कहानी सुधा शर्मा
फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक
एक संभ्रान्त मैडम से भिखारिन ने साड़ी मांगी।
वे दे न सकी। परन्तु तभी उसके सम्मुख एक घटना घटी
जिससे उसे अपने व्यवहार पर शर्म आ गई।
सामने सेंटर टेबल पर रखा निमंत्रण पत्र वंदना को अति उत्साहित कर रहा था। यह उसके लाडले भतीजे की शादी का संदेश लेकर आया था जिसकी उसे बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी। ‘इसकी शादी के लिए तो मैं दो अच्छी-अच्छी साड़ियां खरीदूंगी।’ मन ही मन वंदना बुदबुदा बैठी। चलो बाजार जाने से पहले एक बार अपनी अलमारी में सहेजी साड़ियों पर निगाह मार लेती हूं किस पर ड्राईक्लीन करानी है किस पर चरख चढ़वाना या प्रेस करानी है वगैरह-वगैरह।
अति उत्साह के वशीभूत हो उसने अपनी सेफ खोली और साड़ियों का निरीक्षण शुरू किया वैसे भी यह काम वह अपने पति के आने से पहले ही निपटाना चाहती थी नहीं तो फिर वह कहेंगे-अरे इतनी साड़ियां तो हैं फिर नई साड़ी खरीदकर क्या करोगी वैसे भी तुम साड़ियां पहनती कहां हो, वे तो बस अलमारी की शोभा बढ़ाने के लिए हैं। पर उन्हें क्या पता शादी ब्याह में तो ट्रेडिशनल डेªस ही पहनी जाती है और हर शादी में वह ही तो लोग होते हैं। एक शादी से दूसरी शादी में अगर सेम साड़ी पहन लो तो कोई न कोई ताना मार ही देता है-अच्छा यह वही साड़ी है न जो तूने बंटी भैया की घुड़चढ़ी में पहनी थी। न भाई न मुझे ऐसी बेइज्जती नहीं करानी।
दो साड़ियां खरीदूंगी एक तो घुड़चढ़ी के लिए और दूसरी बारात के समय पहनने के लिए——ऊहूं बारात के लिए तो लहंगा, लांचा गाऊन या कोई अच्छी सी डेªस ले लूंगी।
हैंगर में लटकी साड़ियों को इधर-उधर करती है फिर दीवान में रखी साड़ियों का निरीक्षण करती है, अरे ये साड़ी तो मेरी शादी के समय की है, ठीक है बनारसी साड़ियों का फैशन कभी जाता नहीं लेकिन ज्यादा पुरानी हो गई है। और जरी गोटे की साड़ी का अब रिवाज नहीं है। दबके के काम की साड़ी थोड़े दिनों पहले शिल्पा की शादी में पहनी थी। शादी में साड़ियां भी तो कई चाहिए। लेड़ीज संगीत के लिए, मेंहदी फंक्शन के लिए, हल्दी बान के लिए।
तभी गली में एक फेरी वाले की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। साड़ियों के बदले में बर्तन ले लो।’ वंदना को विचार भा गया। बहुत पुरानी साड़ी देने में क्या फर्क पड़ता है। उसने ऊपर की बालकनी से ही आवाज लगाई और साड़ियां लेकर नीचे तल पर पहुंच गई, देखते ही एक टब पसंद आ गया। ‘ये टब देना भैया।’
पहले साड़ी दिखाओ बहन जी। सादी साड़ियां हैं तो दस साड़ी और कामवाली चार साड़ी।
‘भैया ये रही साड़ी और इसे मैंने केवल एक बार ही पहना है, देखो कितनी कीमती साड़ी है ये तो एक ही चलेगी।’
‘बहन जी ऐसी दो साड़ी और दीजिए। एक में तो काम नहीं चलेगा।’ वंदना ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा, चुपचाप गई और एक साड़ी और उठा लाई।’ लो भैया और इसके बाद एक भी साड़ी नहीं मिलेगी ये जरी की साड़ी है केवल एक बार पहनी है। वह तो रखी-रखी पुरानी सी लगने लगी है। अब तो ऐसी साड़ी बड़ी महंगी आएगी।’
