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वचन से बंधी हुई

वचन से बंधी हुई

कहानी
रमेश मनोहरा

सुधा किचन में काम कर रही थी। जब से पवन के साथ उसकी शादी हुई है, तब से वह फूंक-फूंककर काम करती है। अगर काम में जरा सी गलती हो जाये, तब विधवा सास का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है। अतः रसोई का काम वह बड़ी सावधानी से करती है, क्योंकि उसकी सास लीला गुस्से की बहुत तेज है। किसी तरह का नुकसान जरा भी नहीं सहन करती है। यह सब उसने शादी के 10 महीने के भीतर ही समझ लिया था। सुधा का ध्यान क्या भंग हुआ, चीनी का कप नीचे फर्श पर गिरकर उसके 4-5 टुकड़े हो गये, किचन में कुछ गिरने की आवाज सुनकर सास लीला के कान तत्काल सतर्क हो गये। वह तत्काल किचन में आ गई। फर्श पर फूटे कप के बिखरे टुकड़े देखकर उसकी आंखें लाल हुई, फिर गुस्से से बोली-नासपीटी, ये कप कैसे फूटा?—क्यों फूटा?—बोल जवाब दे?
‘क्या करूं अम्मा, हाथ से फिसल गया?’ बड़ी मुश्किल से ये शब्द मुंह से निकाल पाई।
‘कैसे फिसल गया हराम——, क्या रोटी नहीं खाती है, अरे खाने के नाम पर तो पेट भरकर खाती है फिर भी हाथ से कैसे छूट गया? फिर गुस्से से बोली लूले हाथ हैं, देखकर काम नहीं कर सकती है, कप फोड़ दिया तब उसका नुकसान कौन भरेगा तेरा बाप।’
‘देखो अम्मा जी, आप मुझे जितनी गालियां देना चाहो दे दीजिए। मगर बाप तक मत जाईये,’ पहली बार सुधा अपना विरोध दर्ज कराती हुई बोली-यह सुनकर लीला और आग बबूला हो उठी, गुस्से से बोली-अरे कौन भरेगा यह नुकसान, बड़ी आई बाप वाली। तेरे बाप ने दहेज में नहीं दिया है। गांठ से पैसा खर्च किया तब कहीं जाकर चीजें खरीदी जाती हैं।
‘अरे अम्मा जी, कहीं ये आपके हाथ से फूट गया होता तो——-’ आगे सुधा कुछ न बोल सकी। बीच में ही बात काटकर लीला बोली-अरे कैसे फूट जाता मुझसे। तेरे जैसे कमजोर हाथ नहीं हैं मेरे। काम करना है तो ढंग से करा कर, समझी। इसी तरह नुकसान करती रहेगी न, तब एक दिन कंगाल कर देगी।’
तब सुधा ने खामोश रहना उचित समझा। वह जानती है यदि जवाब देगी तब वह और गुस्से में होगी। उनकी जुबान बंद नहीं होगी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। तब वह बड़बड़ाती हुई चली गई। अब भी वह अपने कोप भवन में जाकर गुस्से से बड़बड़ा रही है। कप क्या फूटा जैसे सास का नसीब ही फूट गया हो। मगर वह तो कानों में तेल डालकर सब कुछ सुनती रही। जब से शादी हुई तभी से सुन रही है। मगर सुधा कुछ नहीं बोलती है। उससे कप असावधानी वश फूट गया। तब पिता तक जाने की क्या जरूरत थी?

पवन जब उसे देखने आया था तब एकांत में उनको समझने के लिए छोड़ दिया था। तब उसके पिता ने पहले ही पवन पर इसलिए मोहर लगा दी थी कि वह बैंक में कार्यरत है, पिता और मां यही चाहते थे। फिर उसकी भी पसंद यही थी कि उसे भी भावी पति कोई नौकरी वाला मिले। जब पवन के साथ उन्हें एकांत में जाने दिया गया ताकि दोनों पसंद ना पसंद का जाहिर कर सकें, तब पवन ने पूछा ‘क्या तुम मुझसे शादी करने की इच्छा रखती हो?’
‘हां मैं चाहती हूं’ उसने हंसकर स्वीकृति दी थी।
‘मैं भी चाहता हूं मगर——-’
‘मगर क्या?’ पवन को रुकते देख सुधा बोली।
‘देखो मेरी मां बड़ी उग्र स्वभाव की है? उससे तुम्हारी नहीं निभेगी’ पवन ने जब यह कहा तब सुधा कोई जवाब नहीं दे सकी। कुछ देर सोचती रही। आगे पवन बोला, ‘मेरी मां के उग्र स्वभाव के कारण मेरी दोनों भाभियां अलग हो गईं। मां के उग्र स्वभाव के कारण तुम भी अलग होने को कहोगी, तब मैं अलग नहीं होऊंगा, मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकता हूं, इस बात को अच्छी तरह सोच लो। ये शर्त मंजूर हो तभी मुझ से शादी करो, वरना दूसरा लड़का तलाशें। पवन की ऐसी शर्त ने उसे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या जवाब दे, तब काफी क्षण बाद सोचकर बोली-आपकी अम्मा जी कितनी भी उग्र हों मगर मैं कभी अलग होने को नहीं कहूंगी?
‘ठीक है तब मैं भी शादी करने को तैयार हूं,’ सुधा ने जब यह स्वीकृति दी तब दोनों में शादी हो गई। शादी के कुछ दिनों तक तो सास का स्वभाव अच्छा रहा।
दोनों भाभियां जेठ का स्वभाव भी अच्छा रहा। दोनों भाभियां तो शादी के बाद चली गईं मगर तीन महीने से सास का व्यवहार बहुत बदल गया था। जरा-जरा सी बात पर चिल्लाना, डांटना, काम में गलती निकालना और बेवजह रौब दिखाना और उसके साथ अपना सासपन दिखाना। सुधा भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकती थी मगर पवन के वचन से बंधी हुई थी।
मगर आज तो अम्मा जी ने हद कर दी। बाप तक पहुंच गई। आज उसने भी अपने कानों में तेल डालकर नहीं सुना और जवाब दिया। तब अम्मा जी और धधक उठी। आज उसे लगा कि वह कब तक अपने स्वाभिमान पर चोट सहती रहेगी। इस तरह वह अपना जीवन जीती रहेगी। इसे आप गुलामी कहें। जब वह पीहर में थी, कितनी स्वतंत्र थी। किसी की बात जरा भी नहीं सुनती थी। कोई कुछ कह देता था तो मुंहफट जवाब दे देती थी।

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