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सब कुछ बदल गया है भैया

कविता
बृज राज किशोर ‘राहगीर’

जुलाई, 2023
स्वास्थ्य विशेषांक

दुनिया में कितना कुछ बदल गया है भैया।
जो मुट्टी में था, सब फिसल गया है भैया।।


संस्कार से रहित हो गई शिक्षा सारी।
भारतीयता पर पश्चिमी सभ्यता भारी।
नहीं सिखाया जाता जब सम्मान बड़ों का,
कैसे हो फिर अगली पीढ़ी आज्ञाकारी।
आसपास के कुटिल आचरण देख-देखकर
बच्चा ही हाथों से निकल गया है भैया।।


अब विवाह को भी समझा जाता है बंधन।
अपने सपनों को पूरा करने का साधन।
पहले दिन से अधिकारों की चर्चा होती,
गया भाड़ में प्रेम प्यार, कर्तव्य, समर्पण।
सबक पढ़ लिए सबने अपनी स्वार्थ-सिद्धि के
भौतिक सुख निष्ठा को कुचल गया है भैया।।


नर हो या नारी, दोनों का अहं बड़ा है।
यही अहं अब संबंधों के बीच खड़ा है।
सहन-शक्ति तो क्षीण हो गई है दोनों की,
बात-बात पर तू-तू मैं-मैं है, झगड़ा है।
मुंह पर छाई रहती रेखाएं तनाव की,
अपनेपन को गुस्सा निगल गया है भैया।।


नेता बनने से पहले साधारण थे वे।
सामाजिक संरचना का नन्हा कण थे वे।
लेकिन अब वे आसमान का चांद हो गए,
शुरू-शुरू में माटी से उपजा तृण थे वे।
घर में धन का हुआ आगमन तो उनका मन,
बेईमान होने को मचल गया है भैया।।

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