Pradhanmantri fasal beema yojna
Homeसांस्कृतिकलोक संस्कृति और आस्था का प्रतीक चन्द्रमा

लोक संस्कृति और आस्था का प्रतीक चन्द्रमा

चाँद पर जाने की वैज्ञानिकों ने कई तरह से सफल कोशिश की है।
किन्तु लोक की आस्था सबसे ऊपर है। वह तो चाँद को पूजता था,
पूजता है और सदा पूजता ही रहेगा, उसे प्रेम का प्रतीक मानता है
और सदैव वही मानता रहेगा।

अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक

लेख डॉ. सुमन चौरे

चन्द्रयान तीन उड़ा। सबकी निगाहें ऊपर उठी। सभी लोग चैतन्य हो चन्द्रयान विषयक जानकारी के लिए अति उत्सुक हो उठे। मिशन चन्द्रयान एक ऐसी मिसाल है कि संपूर्ण भारतीयों ने एकमत से वैज्ञानिकों के अथक्परिश्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की, सराहना की। किन्तु वह कौन सा चन्द्रमा है, जो हमारे लोक के चन्द्रमा से भिन्न है। लोक का चन्द्रमा बच्चों को रिझाता है। लोक का चन्द्रमा आस्था और प्रेम का प्रतीक है। वहां किसी को जाना नहीं पड़ता, वह स्वयं आता है। लोक ने चन्द्रमा को ऐसा आत्म सात्किया है कि उन्होंने उसे जीवन के विभिन्न आयामों से जोड़ लिया है।
कभी दूज का चन्द्रमा, चन्द्र दर्शन का कहलाता है, तो कभी वह ईद की खुशी का चन्द्रमा, ईद का चांद कहलाता है। कभी चतुर्थी का वक्र चन्द्र, तो करवा चौथ के चन्द्र दर्शन का चन्द्रमा कहलाता है, तो कभी वह शरद पूनम का सुधा-वृष्टि-कर्ता कहलाता है, तो कभी वह कृष्ण के महारास का रासानन्द कहलाता है, तो कभी वह प्रियतमा संग प्राण निवेदन का चन्द्र कहलाता है। कभी वह चन्द्रमा चातक का हितैषी है, तो कभी मां की गोदी के बालकृष्ण का खिलौना। चन्द्रमा कभी तो तन्वंगी रूपसी नवयौवना की उपमा है, तो कभी गले का चन्द्रहार। हमारे लोक का चन्द्रमा कुछ अलग ही है। वह हमारी संस्कृति को आलोकित करता है। वह हमारी कल्पनाओं में उछाल लाता है। जनजीवन पर चन्द्रमा की सोलह कलाओं का अपना एक अलग प्रभाव है, वह कभी ज्योतिष को प्रभावित करता है, तो कभी किन्हीं ग्रहों का मैत्री भाव है, तो किन्हीं ग्रहों का द्रोही भाव होता है।
चन्द्रमा हमारी लोक संस्कृति का मूलाधार है, तभी तो लोक ने सबसे पहला परिचय चन्द्रमा का अपने शिशु को मां की गोदी से ही दिया। चन्द्रमा, चन्दा मामा, मां की ममता, लाड, स्नेह और वात्सल्य से भी ऊपर मां और मां से मामा हो गया। जैसे ही शिशु की निगाह थोड़ी स्थिर हुई, निगाह जमी कि मां अपने लाडले को अपने वक्ष से लगाकर, चन्द्रमा को दिखाते हुए, उससे चन्द्रमा का परिचय कराती है। चन्दा मामा, लोक का चन्द्रमा हमसे दूर नही होता है, हमें उस तक जाना नहीं होता। वह तो स्वयं ही हमारे पास आ जाता है। मां के कहने पर वह उसके शिशु के लिये मामा बनकर उनके पास आ जाता है और मां बाल शिशु की उंगली को चन्दा की ओर दिखा कर गीत गाने लगती है और शिशु अपने कोमल हाथों से चन्दा मामा को बुलाता है
आs रे चाँद भसी बाँधs
दूध घीवs का कुण्डा, मामा थारा फुन्दा
