लेख
गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’
स्वास्थ्य विशेषांक
जुलाई, 2023
मोटे अनाज पोषक तत्त्वों विटामिनों और खनिजों के भंडार हैं।
अनेक खनिजों के साथ ही इनमें घुलनशील फाइबर की प्रचुर मात्र इन्हें
स्वास्थ्य की दृष्टि से और महत्वपूर्ण बना देती है।
हमारी पीढ़ी, जो पांच-छह दशकों पूर्व से बड़ी हो रही थी, उनमें से बहुतों ने ज्वार, बाजरा, जौ, मक्का, चना आदि की रोटियां चूल्हे पर सिंकी हुई अवश्य खायी होंगी। उस समय बाजरे की रोटी, खिचड़ी, गुड़ और घी मिलाकर बने लड्डू बड़े चाव से खाए जाते थे। धान के चावल के साथ-साथ सांवा के चावल भी भोजन के अंग थे। गेहूं का चलन कम था। केवल गेहूं की रोटी के स्थान पर गेहूं, जौ, चना से बने आटे की रोटी खायी जाती थी, जिसको हम लोग बेझड़ा की रोटी कहते थे। तब गेहूं के आटे में चने का आटा मिलाकर खाया जाता था। इन मोटे अनाजों की रोटी को आम आदमी या गरीबों का खाद्यान्न माना जाता था। घर में किसी अतिथि के आगमन पर गेहूं की रोटियां बनती थीं और जौ चने की रोटी उससे छिपाकर खायी जाती थी। सर्दियों में प्रायः प्रतिदिन मक्के या बाजरे की रोटी बनती थी। धीरे-धीरे हरित क्रांति आई और गेहूं चावल के उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई। इसके खाने वालों को आर्थिक दृष्टि से उच्च माना जाने लगा। फलतः मोटे अनाज जनसामान्य की थाली से दूर होते गए।
अब लगभग पचास वर्षो बाद जब ये मोटे अनाज ‘सुपर फूड’ के रूप में विदेश से लौटे और स्वास्थ्य के प्रति धनाढ्यों में जागरूकता बढ़ी तो पुनः मोटे अनाज थाली की शोभा बनने लगे। कुपोषण और जीवनशैली से संबंधित अन्य समस्याओं के लिए सबसे बड़ा कारण मोटे अनाजों की उपेक्षा को भी माना गया। प्रसन्नता का विषय है कि इस दिशा में अब सुधार की हलचल हुई है।
भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष (बाजरा वर्ष या मोटा अनाज वर्ष या पोषक अन्न वर्ष) घोषित किया है। वस्तुतः इसका प्रस्ताव भारत ने ही रखा था और 72 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। इस दृष्टि से यह वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार ने इस पहल को सफल बनाने के प्रयास भी आरंभ कर दिए हैं। अभी 3 दिसंबर को विश्व मिलेट दिवस के रूप में मनाया गया।
मोटे अनाज उत्पादन वृद्धि हेतु
पूर्व में प्रयास
इससे पूर्व भारत सरकार ने वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष (बाजरा वर्ष) घोषित किया था। तब से मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए लक्ष्य प्राप्ति के अभियान के रूप में प्रयास किए गए हैं। उनके न्यून समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है। राज्य खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत पोषक अन्न वाले 14 राज्यों के 212 जिलों में अभियान क्रियान्वित किया जा रहा है। भारत के अधिकांश राज्यों में एक या एक से अधिक मोटे अनाज की प्रजातियां उगाई जाती हैं। इससे मोटे अनाजों का उत्पादन और उपभोग तो बढ़ेगा ही, साथ ही फसल चक्र भी संतुलित होगा और कुपोषण के लिए किए जा रहे युद्ध में भी विजय प्राप्त होगी।
पोषण के शक्ति स्त्रेत
मोटे अनाज को पोषण का शक्ति स्त्रेत कहा जाता है। मोटे अनाजों में बाजरा, मक्का, ज्वार, चन्ना, रागी, सयांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी, चीना और जौ सम्मिलित हैं। ये पोषक तत्त्वों विटामिनों और खनिजों के भंडार हैं। इनमें मैग्नीशियम, पौटेशियम, कैल्शियम, विटामिन बी, फास्फोरस, प्रोटीन आदि प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं। अनेक खनिजों के साथ ही इनमें घुलनशील फाइबर की प्रचुर मात्र इन्हें स्वास्थ्य की दृष्टि से और महत्वपूर्ण बना देती है। इनमें अनेक रोग निरोधक तत्व पाए जाते हैं