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पुरस्कृत
शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है
शास्त्रें में कहा गया है-
‘शरीरमाध्यं खलु धर्म साधनम्।’
अर्थात् समस्त धर्म कार्य सम्पन्न करने हेतु पहला साधन हमारा शरीर है। जब हमारा शरीर, स्वस्थ, बलिष्ठ और नीरोग होगा तभी हम जीवन के समस्त दायित्वों का सम्यक प्रकार से निर्वहन कर सकेंगे। अतः अपने शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है, जिसके लिए हमें निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए-
ब्रह्म मुहूर्त में शैÕया त्याग देना-नई फैशन के लोग प्रातः 8-00 बजे बिस्तर से उठकर ‘बैड टी’ मांगते हैं। यह अत्यंत हानिकारक है। हमें ब्रह्म मुहूर्त में तीन चार गिलास गर्म पानी पीकर शौच के लिए जाना चाहिए। स्नान के बाद पूजन विधि से निवृत्त होकर पौष्टिक फलाहार करना चाहिए।
भोजन एवं स्वास्थ्य-यथा समय उचित और पौष्टिक भोजन उत्तम स्वास्थ्य का पहला नियम है। दोपहर का भोजन मध्यान्ह 12-00 से पूर्व तथा सायं कालीन भोजन रात्रि 7-00 बजे से पूर्व कर लेना चाहिए। हमारा भोजन शुद्ध, ताजे फलों से युक्त, सात्विक एवं संयमित होना चाहिए। भोजन करते समय यह मंत्र याद रखें-‘तेन त्यक्तेन भुंजीथाः।’
योग एवं व्यायाम-योग कर्मसु कौशलम्-जो व्यक्ति नित्य नियमित रूप से योग के आसन लगाता है, नित्य व्यायाम करता है-वह कभी वृद्ध नहीं होता। प्रातः भ्रमण, स्वीमिंग, जॉगिंग तथा नियमित खेलकूद से शरीर स्वस्थ और नीरोग रहता है।
ब्रह्मचर्य एवं कठोर अनुशासन- अनियंत्रित भोग-विलास, मदिरा पान, मांस सेवन, अश्लील फिल्में या सीरियल देखने, नाइट क्लब में जाने, धूम्रपान, स्मैक का सेवन करने एवं अमर्यादित जीवन यापन से हमारा शरीर रोग ग्रस्त और खोखला हो जाता है। शास्त्र कहते हैं-हम सदैव संयम से रहें और राक्षसी आचरण से सदा दूर रहें। कठोर संयम और ब्रह्मचर्य के पालन से हम चिर युवा बन सकते हैं। अपार शक्ति, बल और ब्रह्म तेज की प्रतिमूर्ति हनुमान जी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जो व्यक्ति जीवन में सदैव कठोर अनुशासन, अनवरत परिश्रम, लोक कल्याणकारी कार्यो में संलग्नता, सौम्यता, विनम्रता, शालीनता और आचरण की पवित्रता अपनाता है उसे अपार आत्म शांति मिलती है, गुरुजनों का आशीर्वाद और सुख वैभव की प्राप्ति होती है।
‘धर्म साधना एवं आध्यात्मिक चिंतन’-भोग-विलास, अभक्ष्य पदार्थो के सेवन, अनियंत्रित रति, भ्रष्टाचार, अर्थ लिप्सा एवं विध्वंसकारी कार्यो में लिप्त रहने से मनुष्य में राक्षसी प्रवृत्ति जागती है। संपूर्ण समाज को लोक कल्याण का संदेश देना, धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा पुण्य संचय करना, संस्कार युक्त जीवन जीना और विशुद्ध आध्यात्मिक चिंतन करने से हमें अलौकिक शांति प्राप्त होती है, शरीर सर्वथा नीरोग, बलिष्ठ और ब्रह्म तेज से संपन्न बनता है तथा हमें दिव्य लोकों के दर्शन इसी धरती पर होने लगते हैं।
-डॉ. राम बहादुर ‘व्यथित’, बदायूं
अन्य चुनींदा प्रविष्टियां
स्वस्थ रहने के लिए जीवन शैली में सुधाार आवश्यक
शास्त्रें में कहा गया है कि स्वास्थ्य धन ही सर्वप्रमुख धन है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और विचार का वास होता है। स्वस्थ रहने का तात्पर्य केवल बाहरी हृष्ट-पुष्ट शरीर होना ही नहीं है अपितु शारीरिक मानसिक और सामाजिक दृष्टि से भी स्वस्थ होना आवश्यक है। स्वस्थ शरीर हमें तनाव से मुक्ति देता है और जीवन को क्रियाशील एवं प्रसन्नचित बना देता है।
स्वास्थ्य हमें अधिक ऊर्जा और कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है। हमें स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए जीवन शैली में सुधार करना अत्यावश्यक है। इससे कार्य में रूचि और मनोभावों पर नियंत्रण भी रहेगा। विडंबना यह है कि शरीर की देखभाल करने और स्वस्थ रहने का भाव हमारे मन में तभी आता है, जब स्वास्थ्य की समस्याओं से पीडि़त हो जाते हैं।
हमारी व्यस्त जीवन शैली जीवन में स्वास्थ्य संबंधी समस्या लाती है। तनाव और उलझनें व्यस्त और भागदौड़ भरी दिनचर्या के अंग बन गए हैं। अस्त-व्यस्त जीवन शैली ही शरीर को रूग्ण बना देती है जिससे हम जीवन के मूल लक्ष्यों को भूल जाते हैं।
आज लोग आधुनिकता में आंकठ डूबे हैं जिसमें विलासिता, अनिद्रा, सूचना और मनोरंजन जैसे कार्यकलाप प्रमुख हो गए हैं। अधिक कमाई के चक्कर में नियमित खानपान और विश्राम तक को लोग भूल चुके हैं। आज मोबाइल हमारी स्वास्थ्य समस्याओं का मूल कारण है। अधिकांश लोग हास परिहास, भोजन, निद्रा, बाल बच्चों से वार्तालाप आदि दिनचर्या भुलाकर केवल मोबाइल की आभासी दुनिया में खोये रहते हैं। रात गए तक वाट्सएप, फेसबुक पर चैटिंग करते हैं और बिना पूरी नींद लिए प्रातः कार्यो के लिए भाग पड़ते हैं। इधर-उधर अस्वास्थ्यकारी जंकफूड भोजन, चाय, काफी, शीतल पेय लेकर भूख प्यास मिटाते हैं। इन आदतों से अनेक प्रकार की बीमारियां और शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। युवाओं में धूम्रपान, मद्यपान, मांसाहार और ड्रग्स लेने की लत, उन्हें शरीर और मन से खोखला बना रही है। शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता कम होने से हमें अनेक प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं। अतः स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीवन शैली में आवश्यक सुधार करने होंगे।
स्वस्थ शरीर के लिए आहार में पौष्टिक आहार लेने की आवश्यकता है। भोजन में हरी सब्जियां, मोटे, अनाज, दूध, दाल, घी, फल आदि को नियमित सम्मिलित करना चाहिए। ये खाद्य पदार्थ विटामिन, प्रोटीन, खनिज तत्वों की पूर्ति करते हैं। जंकफूड तथा कोल्ड ड्रिंक केवल स्वाद में अच्छे लगते हैं किन्तु इनसे शरीर में मोटापा, मधुमेह जैसी बीमारियां लग जाती हैं। भोजन घर का बना हुआ शुद्ध, सात्चिक और पौष्टिक होना चाहिए, इससे यह जल्दी पचता है और अधिक पोषण देता है।
व्यस्त जीवन चर्या से समय निकालकर प्रतिदिन जॉगिंग, व्यायाम, खुली हवा में टहलना आवश्यक है। 20-30 मिनट तेज चाल, योग खेल, ध्यान, साइकिल चलाना जैसी क्रियाएं भी अत्यंत लाभप्रद हैं, इससे शरीर की हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होती है, तनाव दूर होता है और तन मन ऊर्जावान बनता है। प्रातःकाल शौच जाने से पूर्व नियमित पानी पीने से शरीर से विषाक्त और अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। दिन भर में खूब पानी पीना स्वस्थ जीवन के लिए बहुत लाभप्रद है।
प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। कहावत है कि ‘जल्दी सोना और जल्द ही उठना दिनचर्या अपनाने से व्यक्ति स्वस्थ, धनी और बुद्धिमान बनता है। देर रात्रि तक जागरण या टीवी, मोबाइल, लैपटाप से चिपके रहने से व्यक्ति मानसिक विकारों का शिकार हो जाता है। एक अच्छी नींद हमारे मस्तिष्क और शरीर को विश्राम और सुख देती है।
शरीर को स्वच्छ रखें, इससे हम विभिन्न रोगाणुओं से मुक्त रहेंगे। हमें स्नान, खानपान, रहन-सहन वस्त्र आदि स्वच्छ रखना चाहिए। हमें अपना घर, आसपास स्वच्छ एवं हरीतिमा से युक्त रखना चाहिए जिससे स्वच्छ हवा मिलती रहे।
हमें प्रेरक, चिंतनप्रधान और मानसिक विकास करने वाली पुस्तकें अवश्य पढ़नी चाहिए, इससे जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
धन के पीछे भागने की प्रवृत्ति त्याग देनी चाहिए। अनाप-सनाप धन संचय की लोलुपता स्वास्थ्य को कुप्रभावित करती है, व्यक्ति को बीमार बनाती है। धन स्वास्थ्य को वापस नहीं ला सकता। अच्छा स्वास्थ्य ही हमें प्रसन्न रखता है। हमें दीर्घजीवी, स्वस्थ और सुखी रहने का यही एक मूलमंत्र है।
अस्तु, सकारात्मक सोच, स्वच्छ आचार विचार और संयमित दिनचर्या से अपनायी गई जीवन शैली ही शरीर और मन को स्वस्थ और परिपुष्ट रख सकती है।
-गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’, लखनऊ
जीवन को खुश व स्वस्थ बनाये रखना
हमें अपनी दैनिक क्रियाओं में छोटी-छोटी कोशिशों से स्वस्थ जीवन की नींव रखकर अपने जीवन को खुश व स्वस्थ बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की आवश्यकता है। यदि आप लंबे समय तक अपने को स्वस्थ व प्रसन्न रखना चाहते हैं तो हमें अपनी जीवनशैली में सुधार करना चाहिए। माना आज के आधुनिक युग में हमारे रहन-सहन, आहार और फिटनेस काफी हद तक प्रभावित हुए हैं इसलिए हमें स्वस्थ रहने के लिए कुछ नियम बनाने की जरूरत है। आज हम जीवन की भाग दौड़ में अत्यधिक व्यस्त हैं जिसके कारण हमें स्वास्थ्य समस्याओं ने घेर लिया है। जीवन की जरूरतों को पूरा करने की उधेड़बुन में हम मानसिक समस्या का शिकार होते जा रहे हैं और अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो रहे हैं। लेकिन पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए मानसिक तौर पर स्वस्थ होना बेहद जरूरी है।
तनाव, असंतुलित भोजन, नींद की कमी हमारे शरीर को बीमारी की ओर धकेल रहे हैं, जिससे ऊर्जा का स्तर भी समय के साथ कम होता जा रहा है। शरीर बेहतर ढंग से कार्य करने में असमर्थ होता जा रहा है। आज के तकनीकी युग में हमने काफी प्रगति कर ली है लेकिन स्वास्थ्य की ओर ध्यान कतई नहीं है। कार्य की व्यस्तता होने के कारण हम अपने को सही ढंग से व्यवस्थित नहीं कर पाते हैं जिससे हमें कई बीमारियों का शिकार होना पड़ता है।
बेहतर जिंदगी जीने के लिए और स्वस्थ रहने के लिए हमें पौष्टिक और संतुलित आहार लेने की जरूरत है। अपने डाइट में फल, सब्जी, साबुत अनाज, प्रोटीन हो जिससे हमें सारे पोषण तत्व मिले। फाइबर युक्त फल सब्जी खाएं। भोजन चबा-चबा कर खाएं। खाने का मजा लें। तैलीय व मीठे पदार्थो का सेवन सीमित मात्र में करें। पर्याप्त मात्र में पानी पिएं। नाश्ता बिल्कुल न छोड़े। भरपूर नींद लें। कुछ देर धूप में बैठकर विटामिन डी को बढ़ाएं। जो काम आपको पसंद है उसे जरूर करें। नई-नई हॉबी विकसित करें। स्वयं को व्यस्त रखें। ऐसा करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। व्यायाम आपको स्वस्थ और सक्रिय रखने का सबसे अच्छा माध्यम है। इन सब बातों को यदि हम अपने जीवन शैली में शामिल करें तो हम शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे और जीवन में खुशी का अनुभव करेंगे।
पौष्टिक आहार, नियमित व्यायाम जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर हम जीवन को स्वस्थ बना सकते हैं। स्वस्थ जीवन हमें अधिक अनुशासित और व्यवस्थित बनाता है। स्वस्थ जीवन शैली को अपनाकर हम जीवन की हर छोटी बड़ी जंग जीत सकते हैं। जीवन चलने का नाम है जिसके लिए हमें स्वस्थ रहना आवश्यक है।
-शिखा अग्रवाल, देहरादून, उत्तराखंड
शरीर को पूर्ण स्वस्थ रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है
वर्तमान परिस्थितियों में वैश्वीकरण के चलते मनुष्य की इच्छाओं के अनंत लहलहाते सागर में भौतिक सुख सुविधाओं का मानो अंबार सा लग गया है। भविष्य को सुखमय बनाने के लिए व्यक्ति अपने स्वास्थ्य से खेल रहा है। काम की अधिकता, तनाव से, हर व्यक्ति चिड़चिड़ा हो गया है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से एक बड़ा वर्ग जूझता नजर आता है।
असंतुलित, असंयमित, अभक्ष्य भोजन तथा जीवन शैली में आए बदलावों को भला कौन नजरअंदाज कर सकता है। आज श्रमशीलता बुरी तरह घटी है। लोग थोड़ी दूरी के लिए भी पैदल चलने के स्थान पर गाडि़यों का सहारा लेते हैं। कंप्यूटर स्क्रीन पर या आफिस की टेबल पर ही सबका समय बीत रहा है। शारीरिक व्यायाम व अन्य गतिविधियां गौण हैं।
वर्तमान समय में विकृत जीवन शैली एवं असंतुलित आहार के कारण बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक के तन और मन दोनों रोगी बना रहा है। हम सभी को जीवन शैली में सुधार की आवश्यकता है। घर में हो सके तो प्रातः जल्दी उठें, बच्चों को भी उठाएं। सवेरे का समय स्वाध्याय, पूजा पाठ, ध्यान, योगाभ्यास तथा मौन में बिताएं।
नाश्ते में दूध, अंकुरित अनाज, दलिया जैसे पौष्टिक भोज्य पदार्थ लें। बच्चों की टिफिन में भी पौष्टिकता से भरपूर भोजन दें। फास्टफूड को बाय-बाय कहे। भोज्य पदार्थो का चुनाव मौसम के अनुसार ही करें। भूख लगने पर ही खाना खाएं। सबसे मुख्य बात-जो खायें खुश होकर खायें, भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना न भूलें। मनःस्थिति स्थिर रखें, भोजन करते समय नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
दैनिक जीवन में संतुलित और सुपाच्य आहार को ही अपनाएं, कभी-कभी सुरूचिपूर्ण आहार का सेवन ठीक है। भोजन से पहले मौसम का हरा सलाद अवश्य खाएं। प्रतिदिन फल का सेवन अवश्य करें। भोजन करते समय मोबाइल का प्रयोग न करें। टी-वी- का स्विच ऑफ कर दें। भोजन चबा-चबा कर धीरे-धीरे खायें। दिन में भोजन करने के बाद बाईं करवट लेकर 15 मिनट अवश्य आराम करें। रात के भोजन के बाद व्यस्तता के बावजूद भी 15 मिनट टहलने का समय अवश्य निकालें। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आप ऊर्जावान रहेंगे। जीवन के लक्ष्य को पूरा करते हुए समाज व देश के अच्छे स्वस्थ व सफल नागरिक बनेंगे।
भोजन के साथ विचारों में, सोच में भी बदलाव लाने का प्रयास करें। दूसरों को क्षमा करना सीखें, अपनी भूलों पर क्षमा मांगे। न किसी की निंदा सुने न ही निंदा करें। विश्व शांति के लिए प्रार्थना करें। घर में बुजुर्ग हों, उनका ख्याल रखें सकारात्मक सोच के साथ जीवन बिताएं। तनाव ईर्ष्या को जीवन से निकाल फेंके। स्वयं को कभी दीन दुर्बल न समझें। सफलता मिलने पर अहंता तथा असफलता मिलने पर निराश न हो। आप स्वस्थ रहेंगे। जीवन शैली में बदलाव लाकर हम ऊर्जावान आत्मविश्वासी रहेंगे स्वस्थ रह घर परिवार देश की उन्नति में सहयोग कर सकेंगे।
जीवन शैली में लाएं गुणात्मक सुधार
स्वस्थ शरीर उन्नति, प्रगति का आधार
-रेखा सिंघल, हरिद्वार