जून, 2025
कहानी
राजेन्द्र सिंह गहलौत
युवा कहानीकार शालिनी ने ढलती उम्र के वृद्ध व्यक्ति बनवारी लाल शर्मा की मानसिकता उनके प्रति उनके घर, परिवार के रवैया का अध्ययन करना चाहा, परिणाम क्या निकला?
बुढ़ापे का न कोई स्वागत करता है और न ही कोई उसे स्वीकारना चाहता है। बुढ़ापे की ओर अग्रसर महिलाएं सौंदर्य प्रसाधनों एवं ब्यूटी पार्लर की मेहरबानियों से यथासंभव ढलती उम्र को धोखा देकर नवयुवती बनने का भरसक प्रयास करती हैं। जबकि ताजा तरीन बूढ़ा आदमी बुढ़ापे को नकारता हुआ, जवानों से अपनी तुलना कर अपने आप को उनसे अधिक फिट साबित कर अपने आप को जवान घोषित करता रहता है। यह प्रयास तब और भी प्रबल हो जाता है जब बुढ़े तन का जवान दिल किसी नवयौवना के प्रेम रस पाने को बौराया हो। अब हमारे कथानायक बाबू बनवारी लाल को ही लीजिये अभी कुछ दिन पहले ही अपनी अच्छी खासी नौकरी से रिटायर हुये हैं और ताजा-ताजा बूढ़े भी हुये हैं। लेकिन उनका मन अपने बूढ़े होने को स्वीकार ही नहीं रहा।
राजकुमार सिद्धार्थ को मानव जीवन की तीन अवस्थाएं देख कर बैराग्य हो गया था तो हमारे कथानायक बाबू बनवारी लाल को भी तीन घटनाओं ने एहसास दिलाने का प्रयास किया कि वे बूढ़े हो गये हैं। पहली घटना तो नौकरी से सेवानिवृत की ही थी पर उसे उसने अपना बूढ़ा हो जाना न माना। लेकिन सेवानिवृत की फेयरवेल पार्टी में दूसरी घटना तब घटी——जब कल तक इठला-इठला कर सर! सर! कहने वाली उनकी स्टेनो ने उन्हें माला पहनाते हुये अंकल! अंकल! एक बार नहीं कई बार अपने विदाई भाषण में कहा तो हृदय में पहले एक हूक सी उठी फिर उन्हें लगा कि कहीं उनका बुढ़ापा आ तो नहीं गया? तभी कुछ दिनों बाद तीसरी घटना घटी, अधेड़ एवं जवानी के बीच इठलाती बलखाती, तीखी, चुलबुली घर की कामवाली बाई को कल तक उन्हें साब जी! साब जी! संबोधित कर मुस्करा कर इठला कर बात करती थी, अब उन्हें दादा जी कह कर संबोधित ही नहीं करने लगी बल्कि रुक्षता से निर्देश भी देने लग गई, ‘कचड़ा मत फैलाइये। अपने कमरे में रहिये। अभी सोफा साफ किया था फिर आपने गंदा कर दिया।’ आदि-आदि।
इन तीन घटनाओं से उनको लगा कि शायद बुढ़ापा आ ही गया है। लिहाजा बुढ़ापे की अघोषित आचार संहिता का पालन करते हुए उन्होंने अपनी दिनचर्या निर्धारित कर ली। जिसके अनुसार वे सुबह 5 बजे उठ कर मार्निंग वॉक पर निकल जाते, वहां से 7 बजे लौट कर नहा धो कर एक घंटा जोर-जोर से घंटी बजा कर पूजा करते हुये तेज स्वर में भगवान की स्तुति गाते। उनकी घंटी एवं स्तुति के तेज स्वर से पूरे मुहल्ले वालों को पता चल जाता कि बाबू बनवारी लाल पूजा कर रहे हैं। दोपहर के भोजन विश्राम के बाद शाम को फिर टहलने जाते तथा लौट कर संध्या आरती कर एक घंटा सस्वर रामचरित मानस का पाठ करते। उसके बाद रात्रि का भोजन कर जल्दी ही सो जाते। बस इतनी ही उनकी पूरे दिन की दिनचर्या थी, बीच में जो समय मिलता उसमें वे घर के सदस्यों से ही नहीं मिलने-जुलने वालों से भी अपनी बी-पी-, साइटिका, डायबिटिज आदि बीमारियों का दुखड़ा रोते रहते। वे अपनी इस नीरस जिंदगी से बड़े पीड़ित, ऊबे, झुंझलाये, थके-थके से नजर आते थे।
