Pradhanmantri fasal beema yojna
Homeविशेषहिन्दी का उज्ज्वल भविष्य

हिन्दी का उज्ज्वल भविष्य

समग्र विश्व में 150 से अधिक देशों के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है।

सितम्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक

लेख
अतुल कोठारी

एक भाषा के रूप में हिन्दी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी की दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रें की भी राजभाषा है। हिन्दी आम जन की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है। यह विभिन्न भारतीय भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है।
गौरवशाली इतिहास
हिन्दी भाषा के लगभग हजार वर्षो के इतिहास में उसकी यात्र विविधताओं से भरी तथा परिवर्तनों को आत्मसात कर निरंतर प्रवाहमान रही है। यह भाषा भारत की संस्कृत, प्राकृत, पालि, अपभ्रंश और भारत की अन्यान्य भाषाओं की संपदा की सच्ची उत्तराधिकारी है। हिन्दी नाथों, सिद्धों और भक्ति आंदोलन के संतों तथा आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में स्वराज की भाषा होने के कारण इसका इतिहास अत्यंत गौरवशाली है।
मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक भारत से बाहर गए प्रवासियों ने इसे एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने एवं जीवित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। परंपरा पीढ़ियों का ज्ञान होती है। हिंदी की परंपरा न केवल भारतीय संस्कृति का महिमामय स्वरूप प्रस्तुत करती है बल्कि उनकी वैश्विक स्तर पर ले जाने वाली भाषा है।
आज कृत्रिम बुद्धि का युग है। भाषा शिक्षण, अनुवाद ही नहीं बल्कि चैट जीपीटी से मनचाहा लेखन भी कृत्रिम बुद्धि की मशीनी सहायता द्वारा प्राप्त हो सकता है। हिंदी नए परिवर्तन को सहजता से आत्मसात करने वाली भाषा है। इसलिए कंप्यूटर पर काम करने की आरंभिक कठिनाइयों को सरलता से पार करके आज कृत्रिम बुद्धि के मशीनी भाषा निष्पादन पर अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं की तरह हिंदी भी उसका सफलता पूर्वक उपयोग कर सकेगी ऐसी आशा और विश्वास है। बस आवश्यकता है प्रतिबद्धता से प्रयास की।
भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं बल्कि अनुभूति और विचार का माध्यम भी होती है। वह मनुष्य की एक आश्रयस्थली भी है। भारत के स्वराज के संघर्ष में हिंदी की भूमिका भारत के आत्मा की पहचान से जुड़ गयी।
हिंदी के साहित्य भंडार
कुछ वर्ष पूर्व तक भारत में ही ये कहने वाले बहुत थे हिंदी तो कोई भाषा ही नहीं है। अगर है भी गंवारों की बोली है। लेकिन हिंदी ने प्रमाणित किया कि अवसर मिलने पर हिंदी क्या चमत्कार कर सकती है। 20 वीं सदी के आरंभिक चार दशकों में ही भाषा साहित्य और ज्ञान विज्ञान की विविध विधाओं में विपुल परिमाण में साहित्य सामग्री सृजित हो गयी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रनंदन पंत और महादेवी वर्मा आदि ने हिंदी के साहित्य भंडार को भर दिया।
इसके साथ ही हिंदी को अहिंदी भाषी नेताओं, चिंतकों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। गुजराती मूल के स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय जन जागरण के लिए अपना ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश हिंदी में लिखा। उनको यह प्रेरणा बंगाल के केशव चन्द्र सेन से मिली।
हिंदी का भविष्य
आज दुनिया में जितने हिंदी भाषी हैं उतने इतिहास में कभी नहीं थे। वर्तमान में जितना सरकारी सहयोग और समर्थन प्राप्त है उतना पहले कभी नहीं था। जितने लेखक, कवि और पत्रकार हिंदी में हैं उतने पहले कभी नहीं थे। इस प्रकार जितनी पुस्तकें, पत्र पत्रिकाएं और सोशल मीडिया पर हिंदी सामग्री उपलब्ध है उतनी पहले कभी नहीं थी। बाजार, व्यापार और सार्वजनिक जीवन में हिंदी की उपस्थिति लगातार बढ़ रही है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने तकनीकी एवं व्यवसायी शिक्षा भारतीय भाषाओं में करने को द्वार खोल दिया है। कुल मिलाकर हिंदी का वर्तमान और भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र का नारा ‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल’ आज साकार होने की दिशा में बढ़ रहा है।
हिंदी पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भाषा है। जैसे लिखी जाती है वैसे ही उच्चारण होता है, जैसे बोलते हैं वैसे ही लिखा जाता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है देवनागरी लिपि। सर आइजेक पिटमैन ने कहा था कि यदि संसार में सर्वार्ंगपूर्ण कोई लिपि होती वह देवनागरी है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र गुड़गांव की डॉ- नन्दिनी सिंह के अध्ययन (अनुसंधान) के अनुसार, अंग्रेजी की पढ़ाई से मस्तिष्क का एक ही हिस्सा सक्रिय होता है, जबकि हिन्दी की पढ़ाई से मस्तिष्क के दोनों भाग सक्रिय होते हैं।
हिंदी विश्व स्तर पर
