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स्वच्छ पर्यावरण से ही श्वास में नीरोगता आती है

जनता का मंच
जून, 2024 अंक का विषय

पुरस्कृत पर्यावरण स्वच्छ रखने की
लो जिम्मेदारी

पर्यावरण संरक्षण भारतीय संस्कृति का एक मुख्य पहलू है क्योंकि भारतीय संस्कृति वन प्रधान है। हमारी सभ्यता और संस्कृति बहुत ही उन्नत एवं प्राचीन है। हमारे ग्रंथों में भी वनों को पवित्र माना गया है हमारे ट्टषि मुनियों ने आश्रमों में रहकर संतों, मनुष्यों, मनीषियों, आचार्यो, योग गुरुओं और आयुर्वेदाचार्य समाज सुधारकों ने उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए पर्यावरण विषय पर विशेष बल दिया है और अन्य शिक्षा के साथ-साथ समूचे प्राणी जगत के कल्याण के लिए स्वच्छ पर्यावरण के महत्व को दर्शाया है।
हमारी यह हरी भरी धरती प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण संतुलन संपूर्ण मानव जाति एवं जीवधारियों का पोषण करते हैं, उनके अस्तित्व को बनाए रखते हैं। हमारे आसपास का वातावरण हमारा पर्यावरण कहलाता है इसके अंतर्गत नदियां पर्वत, भूमि, हवा आदि सभी आते हैं। मानव की गतिविधियाें से हमारा पर्यावरण प्रभावित होता है। जिसकी वजह से प्रदूषण उत्पन्न होता है। आज मानव प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है फलस्वरूप वन क्षेत्र, पेड़ पौधे, हरे भरे क्षेत्र कम होते जा रहे हैं। जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है तथा पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है।
वायु हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यदि वायु ही प्रदूषित है तो हमारे प्राण कैसे बचेंगे। कारखाने और लाखों वाहनों से निकलने वाली विषैली गैस से तरह-तरह की बीमारियां फैला रही हैं।
वायुमंडल में जलवायु, ओजोन क्षेत्र विसर्जन क्षेत्र आदि हमारी सहायता करते हैं अगर यह क्षेत्र प्रदूषित हो जाते हैं तो कुछ वर्षो के बाद हमें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन खरीदनी पड़ सकती है आज हवा में ऑक्सीजन की कमी हो रही है और अवांछनीय तत्व बढ़ रहे हैं जिससे सांस लेने में परेशानी होती है यदि विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर नहीं ध्यान दिया गया तो जनता विभिन्न रोगों का शिकार हो जाएगी। विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण प्रदूषित कर हम स्वयं ही बीमारियों को न्यौता दे रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण का विश्व के सभी नागरिकों तथा प्राकृतिक परिवेश से गहरा संबंध है। स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रदूषित करने वाले सभी कारणों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
आगे बढ़ती हुई आबादी पर नियंत्रण करने से अधिक वृक्षारोपण करने से पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। हमें आने वाली पीढ़ी के भविष्य को बचाना है तो सामूहिक रूप से पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे ताकि हर प्राणी स्वच्छ पर्यावरण में श्वास लेकर निरोगी रह सके।
पर्यावरण स्वच्छ रखने की लो जिम्मेदारी निरोगी रहने की मिलेगी 100 प्रतिशत गारंटी।
-सुरेश चन्द्रा, हरिद्वार

