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वर्तमान लोकतंत्र में चुनाव सुधार होने चाहिए

सम्पादकीय जाह्नवी फरवरी 2023

समाज जीवन के स्वस्थ विकास के लिए राजनीति भी एक आवश्यक तत्व है। हमारे यहां आरंभ में राजतंत्र था। शास्त्रें में राजा के कर्त्तव्य उसके कार्य करने आदि पर विस्तार से वर्णन है। उसका मंत्रीमंडल उसकी सेना आदि पर भी शास्त्रें में चर्चा है। लगभग 5000 वर्ष के राजाओं का तो पूरा ब्यौरा मिलता है। उसमें अधिकांश राजाओं की कर्तव्य पालन करते हुए अर्थात् प्रजा का वत्सल ही दिखाया गया है। इसी कारण हमारे समाज में राजा के प्रति अटूट सम्मान का भाव रहा है। उसे ईश्वर का रूप माना जाता रहा है। कुछ गिने चुने राजा होंगे जिन्हें प्रजा के प्रति कठोर कहा जा सकता होगा।
परन्तु समाज के मन में अपनी संस्कृति अपनी परंपरा के प्रति हीन भावना पैदा करने के विदेशियों ने षड्यंत्र पूर्वक हमारे राजतंत्र को बदनाम किया है। राजाओं को जनता के प्रति क्रूर और अपने स्वार्थ के लिए जनता का शोषण करने वाला प्रचारित करने का दुःसाहस किया है। क्योंकि यह प्रचार शिक्षा के माध्यम से किया गया है। अतः एक मनोवैज्ञानिक धारणा बनी हुई है कि राजा अर्थात् अपने परिवार के सुख के लिए जनता का शोषण करने वाला।
दूसरी पद्धति है लोकतंत्र, जिस का अर्थ है जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन। आज समाज में इसी को आदर्श राज्य व्यवस्था माना जाता है। भारत में भी प्राचीन काल में इस व्यवस्था के इतिहास में कई उदाहरण मिलते हैं। उस काल में लोकतंत्र किस प्रकार का था, इस पर पूरे अनुसंधान की आवश्यकता है क्योंकि उसमें प्रतिनिधि चुनने की क्या व्यवस्था थी।
आज जो लोकतंत्र भारत में प्रचलित है उसका अधिकांश भाग विदेश में चलने वाली राज्य पद्धतियों का मंथन करके, उनके आधार पर बनाने का प्रयास हुआ है। उसी के आधार पर संविधान बना और आज 75 वर्ष से उसी के अनुसार राज्य चल रहा है। यह लोकतंत्र भारत के लिए नया प्रयोग था अतः भारत वर्ष ने अपेक्षित 75 वर्ष में उतनी प्रगति नहीं की जितनी अपेक्षित थी। अभी 2014 में इसको कुशल नेतृत्व मिला तो मात्र आठ नौ वर्ष में ही इस की प्रगति उत्साहवर्धक है।
देश आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ हो रहा है। भावनात्मक दृष्टि से जनता में उत्साह का संचार हुआ है। सैन्य दृष्टि से उसने अपनी सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर लिया है। राजनीतिक दृष्टि से उसने कश्मीर में पनप रहे अलगाववाद को निरस्त कर दिया है। कश्मीर में दफा 370 को दूर कर दिया है। धार्मिक दृष्टि से 500 वर्षों से विवादों में पड़े राम-मंदिर के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। ऐसे पचासों कार्य जो रूके हुए थे या असंभव दिखते थे, वह मोदी जी ने पूरे कर दिए हैं।
जिस लोकतंत्र की वोट पद्धति ने पूरे देश को सम्प्रदायों में, वर्गो में, भाषाओं, जाति-पाति में बांट दिया था, वह अब उससे ऊपर उठ कर जात-पात से भाषा भेद को भूल कर मोदी जी के कुशल नेतृत्व के लिए वोट कर रहा है। मुसलमान जिन के अपने एजेडो ने भारत का बंटवारा कर दिया था वह भी अब मुख्य धारा की ओर कदम बढ़ाता दिख रहा है। अभी गुजरात के चुनाव में मुसलमान का भी वोट मोदी जी को मिला है।
