जून, 2024 अंक
आज हम पाश्चात्यों का अनुकरण कर बच्चों के जन्मदिन पर केक काटते हैं, मोमबती बुझाते हैं और अंग्रेजी में ‘हैप्पी बर्थडे’ कह कर परस्पर एक दूसरे का मुँह मीठा करते हैं। क्या आपने कभी सोचा कि इस से आप बच्चों को क्या संस्कार दे रहे हैं।
मेरी बहिन इंग्लैंड में रहती है। उसने बताया कि उसे यहाँ के अंग्रेजों ने उसे एक बार तंज कसा पूछा, ‘आपके यहां जन्म दिन मनाने की क्या पद्धति है? आप तो हमारी नकल करते हैं।’ वह कहती है कि मैंने उन्हें किसी तरह टाल दिया परन्तु वास्तव में मुझे उन्हें जवाब देते नहीं बना।
हमारे यहां कुछ सुसंस्कृत घरों में जन्म दिन पर घर में हवन किया जाता है। यह कार्य भी जन्मदिन को यादगार बनाता है। परन्तु हवन तो हर मंगल-कार्य के समय किया जाता है। गृह प्रवेश हो यदि व्यापार का शुभ आरंभ हो, सुसंस्कृत परिवारों में इन मंगल अवसरों पर हवन किया जाता है।
जन्म दिन के महत्त्व को प्रतिपादित करने वाला कोई विशेष कार्य जो बच्चे के मन पर अच्छे संस्कार दे, ऐसा तो कोई उपक्रम उसमें नहीं होता। वैसे हमारे संस्कारों की सूची में नामकरण, अन्न-प्राश्न, यज्ञोपवीत संस्कार, मुंडन संस्कार आदि अनेक संस्कार हैं लेकिन इस संस्कारों में बच्चा उतना उत्साह से भाग नहीं लेता जितना वह जन्म दिन मनाए जाने पर उत्साहित रहता है।
उसे अपने मित्रें के साथ मिल कर मनाने में आनंद आता है। वह माता-पिता से भी अपेक्षा करता है कि वह उस का जन्मदिन धूमधाम से मनाएँ।
वह घर में अपने मित्रें को, सहपाठियों को तथा रिश्ते के भाई-बहन को बुला कर एक अच्छा भोज कराता है। उससे बच्चे को खुशी मिलती है।
हमारा कहना है कि इस खानपान और अमोद-प्रमोद के अतिरिक्त भी ऐसे किसी कर्म की परम्परा डाली जाय जिस से वह प्रेरित हो, और अपने मित्रें को गर्व से बता सके।
मुंडन संस्कार, नामकरण, अन्नप्राश्न आदि संस्कार तो जीवन में एक बार होते हैं परन्तु जन्मदिन तो हर वर्ष मनाया जाता है।
अतः ऐसे अवसर को बच्चे के संस्कार देने के लिए कोई ऐसा कार्यक्रम किया जाना चाहिए जिससे वह आनन्द भी ले और संस्कार भी लें।
मैंने प्रस्ताव रखा कि जन्म दिन में हमें कुछ न कुछ संकल्प लेना चाहिए जिसे हम कम से कम वर्ष भर पालन करना चाहिए।
मैंने अपने घर में यह परंपरा शुरू करने के लिए पहले अपने से शुरू किया कि मैंने अपने जन्म दिन पर संकल्प लिया कि मैं प्रतिदिन स्नान के बाद कम से कम पांच मिनट अवश्य कोई धार्मिक ग्रंथ पढूंगा। मैंने इसका पालन ‘रामचरित मानस’ से शुरू किया। कुछ महीनों में पूरा ‘रामचरित मानस’ मैंने पढ़ लिया। मैं उसका पाठ मात्र नहीं करता था उसे मनोयोग से पढ़ता था। कम से कम समय पांच मिनट था लेकिन कई दिन मैं उसे आधा घंटा तक पढ़ लेता था।
उसके बाद मैंने ‘भगवद् गीता’ शुरू की। फिर ‘सत्यार्थ प्रकाश’ को ले लिया। प्रतिदिन दिनचर्या का भाग हो जाने के कारण उसमें आसानी भी हो गई। कन्नड़ भाषा में लिखी एक पुस्तक ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ जिसका हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध था जिसमें पारिवारिक समस्याओं का अच्छा विश्लेषण था लगभग 500 पृष्ठों की पुस्तक पढ़ ली। यह कार्यक्रम कई वर्ष तक चलता रहा।
एक बार मैंने नियमित 20 मिनट योग आसान करने का संकल्प लिया। अभी उसे अच्छी तरह निभा रहा हूं। उसका लाभ यह है कि 90 वर्ष की आयु पार कर लेने पर भी रोगों से दूरी बनाई हुई है। इसका श्रेय मैं नियमित योग व्यायाम को मानता हूं। पूरे एक वर्ष में मेरा एक भी नागा नहीं है।
अतः मैं परिवार में सब से आग्रह करता हूं कि वह कुछ न कुछ संकल्प लें। सब को पता है कि संकल्प लेना है अतः वह उसे सहर्ष स्वीकार भी करते हैं। कुछ दिन प्रयास भी करते हैं कुछ अपने आप संशोधन भी कर लेते हैं। लेकिन उनके माता-पिता भी उन्हें स्मरण दिलाते रहें तो वह प्रयास अवश्य करते हैं।
