफल को देखकर लोग उसकी ओर आकर्षित होने लगे। बड़े-बड़े पदाधिकारी अपनी पुत्रियों की तस्वीरें प्रकाश के पास भेजने लगे। पत्रें में एक ही बात। मेरी पुत्री आपके ही लायक है। आप खुद आकर देख जाएंगी फिर स्थान बतावें तो हम अपनी लड़की को लेकर वहां पहुंच जाएं।
प्रकाश भारी उलझन में पड़ गया। खुद से बातें करता है वह-प्रमिला मैं क्या करूं? तुम्हें भूलूं तो कैसे? तुम्हारे भरोसे को धूल धुसरित कैसे करूं प्रमिला। आधुनिकाओं की तस्वीरों को जब उलट पुलट करता हूं तो तुम्हारी भोली-भाली तस्वीर उन तस्वीरों के पीछे खड़ी दिखाई पड़ती है मुझे। उलझ कर रह गया हूं मैं।
पर प्रकाश की मनः स्थिति बहुत दिनों तक टिक नहीं पायी। समय के प्रवाह में वह बह गया और एक बड़े पुलिस पदाधिकारी की आधुनिक ख्यालों की सुन्दर लड़की से कोर्ट मैरेज कर लिया उसने। प्रमिला को भुला ही दिया उसने।
खबर जब गांव पहुंची तो प्रकाश के माता-पिता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। बेटे की सफलता से उनके पांव धरती पर तो पड़ ही नहीं रहे थे, विवाह की खबर से वे आसमान में उड़ने से लगे। प्रमिला से मुक्ति जो मिल गयी थी उन्हें।
प्रमिला का गांव भी तो ससुराल से 10-12 कि-मी- पर ही बसा था। खबर पहुंचते देर नहीं लगी। खबर सुनकर प्रमिला के मुंह से बस इतना ही निकला-प्रकाश, आज मेरा भरोसा छिन्न-भिन्न हो गया। ज्यादा पढ़ लिख जाने पर आदमी ऐसा भी हो जाता है, यह आज ही जाना मैंने। प्रकाश, तुम खुश रहो। भगवान से यही प्रार्थना है मेरी।
प्रमिला के माता-पिता ने कहा-बेटा, धोखा खा गयी न तुम। बहुत भरोसा था न तुम्हें अपने पति पर। अब अपनी जिद का खामियाजा भोगो। पर एक रास्ता अभी है बेटा। प्रकाश पर मुकदमा ठोका जा सकता है क्योंकि तलाक नहीं हुआ तुम्हारा।’
‘आपकी बात ठीक है पिता जी, पर मैं ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहूंगी।’
‘बेटा, तुम्हें कैसे समझाऊं मैं, मेरी समझ में यही नहीं आता है।’
समय अपनी राह चलता रहा। अच्छी बुरी घटनाएं जगत में घटती रहीं। प्रमिला के माता-पिता दो तीन वर्षो के अन्तराल में इस भू-लोक से विदा हो गये। भाइयों ने प्रमिला से दूरी बना ली।
माता-पिता की मृत्यु से प्रमिला मर्मांहत तो हुई, पर भाइयों की दूरी से कोई मलाल नहीं हुआ, क्योंकि वह अपने पांव पर खड़ी थी।
और उधर प्रकाश देश का बड़ा प्रशासनिक पदाधिकारी बन बैठा। नयी पत्नी से तीन संताने हुई। एक लड़की और दो लड़के। समय के साथ बच्चे बढ़ते रहे, पढ़ते रहे। मणि माला का समय पर विवाह हुआ और पति के साथ विदेश जा बसी वह। बेटे पढ़ाई पूरी करके राज्य की प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने की तैयारी में लगे रहे।
प्रकाश का घर संसार खुशियों से भरा था। समय पूरा हुआ और सेवानिवृत्त हो गया वह।