भावार्थ : हे चाँद, तू आ जा। हमारे घर भैंस बांध जा। दूध घी के कुण्ड के कुण्ड भर जा। मेरे कोमल नाजुक शिशु का तू मामा है।
चांद आता है। मां अपने बेटे को भोजन कराती है, बेटा नखरे करता है, भोजन नहीं करता, तब वह चन्दा मामा से गीत के माध्यम से अरज करती है कि
हे चन्दा मामा तू आजा। यह गीत है-
चन्दा मामा आइजाs
घीवs मंs रोटी बोळई जाs
नानो म्हारो खायs नीs
नs झुम्मक लाड़ी लायs नीs
चन्दा मामा चन्दी दs
खीरsखाण्डs का जीवण दs
ठंडी-ठंडी गिरी दs
खीरs खाण्डs का जीवण दs
ठंडी-ठंडी गिरी दs
रसs भरी नंs पूरी दs
भावार्थः हे चन्दा मामा, तू आजा। हमारे लाडले सलौने के लिये घी में रोटी डुबो दे। अगर घी में डूबी रोटी यह नन्दा नहीं खायगा, तो इसकी सुन्दर लाड़ी (पत्नी) भी नहीं आयेगी। चन्दा मामा तू अपनी चांदनी हमारे लाडले को दे दे। खीर रबड़ी का जेवन दे। ठंडी-ठंडी रस मलाई दे। रस और पूरी हमारे लाडले को खिला।
अपने लाडले को भोजन कराने के लिये माता उसकी कितनी मनुहार करती है और सहज में चन्दा मामा बालक के पास उपस्थित दिखाई देता है।
कृष्ण भक्त सूर ने भी बालकृष्ण की लीलाओं के वर्णन में कृष्ण के बालपन की जिद के पद लिखे हैं। मां की गोद में मचलते बालकृष्ण चन्द्रमा की मांग करते हैं। मां थाली में जलभर कर रखती है। उसमें चन्द्रमा की परछाई पड़ती है और उसे पकड़ने के लिए कृष्ण अपना हाथ जल में डालते हैं, तो जल के हिलते ही परछाई जल में विलीन हो जाती है। उनके रूदन का सूर ने इस प्रकार वर्णन किया है-मैया चन्द्र खिलौनों लैहो’
लोक में लोकगीतों में इस आशय के अनेक गीत मिलते हैं। हर बोली, हर भाषा में चन्द्र खिलौने के गीत मिलते हैं। निमाड़ में भी इस आशय का एक बड़ा सुन्दर गीत है-
मैया मख चन्द्र खिलौणों लई दs
नई तो मखs तारा दई नंs समझई दs
कदरो नीs चईये मखs कुण्डळ नीs चईये, मैया मखs चन्द्रहारs घड़ई दs
मैया मखs चन्द्र खिलौणों लई दs
तिलक नीs चईये मखs कजरोs नीs चईये, मैया मखs भाल चन्द्र लगई दs
मैया मखs चन्द्र खिलौणों लई दs
चेंण्डू नींs चइये मखs फिरखी नीs चईये, चम-चमs चन्दो दईदs,
मैया मखs चन्द्र खिलौणों लई दs
भावार्थ: हे मां, मुझे चन्द्रमा का ही खिलौना ला दे। अगर नहीं, तो तारे देकर ही मुझे समझा दे। मां, मुझे न कदरा (कमर बंद) चाहिये, न कुण्डल चाहिये, तू चन्द्रमा का ही हार गढ़वा दे। मां, न तो मुझे खेलने के लिए गेंद चाहिये और न ही फिरकी चाहिए, मुझे तो बहुत चम-चम कर चमकने वाले चन्द्रमा की ही गोटी ला दे। मैया, मुझे तो सिर्फ चन्द्रमा का ही खिलौना चाहिए। बालक और बालरूप में चन्द्रमा ही बच्चों का एक आकर्षण होता है। एक रोता हुआ बच्चा चन्द्रमा को देखकर एकदम चुप हो जाता है।
निमाड़ में विवाह के अवसर पर मण्डप निर्माण एवं मण्डप प्रतिष्ठा के अवसर पर एक बड़ा ही सुन्दर गीत गाया जाता है। इस गीत में पारिवारिक एकजुटता एवं आपसी स्वभाव के अन्तर का वर्णन मिलता है। संयुक्त परिवारों में भाइयों में, बहुओं में, स्पर्धा होड़ की जो प्रवृत्तियां होती हैं, इससे दूर रहने की सीख का यह एक अनुपम उदाहरण है। चांद और सूरज दो भाई हैं। प्रस्तुत गीत में इन्हें एक दूसरे से होड़ न करने की शिक्षा दी गई है। यह गीत है-
मण्डुवा रळकs र“यो दस मासs
जड़ावs काs रेs माण्डुवा होs
मण्डुवा, बठी थारा छाया का माँयs
जड़ावs कs रेs माण्डुवा होs
मैं तोहे चन्द्रमाँ वरजिया
भाई तुमs सुरिमलs सी
होड़s मतिs गाठs sजड़ावs का रेs माण्डुवा, वै रेsचलs नवs खण्ड पिरथीs, भाई तुमs ही चलो तेs माजुम रातs, जड़ाव का रेs माण्डुवा
भावार्थ: हे मण्डप, तेरी शोभा न्यारी है। दस महीने में तेरा निर्माण किया है। हे मण्डप, मैं तेरी छाया में बैठी हूं। तेरी छवि अत्यंत शोभनीय है। हे भाई चन्द्रमा, मैं तुझे वर्जना देती हूं, चेतावनी देती हूं कि तू अपने बड़े भाई सूर्य की होड़, उसकी बराबरी मत कर। वह तो नौ खण्ड पृथ्वी पर चलता है। चौबीस घंटा घूमता है, किन्तु तुम तोे सिर्फ रात में ही चलते हो। अतः तुम उससे होड़ मत करो।
निमाड़ी लोकगीतों में इसी प्रकार सूर्य और चन्द्र को साथ में लेकर कई गीत मिलते हैं। चन्द्रमा और सूर्य को लोक ने अपने से पृथक नहीं समझा। अगर उसे अलग किया भी है, तो लोक देवता के रूप में, जागृत देवता के रूप में माना है और उसे पूजा है।
पति-पत्नी के प्रेम मिलन में भी चन्द्रमा की बहुत बड़ी भूमिका रही। चन्द्रमा की शीतलता, उसका उज्ज्वल रूप, उसकी निर्मल चांदनी प्रतीक है निर्मल प्रेम का। विवाह के अवसर पर एक ऐसा ही प्रणय गीत गाया जाता है।
चाँदा थारी चकमकs रातs जी
कईs चँादाराउजियाळाचौसर खेल साs
तू छेs गोरी निधन घरs की डीकरी जीs
कई चैसर खेलाँs राजकुंवारी सी
एतरो जो सुणतs आई गयो रोसणू जीs
कई हम खs ते कसाs वखाणियाs
हमारा जो बापs घरs सौ-सौ चरवा द्रव्यs द्रव्यs का जीs
कई तुमरा सरीका नीs निरवाणियां
राजा जी खs आई गयो रोसणू जीs कईs, गोरा सा मुखड़ा पर मारी थापड़ीs
जी कईs पतली सी कम्मर पर मारी लाकड़ीs
राणी जी खsआई गयो रोसणू जी कईs
उठो दासी दिवलो संजोआजी कईs
कागदs लिखाs निरधनs बापs खs
दीवलो लावतs हुई गई वs जीs
कई चाँदा रा उजियाळा कागद लिखियाs
चाँदा रा उजियाळा कागद मोकल्या जीs
कईs चाँदाराउजियाळा लश्कर आवियाs
भावार्थ : चन्द्रमा तेरी चकमक चांदनी रात है। चांद के उजियाले में राणी ने राजा से चौसर खेलने की बात कही। राजा ने विनोद में कहा, कि तुम तो गरीब घर की बेटी को, चौसर तो बराबरी के राजघराने वालों से खेलते हैं। इतना सुनते ही रानी जी को क्रोध आ गया, वे बोलीं, मेरे बाप घर तो सौ-सौ चरवे द्रव्य सोने चांदी से भरे हैं, तुम्हारे जैसे दरिद्री की बात नहीं करते राजा को भी क्रोध आ गया। उन्होंने रानी के गोरे गाल पर थप्पड़ जड़ दिया और पतली नाजुक कमर पर लकड़ी से मारा। रानी को भी रोस भर गया। रानी ने कहा, ‘दासी लाओ दीवला जला कर दो, मैं अपने गरीब बाप के घर पत्र लिखती हूं।’ दीपक लाने में दासी को विलम्ब हुआ, तो राणी ने चांद के प्रकाश में ही पत्र लिख दिया। चांद की उजियाली रात में ही रानी का पत्र पिता घर पहुंचा और चाँद के उजियाले में ही रानी के भाई लोग लाव लश्कर और फौज लेकर राजा के राज्य पर चढ़ाई करने लगे।
