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बच्चों को दें कामों की जिम्मेदारी

अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक

लेख पूनम पांडे

इन दिनों जिस अभिभावक से भी मिलो और उनके बच्चों पर चर्चा हो तो लगभग सभी का एक सा जवाब होता है कि हम तो शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ने भेजते हैं। और हमारा बच्चा तो हर समय अपने बस्ते और अकादमिक काम में ही रमा रहता है। अब इनसे एक दूसरा सवाल भी पूछ लिया जाये कि बच्चा अपना कौन सा काम खुद कर लेता है तो जवाब आयेगा कि अपना काम—–अरे, वह तो भोजन की मेज से अपनी जूठी प्लेट तक नहीं उठाता है। बस यहीं पर यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाती है कि ‘पढ़ाई करो या स्कूल का काम, बहुत है,’ ऐसा कहकर बच्चे को माता-पिता ही जिम्मेदार नहीं बनाते हैं और बाद में उसके असामाजिक व्यवहार से परेशान होते हैं। इतना ही नहीं जो बच्चे बचपन से कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेते वह आगे जाकर किसी भी अलग माहौल से घबरा कर नर्वस और परेशान भी होते हैं।
यह माता-पिता को ख्याल रखना चाहिए कि बचपन से ही बच्चे को एक दो मिनट की जिम्मेदारी जरूर दी जाये। मिसाल के तौर पर हर दिन वह अपनी पानी को बोतल खुद भरेगा और अपने जूते में पालिश करेगा। यह दोनों काम सिर्फ मिनट में सम्पन्न हो सकते हैं। और मामला यहीं पर नहीं थम जाना चाहिए बच्चे को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए उसे बार-बार कहें कि अपना तौलिया, अपने रात के कपड़े खुद ही सहेज कर रखे और उनकी ख्याल रखे। अगर माता-पिता यह सब दो तीन दिन ही समझाते हैं तो तीन दिन बाद बच्चा यह सब खुद करने लगता है। मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक ने बच्चे पर एक प्रयोग किया। एक समूह के छह साल के बच्चों को तीन दिन तक यह काम दिया कि अपने से छोटे बच्चो को खेल और कविता सिखाने के साथ थोड़ा संगीत भी सिखा दो। दूसरे समूह को यह काम दिया कि वह तीन दिन तक अपने किसी विषय पर ध्यान केन्द्रित करे। तीन दिन में ही परिवर्तन यह हुआ कि जिस समूह ने बच्चों का ख्याल रखा उनसे और जो बस अपना काम कर रहे थे उनसे मिलजुल कर जब उन छोटे बच्चों के साथ खेलने और बगीचे में मौज मस्ती को कहा गया तो वह पहला समूह और उसकी जागरूकता अलग ही दिखाई दे रही थी। तीन दिन में ही पहला समूह एकदम सतर्क और जिम्मेदार बन गया था। वैसे छोटे बच्चे को कुछ कहना इतना आसान भी नहीं होता क्योंकि वह नाराज भी हो जाते हैं और किसी तरह का उपदेश या दबाव उनको बीमारी का शिकार भी बना सकता है। इसके लिए अगर माता पिता खुद वह काम करके दिखाये तो बच्चा वही करने लगता है। मिसाल के लिए अगर आप चाहते हैं कि बच्चा सामान फैलाने के बाद उसको समेटना भी सीखे तो इसे उसके सामने बार-बार किया जाना चाहिए। अगर बच्चे की जमकर तारीफ की जाती है तब भी वह जिम्मेदार बनता है। उदाहरण के लिए अगर वह अपने नहाने के कपड़े अच्छी तरह तरह रखता है तो खुलकर प्रशंसा कीजिये। वह पानी नहीं बरबाद करता वह समय पर अपना नाश्ता खा लेता है तो भी उसकी पीठ थपथपानी चाहिए। अगर बच्चे ने घर पर किसी पौधे को पानी दिया तो उसे प्रोत्साहित कीजिये। और अगर आपके घर पर खुली जगह है तो गमले में जीरे, अजवायन, मेथी के बीज उसके हाथों डलवाकर तीन चार दिन बाद हरे नन्हे पौधे उगने पर उसको आनंद में डूबने का मौका दीजिये कि उसने यह पौधा उगाया है। यह बहुत समय खाने वाले काम नहीं है। अगर कुछ मिनट का निवेश करके आप अपने बच्चे को सामाजिक और जिम्मेदार बना रहे हैं तो यह भविष्य के लिए सुखद संकेत है।

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