अपनी सेवा अवधि में प्रकाश ने एक मकान बनवा लिया था शहर में। सेवा निवृत्ति के बाद अपने मकान में रहने लगा वह। वर्ष आते गये गुजरते गये।
इधर कुछ दिनंों से प्रकाश शहरी जीवन से उबने से लगा। उसे अपना गांव याद आने लगा तो उसने पत्नी से कहा-ईशानी, शहर में बहुत समय बिताए हमने। अब गांव चलो।
‘यह तो अच्छा ख्याल है आपका। मुझे भी गांव और गांव के लोगों से मिलने का अवसर मिल जायेगा। अब तक का जीवन तो शहरों में ही गुजर गया मेरा। सच में गांव तो मैंने देखा ही नहीं है।
और प्रकाश ने अपने गांव में एक बंगलानुमा सुन्दर मकान बनवाया और वर्ष लगते-लगते पत्नी के साथ गांव पहुंच गया वह। प्रकाश का यह गांव तो उसका पैतृक गांव था। सेवा अवधि में रहते हुए माता-पिता की मृत्यु पर सिर्फ दो बार गांव आया था वह। उसके लिए नया तो कुछ नहीं था, पर ईशानी के लिए सब कुछ नया था। खेतों में काम करते लोगों के नजदीक जाकर उन्हें देखती रहती। उनसे बातें करती, पर ग्रामीणों के आंचलिक शब्द कभी-कभी ईशानी के पीले नहीं पड़ते तो वह इधर-उधर देखने लगती। लोग उसे कई तरह से समझाते कि उसने क्या कहा और उसका क्या अर्थ होता है।
समय अपनी राह पर बढ़ता जा रहा था। गांव में उनका समय बहुत ही सुन्दर ढंग से गुजर रहा था पर इधर कुछ दिनों से प्रकाश कुछ चिन्तित सा रहने लगा था। ईशानी इसे लक्ष्य कर रही थी। एक दिन वह प्रकाश से पूछ बैठती है-प्रकाश, क्या हुआ है तुम्हें? कई दिनों से देख रही हूं मैं तुम्हें। शहरी जीवन से ऊब कर गांव आये, पर यहां भी मन नहीं लग रहा है क्या, मुझे साफ-साफ बताओ, तुम्हारी चिन्ता की वजह क्या है?
‘ईशानी————’ कह कर प्रकाश चुप रह जाता है। ‘कहो भी। चुप क्यों हो? मैं सुन रही हूं।’
‘ईशानी, मुझे मेरा पाप खाये जा रहा है। जवानी के उमंग में जो पाप किया है मैंने वह आज मुझे चैन से रहने नहीं दे रहा है।’
‘पहेली खड़ा मत करो। साफ-साफ कहो क्या किया है तुमने पिछले दिनों।’
और प्रकाश ने अपने विवाह की बात, प्रमिला का भरोसा, और अपना किया हुआ वादा सब कुछ अक्षर-अक्षर ईशानी के सामने रख कर कहा-ईशानी मैंने अपनी विवाहिता पत्नी की जिन्दगी के साथ——————-’ आगे अपनी बात पूरी न कर सका वह। रोने लगा वह।
‘विवाहिता पत्नी के साथ तुमने घोर अन्याय किया है। पाप नहीं, महापाप किया है तुमने। आसमान सिर पर उठाए वह जीती रही और तुम————–? देहात की लड़की तुम्हें कुछ कर न सकी वरना तुम्हारी सारी अफसरी बाहर कर देती वह।’
‘तुमने कहा प्रमिला अपने गांव में है तो फिर तुम मुझे वहां पहुंचाओ।
‘ईशानी मुंह कहां है मेरा कि मैं तुम्हें वहां ले चलूं। वहां के सारे रास्ते बंद हैं मेरे।’
‘तुम्हारे रास्ते बंद होंगे, पर मेरा रास्ता खुला है। तुम मुझे ले चलो, बस?’
