Pradhanmantri fasal beema yojna
Homeबाल जाह्नवीपरिवर्तन

परिवर्तन

बाल कहानी अनुपम कुमार सिंह

जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

मैं पहली बार कक्षा में उत्तर देने के लिए खड़ा हुआ था। मेरी टांगे कांप रही थी।

विद्यालय में इस बार वार्षिकोत्सव के अवसर पर प्रधानाध्यापक ने घोषणा करते हुए बच्चों से कहा, ‘इस बार विद्यालय की ओर से रविवार को ‘मेधावी छात्र सम्मान समारोह’ का आयोजन किया जायेगा। जिसमें अपने विद्यालय के इस वर्ष के दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में सर्वाधिक अंक पाने वाले 14 छात्रें को सम्मानित किया जायेगा। सभी सम्मानित छात्र मंच पर आकर आप सभी को अपने-अपने प्रेरणात्मक अनुभव सुनायेंगे।’
रविवार के दिन विद्यालय में खूब चहल-पहल थी। स्कूल भवन को रंगीन झंडें पताकाओं से सजाया गया था। सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले सभी छात्रें को मंच के निकट लगी कुर्सियों पर बैठाया गया था।
समारोह का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर सरस्वती वंदना से किया गया। इसके बाद सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्रें को एक-एक कर सम्मान देने हेतु मंच पर बुलाया जाने लगा। सम्मान प्राप्त करने के पश्चात हर छात्र मंच पर लगे माइक से अपना अनुभव शिक्षकों और छात्रें को सुनाता, जिससे जूनियर छात्रें को मनोरंजन के साथ-साथ, सीनियर छात्रें के अनुभव से मार्गदर्शन भी प्राप्त हो रहा था।
समारोह बहुत ही सुंदर ढंग से चलता रहा। अब ‘प्रकाश’ को मंच पर बुलाया गया। मंच पर पहुंच कर प्रकाश ने अन्य सभी सम्मानित छात्रें की तरह माइक की तरफ बढ़ गया। उसने कहना शुरू किया।
आदरणीय गुरुजन तथा प्यारे भाइयों,
मुझे जो सम्मान आप लोगों के द्वारा मिला है, उसे पाकर मेरा आत्मविश्वास और भी अधिक बढ़ा है। मैं आप लोगों को एक घटना सुनाना चाहता हूं, जिसने मेरी जीवन की दिशा ही बदल दी।
आज से छह सात माह पूर्व की बात है। उस समय मैं अपनी कक्षा में सबसे पीछे बैठकर गप्पें और शरारतें किया करता था। पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता था। सहपाठियों से उलझना, मारपीट करना, सिगरेट पीना आदि बुरी आदतें मुझ में थी। परीक्षा के समय साथ बैठे सहपाठी की कापी से नकल मारना, चोरी करके उत्तीर्ण हो जाना मात्र मेरी पढ़ाई थी।
हमारी अर्द्धवार्षिक परीक्षा शुरू हुई थी। मेरी सीट हमारी कक्षा में आये नये छात्र मानु के साथ वाली बेंच पर थी। मैं मानु की कापी से नकल करना चाहता था परन्तु उसने साफ शब्दों में मुझे मना कर दिया। मैंने उसे चेतावनी दी कि अगर मुझे नकल करने नहीं दोगे तो तुम भी परीक्षा नहीं दे पाओगे। परन्तु मानु मेरी बात पर ध्यान न देकर अपनी कापी में प्रश्नों का उत्तर लिखता रहा। मैं यह देखकर बुरी तरह चिढ़ गया।
परीक्षा के तीन दिन इसी तरह गुजर गये। चौथे दिन की परीक्षा समाप्त होने के बाद मुझे मौका मिल गया। वह जैसे ही स्कूल से बाहर आया, मैं उस पर झपट पड़ा। अचानक हुए इस हमले से उसका संतुलन बिगड़ गया। वह लड़खड़ा कर सड़क पर गिर गया। सड़क पर पड़े एक बड़े पत्थर से उसका सिर टकराया और उसके सिर से खून निकलने लगा। यह देख मैं वहां से खिसक गया।
अगले दिन मैं डरते-डरते स्कूल में आया। मानु के सिर पर पट्टी बंधी थी। वह बेहद कमजोर दिख रहा था। ऐसी हालत में भी वह परीक्षा देने चला आया था। उसने मेरी शिकायत भी नहीं की थी। मुझे लगा वह मुझसे डर गया है।
अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हो जाने के बाद कक्षा फिर से प्रारंभ हो गई। मैं पहले की तरह पीछे की बेंच पर बैठा था। मानु, जो सदा सबसे आगे की बेंच पर बैठा करता था, आकर मेरे साथ बैठ गया। यह देखकर मैं ही नहीं, बल्कि कक्षा के सभी छात्र आश्चर्य में पड़ गये। मैंने सोचा शायद मानु मुझसे दोस्ती करना चाहता है। लगता है वह मुझसे डर गया है। परन्तु उसने मुझ से बात करने की जरा भी कोशिश नहीं की। बल्कि मैं ही दिन भर परेशान होता रहा, क्योंकि शिक्षकों द्वारा पूछे गये प्रत्येक सवाल का जवाब देने के लिए वह हाथ खड़ा कर देता और शिक्षक उसका जवाब सुनने के लिए पीछे चले आते। शिक्षक कहीं मुझसे भी कुछ पूछ न बैठें, इस डर से मैं सिर झुकाकर मानु की कापी को पढ़ता रहता। मानु द्वारा लिखे गए नोट्स को पढ़कर मुझे भी पाठ्य विषय की जानकारी थोड़ी-थोड़ी हो रही थी, परन्तु मैं दिन भर पढ़-पढ़ कर परेशान हो रहा था।
दूसरे दिन वह फिर मेरे ही पास बैठा। उस दिन भी मेरा वही हाल रहा। मेरी बेंच पर मेरे साथ बैठने वाला दोस्त गोपाल मुझसे बोला, ‘क्यों प्रकाश, दो दिनों से तुम बिलकुल भींगी बिल्ली बने हुए हो। पढ़ाकू मच्छर के साथ बैठ कर लगता है अपना शेर भी मच्छर बन गया है।’
उसकी इन बातों को सुनकर लगा कि यह सब मानु के कारण ही मुझे सुनना पड़ रहा है। मैंने गुस्से में गोपाल से कहा, ‘मैं भीगी बिल्ली बन गया हूं या मच्छर, यह तुम्हें शाम को दिखा दूंगा।’ मेरी बात सुनकर वह हो—-हो—–हो———कर हंसने लगा, जिससे मेरा गुस्सा और अधिक बढ़ गया। मैंने मन ही मन सोच लिया कि आज मानु को खूब पीटूंगा।
शाम को छुट्टी होने के बाद स्कूल से बाहर निकलते ही मानु के गिरेवान को पीछे से पकड़ा। उसने चौंक कर पीछे की ओर देखा। तब तक मैंने एक घूंसा चला दिया। उसने बड़ी फुर्ती से अपना गिरेवान छुड़ाकर मेरे घूंसे को अपने हाथों पर रोक लिया। जब तक मैं संभलता उसने मेरा हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ मरोड़ दिया।
मैं उसके बंधन में आ गया था। मुझे लगा मानु ताकत और फुर्ती में मुझसे कहीं ज्यादा है।
तभी वह बोला, ‘प्रकाश हमारे माता-पिता हमें यहां पढ़ने के लिए भेजते हैं। मारपीट करने के लिए नहीं।’ यह कहकर उसने मुझे छोड़ दिया और अपने घर की तरफ चल पड़ा।
उसकी बात ने, उसके व्यवहार ने मुझे उसकी ओर खींच लिया।
वह प्रतिदिन मेरे साथ बैठता। अब मैंने भी उसी की तरह कापी पर शिक्षक द्वारा पढ़ाये गये पाठ को लिखना शुरु कर दिया। अक्सर वह मेरी कापी को लेकर पढ़ता, जो भी गलतियां होतीं, उन्हें ठीक कर देता। गणित में तो जैसे वह मास्टर था। जो भी प्रश्न मैं हल नहीं कर पाता, उसे वह बेहद सरल ढंग से हल करके मुझे समझा देता।
एक दिन शिक्षक ने वर्ग में एक प्रश्न पूछा, मैंने भी अपना हाथ ऊपर उठाया। यह देखकर हमारे शिक्षक चौंक पड़े। जबकि मैंने देखा कि मानु प्रसन्नता से गद्गद् है। शिक्षक महोदय भी शायद मेरी परीक्षा लेना चाहते थे, उन्होंने मुझसे ही उत्तर देने को कहा।
मैं पहली बार कक्षा में उत्तर देने के लिए खड़ा हुआ था। मेरी टांगे कांप रही थी। मेरी इस स्थिति को शायद मानु भांप गया था। तभी उसने अपना हाथ बढ़ाकर मेरे हाथ को धीमे से पकड़ लिया। मुझमें साहस आ गया। उत्तर सुनकर शिक्षक महोदय ने ‘शाबास’ कहा। यह एक शब्द मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं था। मुझे उसी दिन समझ में आया कि नायक और खलनायक में क्या अंतर होता है।
मैं चाहता हूं कि दसवीं कक्षा में सर्वाधिक अंक पाने वाला मेरा मित्र मानु मंच पर आकर पूर्व में हुई मेरी गलती जिससे उसके सिर में चोट लगी थी को क्षमा कर दे। इतना कहते-कहते प्रकाश का गला भर आया और उसकी आंखों से आंसू बह निकले।
तभी लगभग दौड़ते हुए मानु मंच पर आया और प्रकाश को गले से लगा लिया। शिक्षक तथा छात्रें की तालियों की गड़गड़ाहट से सारा वातावरण गूंज उठा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments