लेख मंजू भारद्वाज
जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक
हमारे कई स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अंधेरे में खो गए। जिन्होंने जुगनू की तरह जगमगाते हुए अंधेरी राहों को रोशन किया। जिनके बलिदान के लिए
भारत सदा उनका ट्टणी रहेगा।
आज हम देश में आजादी महोत्सव मना रहे हैं। देश को आजाद हुए 75 साल हो गए। इतना वक्त हमने आजाद भारत में गुजारा पर आज भी आजादी शब्द के साथ जुड़ी शहीदों की गाथाएं मानस पटल को झंकृत कर देती है। ऐसा लगता है मानो कल की ही बात हो। हमारे क्रांतिकारियों में कितना हौसला, कितना जुनून कितना त्याग कितना समर्पण था। देश भक्ति से ओतप्रोत वह व्यक्तित्व कितना पावन होगा, जिन्हें चिंता नहीं थी कि वह प्रसिद्ध हुए या गुमनामी के अंधेरे में गुम रहे। उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ या नहीं। उनकी आंखों में बस देशभक्ति की आग थी। उनके आंसू, उनकी आशाएं, उनके विश्वास, उनके त्याग उनकी चतुराई का एक ही नाम था देश-प्रेम।
200 साल तक अंग्रेजों ने भारत देश पर राज किया था। वह नोचते खसोटते रहे हमारे देश को। उन्होंने हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा प्रणाली, हमारी धर्म निरपेक्षता, हमारी सृजन्ता सबों पर कुठाराघात किया। इतिहास गवाह है आजादी का आंदोलन हमेशा चलता रहा, हम कई बार गिरे फिर उठे। पर हिम्मत नहीं हारी। आज भी उन शहीदों का शौर्य उनकी निश्छल देशभक्ति हमारी आंखों में चमक बढ़ा देती है और आंखें नम हो जाती है।
हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज कर लिया पर कई गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अंधेरे में खो गए। जिन्होंने जुगनू की तरह जगमगाते हुए अंधेरी राहों को रोशन किया। जिनके बलिदान के लिए भारत सदा उनका ट्टणी रहेगा। उनका बलिदान भले ही इतिहास के पन्नों पर दर्ज न हो पर हमारे दिलों पर आज भी उनका राज है।
ऐसी ही एक स्वतंत्रता सेनानी थी, ‘मातंगिनी हाजरा’ इनका जन्म पूर्वी बंगाल के मिदनापुर जिले में होगला गांव में हुआ था। गरीबी की मार से त्रस्त परिवार ने अपनी 12 वर्ष की मातंगिनी का विवाह 65 साल के त्रिलोचन हाजरा के साथ कर दिया। न उम्र का मेल था न भावनाओं का। नन्हीं मातंगिनी ने उस रिश्ते को भी निभाया। पर दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। 6 वर्ष के बाद वे निसंतान ही विधवा हो गई।
एक बार फिर वह बेसहारा हो गई। गरीबी के चादर में लिपटी वे किसी तरह अपना जीवन गुजार रही थी। इसी दौरान 1932 में गांधी जी ने के नेतृत्व में देश भर में स्वतंत्रता आंदोलन चलाया गया। वंदे मातरम का उद्घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते देशभक्ति की आग ने उनके भूख की आग पर विजय पा ली और वह भी जुलूस में शामिल हो गई और जब भी कोई जुलूस उनके घर के सामने से निकलता वह बंगाली पंरपरा के अनुसार शंख ध्वनि बजाकर अपने देश भक्तों के इस अभियान का स्वागत करती। साथ ही रणभूमि में जिस तरह शंख बजाकर दूसरों को बताया जाता है कि अब हमारी जीत निश्चित है उनके शंख ध्वनि में भी जीत का उद्घोष था। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में तन मन धन से संघर्ष करने की शपथ ली। मातंगिनी को अफीम के नशे की लत थी पर अब उस नशे पर देशभक्ति का नशा हावी हो गया था। 17 जनवरी 1933 को बंगाल में कर बंदी’ आंदोलन को दबाने के लिए तत्कालीन गवर्नर तक आए। उनके विरुद्ध जबरदस्त प्रदर्शन किया गया। जिसका नेतृत्व मातंगिनी हाजरा ने काला झंडा लेकर किया। वे शासन के विरोध में नारा लगाते हुए हेड आफिस तक पहुंच गई। जहां उन्हें बंदी बना लिया गया और 6 महीने ‘सश्रम कारावास’ में डाल दिया गया। देशभक्ति से भरा मातंगिनी का हृदय देश सेवा की भावना से ओतप्रोत था।
1932 में शामली क्षेत्र में भीषण बाढ़ की वजह से महामारी फैल गई थी। उन्होंने अपनी जान की चिंता किए बिना राहत कार्य में अपना पूरा सहयोग दिया। 1942 में जब देश भक्ति की आग भड़क उठी तो हमारी कर्मठ मातंगी भी उस आग में कूद पड़ी। अंग्रेजों के गोलियों के शिकार हमारे स्वतंत्रता सेनानी के सम्मान में और अंग्रेजों के विरुद्ध रैली निकालने के लिए वह घर-घर जाकर लोगों को तैयार करने लगी। सबों के अंदर देश भक्ति का जज्बा जगाया। 5000 लोगों के विशाल समूह के साथ वह डाक बंगले पर पहुंची और नारा लगाने लगी। तभी एक गोली सनसनाती हुई आई और उनके बाएं हाथ को लगी, झंडा गिरने से पहले उन्होंने दाएं हाथ से झंडे को थाम लिया पर झंडे को गिरने नहीं दिया। तभी दूसरी गोली उनके दाएं हाथ पर लगी और तीसरी गोली उनके माथे पर लगी।
‘वंदे मातरम’ के जयघोष के साथ वीरांगना मतांगिनी धरती पर लोट गई। उनकी चिता से उठती चिंगारी ने पूरे वातावरण में आग लगा दी। पूरे क्षेत्र में ऐसा सैलाब उठा कि 10 दिनों के अंदर ही लोगों ने अंग्रेजों को खदेड़ डाला।
भारत के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1974 में ताल्लुक के मातंगिनी हाजरा की मूर्ति का अनावरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। भारत की मिट्टी में आज भी हमारे शहीदों की रक्त मिश्रित है माटी की सोंधी खुशबू आज भी उनके शौर्य की गाथा कहती है। भारत की मिट्टी ने ऐसे ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया है जिनका जीवन कोई कहानी नहीं अपने आप में एक पूरा का पूरा दौर है। उनकी चिताओं से उठती शौर्य की खुशबू से यह धरती आह्लादित है। शहीदों की चिताओं की बिखरी राख को अपने आंचल में समेट मां भारती ने उनका नाम हमारे दिलों में इंगित कर दिया है। उनके चरणों में सत सत नमन है। निस्वार्थ प्रेम को नमन करती हूं उनकी देशभक्ति को नमन करती हूं।