पिछले कुछ दिनों से वे घर से लगभग 1 कि-मी- दूर शहर से बाहर नदी के किनारे मार्निंग वॉक पर जाने लगे थे। वहां शहर के काफी लोग मार्निंग वॉक करने आते थे। जवान लड़के-लड़कियां वहां जांगिंग, रेसिंग आदि एक्सरसाइज करते नजर आते। उनसे बचते हुये बनवारी लाल सड़क के एक किनारे चुपचाप विचारमग्न धीरे-धीरे टहलते उनके अगल बगल से रेसिंग करते हुए युवक युवतियां जब उन्हें लगभग छूते हुये निकलते तो वे आज की नई पीढ़ी को मन ही मन कोसते हुये यथासंभव उनसे बचने का प्रयास करते।
लेकिन उस दिन वे टहलते हुये नदी के किनारे पहुंचे ही थे कि हाफ पैंट और शर्ट जैसा कुछ पहने हुये एक 25-26 वर्ष की एक नवयुवती मोबाइल पर किसी से बात करते हुये दौड़ते हुये उनसे जा टकराई। शायद वह नदी किनारे जागिंग रेसिंग जैसी कोई एक्सरसाइज कर रही थी। बनवारीलाल अपने आप को संभाल नहीं पाये और मुंह के बल नदी के किनारे की रेत पर गिर पड़े। रेत पर गिरने से उन्हें चोट तो अधिक नहीं आई लेकिन उनका चश्मा उनके चेहरे से निकल कर उनसे थोड़ी दूर पर किसी पत्थर से जा टकराया और उसके शीशे टूट गये। वे काफी आक्रोशित हो उठे लेकिन जब उस नवयुवती ने उन्हें अपनी बांहों का सहारा देकर उठाया और उनके चेहरे के पास अपना चेहरा ला कर मुस्कुरा कर हौले से कहा-‘‘सारी अंकल! मैं आप को देख नहीं पाई।’’ तो उनका सारा क्रोध न जाने कहां चला गया। सुन्दर नवयुवती के युवा तन का मादक स्पर्श, उसकी मदमाती गंध से उनका तन-मन तरंगित हो उठा। जवाब में उन्होंने भी मुस्कुरा कर कहा-‘‘कोई बात नहीं! जवानी जब भी बुढ़ापे से टकरायेगी तो गिरेगा बुढ़ापा ही न।’’ फिर उन्हें लगा कि लड़की कहीं उनकी बात का और कोई मतलब निकाल कर नाराज न हो जाये। अतः बात को संभालते हुये बोले-‘‘मेरा मतलब है कि जवान लोग बूढ़ों का ख्याल ही कहां रखते हैं।’’
युवती मुस्कुरा कर बोली-‘‘अरे अंकल! आप अपने आपको बूढ़ा क्यों समझते हैं? अच्छे खासे हट्टे-कट्टे तो हैं, चेहरे पर चमक है। ऐसी चमक तो आजकल जवान लड़के के चेहरे पर भी नहीं दिखलाई पड़ती। अभी आपकी उम्र ही क्या होगी। मुश्किल बामुश्किल यही 40-45 वर्ष या उससे भी कम ही होगी———।’’ बीच में ही उसकी बात को काटते हुये जरा शर्माते हुये उसने कहा-‘‘अरे नहीं भाई! पिछले महीने ही साठ वर्ष का हुआ हूं।’’ जवाब में बेतकल्लुफी से हंसते हुए वह बोली-‘‘तो क्या हुआ। साठा तो पाठा होते हैं। मेरा नाम शालिनी है, आप सालू कह सकते हैं। मैं साफ्रटवेयर इंजीनियर हूं। अभी शादी की नहीं। वैसे आप का क्या नाम है?’’ प्रति उत्तर में उसने इस कदर रस विभोर होते हुये कहा, जैसे कि प्रणय याचना कर रहे हों-‘‘जी! मेरा नाम बनवारी लाल शर्मा है।’’ युवती मुस्कुराते हुये बोली-‘‘मैं आप को अंकल नहीं कहूंगी। शर्मा जी कहूंगी। और आज से आप मेरे दोस्त हुये। मेरे से दोस्ती करेंगे न शर्मा जी।’’
