सितम्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक
कविता
गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’
स्वास्थ्य धन सबसे बड़ा, रक्षक महा नरेश।
खोना नहीं प्रमाद में, घर हो या परदेश।
खानपान हो संतुलित, नित्य करें व्यायाम।
श्रम आवश्यक स्वास्थ्य हित, घातक अति आराम।
तन-मन से जो स्वस्थ है, मिले उसी को जीत।
लग जाए घुन रोग का, करे सदा भयभीत।
पढ़ना, सोना, खेलना, दिनचर्या रख व्यस्त।
सादा भोजन कीजिए, रहे समय अभ्यस्त।
आशंकाएं त्याग दें, रख तनाव को दूर।
गहरी निद्रा लीजिए, स्वस्थ रहें भरपूर।
गायन, वादन, कला प्रति, हो धनात्मक भाव।
नव ऊर्जा जाग्रत करें, अभिरुचियों में चाव।
घर पर ही व्यंजन पकें, स्वास्थ्य-स्वाद अनुसार।
जंकफूड को बाय कर, रखें चुस्त परिवार।
हितकर लस्सी, छाछ है, घातक शीतल पेय।
सूखे मेवे स्वास्थ्य हित, उत्तम प्रकृति प्रदेय।
योग-ध्यान नियमित करें, सक्रिय रहे शरीर।
शाकाहारी बन जिएं, खाएं दही, पनीर।
विटामिनों से युक्त हों, सारे खाद्य पदार्थ।
निहित प्रकृति में स्वास्थ्यप्रद, जीवन का भावार्थ।
टीवी अथवा फोन में, अधिक न हों तल्लीन।
तन-मन को दूषित करें, चित्र सुसंस्कृति-हीन।
तन कर देते खोखला, ध्रूमपान, मधुपान।
बढ़ जाते जब रोग हैं, मिलता नहीं निदान।
पौष्टिकता से युक्त हैं, सारे मोटे अन्न।
भोजन में कर सम्मिलित, रहे कुटुंब प्रसन्न।
गेहूं-चावल से बढ़े, अनगिन घातक रोग।
देते वैद्य सलाह हैं, करें श्रीअन्न प्रयोग।
पोषक तत्वों से भरा, पावन शाकाहार।
स्वस्थ रहे तन-मन सदा, करें न रोग प्रहार।