भारत की भूमि पर ऐसे वृक्ष पूजनीय हैं, परम्परानुसार हम इसकी पूजन करते हैं। वृक्ष वैभव के प्रतीक हैं। हमारा हर त्यौहार प्रकृति से जुड़ा हुआ है। प्रकृति का विनाश यानि प्राणवायु का विनाश है। जीवन का विनाश है।
सितम्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक
लेख
ज्योति प्रकाश खरे
एक धार्मिक विधि सम्पन्न हो रही थी। वृद्धा ने आशीर्वाद दिया ‘घर में लक्ष्मी का निवास हो, वंश को केले के पेड़ के अनुसार फूल आने दो, दूर्वाकर के समान वंश विस्तार हो, वट वृक्ष एवं पीपल के समान तपस्वी बन कर सबको छाया का सुख दो। सारा वृक्ष परिवार एवं मानव समाज को जोड़ने का यह प्रयत्न वृक्षवल्ली वंशवृद्धि के प्रतीक हैं। हमारे गुरु हैं, साथी है। भारतीय संस्कृति में परंपरानुसार यह माना जाता है कि वृक्षों पर अद्भुत एवं अलौकिक शक्ति का निवास है। इसीलिए वे पूजनीय हैं। इसके अलावा अनेक वृक्षों के पत्ते, छाल, फूल, जड़ें इनका औषधियों में उपयोग होता है। इन वृक्षों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। अनेक सतपुरुषों का सान्निध्य वृक्षों को मिला है। उनके सामने हम नतमस्तक है। जैसे बोधिवृक्ष, गुलेर का वृक्ष आदि।
भारतीय संस्कृति प्रकृति के साथ ही विकसित हुई है। सीमेंट काँक्रीट के जंगल मनुष्य ने ही विकसित किए हैं। पैसे के दासों ने प्रदूषण का खतरा पैदा किया है। भारतीय महिलाएं वृक्ष पूजा करके पर्यावरण को संवारती है। वे परोपकारी, निष्पक्ष वृक्षों का सम्मान करती है। पूरा ‘आयुर्वेद’ तो वे जानती भी नहीं है, फिर भी हमारी महिलाएं भक्ति भाव से परंपरा निभाती है। परमपिता ब्रह्मा का निवास स्थान, पतिव्रता सावित्री ने वृक्ष के नीचे बैठकर अपने पति सत्यवान की यमदूत से प्रार्थना कर जीवित किया। हिंदू धर्म में स्त्रियां वट-सावित्री का व्रत करती है। प्रयाग में श्रीराम एवं सीता जी ने इसी वृक्ष के नीचे आश्रय लिया था। जटाएं धारण करता यह वृक्ष वंशवृद्धि का प्रतीक माना जाता हैै। मध्य प्रदेश के चिचोली ग्राम में वटवृक्ष के नीचे पांच हजार लोग छाया में बैठ सकते हैं। चिंरजीविता का यह प्र्रतीक है।
आम का पेड़ मंगलकारी है
दूसरा पेड़ है-आम्रवृक्ष या आम का पेड़। मंगल प्रसंग में, धार्मिक विधि में एवं शुभकार्य में यह चैतन्य का प्रतीक है। यह वृक्ष बहुत महत्व रखता है। घर-घर में इसी के पत्ते से तोरणद्वार सजाते हैं। शिव, चन्द्र और मदन को आम का बयार आम्रमंजरी अत्यंत प्रिय है एवं माघ सुदी द्वितीय को इन देवी को अर्पित की जाती है। दीर्घजीवी यह वृक्ष छायादार तो है ही। फलों का राजा आम किसको नहीं भाता है। भगवान महावीर ने आमराई में तपश्चर्या की है। विंध्यक्षेत्र में लोग आम्रवृक्ष की शादी चमेली की बेल से करते हैं। जब तक यह शादी नहीं होती, तब तक इस वृक्ष के आम खाते ही नहीं हैं।
पीपल को कामधेनु
कहा जाता है
वृक्षों के संसार में पीपल पूज्यवृक्ष माना जाता है। ‘अश्वत्थ’ के नाम से भी जाना जाने वाला यह वृक्ष अपने पत्ते पर भगवान का अवतार धारण करता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी पेड़ के नीचे अपना देह त्याग दिया। गुमशुदा व्यक्ति या वस्तु प्राप्त करने के लिए पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं, पुत्र प्राप्ति के लिए इसकी परिक्रमा फलदायी होती है, ऐसी मान्यता है। यह ब्रह्मवृक्ष कहा जाता है। आदिवासी लोगों में पीपल वृक्षयोनी का द्वार-रक्षक माना गया है। लेाक संस्कृति में पीपल का हरा पत्ता सुन्दरता के लिए, कोमल पत्ता वैभव, सुख समृद्धि के लिए एवं फटा पत्ता अनपेक्षित धन प्राप्ति के लिए है, ऐसा माना गया है। यह वृक्ष बुद्धिवर्धक एवं शक्तिवर्धक है, इससे दिन में ऑक्सीजन अधिक मिलती है। इसे कामधेनु भी कहा गया है। इसके नीचे ग्रामदेवता वास करते हैं। जिसने अश्वत्थ की पूजा की उसने सबकी पूजा की। भारतीय संस्कृति में ‘अश्वत्थ’ वृक्ष का जनेऊ संस्कार होता है, और तुलसी का विवाह संस्कार होता है।
तुलसी पूजनीय है
तुलसी वृक्ष नहीं है, एक पौधा है, लेकिन हर एक हिन्दू घर में सुबह-शाम इसकी पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जमीन पे गिरे हुए अमृत-बिन्दू से तुलसी का निर्माण हुआ है। केवल दर्शन मात्र से पापों का विनाश होता है एवं तुलसी की पूजा मोक्षदायक है। मां की ममता की यह जहां जहां तुलसी है, वहां-वहां नारायण का निवास है। तुलसी तो इतनी पूजनीय एवं पुण्यमयी है कि मृत्यु के समय मुख पर तुलसी के पत्ते रखते हैं। भगवान विष्णु को प्रिय यह तुलसी हमारे घर आंगन पवित्र करती है, औषधीय गुणों से भी भरपूर है।
हरा-भरा केले का पत्ता सब को मोहित करता है। दक्षिण का प्रसिद्ध तिरुमल भगवान केले के पत्ते पर पानी में तैरते हैं, ऐसी एक धारणा है। केले का यह पेड़ खेती की देवता के रूप में माना जाता है। इसके ‘रम्भा (सुन्दर स्त्री का रूप) भी दिया गया है। धार्मिक पूजा पाठ, व्रतों में मंगल प्रसंगों में इसे शुभंकर माना जाता है। पतिव्रता मानकर वस्त्रें से, अलंकारों से सजाकर इसकी पूजा की जाती है। फल देकर, अपना जीवन समर्पित कर केले का यह पेड़ विरक्त होता है, जीवन त्याग करता है। विरक्ति का प्रतीक है।
आँवला भगवान का वरदान है
आंवला तो आयुर्वेद का प्राण है। बहुगुणी यह वृक्ष एवं फल भगवान का वरदान है। मृदमान्य नामक दैत्य ने देवगण को पदभ्रष्ट किया। तब सारे देव पृथ्वी पर उतर आए। उन्होंने आंवले के पेड़ का आश्रय लिया। कार्तिक मास में इस पेड़ की पूजा की जाती है तथा आंवला नवमी तो एक त्यौहार ही माना जाता है। प्रार्थना की जाती है-आंवला देवी, तुम सर्व पापों का विनाश करने वाली हो, तुमको हमारा प्रणाम है। तुम सदैव हमें निरामय एवं निष्पाप करो। आंवले का वृक्ष लगाने से पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है। कुछ प्रदेशों में आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान की पालकी लाते हैं, पूजा अर्चना होती है।
गुलेर वृक्ष में देवताओं
गुलेर के वृक्ष को देव प्राप्त हुआ है। भगवान स्त्रेत का यहां निवास है। विष नष्ट करने के लिए फलों का उपयोग होता है। पिछले कुछ वर्षो से वृक्षपूजा, नागपूजा यह अंधश्रद्धा है, दकियानूसी परंपरा है, यह मानकर हंसी उड़ाई जाती थी। लेकिन आज प्रदूषण के संधोशक, पर्यावरण प्रेमी इसको उचित ठहराते हैं।
नीम को अमृतवृक्ष कहते हैं
प्रकृति की देन है अमृतवृक्ष यानि ‘नीम के पेड़’ की। देव-दैत्य संघर्ष में अमृतकलश से कुछ अमृत बिंदु जमीन पर गिरीं उसी जगह यह अमृतवृक्ष खड़ा हो गया। कई औषधीय गुणों के कारण रोग निवारण की अनाप शक्ति इस वृक्ष में है। ब्रह्मा और विष्णु का भी यह प्रतीक माना हुआ है। ग्राम देवताओं की पूजा में इसे विशेष स्थान है। गर्मी की तकलीफों से मुक्ति मिले, कीटों से संरक्षण मिले, इसलिए बहुत उपयोगी मानते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन नीम के पत्ते खाते हैं।
भारत की भूमि पर ऐसे अनेक पूजनीय वृक्ष हैं, परम्परानुसार महिलाएं उसका पूजन करती हैं। पूजा में नारियल का फल एवं सुपारी को भी सद्भावना एवं सप्रवृत्रि का प्रतीक माना है। हरा सोना, कल्पवृक्ष कामधेनु इन नामों से वृक्षों का गौरव होता है। वृक्ष वैभव के प्रतीक हैं। हमारा हर त्यौहार प्रकृति से जुड़ा हुआ है। प्रकृति का विनाश यानि प्राणवायु का विनाश है। जीवन का विनाश है।
पैसे के पीछे भागती दुनिया में पर्यावरण प्रदूषित होता जा रहा है। वृक्ष खुद धूप में खड़े रहेंगे, लेकिन राहगीरों को छाया देंगे, और घात लगाने वालों को भी छाया देंगे। ये कुलवृक्ष हैं। कई आदिवासियों में यह पंरपरा है कि काम का प्रारंभ ही वे वृक्षों की वन्दना करके करते हैं। कई जगह वृक्षोत्सव भी मनाया जाता है। लेकिन शहरवासियों को रोज यह देखना पड़ रहा है कि हरा सोना मिट्टी में मिल रहा है। एक वृक्ष लगाओ, और दस पुत्रें का पुण्य प्राप्त करो, यह कथन व्यर्थ सिद्ध हो रहा है।