बाल कहानी कन्हैयालाल मंगलानी
जाह्नवी जनवरी 2023 युवा विशेषांक
राजा ने पंडित जी को धार्मिक गंथों को फिर से पढ़ने हेतु क्यों कहा। पंडित जी को आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई।
एक पंडित जी राजा के पास पहुंचे और बोले, महाराज मैंने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया है, मैं राजमहल में कथा सुनाने की इच्छा रखता हूं। कृपया मेरी इच्छा पूरी करें, वैसे भी विद्वानों का आदर सत्कार करना राजा का परम धर्म है। राजा बुद्धिमान थे, वे समझ गये कि पंडित जी धन
के साथ-साथ प्रसिद्धि पाना चाहते हैं। कुछ सोचकर राजा ने कहा, ‘पंडित जी मैं आपसे कथा अवश्य सुनना चाहता हूं, किन्तु मेरी एक प्रार्थना है, उन ग्रंथों को आप एक दो बार और पढ़ लें। उसके बाद यहां पधारने की कृपा करें।’ पंडित जी राजा की बात सुनकर उदास हो गए और खिन्न मन से घर लौट गए।
घर पहुंचने पर पंडित जी ने सारी बातें अपनी पत्नी को बताई। पत्नी ने कहा, ‘राजा कहते हैं तो क्यों न धार्मिक ग्रंथों को एक बार पढ़ लो और फिर राजा के पास जाओ।’ पंडित जी अपनी पत्नी की बात से सहमत हो गए। उन्होंने धार्मिक ग्रन्थों को एक बार और पढ़ा और उन ग्रंथों के संबंध में पूछे जा सकने वाले प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने में अपने को समर्थ बनाकर वे राजा के पास पहुंचे।
राजा ने स्वागत कर पूछा, ‘क्या आपने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर लिया?’ पंडित जी ने कहा, जी, अवश्य, आपकी आज्ञा अनुसार मैंने धार्मिक ग्रंथों को शुरू से अंत तक पढ़ लिया है। मैं आपके दरबार में उसे अच्छी तरह विस्तार से समझा सकता हूं।’ राजा बोले, ‘श्रीमान मैं आपसे कथा निस्संदेह सुनूंगा, बस एक बार और उन ग्रंथों को फिर पढ़ लें।’ पंडित जी बहुत निराश होकर वापस लौट गए। पंडित जी ने उन ग्रंथों को पढ़ने के लिए एकान्त जगह चुन ली और खूब एकाग्रता के साथ अध्ययन करने लगे। इस बार ग्रंथों में उन्हें नए-नए अर्थ दिखे। भगवान की महिमा ने उनके चित्त को हर लिया। वे उसमें इतने रम से गये कि घर भी नहीं जाते थे। ग्रंथों के पठन में ही उनका सारा समय जाता था। अब उन्हें धन और प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रही। वे यह भी भूल गए कि उन्हें राजा के पास जाना था। ऐसी स्थिति को देखकर पंडित जी की पत्नी चिन्ता में पड़ गयी। उसके मन में विचार आया, पति तो भगवान की भक्ति में रम गए हैं। उन्हें तो किसी बात की चिन्ता नहीं दिखाई देती। घर का निर्वाह कैसे होगा? इस बात से चिन्तामग्न होकर वह राजा के पास पहुंची और उनको सारा वृतांत सुनाया। अब राजा प्रसन्न होकर स्वयं ब्राह्मण के पास पहुंचे और पंडित जी के चरणों में गिर पड़े। राजा ने क्षमा मांगी, पंडित जी ने कहा, ‘धर्मशास्त्रें को चित्त लगाकर पढ़ने से ही ‘आत्मज्ञान’ मिलता है। अतः मैं अब इन ग्रंथों का सही अर्थ जान चुका हूं।’