हिंदी के महत्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिन्दी महानदी।’ हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। यह आनंद की बात है कि सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी का प्रयोग बढ़ रहा है। आज वैश्वीकरण के दौर में, हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। समग्र विश्व में 150 से अधिक देशों के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। पारंपरिक ज्ञान-विज्ञान से संबंधित पुस्तकें भी बड़े पैमाने पर हिंदी में हैं और निरंतर लिखी भी जा रही हैं। उदहारणस्वरूप गोस्वामी तुलसीदासकृत ‘रामचरितमानस’, मैथिली शरण गुप्त की ‘साकेत’, जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा लिखित ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘रश्मिरथी’, धर्म द्वारा लिखित ‘भारत का स्वधर्म’ आदि पुस्तकों को देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में भी हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।
इतिहास के पन्नों में 21 वीं सदी विश्व में भारत के बढ़ते प्रभाव के लिए जानी जाएगी। जहां भारत को ‘ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था एवं महाशक्ति के रूप में देखा जाएगा तथा देश की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को देखते हुए हिंदी भाषा इस उपलब्धि का आधार स्तंभ सिद्ध होगी। राजभाषा हिंदी देश के स्थानीय ज्ञान, जिसे पारंपरिक ज्ञान भी कहा जाता है, को आधुनिक युग के ज्ञान से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में साबित हो रही है।
स्वदेशी ज्ञान के अधिकतम उपयोग हेतु मातृभाषा के प्रयोग को बढ़ावा देना अनिवार्य है। प्राथमिक शिक्षा से उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर सभी संकायों/विषयों की पुस्तकों की उपलब्धता मातृभाषा में सुनिश्चित होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी इसकी अनुशंसा की है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए अभियांत्रिकी एवं चिकित्सा शिक्षा आदि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को मातृभाषा के माध्यम का विकल्प देने की पहल हो चुकी है।
प्रत्येक समुदाय का पारंपरिक ज्ञान विशिष्ट होता है। बदलते भौगोलिक स्थिति में समाज की आवश्यकताएं एवं उपलब्ध संसाधन भी बदल जाते हैं जिससे वहां के ज्ञान में कुछ विशिष्टता उत्पन्न होती है। भारत जैसे विशाल देश में जहां भिन्न-भिन्न भौगौलिक परिस्थितियां पायी जाती है, वहां स्थानीय ज्ञान भी विभिन्न प्रकार का एवं व्यापक है जो वहां की स्थानीय भाषा में पाया जाता है। ऐसे में हिंदी ऐसे सभी स्थानीय भाषा आधारित ज्ञान को एक पटल पर देश के अधिकतम नागरिकों हेतु उपलब्ध करवा सकती है।
‘दी हिन्दू’ की रिपोर्ट अनुसार ही गूगल और अमेजन जैसी टेक कंपनियां स्थानीय भाषाओं पर दांव लगा रही हैं। क्योंकि रिपोर्ट बताती है कि भारत में 90 प्रतिशत नए इंटरनेट उपयोगकर्ता स्थानीय भाषा बोलने वाले हैं। वर्ष 2011 की जनगणना अनुसार एक ओर हिंदी देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है वहीं अंग्रेजी का स्थान 44 वें क्रमांक पर आता है। (लाइव मिंट, 14 मई 2019) यही कारण है कि विश्व की सभी बड़ी कंपनियां देश में हिन्दी सहित अन्य स्थानीय भाषाओं के उपयोग पर अधिक जोर दे रहे हैं।
एक शोध के अनुसार माइक्रोसॉफ्रट भी यह मानता है कि तकनीक एवं नवाचार को सभी के लिए सुगम बनाने हेतु भाषा की सीमाओं को तोड़ने की आवश्यकता है। माइक्रोसॉफ्रट ने वर्ष 1998 में प्रोजेक्ट भाषा प्रारंभ किया था। भाषा इंडिया नामक वेबसाइट के जरिए माइक्रोसॉफ्रट इस विषय पर कार्य कर रहा है। वर्ष 2018 से हिंदी सहित तमिल एवं बंगाली भाषा में मोबाइल, लैपटॉप आदि उपकरणों में वॉयस एक्टिवेटेड सहायक (जैसे एप्पल में सीरी, अमेजन का एलेक्सा आदि) को अधिक सुगम बनाने का भी कार्य जारी है। आज आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस स्थानीय भाषाओं को चित्र, चलचित्र से भी पहचान लेता है ताकि आप सीधा चित्र में लिखी हुई भाषा को कॉपी कर किसी भी भाषा में अनुवाद करने की सुविधा प्रदान करता है। इसी का परिणाम हमें स्थानीय भाषा में बढ़ते इंटरनेट के प्रयोग के रूप में दिखाई दे रहा है। वर्ष 2019 में गूगल ने भी माना कि हिंदी विश्व स्तर पर दूसरी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली सहायक भाषा है। (संदर्भ-दी हिन्दू, 20 सितम्बर 2019)। हिन्दी भाषा में गूगल असिस्टेंट के आरंभ के दो वर्षो में इस तकनीक के प्रयोग में इतनी वृद्धि देखी गयी। यह सिद्ध करता है कि तकनीक का समागम जब स्थानीय भाषा से होता है तो यह वहां के आम लोगाें के लिए सर्वसुलभ होती है और आर्थिक रूप से भी सफल प्रयोग होता है।
अतः इस प्रकार स्पष्ट है कि हिंदी भाषा अपनी पारंपरिक ज्ञान को संजोने के साथ ही ज्ञान की आधुनिक परंपरा की नव-निर्माण का भी मार्ग निर्मित कर रही है, जिसको तकनीकी, चिकित्सा और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रें में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस पर और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। विशेषकर के विज्ञान, सूचना व प्रोद्योगिकी एवं अकादमिक स्तर पर विशेष प्रयास करना होगा। तभी हिंदी को विश्वभाषा का स्थान प्राप्त कराने में हम सफल होंगे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments