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हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद

ओलंपिक में हाकी में लगातार तीसरी बार गोल्ड मेडल
जीत कर भारत ने हेट्रिक लगाई।

अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक

व्यक्तित्व विजय सिंह माली

29 अगस्त को पूरे देश में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हाकी के जादूगर नाम से विख्यात प्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म दिन है हाकी स्टिक और गेंद पर मजबूत पकड़ रखने वाले मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज में समेश्वर सिंह व शारदा के घर हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। रेजिमेंट के मेजर वाले तिवारी ने 16 साल के ध्यान सिंह को हाकी खेलने के लिए प्रेरित किया और अपनी देखरेख में हाकी के गुर सिखाए। चन्द्रमा की चांदनी में सतत् साधना, अभ्यास लगन संघर्ष और संकल्प के बल पर महान खिलाड़ी ध्यानचंद बन गए। 1927 में लासनायक बने। 1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक में जयपालसिंह मुंडा की कप्तानी में खेलते हुए भारतीय हाकी टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। पूरे टूर्नामेंट में भारत ने 29 गोल किए जिसमें से 14 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए। एक समाचार पत्र ने लिखा-यह हाकी नहीं जादू था और ध्यानचंद हाकी के जादूगर हैं। नीदरलैंड में एक मैच के दौरान उनकी हाकी से गेंद चिपकी रहने के शक के चलते हाकी स्टिक तोड़कर भी देखी गई। भारतीय ब्रिटिश सेना में रहते हुए 1932 में विक्टोरिया कालेज ग्वालियर से स्नातक की पढ़ाई की। 1932 में लांज एंजिल्स में ओलम्पिक खेल में हाकी टीम में खेलते हुए पुनः भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। 1933 में रावलपिंडी मैच के दौरान चोट लगाने पर प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को कहकर कि सावधानी से खेलो ताकि मुझे दोबारा चोट न लगे पानी पानी का दिया। 1935 में इनका मैच देखने के बाद महान क्रिकेटर सर ब्रेडमेन अत्यंत प्रभावित हुए और और उनको कहना पड़ा वह हाकी में उसी तरह से गोल करता है जैसे क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं। 1936 में बर्लिन ओलंपिक के समय भारतीय हाकी टीम का कप्तान इन्हें बनाया गया। बर्लिन ओलंपिक के दौरान जर्मन अखबार की टैगलाइन थी-‘ओलंपिक परिसर में अब जादू है।’ बर्लिन की सड़कों पर पोस्टर लगे हाकी स्टेडियम में जाओ और भारतीय जादूकर का जादू देखो। ओलंपिक के फाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को पराजित कर दिया। मेजर ध्यानचंद हाकी का जादूगर उपनाम को सार्थकता मिली और ओलंपिक में हाकी में लगातार तीसरी बार गोल्ड मेडल जीत कर भारत ने हेट्रिक लगाई। इस शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने ध्यान चंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव के साथ जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया। लेकिन देशभक्त ध्यान चंद ने इसे विनम्रतापूर्वक यह कहते हुए ठुकरा दिया कि हिन्दुस्तान मेरा वतन है, मैं वहां खुश हूं, मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा। हाकी के जादूगर ने अपने इस आखिरी ओलंपिक में कुल 13 गोल दागे थे। 1937 में वे सूबेदार, 1943 में मेजर बने। 1948 में हाकी से संन्यास के बाद कोच के रूप में भारतीय हाकी खिलाड़ियों को मार्गदर्शन दिया। उन्होंने अपने हाकी कैरियर में 185 अंतर्राष्ट्रीय मैचों मेें 570 गोल व घरेलू मैचों में 1000 से अधिक गोल किए।
34 साल देश सेवा के बाद 1956 में वह सेवानिवृत हुए। इसी वर्ष इनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। शायरी लेखन के शौकीन ध्यानचंद जीवन के उत्तरार्ध में कैंसर से पीड़ित हो गए। 3 दिसंबर 1979 को नई दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार झांसी के हीरोज मैदान में सैन्य सम्मान के साथ किया गया। उनका समय भारतीय हाकी का स्वर्ण युग था। बीबीसी ने अमेरिकी बाक्सर मुहम्मद अली की तुलना मेजर ध्यानचंद से की। मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ नाम से प्रकाशित हुई है। उनके सम्मान में उनके जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया है। दिल्ली में मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम तथा मेरठ में मेजर ध्यानचंद खेल विश्वविद्यालय खोला गया है। भारत सरकार ने 1980 में उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया। लंदन में इंडियन जिम खाना क्लब में उनके नाम से हाकी पिच है, तो आस्ट्रिया के वियना में उनकी हाकी स्टिक लिए मूर्ति स्थापित की गई है।
हाकी में उनका वही योगदान है जो फुटबॉल में पेले तथा क्रिकेट में ब्रेडमेन का है। उनके अद्वितीय अतुलनीय खेल कौशल व समर्पण से भारत ही नहीं विश्व के खिलाड़ी प्रेरित हो रहे हैं और होते रहेंगे। हम भी उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए भारत को खेलों का सिरमौर बनाएं। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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