राशि का रिश्ता तय करने वाले दिन ही उसके भाई की एक्सीडेंट में मौत हो गई।
लड़के वालों ने इसे अशुभ मान कर शादी से इंकार कर दिया।
आगे के विचित्र घटनाक्रम ने पासा पलट दिया।
स्वाधीनता विशेषांक
अगस्त, 2023
कहानी चित्रलेखा अग्रवाल
आज का सूर्य राशि के लिए हृदय विदारक संदेशा लेकर आया। राशि ने कल्पना भी नहीं की थी कि उसके प्यारे अजस्र भैया नियति के क्रूर हाथों द्वारा अचानक के छीन लिए जाएंगे। राशि के आंसुओं का बांध टूट गया और उन आंसुओं में झिलमिलाने लगी उसके अजस्र भैया की स्मृतियां। अजस्र राशि के हाथ की बनी बेड टी से ही आंख खोलता था। राशि से स्नेह पूर्वक चाय लेता और पत्नी धारा से कहता-‘धारा तुमसे अच्छी तो मेरी बहन है। तुम तो डील्लू के चक्कर में मुझे भूल जाती हो पर राशि कालेज का समय हो जाने पर भी मेरी आंख खुलते ही चाय लेकर उपस्थित हो जाती है। राशि जानती है कि भैया कलयुगी अमृत का पान किए बिना बिस्तर नहीं छोड़ेंगे।’
धारा भी मुस्कुराकर अजस्र की हां में हां मिला देती ‘क्या राशि केवल आपकी ही बहन है मेरी कुछ नहीं। इसने मुझे सास जैसा आराम दिया है। जब मैं कालेज पढ़ाने चली जाती हूं तो डील्लू को कितने ध्यान से रखती है। राशि के आगे तो वह मेरी परवाह भी नहीं करता। राशि मुझे कभी शाम का खाना भी नहीं बनाने देती।’
भैया और भाभी से थोक में प्रशंसा और स्नेह पाकर राशि का मन मयूर नाच उठता था। यह सुखद दिन क्या सदैव नहीं रह सकते थे। समय को शायद उनके सुख भरे दिन छिन्न-भिन्न करने थे। राशि सोचने लगी ‘भाभी को धीरज कैसे बंधाऊं?’ वह इस अप्रत्याशित घटना से पत्थर की प्रतिमा के समान जड़ बन गई है। राशि को स्वयं ही संभालना कठिन हो रहा है। फिर भाभी को कैसे धैर्य दे राशि? डील्लू घर में दुख का वातावरण देखकर कैसा सहमा सहमा हो रहा है। वह बार-बार पापा के पास जाऊंगा की रट लगा रहा है। सबको रोता देखकर वह और भी घबरा गया। बड़ी मुश्किल से डील्लू को बहला फुसलाकर पड़ोस की वत्सला भाभी जी अपने घर ले गई।
अजस्र ने राशि को सदैव पितृतुल्य स्नेह दिया और धारा ने भी राशि को कभी कोई अभाव नहीं होने दिया। अक्सर राशि सोचा करती थी, ‘यदि मां और बाबू जी होते तो कभी न कभी मेरी त्रुटियाेंं और जिद पर अवश्य क्रोधित होते। बी-ए- के बाद उसने एल-एल-बी में एडमिशन लेना चाहा तो भैया ने रोका नहीं और भाभी ने भी सहर्ष सहमति दे दी। राशि के एल-एल-बी में प्रवेश लेने के बाद भाभी प्रायः भैया से मजाक में कह देती थीं-‘जब आप से मेरा झगड़ा हुआ करेगा तो मैं राशि को ही अपनी वकील बनाया करूंगी। मेरे पैसे भी नहीं खर्च हुआ करेंगे और वह जी जान से मेरा केस लड़ा करेगी। और कोई वकील तो मेरे पैसे हजम कर जाएगा।’
