लेख गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’
मार्च, 2023 अंक
नवसंवत विशेषांक
हमारे देश में जो लोक कथाएं, कहावतें व साहित्य है, उसके अनुसार भगवान श्री राम, श्रीकृष्ण के बाद सबसे
लोकप्रिय चरित्र सम्राट विक्रमादित्य का ही माना जाता है। हमारा विक्रम संवत उन्हीं के नाम पर है।
सम्राट विक्रमादित्य का उल्लेख ज्योतिविर्दाभरण नामक ग्रंथ में मिलता है:-
यो रूमदेशाधिपति शकेश्वरं जित्वा गृहीत्वोज्ज्यिनी महाहवे।
आनीय सम्भ्राम्य मुमोचयत्यहो स विक्रमार्कः समसहयाचिक्रमः। (22/17)
इस श्लोक से स्पष्टतः ज्ञात होता है कि रुमदेशाधिपति रोम देश के स्वामी शकराज (विदेशी राजाओं को तत्कालीन भाषा में शक ही कहते थे, शकों के आक्रमण से भारत त्रस्त था) को पराजित करके विक्रमादित्य ने बंदी बना लिया और उसे उज्ज्यनी नगर में घुमाकर छोड़ दिया था। इससे भारत के महाप्रतापी सम्राट विक्रमादित्य के शौर्य, पराक्रम, साहस और दयालुता का परिचय मिलता है।
ऐसे वीर सम्राटों की शौर्य गाथाओं से भारत का इतिहास भरा पड़ा है, जो पाश्चात्य देशों के ईसाई वर्चस्व वाले इतिहासकारों को असहज कर देता है और इससे बचने के लिए वे पलायन करते हुए कह देते हैं कि यह मिथक है या यह सही नहीं है। यही कारण है कि भारत का जो इतिहास पश्चिमी इतिहासकारों, मुगलों, अंग्रेजों और वामपंथियों ने लिखा है, वह भ्रामक और झूठा होने के साथ देश को कमजोर बताने वाला है। पाश्चात्य इतिहासकार रोम की प्रतिष्ठा धूमिल होने से बचाने के लिए और स्वयं को महान विजेता बताने के लिए सम्राट विक्रमादित्य के अस्तित्व को भी अस्वीकार करते हैं। परन्तु हमारे देश में जो लोक कथाएं, कहावतें और वर्तमान साहित्य है, उसके अनुसार भगवान श्री राम और महाभारत के नायक श्रीकृष्ण के बाद सबसे लोकप्रिय चरित्र सम्राट विक्रमादित्य का ही माना जाता है। हमारा विक्रम संवत उन्हीं के नाम पर है। उनका वर्णन ‘वृहत्कथा’, ‘सिंहासन बत्तीसी’ और बैताल पच्चीसी की कहानियों में भी मिलता है। भास्कर पुराण में उनके वंशवृक्ष का उल्लेख है। विक्रमादित्य परमार वंश के राजपूत थे, इसका उल्लेख सूर्यमल मिश्र कृत वंश भास्कर ग्रंथ में भी है। अनेक नगरों के नाम जो आज भी विद्यमान हैं, उनके वंशजों के नाम पर रखे गए हैं, जैसे बुंदेलखंड, भोपाल, धार, देवास।
विक्रमादित्य का मूल नाम विक्रम सेन था और वे पिता गंधर्व सेन तथा माता सौम्य दर्शना के पुत्र थे। विक्रम संवत के अनुसार उनका जन्म आज से (वर्ष 2023) 2094 वर्ष पूर्व उज्जयनी (वर्तमान में उज्जैन) में हुआ था। यह समय कलिकाल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व भी माना जाता है। कहते हैं कि उन्होंने 100 वर्षो तक राज्य किया।
विक्रमादित्य के दरबार में नौ रत्न अर्थात नौ विद्वान थे। उनके नाम हैं:- धन्वंतरि, क्षपणक, शंकु, कालिदास, बेताल भट्ट, वररुचि, घटखर्पर, अमर सिंह तथा वराहमिहिर। उनके शासनकाल में संस्कृत आम बोलचाल की भाषा थी।
स्वर्णिम शासनकाल था वह
सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनके हालचाल जानने के लिए छद्मवेश धारण कर नगर भ्रमण करते थे। उनके राज्य में न्याय व्यवस्था स्थापित करने के लिए हर संभव कार्य किए जाते थे। इतिहासों में उन्हें सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रिय राजा माना गया है। उनके समय प्रजा को दैहिक, दैविक और भौतिक किसी प्रकार का कष्ट नहीं था।