अभी इस लोकतंत्र में और परिपक्वता आएगी तो देश और आगे बढ़ेगा। अभी जनता को और जागरूक बन कर दबाव बनाना पड़ेगा ताकि जो कमियां हों उन्हें दूर किया जा सके। सब से पहले भ्रष्ट लोग जो चुन कर आते हैं वह चुन कर न आ सकें। इस समय संसद में ऐसे चुने लोग जिनमें सर्वेक्षण के अनुसार 46 प्रतिशत हैं जिन पर अपराध के आरोप हैं। 29 प्रतिशत तो ऐसे हैं जिन पर गंभीर आरोप हैं, जैसे हत्या, रेप, फिरौती आदि।
इसके विरुद्ध 1999 में एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म ने हाई कोर्ट में लड़ाई लड़ी। हार जाने पर सुप्रीम कोर्ट गए परन्तु वहां भी सभी दलों के सांसदों ने इस के विरुद्ध बयान दिया और अब उसी को अपराधी माना जाएगा जिसके विरुद्ध आरोप साबित न हो जाय। लेकिन यह निश्चित मानिये जब तक योग्य और ईमानदार व्यक्ति संसद में नहीं आएंगे लोकतंत्र कल्याणकारी नहीं बनेगा।
दूसरे चुनाव लड़ना बहुत महंगा हो गया है। कोई सामान्य व ईमानदार व्यक्ति भी अपवादों को छोड़ दें तो चुनाव लड़ कर जीत नहीं सकता।
तीसरे हर वर्ष किसी न किसी राज्य के चुनाव होते हैं। उसका कारण सभी विकास कार्य ठप्प रहते हैं। हार जीत के द्वन्द्व में पूरी सरकारी मशीनरी तथा नेता भी जुटे रहते हैं। मोदी जी का मानना है कि यदि सभी राज्यों तथा लोकसभा के चुनाव एक साथ हों तो खर्च की दृष्टि से बहुत बड़ी बचत हो सकती है।
पार्टी सिस्टम में भी कुछ बदलाव पर विचार किया जाना चाहिए। क्योंकि आज तो पार्टी उसी को टिकट देती है जिसकी जीत की संभावनाएं अधिक होती हैं। जीतने के लिए पैसा, बाहुबल और पावर ज्यादा काम करते हैं। इसलिए पार्टी उन्हें ही प्रत्याशी बनाती है जो इस दृष्टि से समर्थ होता है। अतः इस से विचार करना चाहिये। अनेक देशों में अलग-अलग पद्धतियां हैं। भारत के प्राचीन लोकतंत्र में समितियों के चुनाव का भी प्रावधान था। उसका भी अध्ययन किया जाना चाहियेे। व्यवसाय के वर्गो के अनुसार भी जन प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं। ऐसे मंथन करके कोई ऐसी पद्धति बन जाए जिससे योग्य और ईमानदार व्यक्ति चुने जा सके, अपनानी चाहिये।
2014 से पहले यह एक अघोषित धारणा बनी हुई थी कि जो लाखों करोड़ों का खर्च करके जनप्रतिनिधि बनता है वह बनने के बाद भ्रष्ट तरीकों से पैसा जोड़ेगा ही। इसी कारण एक-एक राजनेता की सम्पत्ति कुछ वर्षों में ही करोड़ों रु- बढ़ जाती थी।
यह तो मोदी जी के आने के बाद ही यह धारणा बन रही है कि वह ईमानदारी से कार्य करें। इसीलिए अब कोई पहले की तरह बड़े घोटालों की खबरें नहीं आती। पहले कोई प्रतिनिधि स्वयं ईमानदार होता था तो उसके रिश्तेदार उसका नाम लेकर लूट करते थे। अब मोदी जी का आदर्श है कि उनके परिवार के लोगों ने किसी प्रकार का भी सत्ता का अनुचित लाभ नहीं उठाया है।
अतः इस के लिए राष्ट्र नायकों को अपना आदर्श सामने रखना होगा। उसी से प्रेरणा लेकर जनता में भी राष्ट्रभावना जागृत होगी। जब आम जनता राष्ट्रभावना से ओत प्रोत होगी, वह सही और ईमानदार व्यक्ति का चुनाव करेगी। राष्ट्र अपने आप उन्नति करेगा। इस में धर्म भावना का भी बहुत बड़ा रोल है। क्योंकि धर्म ही व्यक्ति को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा देता है। प्रभु के आशीर्वाद से अभी नेतृत्व योग्य एवं कर्तव्यनिष्ठ है। इसलिए शनैः-शनैः सुधार होते जाएंगे और देश विश्व में फिर से एक शीर्ष स्थान प्राप्त कर लेगा।

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