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दुखी न हो

बाल कविता गौरी शंकर वैश्य विनम्र

जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

एक दिवस कौवे ने सोचा
मेरा जीवन अंधा कूप।
काला रंग, आवाज न अच्छी
सब चिडि़यों में महाकुरुप।


मन में हीनभावना आई
पहुंचा बगुला मित्र के पास।
उसने पूछा-मुझे बताओ
किस कारण हो दुखी-उदास।


कौवा बोला-क्या बतलाऊं।
मैं बदसूरत, भू पर भार।
तुम कितने गोरे-चिट्टे हो।
मिला सफेदी का उपहार।


बगुला ने की प्रकट निराशा
मैं भी जब देखूं तोता।
हरे पंख और लाल चोंच से
वह कितना सुंदर होता।


कौवा पास गया तोते के
कहा-हो तुम सुंदर कितने
‘टें टें टें’ हरदम गाते हो
सचमुच हो तुम खुश इतने।


तोता बोला-कौवा भाई
मेरे लिए है दुख की बात।
जब से मैंने मोर को देखा
मैं भी सोच रहा दिन-रात।


रंग बिरंगे पंखों वाला
दूजा सुंदर पक्षी कौन।
खूब नाचता है खुश होकर
देख सभी रह जाते मौन।


कौवा, मोर को लगा ढूंढने
आया कहीं न उसे नजर।
कुछ चिडि़यों ने उसे बताया
मोर गए सब चिडि़याघर।


कौवा चिडि़याघर जा पहुंचा
किया प्रशंसा, पूछा हाल।
दुखी मोर ने कहा सिसककर
सुंदरता ही बनी है काल।


रंग रूप जो मिला है जिसको
समझो उसे ईश-उपहार।
सुंदरता ने मुझे दिलाया
पिंजड़ेवाला कारागार।


मोर ने समझाया कौवे को
दुखी न हों, करके तुलना।
जो जैसा है, वह सुंदर है
अच्छा है मिलना-जुलना।

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