आपकी बात ठीक है बहन जी, अब आप हमें नई साड़ी तो दे नहीं सकती। रखा-रखा कपड़ा गल जाता है। आपके लिए बेकार है तभी तो आप हमें साड़ी दे रही हैं। एक साड़ी तो और देनी पड़ेगी। वंदना को पता था साड़ी कीमती है। अतः वह और साड़ी देने को तैयार नहीं थी और बर्तन वाले को भी पता था लेकिन वह एक साड़ी और झटक लेना चाहता था। दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े थे कि एक भिखारिन दर पर आ गई जिसकी गोद में एक बच्चा भी था। कपड़े जगह-जगह से फटे थे। ‘कुछ खाने को दे दो माई, दो दिन से भूखे हैं। तेरा भला करें भगवान।’ देखते ही वंदना की त्यौरी चढ़ गई।
अरे जवान हो, हाथ पैर सही सलामत है। मांगते हुए शर्म नहीं आती।’ शर्म आती है मैडम पर मजबूर हूं। पति को लकवा मार गया है, उसकी सेवा करनी पड़ती है, इलाज कराना पड़ रहा है। एक फैक्टरी में काम देखा था, सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक काम करना पड़ता था। पति को कोई पानी देने वाला भी नहीं था। मजबूर होकर नौकरी छोड़ दी। अब बस तीन घंटे मांगती हूं। पचास रुपये दवाई के लिए और खाने के लिए दस रोटी मिल जाएं तो गुजारा हो जाता है। चार रोटी पति के लिए चार मेरे लिए और दो बच्चे के लिए। पूरे दिन में बहुत होती है। कुछ पैसे बचे तो पति के लिए सब्जी बना देती हूं। इससे मेरे दोनों काम चल रहे हैं। पति की सेवा और गुजारा भी।’
‘अरे रेवती देख, जरा कैसरोल में दो रोटी बासी पड़ी होंगी इसे दे दे।’ वंदना ने अपनी मेड को आवाज लगाई जो अभी-अभी बर्तन साफ करने के लिए आई थी।
‘अच्छा मैडम।’
‘मैडम कोई फटी पुरानी साड़ी हो, सूट सलवार हो तो दे दो। मैडम कपड़े बिल्कुल फट गये हैं। कहकर भिखारिन गिड़गिड़ाई। तुम्हारी यही प्रोब्लम है, जरा सी दया दिखाई और तुम पीछे पड़ जाती हो। अरे उंगली पकड़ कर पहुंचा मत पकड़ा करो, जो दे दिया बहुत है।’ भिखारिन बहुत गिड़गिड़ाई पर वंदना का कलेजा नहीं पसीजा। उसने चुप्पी साध ली। हार कर बेचारी भिखारिन चली गई।
‘मैडम लो ये टब’ कहकर उस फेरी वाले ने बड़ी जल्दी में अपना सामान समेटा और उठ कर चला गया। वह लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ चला, वंदना को उसका व्यवहार बड़ा अजीब लगा। उसने उत्सुकतावश बाहर निकल कर देखा, बर्तन वाले ने उसकी दी हुई साड़ियों में से एक साड़ी उस भिखारिन को दे दी और लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ निकल गया। वंदना के हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई। हाथों से टब छूट गया। सोचकर पसीना आ गया। दोपहर की धूप में, कड़कड़ाती ठंड में गली-गली बोझ उठाए फिरता हुआ आदमी उसकी पीड़ा से द्रवित होकर साड़ी दे सकता है और मैं हैंगर में टंगी हुई साड़ियों को देखकर खुश होती रहती हूं जबकि मेरे लिए वह साड़ी बेकार थी लेकिन उसकी तो कमाई थी। सोच रही थी वह अमीर है या मैं?