मार्च, 2023 अंक
नवसंवत विशेषांक
शाम से ही मैं घर के सारे जरूरी काम निपटा कर तैयार होकर अपने पति अनुराग के दफ्रतर से लौटने का इंतजार कर रही थी। आज हमें एक शादी में जाना था। वैसे तो अनुराग चाहते थे कि मैं इस शादी में अकेले ही शिरकत करूं क्योंकि यह शादी न तो हमारे किसी रिश्तेदार की थी और न ही किसी मित्र की, लेकिन मेरे कहने पर और इस शादी से जुड़ी मेरी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अनुराग मेरे साथ चलने को तैयार हो गए। इस शादी का मेरे लिए बहुत ही विशेष महत्व था।
वैसे सभी शादियां विशेष होती हैं और उनसे जुड़े हर रस्म होने वाले पति-पत्नी दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। शादी वह बंधन है जो दो आत्माओं को जन्म जन्मांतर के लिए एक ऐसे अनदेखे डोर में बांध देती है जिससे कई बार मनुष्य चाह कर भी इस बंधन से मुक्त नहीं हो पाता, खासकर स्त्रियां और यदि कोई स्त्री कभी किसी कारणवश इसे छोड़ कर या तोड़ कर आगे बढ़ने की सोचती या प्रयास भी करती है तो समाज और उसके अपने लोग ही रोड़ा बन कर खड़े हो जाते हैं।
शादी के समय का हर एक पल और रस्म लड़की के लिए उसके जीवन का बहुत ही खूबसूरत और महत्वपूर्ण पल होता है। जिस क्षण उसे अपने होने वाले पति के नाम की हल्दी लगती है उसी क्षण वह अपने भावी पति के रंग में रंग जाती है और जब उसके हाथों में उसके होने वाले पति का नाम लिखा जाता है तो वह उसी क्षण ताउम्र के लिए अपना नाम उस नाम के संग जोड़ लेती है। मेंहदी से लिखा वह नाम केवल उसके हाथ में नहीं अपितु उसके हृदय में अंकित हो जाता है और शादी के संपन्न होते ही वह कई नए रिश्तों से जुड़ जाती है और वह आजीवन उन्हीं रिश्तों को निभाने, सहेजने और समेट कर रखने में गुजार देती है।
मुझे आज भी स्मरण है वह दिन जब मैंने पहली बार कोमल को देखा था, वह बिल्कुल अपने नाम की तरह कोमल और मासूम लग रही थी। सादा बेरंग सा सलवार सूट पहने अपनी दोनों हथेलियों से अपने दुपट्टे की छोर को दबाती चुपचाप सिर झुकाए, अपनी नजरों को नीचे जमीन पर गड़ाए खड़ी हुई थी और उसकी तेज तर्रार मां शान्ति जो बिल्कुल अपने नाम के विपरीत थी मुझसे ऊंची आवाज में कहने लगी।
‘देखो बीबी जी इस पूरे इलाके में हमारी जैसी कामवाली बाई तो आप को ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे वह तो मिश्रा मैडम के कहने पर मैं आपके यहां काम करने को तैयार हो गई। वरना मेरे पास तो बहुत काम है। मैं झाड़ू, पोंछा बर्तन सब काम अच्छे से करूंगी और आप कहेंगे तो आपके छोटे-मोटे एक्सट्रा काम भी कर दूंगी लेकिन तनख्वाह मुझे टाइम पर चाहिए और पूरा पन्द्रह सौ लूंगी, इससे एक पैसा कम नहीं और जिस दिन मैं नहीं आई मेरी ये बेटी कोमल आ जाएगी काम पर।
‘मतलब तुम कभी छुट्टी नहीं लोगी?’ मैंने आश्चर्य से संदेह जताते हुए कहा।
‘नहीं बीबी जी हम छुट्टी नहीं लेते हैं। मान लो कोई तीज त्यौहार हो या कोई काम आ पड़े तो दूसरी बात, आप चाहो तो मिश्रा मैडम से पूछ लो।’
इस शान्ति के हाव-भाव, तेवर और पहनावा देख कर तो साफ लग रहा था कि वह चलता पुर्जा है। सज संवर कर तो ऐसे आई थी मानो कोई शादी ब्याह में आई हो।
जवान बेटी एकदम सादे कपड़ों में और स्वयं सर से लेकर पांव तक सजी हुई चटक हरे रंग की साड़ी और उस पर चटक लाल हरे रंग की चमकीली कांच की चूड़ियों से पूरी कलाई भरी हुई, माथे पर बड़ी सा लाल बिंदी और सिंदूर से इतनी चौड़ी मांग भर रखी थी कि पूछो ही मत।