चन्द्रमा के प्रकाश की महिमा अनन्त है। शरद पूर्णिमा को मधु पूर्णिमा और कोजागरी पूनम भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रात का चन्द्रमा सबसे अधिक आलोकित होता है। यह पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा से निकली धवल रोशनी में उज्ज्वल किरणों में शरीर को नीरोग करने की शक्ति होती है। इसीलिए वैद्य लोग कुछ विशेष औषधि तैयार कर रात भर शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा के प्रकाश में रखते हैं, जिससे औषधि की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है। चन्द्रमा के प्रकाश में सुई में डोरा डालने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
लोकमान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी किरणों के माध्यम से अमृत की वर्षा करता है। रात्रि बारह बजे चंद्रमा का पूजन कर, आरती कर, सबको अमृत रूपी दूध पिलाया जाता, रबड़ी और खीर खिलाई जाती है। निमाड़ में आज पूर्णिमा के दिन संत सिंगाजी की कढ़ाई की जाती है। कढ़ाई यानि घी का सरा, हलवा बनाकर चन्द्रमा को भोग लगाकर सबको बांटा जाता है।
शरद पूर्णिमा की रात को मधु रात्रि भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास किया था। इस अवसर पर निमाड़ में भी गरबा रमने की परंपरा है। लोग पूरी रात गरबा रमते हैं।
गरबा गीतों में चन्द्रमा के उज्ज्वल, धवल प्रकाश का उल्लेख मिलता है-
शरद पुन्नयs की रातs सखी ओs
सखीs हाऊँगरबोखेलणs गई
निरमळ चाँदणी रात जीs कई
घड़िला दूध भर्या, जीs कै घड़िया दूधs भर्या, अमरित की बरसात सखी हाऊं नाचूं थै-थै
संग-संगात म्हारी सई सखी नंs
अरु नणदी को वीरो राजs वीरो राजs
अमरित की बरसात सखी हाऊँ नाचूँ थै-थै
भावार्थ : शरद पूर्णिमा की रात में सखी, मैं गरभा खेलने गई। चन्द्रमा की निर्मल चांदनी रात है। दूध के घड़े भरे हैं, जिनमें अमृत की बरसात चन्द्रमा कर रहा है। मैं मुक्त मन से नाच रही हूं। कूद-कूद कर, झूम-झूम कर नाच रही हूं। सखियों के अलावा मेरे साथ मेरी नणद का वीरा, मेरा प्रियतम भी है। अमृत की बरसात में, मैं अपनी नणद केवीरा (भाई) के साथ नाच रही हूं।
अनेकानेकगरभा गीत गाते-गाते रात बीतती है। चन्द्रमा भी सुस्ताने चला जाता है।
‘साँझा-फूली’ का गीत गाते हुए बालिका गीत गाती है-
चाँद गयो गुजरातः हरिणी का बड़ा-बड़ा दांत{
संजा तू थारा घर जाs कि थारी माँय मारs गs कि डाटs गs
भावार्थ : चाँद गुजरात चला गया। हिरणी के बड़े-बड़े दांत दिखाई दे रहे हैं। साँजा बहन बड़ी रात हो गई है, तू डर जायेगी। देर होने से तेरी मां तुझे डाँटेगी, मारेगी। अब तू अपने घर जा।