शकों के आक्रमण कई सौ वर्षो तक चले और हमारे देश के महावीर सम्राटों ने उनसे डट कर युद्ध किया, इससे वे वापस लौटने पर विवश हुए। उसी किसी कालखण्ड में चंद्रगुप्त द्वितीय ने किसी शकराज को पराजित किया था। तब उनका सम्मान विक्रमादित्य के रूप में किया गया। उनका कार्य भी महान वीरता का था, इसलिए मूल विक्रमादित्य जैसे कार्य के लिए विक्रमादित्य या शकारि की पदवी देना औचित्यपूर्ण था।
भारत में प्रचलित हैं विक्रम संवत
और शकसंवत
हमारे देश में दो संवत प्रमुख रूप से प्रचलित हैं-दोनों संवतों का संबंध विदेशी आक्रमणकारी शकों की पराजय से है।
उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने जब शकों को हराकर सिंध के बाहर भगा दिया। तब उन्हें शकारि की उपाधि से विभूषित किया गया और तब से विक्रम संवत का शुभारंभ हुआ। इसको हिंदू नववर्ष के रूप में नवसंवत्सर नाम से मनाया जाता है।
विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद दूसरी बार जब शकों ने देश पर आक्रमण किया तब विक्रमादित्य के प्रपौत्र सम्राट शालिवाहन ने शकों को पराजित किया। इस विजय के उपलक्ष्य में शालिवाहन संवत का प्रवर्तन किया गया। इसको हमारी केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय संवत माना है। यह सौर गणना पर आधारित है।
आज के अनेक देशों तक था सम्राट विक्रमादित्य का शासन
महाप्रतापी सम्राट विक्रमादित्य का साम्राज्य के अंतर्गत वर्तमान भारत सहित आज के देशों चीन, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, कजाकिस्तान, अरब क्षेत्र, सीरिया, ईराक, म्यांमार, मिस्र, टर्की, उत्तर एवं दक्षिणी कोरिया, श्रीलंका आदि क्षेत्र या तो सम्मिलित थे अथवा उनसे संधि थी। उनका साम्राज्य बालि द्वीप तक पूर्व में और सऊदी अरब तक पश्चिम में था।
नया संवत कौन चला सकता है
आज से विक्रम संवत 2080 वर्ष अर्थात 57 ईसा पूर्व में भारत के महाप्रतापी सम्राट विक्रमादित्य के नाम विक्रम संवत आरंभ किया गया था। उन्होंने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम नव संवत प्रारंभ होता है।
प्राचीनकाल में नया संवत चलाने से पूर्व विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ट्टण मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने राज्य के सभी निवासियों का राजकोष से ट्टण चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से नया संवत चलाया। भारतीय परंपरा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम और प्रजाहितैषी कार्यो के लिए स्मरण किए जाते हैं।
नवसंवत्सर का प्राकृतिक महत्व
भारतीय कालगणना के अनुसार बसंत ट्टतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि सृजन की पुण्य तिथि मानी गई है। वसंत ट्टतु उल्लास, उमंग, हर्ष और प्रकृति में फल, फूलों एवं वृक्षों के खिलने की होती है। यही समय फसल पकने का होता है, इससे कृषक भी प्रसन्न होते हैं। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं जिससे सारे कार्योे के लिए शुभ मूहुर्त होते हैं।
अस्तु, हमें नवसंवत्सर अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए। यही भारतीय नववर्ष भी है। भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी संवत से है, न कि अंग्रेजी नववर्ष से। वस्तुतः हमारे देश का इतिहास जो विदेशियों द्वारा लिखा गया अथवा लिखवाया गया, उसके पुनर्लेखन की आवश्यकता है। इसमें हजारों वर्षो का इतिहास छूटा हुआ है, इसको व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
भारत वर्ष के महाप्रतापी वीर शिरोमणि सम्राट विक्रमादित्य को शत-शत नमन। नवसंवत्सर मंगलमय हो।