लेख
अभय कुमार जैन
तनाव व्यक्ति को उत्साहीन और चिंतित बनाता है। तनाव के प्रतिकूल प्रभाव लोगों में विभिन्न प्रकार की शारीरिक व मानसिक विकारों के रूप में प्रकट होने लगते हैं।
धरती पर जीवन कितना सुखद होता, यदि मानव जीवन तमाम मानसिक तनावों, चिंताओं, अवसादों आदि से त्रस्त न होता। आधुनिक वर्तमान औद्योगिक जीवन में तनाव आम समस्या बन गया है।
हमने वर्तमान समय में क्या खोया क्या पाया-वाह रे प्रगतिशील मानव ज्ञान खोया-विज्ञान पाया, विश्वास खोया-तर्क पाया, स्वास्थ्य खोया-इलाज पाया, तृप्ति खोई-बुद्धि पाई, स्वाभिमान खोया-वृथाभिमान पाया, प्रेम खोया-द्वेष पाया, दिल खोया- दिमाग पाया, चिंतन खोया-चिंता पाई, मानसिक शांति खोई-मानसिक तनाव पाया।
सफलता-असफलता, सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, जीवन में धूप-छांव की बातें आते रहते हैं। यदि हम अपने अनुकूल समय में प्रसन्न रहें किन्तु प्रतिकूल समय में दिमाग पर तनाव को पैदा करें तो यह उचित नहीं है। हमें हर हाल में प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए।
तनाव के अनेक कारण तथा तनाव के अनेक प्रकार होते हैं
हर आयु के अपने-अपने तनाव हैं। बच्चों के तनाव के कुछ कारण मां-बाप से प्यार न मिलना, बच्चों को अनावश्यक रूप से डांटना, बच्चों को उनकी मनपसंद वस्तु न दिलाना, बच्चों के साथ भेदभाव इत्यादि हो सकते हैं। युवा वर्गों के अपने तनाव हैं। उनके तनाव के पीछे मुख्य कारण आर्थिक स्थिति है जो स्वयं परिवार से प्रारंभ होती है। मध्यम एवं निम्न वर्गीय परिवारों में अभाव जनित, कलह, असंतोष और अशांति से युवक नहीं बच पाते हैं, इसके अलावा आज की आधुनिक युग में कदम-कदम पर तनाव ग्रस्त लोग मिलते हैं। मनुष्य का स्वभाव है कि वह सुख, शांति, समृद्धि और संपन्नता चाहता है लेकिन आधुनिक युग में यह चीज ऐसी नहीं है जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
आज का युग प्रतिस्पर्धा प्रतियोगिता का है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं को दूसरे व्यक्तियों से श्रेष्ठ साबित करना चाहता है और इसलिए इच्छाओं का कोई अंत नहीं रह गया है, इन्हीं सब कारणों से हर वर्ग के लोग तनाव के शिकार हैं।
वॉटर टेंपिल ने भी मनुष्य की जिंदगी पर सटीक टिप्पणी करते हुए कहा, ‘मनुष्य रोते हुए पैदा होता है। शिकायत करते हुए जीता है और अंततः निराश होकर मर जाता है।’
हर समस्या का हल है
जीवन की कुछ समस्याओं का कोई हल नहीं होता लेकिन वह इतनी जटिल भी नहीं होती जितनी दिखाई देती है। दिमागी कसरत हर समस्या का समाधान कर देती है। बहुत से व्यक्ति अपने आप को अभागा, किस्मत का मारा, मान कर जीवन संग्राम से विमुख हो जाते हैं, वे जीवन के प्रति पलायनवादी दृष्टिकोण अपना लेते हैं। ऐसे लोग जीवन को बोझ मानकर जीते हैं। उनके जीवन की दिशा का कोई लक्ष्य नहीं होता है। सफल व्यक्ति बनने के लिए अपने व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास करना चाहिए। अपने अंदर छिपी शक्तियों को बाहर निकाल उनका उपयोग कीजिये। निराशा के स्थान पर आशा, भय के स्थान पर विश्वास और अकर्मण्यता के स्थान पर कर्मठता को अपनाइए। जिंदगी का मजा मुसीबत से लड़कर विजय प्राप्त करने में ही है। इसलिए तकलीफों से घबराना नहीं चाहिए बल्कि हमें उनका स्वागत करना चाहिए। छोटी-छोटी कठिनाइयों को हल करके बड़े-बड़े मसले हल किये जा सकते हैं।
तनाव व्यक्ति को उत्साहीन और चिंतित बनाता है। तनाव के प्रतिकूल प्रभाव लोगों में विभिन्न प्रकार की शारीरिक व मानसिक विकारों के रूप में प्रकट होने लगते हैं। जैसे हृदय रोग, अल्सर, अर्थराइटिस, एलर्जी, कब्जियत, दर्द, एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ा आदि। आधुनिक शोध से यह बात भी सामने आई है मनुष्य में विद्यमान तनाव का प्रभाव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति पर भी काफी हद तक पड़ता है।
तनाव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक :-
अमेरिका के एक विख्यात चिकित्सा के और संस्थान के निर्देशक डेविड मेकमिन कहते हैं कि दीर्घकालिक तनाव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक है। इससे शरीर के अंदर की रासायनिक क्रिया प्रभावित होती है और उसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा तनाव के घातक व व्यापक रूप लेने के पहले ही सावधान व सतर्क होना बहुत जरूरी है।
परिवार जीवन की प्रथम पाठशाला है। व्यक्ति का पारिवारिक जीवन बहुत ही शांत होना चाहिए। बच्चों को अनावश्यक रूप से नहीं डांटना चाहिए। उन्हें किसी भी गलती पर मारना पीटना नहीं चाहिए। उन्हें बहुत ही प्रेम पूर्वक कार्य करने के तौर तरीके बताना चाहिए। घर में किसी एक सदस्य को अधिक महत्व देना और दूसरे की अपेक्षा करना भी अन्य सदस्यों के तनाव का कारण बनता है।
परिवार के सदस्यों का यह दायित्व कि बच्चे गलत संगत में न पड़ें। परिवार के सदस्य धूम्रपान, मदिरापन, पान पाउच जर्दा और अन्य नशीले पदार्थो का सेवन नहीं करें। यह पारिवारिक कलह का जन्मदाता और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
जब आप किसी भी चीज से चिंतित, किसी जीव से परेशान हों तो अपनी चिंता व परेशानी समझदार एवं अनुभवी व्यक्ति को बताइए। इसके लिए हमें अच्छे मित्र व सहेलियों का चयन करना चाहिए।
आप मानसिक श्रम करते हैं तो शाम को यदि किचन गार्डन हो तो उसमें कुछ देर कार्य करें या फिर कुछ देर संगीत सुनें अथवा पत्र पत्रिकाएं पढ़ें।
अपना समय अकेले में न बिताएं। आत्मीयजनों के साथ बिताएं या मित्र जनों के साथ रहें ताकि मस्तिष्क एक ही ओर केन्द्रित न रहे। संगीत आदि के कार्यक्रम में जाएं। मन कभी कुछ न करने को चाह रहा हो तो पहले अच्छी पत्र पत्रिकाएं पढ़ें। यदि रात्रि में आसानी से नींद नहीं आ रही हो तो लघु कथाएं, हल्की फुल्की कहानी पढ़ना आरंभ करें। इससे मन हल्का रहता है और तनाव से मुक्ति मिलेगी। सोते समय दिनभर के कार्यों का या कमी के बारे में विचार न करें। निशि्ंचत होकर सो जायें। कभी-कभी बहुत देर तक नींद न आए तो आप उल्टी गिनती बोलना प्रारंभ करें, इससे भी मन एकाग्र रहता है।
यदि आप किसी कार्य करने के अवसर की प्रतीक्षा में हैं तो वह समय आपके पास है, इसे न भाग्य कहते हैं न अवसर। इसे कहते हैं कर्मठता। आत्मनिर्भरता ही कर्मठता की जननी है। अपने ऊपर भरोसा करके निरंतर कार्यरत रहकर भी आप सफलता की मंजिल तक पहुंच सकते हैं। आत्मनिर्भरता के सहारे ही मनुष्य आकाश की ऊंचाईयों को छू लेता है, समुद्र की गहराइयों को नाप लेता है और घने जंगलों या वीरान रेगिस्तान को अपने पैरों तले रोंद डालता है। भाग्य का निर्माण ईश्वर नहीं करता जिसे हम भाग्य कहते हैं या भाग्य की मेहरबानी समझते हैं वह और कुछ नहीं वास्तव में हमारी सूझबूझ और कड़ी मेहनत का परिणाम है।
निरंतर असफलता से कैसे जूझें :-
जब आपको कुछ एक कार्यों के करने पर निंरतर असफलता मिल रही हो तो आपको निश्चित ही निराशा और झुंझलाहट होगी। किन्तु आप असफलता के कारणों को खोजें व उन्हें दूर करने का प्रयत्न करें। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘ट्राई बार दी बेस्ट बट, बी रेडी फॉर दी वर्स्ट’ अर्थात् सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रयत्न कीजिए मगर निकृष्टतम के लिए तैयार रहें। जीवन में निराशा और दुखों से बचने के लिए हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना आवश्यक है।
जीवन में अभाव होने से भी मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाता है। अभाव किसी भी वस्तु का हो सकता है। मनोविज्ञान के अनुसार सुख ही सफल जीवन की कुंजी है। सुख में व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने ऊपर वाले को देखें और ऊपर बनने को प्रगतिशील रहे। दुःख में अपने से नीचे वाले को देखे।
माना कि आपको कार्यालय प्रातः 10 बजे पहुंचना है आप निश्चित समय से 15 मिनट पहले उठ जाइए एवं अपने समस्त दैनिक क्रियाकलापों से निवृत हो जाइए। आप निश्चित समय पर तैयार हो जाएंगे। आपको व्यर्थ की हर घड़ी वह भागम भाग नहीं रहेगी।
जब आपके पास कार्य की अधिकता हो तो…………………..
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