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बदलते दौर

. कहानी .

बदलते दौर ‘
-सुशीला साहू

लड़कियां शिक्षित होकर समाज में सम्मान पाएं और परिवार तथा समाज की सेवा करें, इसकी अनुशंसा करती कहानी।

राधिका अपनी स्कूटी खड़ी करके जैसे ही घर में कदम रखी, तरुणा आंटी की आवाज सुनाई दी। कौशल्या बहन राधिका के हाथ कब पीले कर रही हो, अब तो राधिका बड़ी हो गई है। शादी ब्याह समय से कर देना चाहिए। आजकल लड़कियां पढ़ाई करने बाहर जाती है और वहां अपने मनपसंद लड़के से शादी करके घर बसाने का मन बना लेती है। अपने लक्ष्य से भटक जाती है।
कौशल्या बोली, ‘नहीं हमारी बेटी बहुत संस्कारी है। हमने उसे अच्छी तालीम दी है। राधिका बेटी ऐसा नहीं करेगी। मुझे पूरा विश्वास है। पहले वह अपने इच्छानुसार पढ़ेगी। उसके बाद हम लोग योग्य वर ढूंढ कर ब्याह कर देंगे।’
तब तरुणा बोल पड़ती है, ‘मेरे तो दोनों बेटे की नौकरी लग गई है। अब तो मैं गंगा नहाऊं। अच्छे खासे पैसे कमाने लग गए हैं।’ इतना कह कर नाक सुड़कती हुई बाहर निकल पड़ी।
राधिका ने सब सुन लिया था। वह भीतर आकर मुस्कुराते हुए मम्मी से बातें करने लगी। मम्मी मुझे अच्छे साइंस कालेज में एडमिशन मिल गया है। अब मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बन जाऊंगी और पापा के बिजनेस में भी हाथ बटाऊंगी। ऐसा कहकर वह अपनी मम्मी से लिपट गई। राधिका के पिता जी एक कैमिस्ट थे, उनकी एक छोटी सी दवाई की दुकान है। उधर रमा बिटिया भी दौड़ते हुए आई और वह भी मम्मी से लिपट गई। दोनों बेटियों को कौशल्या गले लगाकर सुकून की सांस ली और रसोई में अपने काम पर लग गई। राधिका के पापा भी बेटियों को अच्छी शिक्षा देने के पक्ष रहते हैं।
लेकिन कौशल्या के मन में बार-बार तरुणा की बातें गूंजने लगी। वह सोच में पड़ गई। माँ जो ठहरी। तरह-तरह के बुरे ख्याल कभी-कभी मन में आने ही लगता हैं। सोचने लगी, आजकल बहुत सारी घटनाएं घटित हो रही है। ऐसे में बाहर बच्ची को पढ़ने भेजना ठीक नहीं। हमारी तो दो बेटियां ही हैं। हमारा सहारा तो इन दो बेटियों के अलावा कोई है भी नहीं।………

. आगे की कहानी पढ़ने के लिए जाह्नवी का दिसम्बर 2024 अंक देखें .

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