( अंतिम भाग)
कहानी
श्याम कुमार पोकरा
एक होनहार अति गरीब घर का लड़का और एक सब से अमीर घर की लड़की कालेज में सहपाठी थे। दोनों परस्पर आकृष्ट हुए और विवाह की कसमें खा लीं। कैसे चला उनका जीवन एक भावपूर्ण कहानी।
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जब प्रिया कालेज में प्रवेश करती है, उसकी सुंदरता, उसकी सौम्य मुस्कान सोम के हृदय में उतर जाती है। उसे देखते ही सोम के दिल की धड़कन बढ़ जाती है। बेहद अमीर घराने की प्रिया और गांव का अत्यधिक गरीब सोम दोनो बी-एससी- प्रथम वर्ष की कक्षा में पढ़ते हैं।
पहला क्वाटर्ली टेस्ट में जब सोम क्लास में टॉप करता है तब प्रिया की नजर में आता है। पैसों की तंगी के कारण वह अक्सर रात में कोयले की फैक्टरी में काम भी करता है। उसे नहीं पता होता है कि वह फैक्टरी प्रिया के पिता की है। एक दिन प्रिया उसे फैक्टरी में देख लेती है।
‘‘सोम तुम यहां, इस हालत में।’’
‘‘हां प्रिया जी——जब रुपया खत्म हो जाता है, मैं मजदूरी करने यहां चला आता हूं।’’
यह सब देख कर सोम से प्रिया का लगाव बढ़ जाता है। धीरे धीरे यह लगाव प्रेम में बदलने लगता है। उनके प्यार की चर्चा प्रिया के अमीर व्यवसायी मेयर पिता तक पहुंचती है। इधर बी-एससी- फाइनल परीक्षा में सोम पूरे क्लास में टॉप करता है। वह कॉलेज में प्रिया को ढूंढ़ता है। वह वहां नहीं मिलती है तब उससे मिलने उसके घर चला जाता है। उसके घर पहुंच कर वह उसे अपना परीक्षा परिणाम बताता है। प्रिया बहुत खुश होती है। परन्तु उसके मेयर पिता को यह सब ठीक नहीं लगता है। वह सोम को अपमानित कर घर में दुबारा नहीं आने की धमकी देते हैं। सोम लौट कर अपने छात्रवास में आता है। वह बेहद दुखी है। भोर में उठकर अपना समान समेटना शुरू कर देता है। वह अपने साथियों के जागनेे से पहले अपना बैग कंधे में टांगा और निकल गया।
अचानक सामने खड़ी प्रिया को देखकर वह विस्मित रह गया।
‘‘तुम कहीं जा रहे हो सोम?’’
‘‘हां प्रिया मैं अपने गांव जा रहा हूं।’’
‘‘मुझे अकेला ही छोड़कर सोम?’’
‘‘तुम पर मेरा क्या अधिकार है प्रिया। तुम्हारे डैडी नहीं चाहते कि मैं तुमसे बात भी करूं।’’
‘‘ऐसी बातें मत करो सोम। हमारे सपने अवश्य सच होंगे। हमें कोई अलग नहीं कर सकता है। हम दोनों आज ही शादी कर लेंगे।’’
प्रिया के दृढ़ शब्दों को सुनकर वह कांप उठा। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
———-अब इसके आगे पढ़ें।
( अंतिम भाग)
प्रिया ने उसका हौंसला बढ़ाया, ‘‘डरो मत सोम। तुम हिम्मत रखो। अगर आज हम दूर हो गये तो फिर कभी नहीं मिल सकेंगे। डैडी मेरी शादी किसी अमीर घराने में कर देंगे। इसलिए तुम मेरी बात मानो और तैयार हो जाओ। किसी मंदिर में चलकर हम शादी कर लेते हैं। फिर हमें कोई अलग नहीं कर सकेगा।’’
प्रिया की बात सुनकर उसका हौंसला बढ़ गया। कंधे पर लटका हुआ बैग उतारकर उसने तख्ते पर रख दिया। फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दोनों होस्टल से बाहर निकल गये।
उसी दिन शहर के बाहर स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर में दोनों की शादी संपन्न हो गई। अग्नि के सामने उन्होंने सात फेरे लिए, एक दूसरे के गले में वरमाला डाली। और दोनों ने एक साथ भगवान के चरणों में ढोक लगाया। पुजारी बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया। उनके सुखी गृहस्थ जीवन की मंगल कामना की। शादी के लाल रंग के जोड़े में प्रिया आज उसे अति सुंदर लग रही थी। एक दूसरे का हाथ थामकर दोनों मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतरे।
शाम होते-होते उनका रिक्शा चांदवाड़ भवन के गेट पर आकर ठहरा। रिक्शे से उतरकर उन्होंने गेट में प्रवेश किया। सुरक्षा गार्ड ने प्रिया को सलाम किया। गेट से निकल कर वे एक साथ आगे बढ़ गये।
स्वागत कक्ष में प्रिया को उसके साथ दुल्हन के रूप में देखकर सब विस्मित रह गये। सोफे पर बैठे हुये डैडी एक झटके के साथ खड़े हो गये और क्रोध में तमतमाने लगे। मम्मी विस्फारित नेत्रें से उन्हें देखने लगी। भय के मारे वह कांपने लगा। प्रिया ने हिम्मत दिखाई।
‘मम्मी डैडी——-मैंने सोम के साथ शादी कर ली है। हम यहां आपका आशीर्वाद लेने आये हैं।
वे दोनों आगे बढ़े और मम्मी डैडी के चरणों में झुक गये। घृणा में जलते हुये डैडी दूर हट गये। कुछ क्षणों तक मम्मी खामोश खड़ी रही। फिर अचानक पिघल गई।
उसने झुककर बेटी को गले लगा लिया। मां बेटी दोनों की आंखों में अश्रुधाराएं फूट पड़ी। इसी समय डैडी के कठोर शब्द गूंज पड़े।
‘‘समझ ले आज के बाद तू हमारे लिए मर गई है प्रिया। तुम दोनों इसी समय मेरी नजरों से दूर हो जाओ।’’
डैडी के कठोर शब्दों को सुनकर प्रिया रो पड़ी। रोते हुये वह अपने भाइयों की ओर बढ़ी, अपनी भाभियों की ओर बढ़ी। लेकिन सभी ने पीठ फेर ली। किसी ने उसे गले नहीं लगाया। निराश होकर वह उसके पास लौट आई। फिर दोनों शिथिल कदमों से चांदवाड़ भवन से बाहर निकल गये।
दूसरे दिन ही प्रिया को लेकर वह गांव आ गया। दादी मां सुंदर व सुशील बहू को देखकर प्रसन्न हो उठी। उन्होंने प्रिया को गले लगा लिया। पूरे गांव में प्रिया की सुंदरता की चर्चा होने लगी। गांव की औरतें उसे देखने आने लगी। औरतें उसका मुंह देखती और खुश हो जाती। कोई उसके हाथ में एक रुपया रख जाती, कोई दो रुपया और कोई पंच रुपया। बहू को किसी की नजर न लग जाये। दादी मां प्रिया के गोरे चेहरे पर काजल का काला निशान लगा देती।
कुछ दिनों तक वह गांव में रहा। फिर प्रिया को दादी मां के पास छोड़कर नौकरी की तलाश में वह शहर चला आया। रोजगार के लिए उसे अधिक नहीं भटकना पड़ा। श्रीराम केमिकल्स ने उसकी योग्यता देखकर उसका प्रार्थना पत्र स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन ही उसका साक्षात्कार हुआ और वह पास हो गया। उसी दिन फैक्टरी में उसे ओपरेटर के पद पर नियुक्ति का पत्र मिल गया।
श्रीराम केमिकल्स में वह नौकरी पर जाने लगा। राजीव नगर में उसने एक कमरा किराये पर लिया और होस्टल से निकल कर वहां रहने लगा। कुछ ही दिनों बाद वह गांव गया और प्रिया को अपने साथ ले आया। धीरे-धीरे प्रिया ने एक कुशल गृहिणी की भांति अपना घर संभाल लिया। सुबह प्रिया जल्दी उठ जाती। सबसे पहले वह चाय बनाती, फिर उसे जगाती। बिस्तर पर बैठकर ही वह चाय पीता। फिर वह ड्यूटी के लिए तैयार होने लगता।
जब तक वह बाथरूम से नहा धोकर बाहर निकलता, प्रिया उसका टिफिन तैयार कर देती। जल्दी जल्दी वह कपड़े पहनता। जूते मौजे पहनता, बालों को संवारता। तब तक फैक्टरी का सायरन बज जाता। एक नजर वह प्रिया की आंखों में देखता, मुस्काता और टिफिन पकड़कर दौड़ लगा देता। द्वार पर खड़ी होकर प्रिया उसे तब तक देखती रहती, जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो जाता।
फैक्टरी की नौकरी और प्रिया का प्यार। पता ही नहीं चला कि समय कब निकल गया। उसके प्यार में प्रिया भी सबको भूल गई। उसे न कभी अपने मम्मी डैडी की याद आती और न कभी अपने भाइयों भाभियों की। उसके घर वालों ने भी कभी उसकी सुध नहीं ली। जितना व जैसा भी वह लाकर देता, उसी में वह अपना गुजर बसर कर लेती। उसके प्यार में डूब कर उसने अपने सारे ऊंचे शौक त्याग दिये।
