लेख सीमा ‘स्वस्ति’
मार्च, 2023 अंक
नवसंवत विशेषांक
गाय रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन
और अमृत की नाभि है। साधारण शब्दों में गौ ही
जगत के समस्त पदार्थों की जननी है।
तिलम् न धान्यम्, पशुओं न गावः।
जिस प्रकार तिल धान्य होते हुए भी सभी धान्य में इतना श्रेष्ठ है कि इसे केवल धान नहीं कहा जा सकता, ठीक उसी प्रकार जीवों में गाय इतनी श्रेष्ठ है कि इसे पशु नहीं कहा जा सकता। ट्टग्वेद में इसे मां कहा गया है। अथर्ववेद में तो स्पष्ट लिखा है कि-माता रूद्राणां वसूनां स्वसाडडदित्यानाम् अमृतस्य नाभिः।
गाय रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और अमृत की नाभि है। साधारण शब्दों में गौ ही जगत के समस्त पदार्थों की जननी है।
आखिर गौ माता में ऐसा क्या है? जो हम उसे मां का दर्जा देते हैं। क्या कभी विचार किया कि इस धरती पर किसी भी प्राणी को मां का दर्जा नहीं दिया गया। अनेक प्राणी हैं-भैंस, ऊंटनी, सुअरी, बकरी, शेरनी और न जाने कितने प्राणी हैं, सिर्फ जानवर ही कहा जाता है। गौ माता को कभी भी जानवर नहीं कहता। इसे जानवर न कहने का सबसे बड़ा कारण है कि इसमें 33 कोटि प्रकार के देवी देवताओं का वास है। कोटि शब्द के दो अर्थ हैं-एक तो करोड़ और दूसरा अर्थ है ‘प्रकार’। कुछ विद्वानों ने कोटि का अर्थ करोड़ लगाया और गौ माता में 33 करोड़ देवी देवता का वास बता दिया। गौ माता के प्रत्येक अंग में देवी-देवता का वास है, इसीलिए इसे मां का दर्जा दिया गया है।
गाय और उसके विज्ञान को गहराई से परखें, समझें और देखें तो गाय अपने आप में संपूर्ण चिकित्सा शास्त्र लिए हुए है। गौ माता के पंचगव्यों से छोटी से छोटी बीमारी तो दूर होती ही है साथ ही साथ गंभीर रोग जैसे चर्म रोग, मधुमेह, हृदय रोग, यौन रोग, कैंसर, एडस, बांझपन तथा टी-बी- जैसी बड़ी बीमारियों की चिकित्सा संभव है।
थोड़ी सी दृष्टि इतिहास पर डालें तो 1950-60 के बीच हमारा भारत वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम था। उस समय 10 में से केवल 1 व्यक्ति औसतन रूप से अस्वस्थ था, बीमार नहीं था। परन्तु आज 10 में से 9-5 भारतीय बीमार हैं। आज भारत का बच्चा बच्चा बीमार है। युवाओं की तो बात करनी ही बेकार है। आज का बच्चा कल का युवा होगा। कैसे अपने बीमार कंधों पर भारत का बोझ उठायेगा और सदा याद रखिये, बीमार व्यक्ति सदा दूसरे पर आश्रित होता है, 200 साल की गुलामी से भारत छूटा है, और आज के हालात देख कर तो यह लगता है कि आगे आने वाले 50 सालाें तक यह फिर से गुलाम हो जायेगा। जल्दी ही बीमार भारत दूसरों पर आश्रित हो जायेगा। जितने अधिक अस्पताल खुलते जा रहे हैं, उतनी ही बीमारियां बढ़ती जा रही हैं, रोग और रोगियों की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है, क्या यह सोच कर आपकी रूह नहीं कांपती। फिर से बीमार भारत फिर से गुलामी, फिर से वही कमजोरी वही दृश्य। वतन मेरा, शहर मेरा, गांव भी मेरा है। जिस्म मेरा, ख्याल मेरा, नजरिया भी मेरा है।
जब सब कुछ मेरा ही है तो जिम्मेदारी किसकी है? जिम्मेदारी भी तो मेरी ही होनी चाहिए। आज हमारा पड़ोसी राज्य पंजाब पूरी तरह से बीमारी की चपेट में आ चुका है, जिस राज्य में एक रेलगाड़ी का नाम कैंसर टेªन रखा जा चुका हो, इससे ज्यादा लज्जा की बात नहीं हो सकती।
पड़ोस के घर में आग लगती है, तो अपने घर के जलने का भी खतरा लगातार बना रहता है, इससे पहले यह बीमारी की आग हरियाणा तक पहुंचे हमें सावधान और सतर्क हो जाना चाहिए। जिन-जिन कारणों से पंजाब बीमार हुआ है, उनका निवारण करके हमें बीमारियों से बचना है। तमाम सुखों में पहला स्थान नीरोगी काया को ही मिला है।
‘पहला सुख नीरोगी काया’
हम सब को मिल कर हरियाणा को बचाना होगा, यह हमारी सबकी जिम्मेदारी बनती है। हमें पुनः प्राचीन गुरुकुल पद्धति तथा गौ विज्ञान तथा हरियाणवी गौ माता विलुप्त प्रायः को वापिस लाना होगा और हमारे हरे-भरे हरियाणा को इन भयानक बीमारियों से बचाना होगा। इसकी पहल ग्राम मदीना में की जा चुकी है। वहां गौ माता की धरती पर हरियाणा का पहला पंचगव्य विस्तार गुरुकुलम की स्थापना हो चुकी है। यह महान कार्य गव्य सिद्ध अमित दांगी की गौशाला में हो रहा है। गव्य सिद्ध अर्चना अग्रवाल यहां का कार्यभार संभालती है। यहां डिप्लोमा इन पंचगव्य थैरेपी नाम से एक वर्ष का कोर्स शुरू हो चुका है। यहां पर भारत के कोने-कोने से लोग गव्यसिद्ध बनने आते हैं। यहां से जो भी गव्यसिद्ध बन कर निकले हैं वे सभी अपने-अपने क्षेत्र में गौ सेवा एवं राष्ट्र निर्माण, मानव चिकित्सा के क्षेत्रें में पंचगव्यों द्वारा सफलता पूर्वक कार्य कर रहे हैं।
अमर शहीद राजीव भाई के स्वप्नों को पूरा करने के लिए इस गुरुकुलम का केवल एक ही लक्ष्य है-‘हरियाणा को पंजाब होने से बचाना।’
स्वस्थ हरियाणा में ही स्वस्थ भारत की प्रगति है।
आइये मिल कर चले——–सतयुग की ओर।