तभी उसकी नजर उनके टूटे हुये चश्मे पर पड़ी, और चश्मा उठा कर वह बोली-‘‘अरे शर्मा जी! आपका तो चश्मा टूट गया। मैं इसे कल बनवा कर ले आऊंगी। इसके शीशे दूर नजर के हैं या पास नजर के?’’ जवाब में शर्मा जी उसके हाथ से चश्मा लेने का प्रयास करते हुये उसके हाथों के स्पर्श से रोमांचित होते हुये बोले-‘‘अरे नहीं नहीं! शालिनी जी!—– शालू जी! मैं बनवा लूंगा। आप परेशान न होइये। इसके शीशे दूर नजर के थे। बिना चश्मा घर लौटने में थोड़ी परेशानी होगी, लेकिन मैं चला जाऊंगा किसी तरह।’’ उनकी बात काटते हुये वह बोली-‘‘अरे नहीं नहीं! मेरी गलती से आपका चश्मा टूटा है, उसे मैं ही बनवाऊंगी। और आपको, चलिये अपनी स्कूटी से आपके घर तक छोड़ देती हूं। मेरा घर यहां से दूर है इसलिये नदी तक पैदल न आकर स्कूटी से आती हूं तथा यहां मार्निंग वाक, रेसिंग, एक्सरसाइज आदि कर के फिर स्कूटी से घर वापस लौट जाती हूं। इससे समय बचता है फिर वापस घर लौट कर आफिस की भी तो तैयारी करनी पड़ती है।’’ स्कूटी में उसके पीछे बैठ कर वापस घर लौटते वक्त शर्मा जी उसके शरीर के मादक स्पर्श मदमाती शारीरिक सुगंध से एक विचित्र ही नशे में मदमाते हुये अपने घर के पास पहुंच कर स्कूटी से उतर कर भी एक विचित्र ही आनंद से उमंगित थे। प्रफुल्लित, उमंगित, आनंद के अनजाने नशे में मगन, कुछ गुनगुनाते हुए वे घर के अंदर पहुंचे तो सबसे पहले काम वाली बाई ने ही टोका-‘‘क्या बात है दादा जी! आज तो बड़े मगन नजर आ रहे हो।’’ तो वे चोरी पकड़ी जाने वाली हड़बड़ाहट में सकपका कर हकलाते हुये सफाई देने लग गये-‘‘अरे नहीं—! कुछ नहीं———-। यूं ही————।’’ फिर आज नहा धो कर उसने जल्दी ही पूजा समाप्त कर ली। पूजा करते हुये उनकी घंटी की घनघनाहट तथा भजन गाते हुये उनका स्वर इतना धीमा था कि उसे उनके घर वालों ने भी नहीं सुना। शायद आज उनका मन कहीं भटका हुआ था।
दिन भर उनका मन भटका ही रहा। हर पल उन्हें शालिनी की याद आती रही। उसके मादक देह स्पर्श की स्मृति उनका तन मन स्पंदित करती तो कभी वे अपने आप को धिक्कारने भी लगते। छिः ढलती उम्र में तो ऐसा सोचना भी पाप है। उससे तो वे दुगनी उम्र से भी अधिक के हैं। उसकी उम्र की तो उनकी बड़ी बिटिया है। जिसका विवाह उसने पिछले वर्ष ही किया है। किन्तु वे अपने बेलगाम घोड़े की तरह भटकते मन पर लगाम कस कर नियंत्रित करने का जितना प्रयास करते उनका मन उतना ही लगाम तोड़ कर उछाल मारता। अंत में उसने अपने बेकाबू मन पर कड़ाई से काबू करने का प्रयास करते हुये निर्णय लिया कि अब वे सुबह नदी के किनारे घूमने ही नहीं जायेंगे तो शालिनी मिलेगी ही नहीं और मन भी नहीं भटकेगा। लेकिन वे भूल गये कि उनका चश्मा तो शालिनी के पास ही है।
दूसरे दिन सुबह यह ठान कर कि वे नदी की तरफ न जा कर आस-पास ही टहल कर आ जायेंगे, जैसे ही घर से बाहर निकल कर थोड़ी दूर ही चले होंगे, कि उन्हें शालिनी अपनी स्कूटी पर आती दिखाई पड़ी। शालिनी उनके पास आ कर मुस्कुराते हुये बोली-‘‘यह लीजिए शर्मा जी आपका चश्मा। मैंने इसके शीशे बदलवा दिये हैं। शीशे आधे-आधे टूटे थे। अतः आप्टीशियन को उनसे चश्मे के नंबर लेने में परेशानी नहीं हुई। घूमने जा रहे हैं ना। आइये स्कूटी से मेरे साथ नदी तक चलिये फिर वहां मार्निंग वॉक करियेगा।’’ चश्मा लेते हुये शालिनी के हाथों के स्पर्श से ही उनके सब स्वनियंत्रण के संकल्प धाराशायी हो गये और वे स्कूटी पर शालिनी से लगभग सट कर बैठते हुये आनंद लोक में विचरते हुये कब नदी के किनारे पहुंच गये पता ही नहीं चला।
कुछ देर तक शर्मा जी टहल कर, नदी के किनारे बनी एक बेंच पर बैठ गये। शायद वे थक गये थे। थोड़ी देर बाद शालिनी भी उनके पास आ कर उनके बगल में बेंच पर बैठ गई। उनसे बात करते हुए शालिनी ने अपने-अपने परिवार, अपने जॉब, अपने बॉस, अपनी सहेलियाें सब के बारे में सब कुछ बता डाला। शर्मा जी जितने आत्मकेन्द्रित थे शायद उतनी ही अधिक शालिनी बातूनी थी। फिर यह क्रम चलता रहा। शर्मा जी अपने आप को शालिनी से मिलने से न रोक पाते। अब वे अपनी ढलती उम्र तथा अपनी सब बीमारियों को भूल गये। एक अलग ही तरह की ताजगी, उमंग से वे चहकते रहते। लगता था कि वे अब अपनी ढलती उम्र को भुलावा देते हुये फिर से गत जवानी को आवाहित कर रहे हैं। इस प्रयास में वे जब अपने सफेद बालों को काले रंग से डाई करवा कर घर आये तो घर के लोगों ने उन्हें आश्चर्य से देखा इस पर उसने अपने आप को खुशमिजाज साबित करते हुये हंसते हुये कहा-‘‘अरे भाई! आप जवान लोगों के बीच मुझे भी जवान बन कर रहना होगा, नहीं तो आप लोग तो मुझे बूढ़ा मान कर डस्टबिन में ही डाल देंगे।’’ जबकि शालिनी उनके डाई किये हुये काले बालों को देख कर बोली-‘‘यह हुई न बात। अब आप लगते हो 30-35 साल के जवां मर्द।’’
शर्मा जी अब अक्सर अपने आप में खोये हुये ख्याली पुलाव पकाते कि लगता है शालिनी को उनसे प्यार हो गया है। उसने काफी पहले किसी मनोविज्ञान की पुस्तक में पढ़ा था कि कुछ युवतियां अपने हम-उम्र नव-जवान युवकों की अपेक्षा अधिक उम्र के पुरुषों को अधिक पसंद करती है। वे अधिक उम्र के पुरुषों से प्यार करने के लिये लालयित रहती है। संभवतः शालिनी भी उन्हीं में से हैं, तभी तो उनकी तरफ आकर्षित है। लेकिन वे अपने प्यार का इजहार करें तो कैसे? वे निर्णय न कर पाते। इस बीच ढलती उम्र का एहसास तो उसने भुला ही दिया। उनकी डायबिटीज, सायटिका, ब्लडप्रेशर, कमर घुटनों के दर्द की बीमारियां न जाने कहां चली गई। पहले वे इन्हीं बीमारियों की चर्चा करते हुये परेशान रहते थे। अब वे भूले से भी अपनी बीमारियों की चर्चा न करते। हरदम अपने आप को खुशमिजाज, मिलनसार साबित करने का भरसक प्रयास करते। घर वालों, बाहर वालों सभी से हंसते मुस्कुराते हुये बात करते, बच्चों को चुटकुले सुनाकर उनके साथ खिलखिला कर हंस पड़ते। अब अक्सर वे आज के जवानों से अपनी तुलना करते हुये कहते-‘‘आज के ये डालडा छाप नौजवान हमारी क्या बराबरी करेंगे। अपने जवानी के दिनों में हम लोग रोज 5 मील तक दौड़ते जाते और फिर दौड़ते हुये ही वापस लौटते। आज भी हम रोज बिना थके एक सांस में तेज चलते हुये नदी किनारे टहलने जाते हैं तथा वहां से उसी तरह ताजगी से लौटते हैं। आज कल के जवान तो चार कदम चलते ही हांफने लगते हैं।’’ यह कह कर वे ठहाका लगा कर हंस पड़ते। शालिनी भी नदी के किनारे उनसे लगभग रोज ही मिलती। खुल कर उनसे बात करती, हंसती खिलखिलाती रहती। धीरे-धीरे उन्हें पक्का यकीन होता चला गया कि शालिनी भी उन पर फिदा है और वे तो शालिनी के दीवाने ही हो गये थे। बस अब उनके दिल की बैचेनी यही थी कि इस प्यार को परवान कैसे चढ़ाया जाये? कैसे अपने प्रेम का इजहार किया जाये?
आखिर एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया। जनवरी का महीना था। ठंड जोरों पर थी, लेकिन शर्मा जी अपनी मार्निंग वॉक के नियम में अवरोध न आने देते थे। यह उनकी अपने नियमों का कड़ाई से पालन के फलस्वरूप था या शालिनी से मिलने की आतुरता की वजह से? यह तो राम ही जाने या शर्मा जी जानें पर उस दिन गजब का कोहरा था, हाथ को हाथ नहीं सुझाई पड़ रहा था। ऐसे मौसम में भी शर्मा जी नदी के किनारे टहलने जाने से अपने आप को न रोक सके। नदी के किनारे पहुंच कर तथा अपनी निर्धारित बेंच पर बैठ कर शर्मा जी अभी सोच ही रहे थे कि लगता है आज शालिनी न आयेगी तभी उन्हें स्कूटी की आवाज सुनाई पड़ी तथा उसकी हेडलाइट की रोशनी दिखलाई पड़ी। वह शालिनी की ही स्कूटी थी, उसने शर्मा जी के पास आ कर अपनी स्कूटी खड़ी की और शर्मा जी से बोली-‘‘अरे शर्मा जी! आप ऐसे मौसम में भी आ गये। मुझे तो उम्मीद न थी कि आप आओगे।’’ जवाब में शर्मा जी रोमांटिक स्वर में बोले-‘‘लेकिन मुझे तो पूरी उम्मीद थी कि आप आयेंगी इसलिये मैं भी चला आया।’’ शालिनी खिलखिला कर हंसते हुये नदी के किनारे जांगिग रेसिंग करने चली गई।
शर्मा जी बेंच पर बैठे हुये विचारमग्न थे कि आज तो मौका अच्छा है। इस कोहरे के रूप में प्रकृति ने पर्दा डाल कर मुझे शालिनी से एकांत में प्रेम याचना करने का पूरा मौका दे दिया है। तभी जागिंग कर के शालिनी वापस लौट कर बेंच में उनके करीब आ कर बैठ गइर् तो वे खिसक कर बिल्कुल उसके करीब आ गये। शालिनी के शरीर के रोमांचक स्पर्श, मादक गंध के नशे में वे मदहोश हो गये। जबकि शालिनी उनसे दूर खिसकते हुए बोली-‘‘क्या बात है शर्मा जी। आपको ठंड अधिक लग रही है—–क्या?’’ तभी शर्मा जी ने उसे बांहों में भरने का प्रयास करते हुये हकलाते स्वर से ‘‘आई लव यू—-
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