पायल के जन्म के बाद उनकी खुशियां और बढ़ गई। प्रिया के काम भी बढ़ गये। बेटी के लालन-पालन में उनका समय आसानी से गुजरने लगा। पायल रोने लगती तो दोनों उसे मनाने लगते। तरह-तरह के खिलौने दिखाकर वह उसे रिझाने का प्रयास करता।
वह कमाने लगा लेकिन दादी मां ने गांव नहीं छोड़ा। जब भी उसे उनकी याद आती वह शहर आ जाती। जितना बन सकता प्रिया दादी मां की सेवा करती। दादी मां दिन भर पायल को गोद में उठाये रहती। बच्ची का मस्तक चूम चूम कर वह उसे प्यार करती। प्रिया बहुत मनुहार करती लेकिन दादी मां अधिक समय तक नहीं ठहरती। काम के बिना उसे शहर में नहीं सुहाता। और दो चार दिन उनके साथ रहकर दादी मां वापिस गांव लौट जाती।
फैक्टरी से लोन लेकर इस वर्ष उसने राजीव नगर में एक छोटा सा घर खरीद लिया। एक बेडरूम, एक ड्राइंग रूम, छोटा सा किचिन, लेट्रीन बाथरूम और सामने खुला आंगन। मकान के सामने स्थित बड़ा पार्क। पार्क में खड़े नीम आम और शीशम के बड़े-बड़े पेड़। पार्क के उस पार भगवान का मंदिर।
प्रिया को यह, घर बहुत पसंद आया। मंदिर में रोज सुबह शाम घंटियां बजती, भगवान की आरती होती। शाम होते ही पक्षियों की चहचहाट गूंजने लगती। रंग-बिरंगी चिड़ियां, कबूतर, तोते, कौअे और कोयलें। दिन भर के थके हारे सब अपने अपने घौंसलों में लौट आते। नीम की एक ऊंची डाली पर मोर-मोरनी का एक जोड़ा रोज आकर बैठता। पायल की अंगुली पकड़ कर वह आंगन में टहलता। शाम होते ही प्रिया गेट पर आकर खड़ी होती वह पेड़ों पर बैठे पक्षियों को देखती। उनकी कलरव को गौर से सुनती और चहक उठती।
‘‘देखो सोम——-कितना प्यारा सीन है। पेड़ों पर लटके हुये घरोंदे, तरह-तरह के पक्षी-पक्षियों की कलरव। लगता है जैसे सब मिलकर एक गीत गा रहे हैं और वह नीम की उस ऊंची डाली पर देखो। मोर मोरनी का जोड़ा कितना प्यारा लगता है। कितना प्यार है दोनों के बीच में। यूं ही एक दूसरे के गले लगकर रात भर बैठे रहते हैं।’’
प्रिया की बात सुनकर वह अभिभूत हो उठता। पायल को गोद में उठाकर वह प्रिया के नजदीक आ खड़ा होता। उसके रेशमी केशों में नथुने गड़ाकर लम्बी सांसें खींचता।
‘‘तुम सच कहती हो प्रिया। शाम का यह समय मुझे भी बहुत अच्छा लगता है। जी करता है कि समय यहीं ठहर जाये। अपने सारे दुख दर्दों को भूलकर मैं तेरे प्यार में डूब जाऊं।’’
अपने नये घर में इस वर्ष उन्होंने पायल का जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर उसने अपने सारे मित्रें को निमंत्रण दिया। गांव वालों को आमंत्रित किया। शहर में उसका छोटा सा सुंदर घर देखकर गांव के लोग बहुत प्रसन्न हुये। अपने पोते की सफलता को देखकर दादी मां गर्वित हो उठी।
पायल अब स्कूल जाने लगी। रोज सुबह जल्दी उठकर प्रिया पायल को स्कूल के लिए तैयार करती। सात बजे स्कूटर से वह पायल को स्कूल छोड़ने जाता। फिर वह अपनी ड्यूटी जाने के लिए तैयार होने लगता। प्रिया उसके लिए टिफिन बनाने लगती। आठ बजते बजते वह टिफिन स्कूटर की डिक्की में रखकर घर से निकल जाता। प्रिया गेट पर आकर उसे विदा करती। आगे जाकर वह मुख्य सड़क मुड़ जाता।
वह आंखों से ओझल हो जाता, तो प्रिया घर में लौट आती। थोड़ी देर आराम करने के बाद वह फिर घर के काम में लग जाती। बर्तन, कपड़े, झाड़ू पोचा और फिर किचिन का काम। अपने और पायल के लिए खाना बनाते बनाते एक बज जाता। वह जल्दी जल्दी तैयार होकर पायल के स्कूल पहुंचती। डेढ़ बजे पायल के स्कूल की घंटी बज जाती। एक हाथ में वह पायल का भारी बैग लटकाती व दूसरे हाथ में पायल की अंगुली थामती। स्कूल से घर लौटते-लौटते वह थककर चूर हो जाती। किसी तरह पायल के कपड़े बदलती, अपने साथ उसे खाना खिलाती। खाना खाकर दोनों मां बेटी बिस्तर पर लेट जाती।
उनके सुखी जीवन में अचानक एक दिन बाधा आ गई। गांव में दादी मां लकवे की चपेट में आ गई। खबर सुनते ही वह गांव दौड़ गया। वहां दादी मां उसे अचेत अवस्था में मिली। उसी दिन दादी मां को वह शहर ले आया और उसे बड़े अस्पताल में भर्ती करा दिया।
फैक्टरी से छुट्टियां लेकर वह महीनों तक बड़े अस्पताल के चक्कर काटता रहा। दादी मां को शहर के बड़े-बड़े डाक्टरों को दिखाया। लेकिन दादी मां की अवस्था में विशेष सुधार नहीं हो सका। दादी मां ने आंखें खोल ली। चम्मच से दूध दलिया खाने लगी। लेकिन उसके शरीर के दाहिने हिस्से में जान नहीं लौटी। चेहरे में विकृति आ गई। वह देखती सुनती समझती लेकिन बोल नहीं पाती। अपलक उसे देखने लगती। देखते ही देखते उसकी आंखों में तलाइयां भर जाती। दादी मां की आंखों में पानी देखकर उसका भी मन भर आता। लेकिन वह हिम्मत रखता। दादी मां के आंसू पोंछता और उसे हिम्मत देता, ढाढस बंधाता।
तीन महीने तक दादी मां को उसने अस्पताल में रखा। डाक्टरों की सलाह पर फिर उसे वह घर ले आया। ड्राइंग रूम में उसने दादी मां का बिस्तर लगाया। दादी मां के घर में आते ही प्रिया के तेवर बदल गये। बूढ़ी व बीमार लाचार दादी मां के प्रति उसके हृदय में छिपी घृणा को महसूस कर वह कांप उठा। दिन भर वह दादी मां की सेवा करता। करवटें बदल कर उसका बदन साफ करता, पाउडर लगाता, दवाइयां खिलाता और चम्मच से उसे खाना खिलाता। लेकिन प्रिया उसका सहयोग नहीं करती। घर का काम छोड़कर वह कमरे में ही पड़ी रहती। वह प्रिया को समझाने का प्रयास करता।
‘‘इस बूढ़ी दादी मां ने मेरे लिए बहुत कष्ट झेले हैं प्रिया। इसी के कारण मैं तुम्हारे लायक बन सका हूं। अगर इस बीमारी में मैं ही इसका साथ छोड़ दूं तो भगवान भी मुझे कभी माफ नहीं करेगा। यह बुरा समय भी निकल जायेगा। धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा प्रिया।’’
उसकी बातों का प्रिया पर कोई असर नहीं हुआ। दिन प्रतिदिन दादी मां के प्रति उसकी घृणा बढ़ती गई। धीरे-धीरे प्रिया ने दादी मां की ओर देखना तक छोड़ दिया। वह उससे भी घृणा करने लगी। दादी मां को लेकर आये दिन दोनों के बीच टकराहट होने लगी। प्रिया ने घर का काम करना छोड़ दिया। समय पर खाना पीना छोड़ दिया। छोटी-छोटी बातों पर वह चिढ़ने लगी। एक दिन सुबह-सुबह ही उनके बीच झगड़ा हो गया। उसने प्रिया को दादी मां के लिए चाय बनाने के लिए कहा तो वह भड़क उठी। आनन-फानन में उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में ठूंसे और पायल को उठाकर तमतमाने लगी।
‘‘इस बुढ़िया को नहीं छोड़ सकता है तो मुझसे शादी क्यों की है तूने। इसके लिए मेरा पूरा घर बर्बाद कर दिया। मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी है तूने। अब मैं एक मिनट भी इस घर में नहीं रह सकती हूं। तू या तो इस बुढ़िया को रख ले या मुझे रख ले। जा रही हूं मैं। अब तू मुझे लेने आया तो तुझे तेरी इस मां की कसम। हमेशा के लिए भूल जाना मुझे।’’
दादी मां के नजदीक बैठा वह सब कुछ चुपचाप सुनता रहा। प्रिया के विकराल रूप को देखकर वह कांप गया। क्रोध में तमतमाती हुई……………………………
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