वास्तव में माता-पिता को चाहिए कि वे देखें कि संकल्प ऐसा हो जिससे उसको अधिक कठिनाई भी न हो और उसे कुछ प्राप्त भी हो रहा है। अतः संकल्प लेने में उसके माता-पिता अवश्य सहायता करें।
यहां महात्मा गांधी जी के जीवन की घटना का वर्णन करना चाहूंगा। एक बार महात्मा गांधी अपने साथियों के साथ रेल में सफर कर रहे थे। एकाएक आधी रात को उठकर वह रोने लगे। साथी जाग गए, कारण पूछा तो गांधी जी बोले कि मैंने अपनी मां को वचन दिया था कि मैं सोने से पूर्व भगवान की प्रार्थना अवश्य किया करूंगा। आज मैं भूल गया। मैंने अपनी मां को दिए वचन का पालन नहीं किया।
यह बातें छोटी-छोटी होती हैं परन्तु जीवन में अपना प्रभाव बड़ा रखती है।
अतः बच्चों से ऐसे संकल्प कराएं जिन्हें वह पूरा कर सकें। इसके लिए आपको अपना आदर्श प्रस्तुत करना होगा। आप भी अपने जन्म दिन पर सब के सम्मुख संकल्प लें। और उसे पूरा करके दिखाएँ।
संकल्प जीवनचर्या का भाग बन जाए तो बहुत बड़ा परिवर्तन जीवन में ला सकता है।
आप अन्य किसी प्रकार के शुभ काम का भी संकल्प करवा सकते हैं किसी गरीब बस्ती में जाकर वहां किसी जरूरतमंद को उसकी सहायता बच्चे के हाथ से करवाएं।
किसी बुराई को छोड़ने का संकल्प लिया जा सकता है। यदि वैसी व्यवस्था हो सके तो किसी उपर्युक्त स्थान पर पौधा लगाने का उपक्रम हो सकता है और उसकी एक दो वर्ष तक देखरेख करने का जिम्मा लिया जा सकता है।
संकल्प तो देश काल परिस्थिति के अनुसार कैसा भी हो, परन्तु जन्मदिन पर कुछ अच्छा करने का संकल्प लेना है। यह वातावरण समाज में बनना चाहिए।
जन्मदिन मनाने का कार्यक्रम
जन्मदिन मनाने का कार्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए। सभी मित्रें, स्नेहीजनों के इकट्ठे होने के बाद जो भी आपके घर की पूजा व्यवस्था हो उसे किया जाय, हवन किया जाय या अन्य कोई आरती आदि कर लेने के बाद सभी स्नेहीजन मिल कर खड़े हो जाय। यदि अन्य कोई व्यवस्था न हो तो तीन बार गायत्री मंत्र का पाठ कर लेने के बाद घर का कोई वरिष्ठ व्यक्ति बालक के हाथ में जल देकर उससे संकल्प करवाए। बालक सब के सम्मुख में उच्च स्वर में बोले कि मैं ईश्वर को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूँ कि मैं आज से यह कार्य अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करूंगा। और उस का आजीवन वहन करूंगा। और कह कर वह अपने हाथ में लिए जल को प्रवाहित कर दें।
उसके बाद वह अपने बड़ों के चरण छूए और सभी उसे आशीर्वाद दें। उसके स्वस्थ और सफल जीवन के लिए उसे शुभ कामनाएं दें
जीवेम शरदः शत
पश्येम शरदः शत
श्रृणुयान शरदः शतम्
प्रब्रवाम शरदः शतम्
आदि संस्कृत का श्लोक भी मंगल कामना के रूप में दे सकते हैं। हम किसी संगीतकार से धुन बनवा कर इसे इंस्टाग्राम से जारी किया जाये। ताकि संगीत के माध्यम से इसका प्रसार अधिक हो सके। कोई विशेषज्ञ हमारी सहायता कर सकता है।
मान लीजिए उसने संकल्प लिया कि वह प्रातः उठ कर माता-पिता के नित्यप्रति चरण स्पर्श करेगा।
जैसे तुलसीदास जी ने कहा है,
प्रातकाल उठि के रघुनाथा
मात-पिता गुर नावहि माथा।
वह इसी आदर्श को बच्चा जीवन में पालन कर सकता है। यह उसे सिखाने की जरूरत है। जन्म दिन का यह कार्यक्रम एक माध्यम उसे संस्कार देने के लिए बनाया जा सकता है। वैसे तो प्रतिदिन वह माता-पिता से सीखता ही है। परन्तु इस कार्यक्रम को एक सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है।
इस संकल्प के बाद जो मिष्ठान वितरण हो, सहभोज हो जिससे इसे आधिकाधिक स्मरणीय बनाने का प्रयास हो।
अंग्रेजी पद्धति से जन्मदिन मनाने की प्रथा अब गाँव तक में फैलती जा रही है। पाश्चात्य के इस खाओ पीओ और मौज करो के संस्कार को, गलत संस्कार को हटाने के लिए आवश्यक है कि हम अच्छे संस्कार की नींव अपने घर से ही प्रारंभ करने का संकल्प लें। कुछ ही वर्षो में हम पूरे समाज जीवन में प्रचारित करने में सफल होंगे।