भाभी की इस बात पर राशि हंस कर जवाब देती ‘न भई न’। मैं फ्री का केस नहीं लड़ूंगी। घोड़ा घास से यारी करेगा खाएगा क्या। वह तो बेचारा भूखा ही मर जाएगा। ‘फ्री वालों के लिए तो मैं आफिस के बाहर भी बोर्ड लगवा दूंगी ‘आज नगद कल उधार।’
राशि के लिए यह बातें अब केवल स्मृतियां बन रह गई है। अजस्र भैया अब कभी नहीं आएंगे। राशि को क्या मालूम था कि वह आज सवेरे भैया को अंतिम बार देख रही है। सुबह घर से जाते समय भैया कितने प्रसन्न थे। दरवाजे पर भाभी से कह रहे थे, ‘राशि के लिए जो लड़का मैंने देखा है वह ए वन है। उसके घर वालों को भी राशि पसंद है। अब आगे की बातें तय करने जा रहा हूं’, तब भाभी भैया को चिढ़ाते हुए तुनक कर बोली थीं-‘वाह लड़के लड़की ने एक दूसरे को देख भी लिया और मुझे भनक तक नहीं लगी। यह तो सगे भाई बहन ने मुझसे बात छुपा ली और साजिश करी। शायद सोचा होगा कि मैं रिश्ते में गड़बड़ न कर दूं। चलिए माफ किया अब लड़के का नाम तो बताते जाइए।’
राशि लजाकर अंदर चली गई। पर जाते-जाते उसने भैया का उत्तर स्पष्ट सुन लिया था। राशि को इस सब के बारे में स्वयं कुछ नहीं मालूम। परसों जब राशि कालेज से लौट रही थी। तब लड़के के भाई और भाभी ने उसे पसंद कर लिया और मुझसे प्रस्ताव रखा। मैंने ‘हां’ कर दी। हां लड़के का नाम संकल्प है और वह इंजीनियर है।
इस पर भाभी बोली थी, ‘अरे मैं तो कभी सोच ही नहीं पाई कि राशि विवाह योग्य हो गई है। आपने जाने कैसे चुपके-चुपके उसकी चिंता कर ली। अच्छा यह तो बताइए कि संकल्प है कैसा दिखने में?’
भैया ने संक्षेप में बता दिया, ‘संकल्प का कोई विकल्प नहीं है। यह राशि के अनुरूप ही है। थोड़े दिन पहले मैंने एक दिन संकल्प को उसके भाई के घर पर अखंड रामायण में देखा भी है। राशि और संकल्प की जोड़ी राम-सीता की जोड़ी लगेगी। यदि सब्र न हो तो तुम दोनों ननद भाभी फोटो देख लेना। संकल्प की फोटो मेरी नीली शर्ट की जेब में रखी है’-कहकर अजस्र ने स्कूटर स्टार्ट किया और चला गया।
अजस्र के पीठ मोड़ते ही धारा ने संकल्प की फोटो निकाल कर देखी और बड़बड़ाई, ‘सूरत तो अच्छी है पर जनाब को मूंछ कटवानी पड़ेगी। मूंछों पर पूरे आठ बजकर बीस मिनट हो रहे हैं। फिर उसने संकल्प की फोटो वापस अजस्र की जेब में रख दी और शर्ट राशि को पकड़ाते हुए कहा-‘लो इस महत्वपूर्ण शर्ट को अलमारी में टांग दो।’
राशि अजस्र की शर्ट को अलमारी में हैंगर पर लगा आई। भाभी सामने खड़ी थी, अतः संकोच वश राशि संकल्प की फोटो नहीं देख पाई। अजस्र सूर्योदय के साथ ही घर से निकल पड़ा था क्योंकि संकल्प का घर शहर के अंतिम छोर पर था। गर्मी के दिनों में सूर्य बड़ी जल्दी सिर पर चढ़ जाता है।
संकल्प के घर के सभी सदस्यों ने अजस्र को सिर आंखों पर लिया। राशि का फोटो और विवरण सभी को भा गया। लौटते में पैरों से विकलांग एक युवक को बचाने के प्रयत्न में अचानक ब्रेक लगा देने से अजस्र का स्कूटर पलट गया। विकलांग युवक तो बच गया पर अजस्र स्वयं को नहीं बचा पाया। दुर्घटना स्थल पर ही उसने अंतिम सांस ली।
अजस्र की मृत्यु का समाचार संकल्प के घर भी पहुंच गया था। अजस्र के तीजे और तेरहवीं पर संकल्प के पिता आए थे। कुछ महीनों बाद धारा ने संकल्प की माता जी से फोन पर बात की ‘अब जाने वाले तो आ नहीं सकते। पर जिस कार्य को वह शुरू कर गए हैं उसे पूरा करना है। अतः आप लोग किसी दिन आकर विवाह की तिथि आदि निश्चित कर लें।’
संकल्प की माता जी ने वज्रपात सा उत्तर दिया ‘जो लड़की हमारे घर में आने से पूर्व ही अशुभ सिद्ध हुई और विवाह की बात चलते ही अपने भाई की मृत्यु कारण बनी उसे हम अपनी पुत्रवधू नहीं बना सकते। क्षमा करें।’
राशि को धारा और संकल्प की माता जी के मध्य के चले विवाह के वार्तालाप का कुछ भी पता नहीं चला। वह तो बस धारा का मन लगाने का प्रयास करती थी जैसे अजस्र की स्मृति उससे कह रही हो-‘देख राशि अपनी भाभी को उदास मत होने देना। इसलिए राशि ने धारा से मोहल्ला ठेर की मिसेज पूजा गुप्ता के घर चलने का प्रस्ताव रखा। धारा सहर्ष डील्लू को लेकर उसके साथ चली गई।
शाम को घर आकर धारा एवं राशि ने दरवाजे में एक स्लिप अटकी हुई पाई। धारा ने अटकी स्लिप निकाली और खोलकर एक ही सांस में पढ़ गई-‘आप लोगों को घर पर न पा कर वापस जा रहा हूं। उनत्तीस दिसंबर को फिर आऊंगा। राशि को अपना बना कर ले जाऊंगा। आशा है कि आपकी स्वीकृति मिल जाएगी-संकल्प।
धारा को सहसा विश्वास नहीं हुआ। उसने स्लिप को बार-बार पलटकर देखा फिर उनत्तीस दिसंबर की तैयारी में जुट गई। बीच में एक ही दिन तो था। सोफा सेट के कवर, कुशन कवर सब बदल डाले। ड्राइंग रूम व्यवस्थित किया।
पर प्रतीक्षित दिन न तो संकल्प आया और न ही उसका संदेश। धारा सोच में पड़ गई। ‘शायद संकल्प ने जोश में आकर राशि को अपनाना चाहा होगा पर मां बाप के आगे उसकी एक भी नहीं चल पाई होगी।’ भारी मन से धारा ने राशि को खाना खिलाया और राशि के आग्रह करने पर उसने स्वयं भी कुछ खाया फिर अखबार लेकर बैठ गई क्योंकि चिन्ताकुल होने के कारण नींद उसकी आंखों से रूठ गई थी। राशि डील्लू के पास लेट कर उसे पापा वाला तारा दिखाते-दिखाते सो गई।
धारा की आंखों के आगे अखबार था फिर भी वह विचारों के सागर में डूब गई-‘संकल्प ने आशा की किरण पहले क्यों दिखाई और वह किरण किस कारण से निराशा के घने मेघ में विलीन हो गई? उसे पहले ही अपने माता-पिता के अनुमति लेकर यहां आना चाहिए था। पड़ोस में सबको मालूम पड़ गया है कि आज संकल्प और उसके मां-पापा यहां आने वाले थे। अब जहां भी राशि के रिश्ते की बात चलाऊंगी वहीं कोई यह न कहने लगे कि लड़की अशुभ है। मैं अपने कन्याकुमारी वाले चाचा जी से उस तरफ ही कोई रिश्ता देखने को कहूंगी। इतनी दूर किसी को कुछ नहीं मालूम पड़ेगा।’
धारा भी यह सब सोच ही रही थी कि कॉलबेल घनघना उठी। उसने सोचा कि शायद पड़ोस से कोई दही का जामना या कोई अन्य वस्तु लेने आया होगा। दरवाजा खोला तो संकल्प एक अधेड़ उम्र की महिला एवं भद्र पुरुष के साथ खड़ा है। संकल्प की उसने फोटो देख रखी थी। अतः उसे पहचानने में धारा को देर नहीं लगी और महिला व पुरुष को देखकर वह समझ गई कि यह उसके मां बाबू जी हैं।’
धारा ने राशि को जगाया और उससे चाय तैयार करने और फिर सब्जियां गर्म करने को कहा। और स्वयं उनसे बातचीत करने में व्यस्त हो गई। संकल्प ने देरी का कारण बताया, ‘हमारी कार बीच रास्ते में खराब हो गई थी। बड़ी मुश्किल से पास के परिचित के घर कार पार्क करी। अब टैक्सी से चले आ रहे हम लोग।’
धारा सोचने लगी-यह तो मैंने सोचा ही नहीं कि किन्हीं कारणों से इन लोगों के आने में देरी हो रही है। मैं न जाने क्या-क्या सोच गयी। राशि के भविष्य को लेकर बेहिसाब चिंतित हो गई थी। पर अब इन लोगों के आने से निराशा के बादल दूर छिटक गए हैं।’
राशि ने चाय नाश्ता तैयार कर लिया। धारा ने पहले सबको चाय स्नैक्स सर्व किया। तत्पश्चात खाना खिलाया। अभी तक राशि उन लोगों के सम्मुख नहीं आई थी। अतः संकल्प की माता जी ने राशि को बुलाने की इच्छा प्रकट की। धारा ने कहा-‘बस तैयार होकर आ ही रही है। राशि को साड़ी बांधने का अभ्यास कम है। इसलिए देर लग रही है। पर मैं कुछ समझ नहीं पाई कि आपका इंकार स्वीकार में कैसे बदल गया।’ संकल्प की माता ने संदेह की परतों को दूर करते हुए उत्तर दिया-‘धारा, मेरे संस्कार, मेरा अंधविश्वास राशि को अशुभ मानने को बाध्य कर रहे थे। मुझे पड़ोसी और रिश्तेदार भी यही समझा रहे थे कि राशि का घर में आना शुभ नहीं होगा। आप पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। यद्यपि संकल्प के पापा मुझसे बार-बार यही कह रहे थे कि हमें अपने वचन से नहीं हटना चाहिए। अजस्र की मृत्यु के पश्चात हमारा उनसे मुंह मोड़ लेना उचित नहीं होगा।’
धारा ने उन्हें बीच में रोकते हुए उतावलापन से पूछा-‘फिर यह परिवर्तन कैसे हुआ। आपका अंधविश्वास किस प्रकार से दूर हुआ? जिस राशि को अशुभ मान चुकी थी उसे ही अपने पुत्रवधू बनाने को कैसे तैयार हुई?’
इस पर संकल्प के पापा ने उत्तर दिया-‘धारा मैं अपने प्रयास में असफल हो चुका था। पर जब सप्ताहिक छुट्टी में संकल्प घर आया तो उसे अजस्र की एक्सीडेंट से मौत के बारे में मालूम हुआ। तथा उसकी मां ने उसे यह भी बताया कि अब हमने राशि को अपनी पुत्रवधू बनाने के विचार को त्याग दिया है। क्योंकि राशि के घर में आने से पूर्व ही अपशकुन हो गया।
तब संकल्प ने इनको समझाया कि मां आप लड़की की मां नहीं है इसलिए आप लड़की और लड़की वालों के हृदय की व्यथा नहीं समझ सकती। लड़की के घरवालों का हृदय बेहद हल्का होता है जो लड़के वालों की इंकार की आशंका से डरा-डरा रहता है। आपने राशि एवं उसके घर वालों का हृदय अपने अनुचित और बेबुनियाद निर्णय की चोट से चूर-चूर कर दिया है। मां, आप तो गांधी जी की अनुयायी हैं। फिर आपने यह वाणी की हिंसा कैसे की अम्मा मेरी। अब यदि आपके इंकार को सुनकर समाज में अपमान एवं उपहास होने की आशंका से राशि कोई अनुचित पग उठा ले तो उसका उत्तरदायित्व आपके अंधविश्वासों और संस्कारों पर होगा। मैं राशि से कोर्ट में विवाह कर सकता हूं। पर ऐसा करके मैं आपका हृदय तोड़ना नहीं चाहता।’
‘बड़े भैया जब कुहूक भाभी को कोर्ट मैरिज करके उन्हें घर ले आए थे, तब आप दोनों ने स्वयं को कितना उपेक्षित महसूस किया था। आप दोनों ने ही भैया से कहा था-व्योम एक बार तुमने हमसे कहा तो होता। धूमधाम से तुम्हें घोड़ी चढ़ाकर कुहूक को डोली में बिठाकर बारातियों की फौज के साथ ब्याह कर लाते। कोर्ट मैरिज करके तुमने हमारी अरमानों का गला घोट दिया।’ फिर आपने भैया-भाभी का भव्य रिसेप्शन दिया था। फिर पापा ने यह भी कहा था कि ‘अपने मन की अब संकल्प की शादी में निकालेंगे।’
‘लेकिन पापा आप अपने मन की अब भी नहीं निकाल पाएंगे। देश में कोरोना चल रहा है। आप न तो मुझे घोड़ी पर चढ़ा पाएंगे, न राशि को डोली में विदा करा पाएंगे। न मेरी शादी में बारातियों की फौज ले जा पाएंगे। आप तो दोनों परिवारों के सदस्यों की उपस्थिति में मेरी और राशि की वरमाला एवं फेरे करवा दीजिए। मुझे विश्वास है कि माहौल को देखते हुए आप भी मुझसे सहमत होंगे।’
‘हां अम्मा का अपशकुन वाला अंधविश्वास दूर करने में मुझे एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। तब भी मैं अपने प्रयत्न में उतना सफल नहीं हुआ जितना कि एक घटना ने उनके विचारधारा की धारा ही मोड़ दी।’
अब आगे की वृतांत का सूत्र व संकल्प की मां ने अपने हाथों में लिया-‘धारा संकल्प के एक दोस्त की शादी में संकल्प के भैया-भाभी और मैं गए थे। संकल्प को आफिस में इंस्पेक्शन होने के कारण छुट्टी मिल नहीं पाई थी। संकल्प के उस दोस्त का विवाह राशि की सहेली से हो रहा था। राशि की सहेली के दादी-बाबा, नाना-नानी ने भी कन्यादान किया था। और कन्यादान होने तक का व्रत रखा था। राशि के सहेली के मां बाप कन्यादान करके खाना खाने चले गए। और बारातियों में सहेली के दादी-बाबा, नाना-नानी के खाने का ध्यान तक नहीं आया। सभी ‘जूता-चुराने’ जुगत में व्यस्त थे। पर राशि ‘जूता चुराई’ रस्म से दूर उन चारों के खाने की व्यवस्थ्ाा में व्यस्त हो गई। चारों को एक जगह बैठा दिया। उनके आगे एक मेज लगवा दी। क्योंकि रिसेप्शन के खाने की व्यवस्था दूसरे हाल में काफी दूर पर थी। अतः राशि स्वयं उन चारों के लिए 4 प्लेटों में खाना लगा लाई और पानी की 4 बोतलें भी ले आई।
‘राशि की इस भागदौड़ को मेरे पास बैठी एक महिला बड़े ध्यान से नोट कर रही थी। अचानक वह महिला मुझसे बोली-‘बहन जी आपने इस हीरे को देखा। बुजुर्गो की सेवा में कितनी तत्पर है। मैं अपने बेटे के लिए ऐसी ही लड़की की कल्पना करती हूं।’
‘तब मैंने रहस्य से पर्दा हटाते हुए राशि के बारे में बताया-मैं इसे जानती हूं। यह अशुभ है जब इसका भाई इसका रिश्ता पक्का करके लौट रहा था। तो एक्सीडेंट से उसकी मृत्यु हो गई। क्या ऐसे अपशकुन वाली लड़की को आप पुत्रवधू बनाना चाहेगी। उसके आने से पहले ही जब अशुभ हो गया तब आने के बाद तो न जाने कितनी मुसीबतों के बादल ही फट पड़ेंगे?’
मेरी बात सुनकर वह महिला जरा भी नहीं डगमगाई और दृढ़ता से उत्तरायी-‘ बहन जी मैं और ये अब उम्र के उस पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें असमर्थता बढ़ती जाती है और बच्चों के अपनेपन और सहारे की जरूरत होती है। मेरा बड़ा बेटा दिन रात अपने ऑफिस में व्यस्त रहता है। बहू को हमारी जरा भी परवाह नहीं है। वह तो अपने क्लब और किट्टी पार्टी की वजह से अपने बच्चों का भी ध्यान नहीं रखती। स्कूल से आकर बच्चे मां को ढूंढते हैं और पूछते हैं। मैं और ये ही बच्चों को यूनिफार्म बदलवाते हैं। खाना खिलाते हैं। उन्हें आराम कराते हैं। शाम को खेलने भेजते हैं। होमवर्क कराते हैं। बेटे के आफिस से लौटने के जरा पहले ही बहू आती है और सिर दर्द लेकर पड़ जाती है। बेटा जब आफिस से लौटता है उसे भी हम ही अटेंड करते हैं। जो लड़कियां अपने बच्चों और अपने पति को समय नहीं दे सकती, वह हमारी क्या कर पाएगी। वह महिला उनके पति राशि को मंत्रमुग्ध से देखे जा रही थी। उनकी बात ने मेरे हृदय को अंदर तक छू लिया। उन्होंने राशि का कितना सही आकलन किया। मैं हीरे को कांच का टुकड़ा मान बैठी थी।
मैं भी अपनी बड़ी बहू का यही रंग ढंग देख रही थी। लगा उन्होंने मेरे घर का और आजकल के चलन का चित्रण कर दिया है। फिर मुझे संकल्प के शब्द भी बार-बार यही समझा रहे थे कि यह तो मात्र एक संयोग था कि अजस्र भैया की मृत्यु उस समय हुई जब वह हमारे घर से राशि और मेरा रिश्ता पक्का कर के जा रहे थे। यदि यह दुर्घटना किसी अन्य दिन या हमारे विवाह के बाद हुई होती तो आप उसके दोष का भागी किसे ठहराती। मां, तुम राशि को अशुभ मानती हो पर कहता हूं अशुभ राशि नहीं बल्कि मैं हूं। क्योंकि राशि तो उस घर में पहले से ही थी। तब तो उन लोगों के साथ दुर्घटना नहीं हुई। पर मुझसे राशि के साथ रिश्ता पक्का होने के बाद ही उस घर पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। इसलिए मां तुम अपने दिमाग से भ्रम बिल्कुल निकाल दो कि किसी घटना का दुर्घटना में बदलने का संबंध किसी के शुभ या अशुभ होने से है।’
धारा मंत्रमुग्ध से संकल्प को देखे जा रही थी। संकल्प के उदार विचारों को सुनकर वह प्रसन्न थी। वह निश्चिंत हो गई कि संकल्प और उसके परिवार के साथ राशि सुखी रहेगी।
इधर धारा यह सब सोच रही थी। उधर संकल्प की माता जी ने बात का उपसंहार किया, ‘बस धारा उस महिला की बातों ने और संकल्प के तर्को ने मेरी आंखें खोल दी। मैंने जो तुम्हें फोन पर राशि के अशुभ होने का प्रमाणपत्र दिया था उसका मुझे सच्चे हृदय से पश्चाताप हो रहा था। कल उसी पश्चाताप का अंत संकल्प और राशि को विवाह-सूत्र में बांध कर हो जाएगा। 2 दिन से मुझे यही आशंका व्याकुल कर रही थी कि वह महिला कहीं मुझसे पहले तुमसे राशि को न मांग बैठे।’
धारा घबरा गई यही सोच कर कि अभी कुछ तैयारी भी नहीं है। अतः वह बोली-‘मौसी जी इनके असमय निधन से मैं विवाह का कोई प्रबंध नहीं कर पाई। और न ही मुझे मालूम था कि आप लोग विवाह के इरादे से आ रहे हैं। कम से कम 1 हफ्रते का समय तो दीजिए।’
संकल्प के पिताजी ने काफी देर से साधी हुई अपने मौन की समाधि तोड़ी व धारा को सांत्वना देते हुए बोले-‘बेटी अब यह घर और वह घर अलग-अलग नहीं है। इस समय कोरोना का संकट चल रहा है। अतः धूमधाम तो करनी नहीं है। अब राशि को बुला लो। जिससे आज शगुन कर दें। तथा कल वरमाला और फेरे करवा कर उसे ले जाएं।
धारा के पास एक नई अंगूठी रखी थी। कभी अजस्र ने ही बड़े शौक से राशि के वर के लिए खरीदी थी। धारा राशि को बुला लाई और अलमारी से वह अंगूठी भी लेती आई। संकल्प की माताजी ने पर्स से निकालकर डिब्बी संकल्प को दी। संकल्प ने डिब्बी खोलकर अंगूठी निकाली और राशि को पहना दी। धारा ने भी अपने रूमाल से बंधी अंगूठी निकालकर राशि को संकल्प को पहनाने को दी। संकल्प के पिताजी ने अंगूठी का आदान-प्रदान करते हुए संकल्प और राशि को आशीर्वाद दिया और फोटो खींची।
हलचल सुनकर डील्लू भी नींद से जाग कर आ गया। ड्राइंगरुम में नए-नए मेहमानों को और बुआ को साड़ी में देखकर वह राशि की गोद में चढ़ गया। संकल्प को बुआ के साथ खड़े देखकर वह घबरा कर बोला-‘बुआ मेरी है। इनकी नहीं, बुआ इनसे कट्टी कर लो।’ जब संकल्प ने जेब से निकालकर डील्लू को चॉकलेट दी, तब चॉकलेट खाते हुए वह खुश होकर बोला-‘बुआ इनकी भी है पर मम्मा बुआ इनको दे मत देना। वह हमारे साथ ही रहेंगी। अभी 2 दिन पहले ही वह देख कर आया था कि उसके दोस्त की बुआ भी हार पहन कर कार में बैठकर उसके दोस्त को बाय करके किसी के साथ चली गई थी।’
संकल्प ने सभी ग्रुप फोटो की सेल्फी ली और फिर सब लोग चले गए। चलते समय उन्होंने डील्लू को दिलासा दी-‘डील्लू तुम्हारी बुआ को तुम्हारे पास छोड़कर जा रहे हैं। पर कल हम उन्हें जरूर ले जाएंगे। तब तुम किसी दिन मम्मी के साथ आकर अपनी बुआ को ले आना। हम तुम्हें तुम्हारी बुआ दे देंगे। कल के बाद यह बुआ का लेना-देना हमारे तुम्हारे बीच चलता रहेगा। क्योंकि तुम्हारी राशि बुआ अब हमारी तुम्हारी दोनों की है।’
अगले दिन संकल्प के स्थानीय मामा-मामी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा जी, भैया-भाभी एवं दो दोस्त तथा अजस्र के ताई-ताऊ जी, मौसी-मौसा जी, पड़ोस की दो सहेलियों की उपस्थिति में राशि और संकल्प विवाह सूत्र में बंध गए। संकल्प के पिताजी की फिर से मन की मन में रह गई। क्योंकि वह बड़े बेटे की शादी की तरह ही छोटे बेटे की शादी में भी धूमधाम नहीं कर सके। और इस बार तो उन्हें रिसेप्शन तक भी कैंसिल करना पड़ा। राशि एवं संकल्प के कार में बैठते ही डील्लू बोला-‘कल मैं मम्मा के साथ बुआ को लेने आऊंगा। तब कार में बुआ के साथ मैं बैठूंगा, आप नहीं। तब आप अपने मम्मी-पापा के पास रह जाना।’