सम्पादकीय
हमारी युवा शक्ति किधर?
उत्तरदायी कौनयुवा देश के भविष्य हैं परन्तु आज हम यदि समाचार पत्रों की कतरने को पढ़ें तो हमें ऐसी खबरें प्रतिदिन मिल जाती है, जिनसे निराशा होती है। युवा निराश हैं, उनके सम्मुख कोई उज्ज्वल सपना नहीं है। वह निराश होकर उच्च शिक्षा की ओर आकृष्ट होते हैं, उसमें घर की जमापूंजी लगा देते हैं परन्तु जैसे तैसे पास कर भी लें तो अच्छी नौकरी पाने वाले कुछ प्रतिशत ही होते हैं।
कुछ युवा निराशा में अपराध वृति की ओर उन्मुख हो जाते हैं लेकिन इसके लिए हम युवा पीढ़ी को दोषी नहीं ठहरा सकते। युवा को तो जैसे आपने संस्कार दिए हैं वह उसी के अनुसार अच्छे या बुरे इंसान बनते हैं।
शास्त्रों में सोलह संस्कारों की चर्चा की गई है। इसमें अधिकांश संस्कार जन्म से लेकर युवा होने तक के ही हैं। शास्त्रों में इसका बड़ा विस्तार से आग्रहपूर्वक वर्णन किया गया है। वह जब अन्न ग्रहण करता है, वह यज्ञोपवीत धारण करता है, वह पाठशाला जाता है प्रत्येक पग पर उसे जीवन के कर्तव्य बड़े सहज ढंग से सिखाए जाते हैं। इसमें सब से बड़ा रोल मां का है। शास्त्रों में एक श्लोक है जिसमें कहा गया है कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य होता है। सौ आचार्यो से अधिक भारी पिता होता है और एक हजार पिताओं से भारी माता होती है।
मां ने जो बचपन में सिखा दिया उस का प्रभाव बड़े गहरे से पूरे जीवन में रहता है। महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना बताई जाती है कि एक बार वह गाड़ी में जा रहे थे। आधी रात मेें उठकर रोने लगे। उनके साथी जाग गए और पूछने लगे कि क्या बात हुई? आप रो क्यों रहे हैं? महात्मा गांधी ने बताया कि मैंने मां से वायदा किया था कि मैं सोने से पहले भगवान से प्रार्थना करूंगा परन्तु आज मुझसे चूक हो गई, मैंने प्रार्थना नहीं की।
इस दृष्टि से जीजाबाई का नाम बडे़ आदर से लिया जाता है, शिवाजी को बचपन में ऐसे संस्कार दिए थे कि शिवाजी ने बड़े होकर मुगल सल्तनत को परास्त कर दिया। सती मदालसा ने अपने सभी पुत्रों को ऐसे संस्कार दिए कि वह युवा होने पर संन्यासी बन गए। अन्त में राजा के आग्रह पर उन्होंने अपने पुत्र को राज सिंहासन संभालने की प्रेरणा दी।
एक कहानी जनता में आप सबने सुनी होगी जिसमें एक चोर को जब फांसी की सजा हुई और उससे अन्तिम इच्छा पूछी गई तो उसने अपनी माता से मिलने की इच्छा प्रकट की। माता को मिलने पर उसने उसके कुण्डल खींच कर उसके कान काट दिए। उससे जब पूछा गया तो उसने बताया कि मेरी आज की सजा के लिए यही दोषी है। क्योंकि जब मैं छोटा था तो एक दिन मैं स्कूल से अपने सहपाठी की पेंसिल चुरा लाया था, यदि उस दिन मुझे इस ने थप्पड़ लगाकर सिखाया होता कि चोरी नहीं करनी चाहिए तो आज मैं यह सजा नहीं पाता।
आज प्रधनमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बन कर जन-जन का हीरो बनने का श्रेय उनकी माता हीरा बा को बताया जाता है। उन्होंने गरीबी की हालत में भी नरेन्द्र भाई को अपने कर्तव्य पर चलने की शिक्षा दी। अतः बच्चों की सफलता का श्रेय माता-पिता को जाता है।
आज यदि बच्चे बिगड़ रहे हैं, नशे की ओर प्रवृत हो रहे हैं, अपराध की ओर बढ़ रहे हैं तो इसके लिए बच्चों को दोष देकर हम समस्या का हल नहीं खोज सकते हैं।