एक पल के लिए तो लगा कि मैं उसे काम के लिए मना ही कर दूं लेकिन इस अन्जान शहर में कामवाली बाई ढूंढना भी कोई आसान काम नहीं था। अभी केवल दो ही दिन हुए थे हमें बस्तर के इस छोटे से शहर में आए क्योंकि अनुराग सरकारी विभाग में थे और उनका ट्रांसफरेबल जॉब था। वैसे भी पिछले दो दिनों से बिना कामवाली के काम करते-करते मैं थक चुकी थी और अभी पूरा घर भी जमाना और फिर इसे मिसेज मिश्रा ने भेजा था जो कि पिछले दो साल से यहां रह रही थी और अनुराग के कोलीग मिस्टर मिश्रा की धर्मपत्नी थी। वैसे तो मिसेज मिश्रा ने पहले ही बता दिया था कि शान्ति तेज तर्रार और बातूनी है पर काम अच्छा करती है, भरोसे की है और सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह नागा भी नहीं करती।
आज के जमाने में ऐसी बाई मिलना भी किस्मत की बात है जो छुट्टी नहीं मारती इसलिए मैंने शान्ति की सभी बातों को नजर अंदाज कर उसे कल से काम पर आने को कह दिया।
अगले दिन सुबह ठीक समय पर शान्ति अपनी बेटी कोमल के संग काम पर आ गई। आज भी कोमल सादे से सूट में शान्त थी और शान्ति कल की तरह ही पूरे मेकअप में सजी संवरी हुई थोड़े से काम निपटाने के उपरांत शान्ती कहने लगी-
‘बीबी जी मैं जा रही हूं बाकी के काम कोमल कर लेगी’ ऐसा कह कर वह चली गई।
कोमल चुपचाप बिना कुछ कहे काम करने लगी। मैंने एक दो बार उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उसने केवल उतना ही जवाब दिया जितना मैंने उससे पूछा और वह अपने काम में ही लगी रही।
झाड़ू करती हुई कोमल जब मेरे कमरे में गई तो मैंने देखा वह मेरे डेªसिंग टेबल के सामने खड़ी हो स्वयं को आईने में बड़े गौर से निहार रही है फिर वह अपने हाथों से अपने बाल को संवार, अपना दुपट्टा सिर पर रख खुद को घूम-घूम कर आगे पीछे देखने लगी, उसके बाद डेªसिंग पर रखी मेरी चूड़ियों को ललचाई नजरों से देखती रही, शायद उसे मेरी चूड़ियां अच्छी लग रही थीं।
कोमल यौवन के उस द्वार पर खड़ी थी जहां किसी भी नवयौवना के मन में कई तरह की इच्छाओं के अंकुर पल्लवित होते हैं और फिर कोमल तो अभी-अभी यौवन की दहलीज पर कदम रख ही रही थी। न जाने उसके मासूम दिल में क्या-क्या कपोल फूट रहे थे।
अब तो यह रोज का हो गया था कि शान्ति आधा काम करती और आधा छोड़ कर चली जाती बाकी के काम कोमल ही करती और हर रोज जब कोमल मेरे कमरे में जाती स्वयं को शीशे में निहारती अपने शरीर के उभरते अंगों को गौर से देखती और साथ ही साथ डेªसिंग टेबल पर रखे मेरे सिंगार के सामानों को भी देखती पर कभी हाथ नहीं लगाती। कोमल के सादे रूप को देखकर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा सकता था कि उसके अंदर स्वयं को सजाने संवारने की प्रबल लालसा है जो शायद वह अपनी मां शान्ति के दवाब की वजह से मन में दबाए हुए थी।
एक रोज यूं ही मैं शान्ति से बातों बातों में पूछ बैठी, ‘शान्ति तुम इतनी सारी कांच की चूड़ियां पहनती हो तुम को काम करने में असुविधा नहीं होती।’ अरे नहीं बीबी जी इसमें क्या असुविधा होगी यह तो सुहाग की निशानी हैं। बडे़ भागों वाली होती है वह औरतें जिन्हें चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर नसीब होती है। हमारे बिरादरी में तो इन सब का बड़ा मान है बीबी जी कोई इसे ऐसे ही नहीं पहन सकता।’
‘अच्छा तो यह सब सुहाग की निशानी है इसलिए तुम पहनती हो’ -मैं मुस्कुराती हुई बोली।
‘और नहीं तो क्या बीबी जी ये सब मैं अपने पति के लिए ही तो पहनती हूं’ वह शर्माती हुई बोली।
‘तुम इतने अच्छे से तैयार रहती हो थोड़ा कोमल को भी अच्छे से रहने को कहा करो यही तो उम्र है उसकी सजने संवरने की, वैसे क्या उम्र होगी कोमल की—?’