जो असाध्य रोगों से लड़ने में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। मोटे अनाज मधुमेह, कैंसर, माइग्रेन, हृदयाघात, अस्थमा, रक्त अल्पता, उच्च रक्तचाप आदि बीमारियां दूर करने में सहायक होते हैं। ये रक्त के कोलेस्ट्रोल को कम करते हैं, अंतडि़यों को स्वस्थ रखते हैं और मोटापे को घटाते हैं। इसमें पाए जाने वाले अमीनों अम्ल मानव के स्वास्थ्य और वृद्धि के लिए अति लाभकारी हैं। ये छोटे बच्चों और प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं के पोषण में विशेष लाभप्रद हैं। अनुसंधान में पाया गया है कि जौ, बाजरा आदि में प्राप्त पोषक तत्वों से बच्चों का विकास तेज होता है, उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी लंबाई बढ़ती है। यदि बचपन में ही इन्हें बच्चों को खिलाया जाए तो इसका स्वाद विकसित हो जाता है और वे इनसे बनी चीजों को चाव से खाने लगते हैं।
छह-आठ महीने के बच्चों को जब अन्न का भोजन आरंभ किया जाए तब खिचड़ी दलिया आदि में इनका प्रयोग किया जा सकता है। यदि जीवन भर स्वस्थ रहना है तो बच्चों में स्वस्थ रहने की आदत और उससे जुड़े खानपान की जीवनशैली को विकसित करना होगा। मोटे अनाजों को दूध पिलाने वाली माताओं और पोषाहार में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि आजकल बच्चे कुपोषण एवं मोटापे का शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों की राय है कि भोजन में मोटे अनाजों को सम्मिलित करने से कुपोषण और मोटापा दोनों बीमारियां समाप्त हो सकती हैं, इसके लिए इनके माता-पिता को जागरूक होना पड़ेगा।
पर्यावरण की दृष्टि से उत्पादन वरदान
न केवल स्वास्थ्य, अपितु पर्यावरण की दृष्टि से भी मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं है। इनके उत्पादन के लिए पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है। खाद्य और पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ ये अनाज पशु चारा भी उपलब्ध कराते हैं, इससे पशुओं को भी पौष्टिकता मिलती है। इनकी फसलें मौसमी उतार चढ़ाव, गर्मी-सर्दी को भी आसानी से झेल लेती है। ये पानी की कमी और तापमान के कारण कम खाद्यान्न उत्पादन के संकट को भी कम करते हैं क्योंकि इनकी खेती प्रायः वर्षा के अधीन क्षेत्रें में होती है। इसमें उर्वरक और कीटनाशक प्रयोग की आवश्यकता भी नहीं रहती है। मोटे अनाजों के अच्छे उत्पादन से खाद्य और पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित होगी तथा गेहूं चावल के गिरते उत्पादन से भी मुक्ति मिलेगी। इससे विविधतापूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ेगी।
मोटे अनाजों की खेती से बड़ी मात्र में सिंचाई के लिए आवश्यक पानी को बचाया जा सकता है। इनकी खेती किफायती होती है जिससे अधिक देखभाल नहीं करनी पड़ती। इनका भंडारण भी आसान है। उर्वरक और कीटनाशक की खरीद न होने से किसान का धन बचेगा। मोटे अनाजों की खेती प्रायः लघु और सीमांत किसान करते हैं, उन्हें बढ़ावा देने से छोटी जोतें भी लाभकारी बन जाएंगी।
उत्पादन वृद्धि के लिए
जारी प्रयास
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार मोटे अनाज के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान रखता है। विश्व के कुल उपज का 41 प्रतिशत मोटा अनाज भारत में उगाया जाता है। अब इसके उत्पादन को बढ़ावा देकर इस भागीदारी को 50 प्रतिशत तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यदि निरंतर प्रयास सफल रहे तो इस उपज को दो तिहाई तक भी ले जाया जा सकता है। इसके मोटे अनाज उत्पादन का क्षेत्र बढ़ाया जाएगा। साथ ही किसानों को इनके बीज पर अनुदान भी मिलेगा। जब फसल तैयार होगी तो उसकी सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद भी होगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद देश भर में संबद्ध संस्थाओं और कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से स्थानीय लोगों और संस्थाओं को मोटे अनाज की खेती, उत्पाद और इनके मूल्य संवर्द्धन के बारे में अवगत करा रही है। साथ ही इसके विपणन के बारे में समुचित व्यवस्था की जाती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के माध्यम से कई संस्थान मोटे अनाजों के प्रसंस्करण का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
अभी मोटे अनाजों के उत्पादन में प्रथम स्थान रखते हुए भी देश इसके निर्यात के विषय में पांचवें स्थान पर है। अभी देश को संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अमेरिका, रूस, चीन तथा यूक्रेन से प्रतियोगिता करनी पड़ रही है। आशा है कि देश इस महत्वाकांक्षी मिशन में वांछित सुधार कर मोटा अनाज निर्यात में उच्च सोपान पर होगा।
देश में सैकड़ों स्टार्टअप मोटा अनाज के उत्पादों को बाजार में उतार रहे हैं। भारत सरकार की तैयारी है कि इस मोटा अनाज वर्ष में स्टार्टअप की संख्या एक हजार से भी अधिक हो जाएगी। इसके लिए हैदराबाद में स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च (आई आई एम आर) नए स्टार्टअप को प्रोत्साहित कर रहा है। इस संस्थान के निदेशक डॉ- दयाकर राव के अनुसार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से यहां एक टेक्नोलॉजी इंक्यूबेटर न्यूट्रीहब की स्थापना की गई है जिसमें स्टार्टअप शुरू करने की पूरी तैयारी है। इसमें तकनीकी सहायता लेकर वित्त प्रबंधन और बाजार तक पहुंच सम्मिलित है। संस्थान ने मोटे अनाज की पांच सौ से भी अधिक रेसीपीज विकसित की हैं जिसे स्टार्टअप बाजार में ला रहे हैं। दौ सौ स्टार्टअप ने मोटे अनाज से ‘रेडी टु ईट’ और ‘रेडी टु कुक’ श्रेणी में कई अनोखे और स्वादिष्ट उत्पाद उतारे हैं, जैसे चिप्स, नान, खटाई, नूडल्स, पास्ता, कुकीज आदि। शाकाहारी खाद्य पदार्थो की बढ़ती मांग के दौर में मोटे अनाज अच्छे विकल्प हैं।
उपयोग में ही वृद्धि
मोटे अनाजाें के उपयोग में वृद्धि के लिए मोटे अनाजों के व्यंजन बनाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित हो रही हैं। बहुत से मोटे अनाज जैसे बाजरा, मक्का, ज्वार सर्दियों में खाए जाते हैं। चना, ज्वार, बाजरा को भूनकर खाया जाता है। जौ, चने का सत्तू भी फास्ट फूड की भांति खाना अत्यंत लाभदायक है। जंकफूड की आदत से यदि बचना है, तो भुने हुए अनाजों को खाने की आदत डालनी होगी। यह आदत अब संतुलित आहार के लिए मोटे अनाजों का उपभोग अति आवश्यक है।
मोटे अनाजों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए लोगों को इनके गुणों से अवगत कराना होगा। विवाह, जन्मदिन, पर्व, त्यौहार, बैठक, समारोह आदि अवसरों पर आयोजित भोज में अतिथियों के लिए मोटे अनाजों से बने व्यंजन अवश्य परोसे जाएं। आंगनवाड़ी, विद्यालयों में दोपहर भोजन तथा अन्य सरकारी आयोजनों की भोजन तालिका में मोटे अनाजों को अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए। बाजरे से बनी खिचड़ी दलिया, और रोटी रागी दोसा, मक्का या ज्वार की रोटी, बाजरा की खीर तथा बाजरा केक, सांवा के चावल आदि का उपयोग किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 का औपचारिक शुभारंभ इटली के रोम में संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्यान्न एवं कृषि संगठन ने किया था जिसमें भारतीय दल ने पूरी तैयारी के साथ भाग लिया था।
आओ, हम सब मोटे अनाजों के अधिकाधिक उपभोग का संकल्प लेकर वैश्विक मिलेट वर्ष को पूर्ण सफल बनाएं। कुपोषण और गंभीर बीमारियों से छुटकारा पाकर तन-मन को पूर्ण स्वस्थ रखें। मोटे अनाजों का मान वर्द्धन करके हम सभी ‘पहला सुख नीरोगी काया’ का लक्ष्य प्राप्त करें।