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परिवार रूपी वृक्ष की रीढ़ के समान होते हैं बुजुर्ग

एक सक्रिय बुजुर्ग जहां परिवार की देखभाल अथवा आर्थिक उन्नति में सहयोग करता है वहीं कम सक्रिय बुजुर्ग घर के सभी सदस्यों को भावनात्मक सुरक्षा प्रदान कर उन्हें एक लड़ी में पिरोए रखने में सहायक होता है

स्वाधीनता विशेषांक
अगस्त, 2023

लेख सीता राम गुप्ता

दादी की देखभाल में किंचित कमी पर जब पोती ने अपने पिता को डांट लगाई तो पिता एक अनिर्वचनीय आनंद से भर उठे। उन्हें अपनी बेटी पर गर्व हुआ। कितना ध्यान रखती है मेरी बेटी अपनी दादी का। कितने अच्छे संस्कार हैं हमारी बच्ची में। आखिर कहां से आए ये संस्कार? बड़ों की सेवा करना? उनकी आज्ञा का पालन करना, सबको सहयोग देना और बच्चों को प्यार करना ये सभी संस्कार मिलते हैं घर के बड़े बूढ़ों अथवा बुजुर्गो से। जिस घर में बड़े बूढ़े अथवा बुजुर्ग नहीं वह घर घर नहीं।
परिवार में उम्ररसीदा अथवा बुजुर्ग व्यक्ति/व्यक्तियों का महत्वपूर्ण स्थान है इसमें संदेह नहीं। सबसे पहले इस बात पर विचार करते हैं कि एक उम्ररसीदा अथवा बुजुर्ग व्यक्ति से क्या तात्पर्य है। एक बुजुर्ग व्यक्ति की उम्र कम भी हो सकती है और ज्यादा भी। पचपन साठ साल का व्यक्ति भी बुजुर्ग की श्रेणी में आ सकता है तो अस्सी पिचासी साल या उससे ज्यादा उम्र का व्यक्ति भी। दोनों की कार्य क्षमता में काफी अंतर हो सकता है। इसका उल्टा भी हो सकता है।
उम्र का भी कोई हिसाब नहीं। अस्सी पिचासी साल या उससे ज्यादा उम्र के व्यक्ति की क्षमता पचपन साठ साल के व्यक्ति की क्षमता से अधिक हो सकती है। क्षमतावान या अपेक्षाकृत सक्रिय बुजुर्ग व्यक्ति परिवार के लिए उपयोगी तथा कम सक्रिय बुजुर्ग व्यक्ति परिवार पर बोझ भी मान लिया जा सकता है जो एक दम गलत है। इसका ये अर्थ भी नहीं है कि कम सक्रिय होने पर वह कम महत्चपूर्ण है। उम्ररसीदा अथवा बुजुर्ग व्यक्ति चाहे वह जिस श्रेणी में आता हो परिवार के लिए हर दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है।
एक सक्रिय बुजुर्ग जहां परिवार की देखभाल अथवा आर्थिक उन्नति में सहयोग करता है वहीं कम सक्रिय बुजुर्ग घर के सभी सदस्यों को भावनात्मक सुरक्षा प्रदान कर उन्हें एक लड़ी में पिरोए रखने में सहायक होता है। वैसे तो हमारा कर्तव्य ही है कि हम न केवल अपने बुजुर्गो की उचित देखभाल करें अपितु उनका यथेष्ट आदर भी करें। बीमार अथवा अशक्त होने पर उनकी सेवा व उपचार करें। यह हमारा कर्तव्य ही नहीं हमारे अपने हित में भी होता है क्योंकि बुजुर्गो की मात्र उपस्थिति भी हमारे लिए महत्वपूर्ण होती है।
बुजुर्गो की उपस्थिति में परिवार में अपेक्षाकृत अधिक अनुशासन बना रहता है जो परिवार के सभी सदस्यों के हित में होता है। जिन घरों में बड़े बुजुर्ग होते हैं उन घरों के बच्चों में उच्छृंखलता देखने में नहीं आती। ऐसे घरों के बच्चे आज्ञाकारी व बड़ों का आदर-मान करने वाले होते हैं।
विषम परिस्थितियों में बुजुर्गो के अनुभव काम में आते हैं, जिससे परिवार के सदस्य अनेकानेक कठिनाइयों से बच जाते हैं।
जहां पति और पत्नी दोनों नौकरी करते हों वहां बड़े बुजुर्गो की उपस्थिति बड़ी सहायक होती है।
बुजुर्गो के सहयोग से छोटे बच्चों का पालन पोषण और भावनात्मक विकास अच्छी प्रकार से संभव होता है।
घर चौबीसों घंटे खुला रहता है।
जो बच्चे दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहते हैं व उनके साथ खाते-पीते और खेलते कूदते हैं ज्यादा स्वस्थ रहते हैं।
स्वाभाविक है कि बुजुर्ग ज्यादा व्यावहारिक होते हैं और उनका असर पोते-पोतियों पर भी पड़ता है। अतः दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहने वाले बच्चे भी ज्यादा व्यावहारिक और संतुलित होते हैं।
घर के बुजुर्ग जो किस्से कहानियां और अनुभव की बातें सुनाते बताते हैं उनसे बच्चों का मार्गदर्शन होता है, जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।
घर में विषम अथवा तनावपूर्ण स्थिति होने पर बुजुर्ग उसे आसानी से संभाल लेते हैं। बुजुर्गो के सहयोग अथवा मार्गदर्शन के अभाव में स्थिति विस्फोटक हो सकती है। अतः बुजुर्गो का साथ बहुत महत्वपूर्ण होता है।
जिन घरों में बड़े बुजुर्ग होते हैं उनके कारण उनके पड़ोसियों से भी अच्छे संबंध विकसित हो जाते हैं जिससे सामाजिकता का विकास संभव होता है।
बड़े बुजुर्गो की देखभाल करना वैसे भी पुण्य का काम है। बड़े बुजुर्गो की देखभाल व सेवा करने से असीम आनंद की प्राप्ति होती है जिससे न केवल उनका स्वास्थ्य अच्छा होता है अपितु सेवा करने वाले को भी खुशी होती है। इसमें संदेह नहीं कि इसी खुशी में निहित है हम सबका उत्तम स्वास्थ्य भी।
वैसे भी आप जो कुछ कर रहे हैं वही निकट भविष्य में आपके साथ होने वाला है। यदि आप अपने बच्चों को दादा-दादी या नाना-नानी से दूर रखेंगे, उनकी उपेक्षा करेंगे तो यही संस्कार आपकी अगली पीढ़ी में संक्रमित होने अवश्यंभावी है।
बड़े बुजुर्गो की उपेक्षा कर हम स्वयं हर प्रकार से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे जबकि उनकी सेवा सत्कार से न केवल अपने कर्तव्य का पालन कर आत्मसम्मान की अनुभूति से ओतप्रोत रहेंगे अपितु एक सुसंस्कृत परिवार के सदस्य और संचालक होने का आनंद भी उठाएंगे। बुजुर्ग घर के नकारा सदस्य नहीं परिवार की रीढ़ होते हैं। घर में बड़े बुजुर्गो का न होना सचमुच एक अभिशाप है। बुजुर्गो का साथ मिलना एक दैवी अनुकंपा से किसी भी तरह कम नहीं।

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