चन्द्रयान मिशन की तैयारी के समय से ही बहुत से वक्तव्य आए और हास विनोद का दौर चला कि ‘जब हम चांद पर रहने चले जायेंगे, तो करवा चौथ की पूजा कैसे करेंगे, चांद पर रहने लगेंगे, तब शरद पूर्णिमा पर दूध कहां रखेंगे। आदि आदि। दुनिया में सब कुछ होगा, किन्तु हम भारतीयों की आस्था का चांद सदा अलग ही रहेगा। जन्म से छठी के दिन शिशु के गले में छठी माता के साथ चांदी का चन्द्रमा भी पहनायेंगे, नन्हे सुकोमल के मस्तक पर काजल से चन्द्रमा भी बनायेंगे। शिशु को हाथ से चन्दा मामा को बुलाना भी सिखायेंगे। चन्द्रमा की पूजा भी करते रहेंगे। और दूध भी रखेंगे और चांद से उसकी चांदनी भी मांगेंगे। यह हमारी अपनी दुनिया है, यह हमारा अपना संसार है, वह दूसरी दुनिया है, वह दूसरा संसार है। यह हमारी दुनिया चन्दा मामा के साथ की शीतल मधुर रात है और हम उस रात में गरबा भी करेंगे और गीत भी गायेंगे।
बूझने वाली कथाएं और धार्मिक, पौराणिक एवं लोक कथाओं में भी चन्द्रमा पूजनीय बताया जाता है। प्रत्येक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन व्रत रखकर रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन और चन्द्रपूजन के पश्चात ही व्रत खोला जाता है। जब बादल वाली रात होती है, तो ऐसी स्थिति में सिंधूर से दीवाल पर चन्द्राकृति बनाकर उसको पूज लिया जाता है।
पौराणिक कथाओं में तो सूर्य चन्द्र को दोष लगा था-राहु और केतु क्रमशः सूर्य और चन्द्र को ग्रस लेते हैं, सूर्य को अमावस्या और चन्द्रमा को पूनम के दिन ग्रहण लगता है। चन्द्रमा हमारी लोक संस्कृति और लोक समाज का अभिन्न अंग है। लोक का चन्द्रमा आकाश में नहीं होता है, वह तो लोक के साथ यत्र-तत्र-सर्वत्र रहता है। वह तो लोक के कंठ से स्वर में प्रकट होता है, वह चावड़ी चौपाल की कथाओं में बसता है। कभी महिलाआेंं के वरत-वर्तुला की कथाओं में बसता है, वह लोक के हृदय में बसता है। वह लोक की कल्पनाओं में बसता है, उसकी अल्पनाओं में रेखाओं के माध्यम से निखरता है। वह तो शिवशंकर के मस्तक पर अर्द्धचन्द्र के रूप में चमकता है, तो वही चांद नवजात शिशु के सिर पर काजल के रूप में रुचता है, और वही जल देवी के पूजन के घर कोट में हल्दी से रचता है। कुँआरी कन्याओं की साँझा फूली में वह उनके नगर कोट में गोबर से बनता है, तो घर के कवले पर जिरोती माण्डने में हल्दी से उभरता है। दशहरे के अवसर पर वह घर के आंगन में गेरू के पाट पर खड़ी से दशहरे में शोभित होता है, तो कभी वह नवपरिणिता के विरह में उभर कर आ जाता है। तत्संबंधी एक एक गीत
अरेs चन्दा तू मति डूबी जाजे
पियो म्हारो जायs नी परदेश होs
चाँद पर जाने की वैज्ञानिकों ने कई तरह से सफल कोशिश की है। जब सब कुछ सत्य है, विज्ञान भी, ज्ञान भी, किन्तु लोक की आस्था सबसे ऊपर है।
वह तो चाँद को पूजता था, पूजता है और सदा पूजता ही रहेगा, उसे प्रेम का प्रतीक मानता है और सदैव वही मानता रहेगा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments