हिंदी का शब्दकोष भी 250000 शब्दों का विशाल भंडार है जो किसी एक भाषा का विश्व में सबसे बड़ा कोष है।
सितम्बर, 2023
राष्ट्रभाषा विशेषांक
लेख
डॉ. अ. कीर्तिवर्धन
अंग्रेजी का परचम फहराते
जो घर-घर में,
उसको ही महान बताते
जो सारे जग में,
उनको मैं अंग्रेजी का सार
बताना चाहता हूं,
भूली बिसरी अंग्रेजी की
औकात बताना चाहता हूं।
अंग्रेजी तो अंग्रेजों के घर भी
पिछड़ों की भाषा थी,
फ्रेंच में लिखना पढ़ना,
सबकी अभिलाषा थी।
आज भी अंग्रेजी का आधार,
फ्रेंच ही भाषा है,
वर्तमान में अंग्रेजी नहीं बनी
विश्व की भाषा है।
चालीस प्रतिशत शब्द फ्रेंच के
इसमें शामिल
व्याकरण का अंग्रेजी को
कोई बोध नहीं है।
नहीं लिखे गए बाइबिल
और ग्रन्थ अंग्रेजी में,
नहीं पूर्व का साहित्य से इसका
कोई नाता है।
हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है, हिन्दी विश्व भाषा है, भले ही आधिकारिक रूप से हिंदी को भारत में राष्ट्र भाषा तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिकृत भाषा का दर्जा अभी तक प्राप्त न हुआ हो।
सन् 1843-1844 में अंग्रेज विद्वान थॉमसन ने लिखा था-हिंदी भारत की जन-जन की भाषा है। अतः जनता के साथ सभी काम हिंदी में किया जाए।
इससे थोड़ा पूर्व मिस्टर बटर्वर्थ बेली तथा फ्रेडरिक जॉनशोर ने कहा था-हिंदी शक्तिवान और समर्थ है, हिंदी भारत की भाषा है।
इंग्लैंड के विद्वान डॉ- मेृगेसर अनुसार-हिंदी दुनिया की महानतम भाषा है। भारत को समझने के लिए हिंदी ज्ञान अनिवार्य है।
फादर कामिल बुल्के ने यहां तक कहा कि विश्व में कोई ऐसी विकसित एवं साहित्यिक भाषा नहीं है जो हिंदी की सुगमता से मुकाबला कर सके।
कहने का तात्पर्य है कि संपूर्ण विश्व के विद्वानों ने कालान्तर से ही हिंदी के महत्व और महत्ता को स्वीकारा है। यह हमारी विडम्बना ही कही जायेगी कि संपूर्ण विश्व में भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का ही नाम लिया जाता है मगर अपने ही देश में आजादी के 68 वर्ष बाद भी हिंदी राजभाषा के पद पर ही स्थित है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा अपने देश में हिंदी के विकास के लिए साढ़े पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रावधान किया था, तो वह हिंदी व हिन्दुस्तानियों के महत्व व सामर्थ्य को समझते हैं।
आजादी के आंदोलन में पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण सभी आंदोलनकारियों एवं नेताओं ने हिंदी के महत्व स्वीकारा था। हिंदी आजादी की प्रमुख भाषा बनी। विडम्बना ही कही जायेगी कि चंद स्वार्थी अंग्रेजी दा नेताओं के चलते राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी।
भारत में अंग्रेजी के पक्षधर, विकास का मापदंड अंग्रेजी, विज्ञान का आधार अंग्रेजी, नौकरी के लिए अंग्रेजी का गुणगान करने वाले मैकाले के मानस पुत्र कुछ काले भारतीय, जिनकी संख्या कुल 3-4» होगी, से पूछना चाहता हूं कि किस आधार पर अंग्रेजी का गुणगान करते हैं? आज भी संपूर्ण विश्व में अंग्रेजी बोलने पढ़ने लिखने वालों की संख्या कुल 40 करोड़ है यानि विश्व जनसंख्या का केवल 4 प्रतिशत, जबकि हिंदी बोलने लिखने पढ़ने व समझने वालों की जनसंख्या 190 करोड़ है जो कि विश्व में किसी भी भाषा को बोलने वालों में सर्वाधिक है।
एक बात उन लोगों के लिए जो अंग्रेजी को विश्व भाषा बताते हैं-अंग्रेजी दुनिया के केवल 40 देशों में ही बोली व समझी जाती हैं जबकि हिंदी 175 देशों में अपने पांव पसार चुकी है। दुनिया के 160 देशों तो अंग्रेजी की कोई पहचान ही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की भाषा सूची में भी रुसी, स्पैनिज, फ्रेंच, डच, मंदारिन आदि में भी अंग्रेजी 12 वें पायदान पर है। विश्व के 175 देशेां में हिंदी पढ़ने, लिखने, सीखने बोलने की व्यवस्था है। हिंदी का शब्दकोष भी 250000 शब्दों का विशाल भंडार है जो किसी एक भाषा का विश्व में सबसे बड़ा कोष है। अमेरिका में हावर्ड, पेन, मिशिगन, येल सहित 65 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन व अनुसंधान जारी है। रूस में प्रारंभिक स्तर से विश्व विद्यालय स्तर तक हिंदी अध्ययन जारी है। बल्गारिया, फिनलैंड, त्रिनिदाद, टोबेगो, गुमाना, ब्रिटेन, जर्मनी, क्यूबा, कोरिया किस-किस की कहें सभी जगह के विश्वविद्यालयों में हिंदी के अध्ययन केन्द्र हैं। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकों की पहुंच वहां भी घर-घर तक है। अनेकों हिंदी पत्रिकाएं सभी देशों से प्रकाशित हो रही हैं। विश्व हिंदी न्यास, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, विश्व हिंदी समिति जैसी अनेक वैश्विक संस्थाएं विदेशों से ही संचालित हैं। रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, चीन, स्वीडन, नार्वे, चेकोस्लोवाकिया, पोलैण्ड, हंगरी, हॉलैण्ड आदि देशों ने अपने यहां हिंदी विश्व भाषा के रूप में स्वीकार किया और अपने यहां के नागरिकों को हिंदी पढ़ने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।
इतना सब कुछ होने के बावजूद हिंदी को भारत में राष्ट्र भाषा का तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिकृत भाषा का दर्जा नहीं मिल पाने का प्रमुख एकमात्र कारण रहा है। आजादी के बाद से देश सत्ता पर काबिज होने वाले अंग्रेजी पसंद राजनेता। वह राजनेता जिनकी शिक्षा-दीक्षा विदेशी परिवेश में हुयी, जिनका रहन-सहन और खान-पान विदेशी था, मानसिकता औपनिवेशवादी थी, जिन्होंने सत्ता की भाषा को जनता की भाषा से अलग रखा ताकि जनता उनके कार्यो में हस्तक्षेप न कर सके। बावजूद इसके हिंदी अपने गुणों, सामर्थ्य सम्प्रेषणीयता की सरल सुबोध भाषा होने के कारण विश्व पटल पर अपना विस्तार करती रही।
हिंदी के प्रचार-प्रसार का जितना श्रेय इसकी सरलता-सहजता सम्प्रेषणीयता को है उससे अधिक भारतीय सिनेमा व दूरदर्शन को है। यह भी आश्चर्यजनक है कि भारतीय हिंदी सिनेमा का विकास सभी अहिन्दी भाषी राज्यों को हुआ है। हिंदी के विकास में अहिन्दी भाषी राज्यों द्वारा अपनाया गया त्रिभाषा सिद्धांत भी महत्वपूर्ण कड़ी रहा। वर्तमान में वैश्विक गांव की परिकल्पना तथा बाजारवाद ने संम्पूर्ण विश्व को हिन्दी के प्रति आकर्षित किया है।
आज हिंदी के लिए सौभाग्य का अवसर है जब देश के प्रधानमंत्री तथा उनका मंत्री मंडल हिंदी प्रेमी व समर्थक हैं, जिन्होंने कार्यालयों में हिंदी में काम प्रारंभ कर दिया है और घोषणा की है कि संयुक्त राष्ट्र व विदेशी राजनीयकों से बातचीत में भी हिंदी का ही प्रयोग करेंगे। यह हिंदी के लिए सकारात्मक संदेश है।
हमारा मानना है कि
राष्ट्र का सम्मान करना चाहिये,
निज धारा का मान करना चाहिये।
सीखिये भाषाएं, बोली, सारे विश्व की,
राष्ट्रभाषा पर अभिमान करना चाहिये।
जो लोग विज्ञान के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता की वकालत करते हैं वह यह समझ लें कि जर्मनी, जापान, रूस और चाइना ने यहां विज्ञान का विकास अंग्रेजी में नहीं किया अपितु हमारे संस्कृत ग्रंथों में लिखे गूढ़ रहस्यों को समझकर अपनी भाषा में अनुवादित करके किया है। हमारा विज्ञान कितना समृद्ध है? इसे जानने के लिए वेदों व पुराणों के अध्ययन की जरूरत है। पूछिए जर्मनी के वैज्ञानिकों से जो आज भी हमारे ग्रंथों को शोध कर रहे हैं। जानिये नासा के वैज्ञानिकों से जिन्होंने नासा केन्द्र पर भगवान अर्धनारीश्वर की मूर्ति स्थापना की है तथा प्रतिदिन संस्कृत श्लोकों से आराधना करते हैं।
विश्व की इस समृद्ध भाषा को संयुक्त राष्ट्र की अधिकृत भाषा का दर्जा तो इस बार मिलना सुनिश्चित दिखाई दे रहा है, आवश्यकता इसे देश में भी राष्ट्र भाषा घोषित करने की है।
और अंत में हिन्दी के लिए-