अन्य चुनींदा प्रविष्टियां

सौ रोगों की एक दवा, हमें चाहिए शुद्ध हवा
पर्यावरण की स्वच्छता मानव जीवन की सुरक्षा हेतु अत्यावश्यक है। विभिन्न वैज्ञानिक उपलब्धियों और भौगोलिक विकास के अंतर्गत यंत्रीकृत सभ्यता ने हमें इतना सुविधाभोगी बना दिया है कि हमें शुद्ध वायु नहीं मिल रही है। वायु की विशुद्धता में हो रही कमी पर्यावरण के लिए किसी संकट से कम नहीं है। दूषित हवा में मानव को श्वास लेना दूभर हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष विश्व में लगभग 70 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण होती है। स्विस ग्रुप आईक्यू एयर की ओर से जारी सूची में सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली इस सूची में प्रथम स्थान पर है। विश्व के 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 65 भारत के हैं।
अनेकानेक उद्योग धंधों, वाहनों तथा अन्यान्य मशीनी उपकरणों द्वारा हम हर घड़ी पर्यावरण को, वायु को प्रदूषित कर रहे हैं। वायुमण्डल में लगातार विभिन्न घातक औद्योगिक गैसों के छोड़े जाने से कार्बन डाई आक्साइड बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार प्रदूषण के विभिन्न स्त्रेतों के द्वारा विश्व के वायुमण्डल में प्रतिवर्ष 25 करोड़ टन कार्बन मोनोआक्साइड, 6 करोड़ टन सल्फरडाईआक्साइड तथा 5-5 करोड़ टन अन्य कार्बन समा रहे हैं। सिगरेट का धुआं भी वायु प्रदूषण में सहायक है। क्लोरोफ्रलोरो कार्बन, एसी और रेफ्रिजरेटर में प्रयोग होता है, यह रसायन ओजोन को नष्ट करता है। नाइट्रोजनआक्साइड पेट्रोल और डीजल के वाहनों और औद्योगिक प्रोसेसिंग से निकलता है। बैटरी, डीजल, पेन्ट, हेयर डाई, लिपस्टिक, कॉस्मेटिक आदि से भी विषैली गैसें निकलती है।
वायु प्रदूषण से मानव सहित जीव जंतुओं, पेड़-पौधों तथा धरोहर भवनों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। उद्योगों में प्रयोग किए जाने वाले संसाधनों से हमारे वातावरण की हवाओं में ग्रीन हाउस गैस की मात्र तेजी से बढ़ रही है जो पर्यावरणीय सुरक्षा की दृष्टि से चिंतापूर्ण विषय है।
वायु प्रदूषण रोकने में वृक्ष बहुत सहयोगी होते हैं। वृक्ष हानिकारक कार्बन डाईआक्साइड सोख लेते हैं और प्राणदायी आक्सीजन देते हैं? किंतु वृक्षों के लगातार कटान की यह मनमानी मानव के लिए भयंकर वायु प्रदूषण के विकराल रूप में प्रत्यक्ष है।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा उपलब्ध कराए गए साधनों का प्रयोग करना होगा।
उपनिषदों में वायु में दैवीय शक्ति की अवधारणा निहित है। वायु की प्राण बनकर शरीर में वास करता है यथा
‘वायु है वै प्राणों भूत्वा शरीरमाविशत’
अस्तु, ‘सौ रोगों की एक दवा हमें चाहिए शुद्ध हवा के सिद्धांत पर दृढ़ता से अनुपालन से ही वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है। जनता और सरकार दोनों की भागीदारी से ही यह संभव है।
-गौरी शरण वैश्य, ‘विनम्र’, लखनऊ

स्वच्छ पर्यावरण से ही श्वास में नीरोगिता आती है
मानव जीवन का अस्तित्व प्रगति एवं उसका संपूर्ण विकास स्वच्छ पर्यावरण पर ही निर्भर है। केवल मनुष्य को ही नहीं, बल्कि सभी जीवधारियों को अपने जीवन क्रम को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए संतुलित एवं स्वच्छ पर्यावरण की अत्यंत आवश्यकता होती है।
आज पर्यावरण प्रदूषण से वायुमंडल में हानिकारक गैसे-जैसे कार्बनडाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरोफ्रलोरोकार्बन तथा मीथेन गैस ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करती हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ पर्यावरण का होना बहुत ही आवश्यक है। श्वास लेना यानि ऑक्सीजन अंदर लेकर कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालना ही श्वास प्रक्रिया कहलाती है।
शुद्ध वायु हमें स्वच्छ पर्यावरण से ही मिलती है लेकिन आज हमारा पर्यावरण प्रदूषित है। प्रदूषित वातावरण के लिए हम खुद ही दोषी हैं विकास और औद्योगिककरण के नाम पर वनों की अंधाधुंध कटाई चल रही है। जनसंख्या विस्फोट ने कृषि तक की उपजाऊ भूमि को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया है। बढ़ते वाहनों की संख्या से महानगरों में जीवन दूभर हो गया है। 24 घंटे कल कारखानों का धुंआ, मोटर वाहनों का काला धुंआ इस तरह से फैल गया है कि वायु प्रदूषित हो गई है जिसमें श्वास लेना कठिन हो गया है। धुएं के काले कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं। यह समस्या वहां अधिक होती है जहां सघन आबादी है। वृक्षों का अभाव है। वहां का वातावरण वृक्षों द्वारा ऑक्सीजन न मिलने के कारण दूषित होता है।
हमारे घर में से निकलने वाले कूड़े का उचित निस्तारण ने होने से पर्यावरण प्रदूषण होता है। वायु प्रदूषण को बढ़ाने में कल कारखाने, फ्रिज कूलर, एसी, ऊर्जा, संयंत्र आदि भी दोषी है जो प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ने के मुख्य कारण हैं।
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई भी सघन आबादी में प्रदूषण बढ़ाती है विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए हमें चाहिए कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं विशेष रूप से सड़कों के किनारे घने वृक्ष लगाए आबादी वाले क्षेत्र खुले और हवादार हो और हरियाली से आच्छादित हो तभी सांसों में निरोगिता आएगी।
-रेखा सिंघल, हरिद्वार