यह सुनते ही शांति के चेहरे का रंग बदल गया और उसने बड़ा रूखा सा जवाब दिया जिसे सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं सोचने लगी एक मां अपनी बेटी के लिए ऐसा कैसे कह सकती है। शांति ने कहा।
‘पूरे अठारह साल की हो गई है कर्मजली मेरी छाती पर मूंग दलने को पैदा हुई है। अच्छा होता जो उसे पैदा होते ही मार डालती या कहीं फैंक देती——- अच्छा बीबी जी चलती हूं बाकी के काम ये नाशपिटी कर लेगी।’
ऐसा कहती हुई शान्ति वहां से तेजी से चली गई और कोमल चुपचाप काम करती रही जैसा उसने कुछ सुना ही न हो लेकिन उसकी नम आंखों ने उसके दर्द बयां कर दिए।
दिन अपनी ही गति से चल रहा था और कोमल का यौवन पूर्णिमा की चांद की भांति दिन व दिन खूबसूरत और मादक रूप लेने लगा था जिसे शान्ति अब लोगों की नजरों से बचाने का भरसक प्रयास कर रही थी, यही वजह थी अब वह कोमल को किसी के भी घर काम पर ले जाने से डरने लगी थी। वह कोमल को केवल मेरे ही घर पर काम के लिए लाती शायद शान्ति यह जान चुकी थी कि कोमल के प्रति मेरे दिल में स्नेह व सहानुभूति है।
एक रोज मैं घर के कुछ जरूरी सामान खरीदने बाजार पहुंची तो मुझे वहां एक गुलाबी रंग का सलवार सूट पसंद आ गया। मुझे लगा यह सूट कोमल पर खिलेगा इसलिए मैंने उसे खरीद लिया फिर मुझे याद आया कि कोमल अक्सर मेरी चूड़ियों को चाहत भरी निगाहों से देखती है तो क्यों न मैं उसके लिए कुछ चूड़ियां भी खरीद लूं यह सोच कर मैंने उसके लिए चूड़ियां भी ले ली।
अगले दिन सुबह जब कोमल अपनी मां शान्ति के साथ काम पर आई और जब मैं कोमल के हाथों में सूट और चूड़ियां देने लगी तो शान्ति ने मुझे रोक दिया। मैंने आश्चर्य से शान्ति की ओर देखा तो शान्ति की आंखों में जमा बर्फ पानी बन कर पिघल गया। मां का दिल जो पत्थर होने का दिखावा कर रहा था, पसीज गया और शान्ति रोते हुए कहने लगी-‘इसे यह सब मत दीजिए बीबी जी, इस अभागिन के भाग्य में ये चूड़ियां और रंगीन कपड़े नहीं हैं। ये बाल विधवा है। चौदह साल की उम्र में ही बिरादरी वालों के दबाव में आ कर हमने इसकी शादी कर दी थी और अभी इसका गौना भी नहीं हुआ था कि सांप के काटने से इसके पति की मौत हो गई। इस अभागी को तो पति के साथ रहने का सुख ही नहीं मिला।’
यह सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि जिस की उम्र अभी रंगीन सपने देखने की है, जिंदगी को खुल कर जीने की है उसे रंगीन कपड़े पहनने तक का अधिकार नहीं—–। ऐसे बेबुनियाद नियम समाज के किस ठेकेदार ने बनाया है और क्यों—?
मैंने शान्ति से कहा-
‘लेकिन शान्ति अभी कोमल के आगे पूरी जिंदगी पड़ी है तो क्या ये पूरी जिंदगी ऐसे ही बिताएगी।’
‘अब उसकी किस्मत में यही लिखा है तो हम क्या कर सकते हैं।’
मैं शान्ति को प्रेम से बिठा, उससे समझाने की कोशिश करने लगी। मैंने शान्ति से कहा-
‘देखो शान्ति कोमल के मन में न जाने कितने अरमान पल रहे होंगे, वह भी अपने जीवन को जीना चाहती है, मुस्कुराना चाहती है लेकिन समाज के बनाए दायरे और नियमों ने उसे बांध रखा है। वह चाह कर भी उससे बाहर नहीं आ पा रही है वह अपने आप को उस लड़के की विधवा समझ कर रंगों और खुशियों से नाता तोड़ बैठी है जिसे वह ठीक से जानती तक नहीं, जिसके साथ वह कभी रही ही नहीं, तुम मां हो—-तुम चाहो तो फिर से उसे एक हंसती खेलती जिंदगी दे सकती हो। तुम उसकी दोबारा शादी करा दो, उसे भी जीने का हक है। मेरा इतना कहना था कि शान्ति उठ खड़ी हुई और कहने लगी-
‘बीबी जी यह सब हमारे बिरादरी में नहीं होता। न कोई विधवा रंगीन कपड़े पहनती हैं और न उसकी दूसरी शादी होती है। बीबी जी मुझे इसी समाज में रहना है पूरी बिरादरी हम पर थूकेगी ऐसा कभी नहीं हो सकता।’
ऐसा कहती हुई शान्ति कोमल को खींचती हुई। वहां से ले जाने लगी तो मैं शान्ति के हाथों में कोमल के लिए लाई हुई सूट और चूड़ियां थमाते हुए बोली।
‘बस मुझे मेरे एक सवाल का जवाब देती जाओ। यदि यह घटना उस लड़के के साथ नहीं हो कर कोमल के साथ हुआ होता, यदि कोमल की सांप काटने से मौत हो गई होती तो क्या उस लड़के के माता-पिता उस लड़के को बाध्य करते, क्या वे उसे ऐसा कहते कि तुम सारी जिंदगी उस लड़की की याद में गुजार दो जिसे तुमने ठीक से देखा तक नहीं, जिसके साथ तुम कभी नहीं रहे या फिर ये कहते तुम हंसना छोड़ दो, मुस्कुराना छोड़, रंगीन कपड़े पहनना छोड़ दो।
शान्ति मुझे कोई जवाब दिए बगैर कोमल को अपने संग ले गई। दूसरे दिन न शान्ति काम पर आई और न ही कोमल। मैंने मिसेज मिश्रा से बात की तो पता चला वह दोनों वहां पर नहीं आए हैं, पूरा हफ्रता बीत गया, मुझे कोमल की चिंता होने लगी। तभी एक शाम मैंने देखा शान्ति और कोमल मेरे सामने दरवाजे पर खड़े हैं और कोमल मेरे द्वारा दिया हुआ गुलाबी सूट पहनी हुई है, साथ में चूड़ियां भी। मैंने उन्हें अंदर आने को कहा, अंदर आने के बाद शान्ति मेरे हाथों में कोमल की शादी का कार्ड देते हुए हाथ जोड़कर कहने लगी, ‘आप बिल्कुल ठीक कहता है बीबी जी, इसे भी जीने का हक है, इसे ही क्यों हर विधवा को खुल कर जीने का हक है, खुश रहने का हक है और दूसरी शादी करने का भी अधिकार है। यह बात हम औरतें नहीं समझेंगी तो कौन समझेगा। बीबी जी अगर कोमल के लिए कोई लड़का नहीं भी मिलता ना तब भी अब मैं इसे सादे बेरंग कपड़े पहनने को मजबूर नहीं करती।
तभी कोमल मेरे पैरों को छूती हुई बोली-‘बीबी जी आप मेरी शादी में जरूर आइएगा।’
मैं अपने ही विचारों में खोई हुई थी कि डोरबेल बजा, मेरे दरवाजा खोलते ही मेरे पति सामने थे मुझे देख कहने लगे,‘शादी में चलने के लिए तैयार हो?’
मैंने हां में सिर हिला दिया और थोड़ी देर बाद हम कोमल की शादी के लिए निकल पड़े, मैंने पहले से ही कोमल के लिए उसकी पसंद की रंग बिरंगी चूड़ियां और पीले रंग की खूबसूरत जरी वाली साड़ी गिफ्रट पैक कर रखी थी।