आज समाज में परिवार का ढांचा इस प्रकार का है कि विवाह शिक्षा कैरियर आदि की स्पर्धा में 25-28 वर्ष के बीच में होता है और प्रायः परिवार एक या दो बच्चों तक सीमित हो जाता है। अब एकल परिवार के चलन के कारण माता-पिता दोनों को काम पर जाना पड़ता है जिससे बच्चे को संस्कार देने के लिए, उनकी बात सुनने के लिए, उनके छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर देने के लिए किसी के पास समय ही नहीं रहता। बच्चा अब मोबाइल या टीवी से ही जो सीखने को मिलता है, सीखने लगता है। उसके कैसे दोस्त हैं? वह क्या सोच रहा है, यह जानने के लिए किसी के पास समय ही नहीं है।
क्योंकि बच्चे केवल एक या दो होते हैं। अतः वह लाड़ प्यार से पाले जाते हैं उनकी हर इच्छा को पूर्ण किया जाता है इस प्रकार वह बचपन से ही अपनी जिद को मनवा लेने की आदत बना लेते हैं। यह उनका संस्कार बन जाता है।
शास्त्रों में लालन-पालन के बारे में स्पष्ट निर्देश है-
लालयेत पंचवर्षाणि, दस वर्षाणि ताड़येत।
प्राप्ते तु षोडषे वर्षे, पुत्रम् मित्रम् वदाचरेत।
अर्थात् पहले पांच वर्ष तक बच्चे को लाड़ प्यार दें।
उसके बाद दस वर्ष तक उसको डांट कर आचरण सिखाएं और बालक के पन्द्रह वर्ष हो जाने पर उससे मित्र समान व्यवहार करें।
हम बच्चे को जैसे संस्कार देंगे वैसा ही वह इंसान बनेगा। बड़े होकर यदि आज बच्चे मां बाप की उपेक्षा करते हैं तो उसके लिए कहा जाएगा कि ‘बोए पेड़ बबूल के आम कहां से होए।’
अब विचारणीय यह है कि इसका समाधान क्या है। इसके लिए शिक्षा में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। आज शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य क्या है? आज विद्यार्थी कौन सा विषय पढ़ना चाहता है, जिसमें उसे अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिल जाय। उच्च शिक्षा में डाक्टरी वह जनता की सेवा के लिए नहीं पढ़ना चाहता बल्कि वह इससे अधिक पैसे कमा लेगा यही सोचता है। वह बचपन से ही पहली कक्षा से अंग्रेजी माध्यम से पढ़ता है, क्योंकि वह सोचता है इस से अच्छी नौकरी मिल जाएगी।
यह शिक्षा लार्ड मैकाले ने इंडियन एजूकेशन एक्ट के अधीन प्रारंभ की थी। इस का उद्देश्य अंग्रेजी सरकार के लिए क्लर्क पैदा करना था ताकि वह कुुछ लाख लोग इतने बड़े देश पर राज्य चला सके। शिक्षा का वह स्वरूप ही आजादी के बाद छोटे मोटे संशोधनों के साथ चलता आ रहा है। उसी का परिणाम है कि आज बेरोजगारी है, युवा लक्ष्यविहीन है। केवल अर्थ के लिए ही दीवाना है।
अभी सरकार ने जो नई शिक्षा नीति बनाई है यह बहुत सोच विचार के बाद बनाई है। इस को देखकर यह विश्वास होता है कि यह युवाओं की सभी समस्याओं का हल कर देगी। इस की नीति पर विस्तृत लेख इसी अंक में विस्तार से दिया गया है। अब वर्तमान शिक्षा पद्धति को नई शिक्षा नीति में परिवर्तित होने में आठ दस वर्ष अवश्य लग जाएंगे।
अतः नई शिक्षा नीति के लाने तथा पुरानी शिक्षा नीति को बदलने का यह संक्रमण काल है। इसमें कुछ को कठिनाई होगी। अतः समाज के विचारशील लोगों का कर्तव्य है कि वह शिक्षा के इस सुधार के लिए जनता को जागरूक करें ताकि समाज में विशेष रूप से युवाओं की सभी समस्याएं अपने आप ही दूर हो जाए।