पर्यावरण के सभी रूपों को स्वच्छ रखें, जीवन में नीरोगता लाएं
हवा, पानी और भोजन जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। इनमें हवा और पानी हमें प्रकृति के द्वारा सदियों से निःशुल्क रूप से शुद्ध रूप में उपलब्ध कराए जाते रहे हैं, लेकिन अब ये औद्योगिक विकास और मानव के लोभ के कारण प्रदूषण की भेंट चढ़ रहे हैं। वायु और जल के दूषित होने के कारण आज मनुष्य को स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
हवा एक ऐसा तत्व है जिसके अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हवा के द्वारा पेड़, पौधे, पशु-पक्षी, मनुष्य तथा सभी जीवित प्राणी जीवन प्राप्त करते हैं। हवा विभिन्न गैसों का एक अदृश्य मिश्रण है। आक्सीजन, हवा में मौजूद विभिन्न गैसों में से एक है, जिसे हम श्वास के द्वारा ग्रहण कर जीवन धारण करते हैं। आक्सीजन को प्राणवायु भी कहते हैं जो सभी सजीव प्राणियों के लिए जीवित रहने की सर्वप्रथम आवश्यकता है। शुद्ध वायु में उचित अनुपात में कई गैसों का मिश्रण होता है जिसमें नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बनडाइआक्साइड, मीथेन, कार्बन मोनो आक्साइड, गंदगी, धुआं, धूल, पराग, वायरस आदि विजातीय तत्वों की मात्र अधिक हो जाती है।
प्रदूषित वायु से साँस संबंधी अनेक बीमारियां होती हैं। इन बीमारियों में अस्थमा, ब्रौकाइटिस और फेफड़ों का कैंसर प्रमुख है। बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण साँस लेने में तकलीफ, आंखों का लाल होना, गले में खराश जैसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दिल्ली सहित भारत के कई राज्यों में वायु की गुणवत्ता खराब होने के कारण लोगों को साँस लेने में परेशानी हो रही है और वे तरह-तरह के संक्रमणों के शिकार हो रहे हैं। स्पष्ट है कि स्वच्छ श्वासों के लिए स्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है। प्रकृति के सभी घटक आपस में जुड़े हुए हैं अतः इनसे अधिक छेड़छाड़ करना घातक है। जब जल और मिट्टी प्रदूषित होंगे तो वे विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसे वातावरण में उत्सर्जित करते हैं, जिसके कारण वायु प्रदूषित हो जाती है। शहरी क्षेत्रें में कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए दूषित वायु ही जिम्मेदार है। जब हम पर्यावरण के सभी रूपों को स्वच्छ रखेंगे तभी शुद्ध श्वासों के माध्यम से जीवन में नीरोगता लाई जा सकती है।
-सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’, कोटा (राज-)

स्वच्छ पर्यावरण हमारे जीवन के लिए अनमोल है
स्वच्छ पर्यावरण ही स्वस्थ जीवित प्राणियों का आधार है। स्वच्छ पर्यावरण हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। स्वच्छ पर्यावरण हमारे प्राकृतिक संसाधनों को बचाता है। स्वच्छ हवा मानव स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है।
आज आधुनिक युग में हम अपनी भौतिक सुखों को सर्वोपरि रखकर पर्यावरण के साथ खेल रहे हैं। जाने-अनजाने मानव अपने जीवन के श्वासों को घटा रहा है।
वायु प्रदूषण से श्वास संबंधी समस्याएं हृदय रोग और अन्य कई भयानक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। बिना देर किए हमें स्वच्छ पर्यावरण बनाकर आने वाले खतरों से बचा जा सकता है और आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित कर सकते हैं।
आधुनिक जीवन शैली विकास औद्योगिक के कारण पर्यावरण का नुकसान हो रहा है। वायु की गुणवत्ता गिर रही है। औद्योगिक इकाइयों के बढ़ने से औद्योगिक उत्सर्जन बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप वायु में विषाक्त पदार्थ मिलते हैं जिससे श्वास की गंभीर बीमारियां हो रही हैं। कचरे को खुले में जलाने से भी हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। वृक्षों के कटने से जलवायु परिवर्तन हो रहा है जिससे जंगल की आग को बढ़ावा मिल रहा है साथ ही वायु प्रदूषण भी। इसके कारण वायु में स्मोग बनता है जिससे न केवल मानव जाति, वन्य जीव, पौधे, जानवर सभी प्रभावित हो रहे हैं। व्यक्तिगत लाभ के लिए मानव जाति प्रकृति का दोहन कर रहा है। स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण बनाने के लिए हमें अपने जीवन शैली में बदलाव लाने होंगे।
जीवन में खुशहाली बनाए रखने के लिए पौधों का अपना महत्वपूर्ण योगदान है। सभी वृक्षारोपण करें। उससे हमें निरोगी श्वास के साथ निरोगी काया भी मिलेगी। पीपल, आमला, नीम के पेड़ लगाए। आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए हमें अपनी छोटी-छोटी आदतों में बदलाव करना होगा। जैसे ताजी शुद्ध वायु का आनंद लें। पर्यावरण को प्यार से सीच कर स्वस्थ बनाएं।
-शिखा अग्रवाल, देहरादून

प्रकृति का दोहन त्यागकर प्रकृति का संरक्षण कर पर्यावरण के हितैषी बनें
हमारी सनातन संस्कृति में प्रकृति को देवी स्वरूपा मानकर उसकी पूजा अर्चना कर उसका रक्षण करने की परम्पराओं से ही रही है। हम जल, पशु, पक्षी, पेड़ पौधों का संरक्षण करने में ही अपना हित मानते आए हैं, और मानते रहेंगे इसीलिये पीपल, तुलसी, वट, केले आँवला, आम आदि पेड़ पौधों की पूजा विभिन्न त्यौहारों पर करके प्रकृति के प्रति अपनी आस्था, आभार प्रकट करते हैं। जल में वरूण देवता का वास है, यह मानकर किसी भी पूजा में जल का प्रयोग सर्वप्रथम कर आभार व्यक्त करते हैं क्योंकि बिना पेड़ पौधे जल के पृथ्वी पर जीवन ही संभव नहीं।
फिर भी वर्तमान में बढ़ते श्वास रोगी हृदय रोगी, असमय वृद्ध होते युवा यह सभी प्रकृति की अवहेलना करने के फलस्वरूप प्राप्त हो रहे हैं। आज हम 50-60 वर्ष के आगे स्वस्थ रहने की कल्पना ही करते हैं। अगर कोई 60 वर्ष के उपरान्त जीवन जीता भी है तो शरीर रोगों का घर हो चुका होता है जबकि हमारे पूर्वज शतायु होकर पूर्ण रूप से स्वस्थ नीरोगी रहते थे। इन सभी के मूल में हमारी ही कमियां रही हैं। हमने जल का अन्धाधुन्ध दोहन किया फल स्वरूप पृथ्वी पर बढ़ता तापक्रम, घटता जल। बढ़ते वाहन निरन्तर वायु प्रदूषण फैला कर पर्यावरण दूषित कर रहे हैं। वायु को प्रदूषित करने के लिये एयर कंडीशनर से निकलने वाली विषैली गैसें लेकिन हमने पर्यावरण की चिन्ता करना बिसरा दिया।
हम स्वच्छ पर्यावरण के लिये सच्चे मन से प्रयास करेंगे तो अवश्य सफलता भी मिलेगी।
प्रकृति का संरक्षण स्वच्छ पर्यावरण की प्रथम सीढ़ी है। पेड़ जितने अधिक हम लगाएंगे उतना ही हमें प्राणवायु स्वच्छ शुद्ध प्राप्त होगी। मेघ समयानुसार वर्षा करें। अतः आवश्यकता प्रकृति का संरक्षण कर पर्यावरण का संतुलन भली प्रकार बनाए रखने की है।
प्रकृति हमारी माँ है और माँ संतानों को शुद्ध हृदय से खुले हाथों से अपनी ममता लुटाती है अपनी संतानों पर बशर्ते संतान दोहन न कर संरक्षण करें। क्योंकि हमारे शास्त्रें में भी कहा है कि नदी न पिये कभी अपना जल वृक्ष न खाएं कभी अपने फल। हम प्रकृति का संरक्षण करेंगे तो शतायु की उम्र पाकर नीरोगी रह सकते हैं।
हम जन्मदिवस, विवाह की वर्षगांठ आदि पर पेड़ लगाए कन्या जन्म पर पेड़ लगाकर प्रकृति व पर्यावरण को शुद्ध कर सकते हैं। केवल आवश्यकता दृढ़ इच्छा शक्ति की है अगर मानव चाहे तो पाताल से भी पानी ला सकता है। अतः हम पर्यावरण के हितैषी बने ऐसी कामना है।
-पूर्णिमा कुमावत, उदयपुर (राज-)

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