‘ठीक है।’
और एक दिन प्रमिला के घर के सामने एक सुन्दर लम्बी कार जा रुकती है। कार देखकर पड़ोस के लोग धीरे-धीरे कार के इर्द-गिर्द जमा होने लगते हैं। पुरानी पीढ़ी के लोग तो समझ रहे थे, पर नयी पीढ़ी के लिए बात समझ के बाहर थी।
गाड़ी की आवाज सुनकर प्रमिला भी अपने घर के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी थी।
प्रकाश ने ईशानी को धीरे से बताया कि प्रमिला दरवाजे पर खड़ी है।
ईशानी कार से उतर कर प्रमिला के सम्मुख जाकर खड़ी हो जाती है और बड़े ही मधुर स्वर में कहती है-दीदी मैं ईशानी आपकी छोटी बहन। क्या आप घर के अंदर हमें नहीं बुलायेंगी?
‘हां हां क्यों नहीं? आइए। अन्दर आइए।’
घर के एक कमरे में बैठ जाते हैं सभी। ईषा भी कहती है-दीदी, आपके प्रकाश ने आपकी जिन्दगी से जो खिलवाड़ किया है उसके लिए कोई भी सजा छोटी होगी। दीदी, सच तो यह है कि ऐसा कोई मरहम ही नहीं है जो आपके जख्म को भर सके।
‘ईशानी इन्हें कोई सजा देने की बात तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती हूं। मैं तो ईश्वर से यह प्रार्थना करती रहती हूं कि प्रभु, मेरे पति को कभी कोई कष्ट मत देना। वह जहां रहें सुखी रहें।’
‘दीदी, यह क्या सुन रही हूं आपके मुंह से। आप धन्य हो दीदी, धन्य हो आप।’
‘ईशानी बहन, इसमें धन्यता की क्या बात है। यह तो पत्नी धर्म है हम भारतीय नारियों का।’
‘आपकी बात का कोई काट नहीं है दीदी। आप जैसी दीदी से मिलकर आज मैं धन्य हो रही हूं।’
‘दीदी, एक ही बात का अफसोस हो रहा है मुझे। काश! प्रकाश की करनी का पता मुझे पहले चला होता दीदी। समय तो बहुत पीछे छूट गया है दीदी, पर आपसे एक ही प्रार्थना है कि आप अपना घर चलिए। आपके बिना आपका घर सूना पड़ा है।’ हाथ की घड़ी देखकर आगे कहती है, ‘आपके बेटों को सब कुछ बता दिया गया है। बस दोनों अब पहुंच ही रहे हैं।’
‘वह देखो दीदी, उनकी बात करते-करते ये पहुंच भी गये।’
‘पल्लव, आर्यन, ये हैं तुम्हारी मां। इन्हें प्रणाम करो।’
दोनों प्रणाम की मुद्रा में झुकते हैं और प्रमिला उन्हें अपने अंक में समेट लेती है।
‘मां, और देर नहीं। अपने घर चलो मां। कल शाम तक आपकी बेटी मणिमाला भी गांव पहुंच रही है। मां, हम सब एक साथ मिलेंगे। बहुत आनन्द आयेगा मां।’ बेटे मां से कहते रहे।
‘दीदी, आपकी सेवा का अवसर मुझे मिलेगा यह बड़ा सौभाग्य होगा मेरा।’
गांव घर के बड़े, बुजुर्ग भी प्रमिला से कहने लगे-‘प्रमिला बेटा जाओ। अब तुम अपने घर जाओ। तुम्हारी छोटी सी गृहस्थी की देखभाल हम करते रहेंगे। कभी आकर अपनी गृहस्थी समेट कर ले जाना।’
ईशानी प्रमिला के चरणों में अपना सिर टिकाकर कहती है दीदी, अब और देर नहीं। घर चलें हम।’
अपनी भर आयी आंखों से प्रकाश देख रहा है। प्रमिला को कुछ कहने के लिए उसके पास बचा ही क्या है। वह चुपचाप प्रमिला को देखे जा रहा है।
धीरे-धीरे सभी घर से बाहर निकलते हैं और हाथ जोड़कर गांव वालों को प्रणाम करके अपनी-अपनी गाडि़यों में बैठ जाते हैं। सभी अपने हाथ हिलाकर एक दूसरे को विदा करते हैं।
यह एक अपूर्व मिलन था और थी एक अपूर्व विदाई। गांव वालों की आंखें ऐसे छलछला रही थीं जैसे विवाह के बाद लोग बेटी की विदाई कर रहे हों।