स्तम्भ
वे कठिन चार दिन
अगस्त, 2023
स्वाधीनता विशेषांक
कालेज से लड़कियों का ग्रुप अपनी मस्ती में बतियाते हुए चल रहा था। तभी काजल बोली-‘आज मौसम भी सीटी बजा रहा है चलो शाम की मूवी प्लान करें।’ सारी सहेलियों ने सहज स्वीकृति दे दी कि कल तो रविवार की छुट्टी है। सब शाम को पिक्चर देखने चलते हैं। शालिनी की कोई प्रतिक्रिया न पाकर सब ने एक साथ कहा-‘ शालिनी तुम चुप क्यों हो? शालिनी बोली-‘मुझे शाम को कहीं जरूरी काम से जाना है इसलिए मैं मूवी नहीं जा सकूंगी।’ परी ने टोकते हुए कहा-‘ऐसा कौन सा काम है जो शालिनी ने परी की बात को बीच में काटते हुए कहा-‘देखो। तुम सब जानती हो लड़कियों के लिए महीने के चार पांच दिन कितने कठिन होते हैं। हम सब अच्छे परिवार से हैं इसलिए हम इन दिनों होने वाली परेशानियों से अछूते हैं। मैं एक संस्था से जुड़ी हूं जिसके बारे में मैंने कभी तुम्हारे सामने जिक्र नहीं किया। मैं उस संस्था के सदस्यों के साथ हर रविवार ऐसे इलाकों में जाती हूं जहां स्त्रियों को महीने के दिनों में रक्त स्त्रव को रोकने के लिए साफ कपड़े भी नहीं मिलते। बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने में जो महिलाएं घर से दूर आकर काम करती हैं वे इन दिनों में प्लास्टिक की थैली में रेत भर कर मात्र एक पतला सा कपड़ा उस पर रखकर अपने इन दिनों को कैसे बिताती हैं सुनकर भी रूह कांप जाती है। हमारी संस्था ने ऐसी महिलाओं के लिए घरों से साफ पुराने कपड़े बांटने की एक मुहिम चलाई है। हम सब अपने घरों के साथ-साथ अपने अड़ोस-पड़ोस और मिलने जुलने वालों से भी पुराने कपड़े इक्ट्ठा करते हैं। हर रविवार झुग्गी झोपड़ियों में जाकर इनका वितरण करते हैं। सच कहूं। तो जो खुशी जरूरत मंदों की सहायता करके उनके चेहरे की मुस्कान को देखकर मिलती है वह खुशी पिक्चर देखकर नहीं—। सारी सहेलियों ने एक साथ कहा-‘मूवी कैंसिल—कल हम सब भी शालिनी के साथ चलेंगे। जल्दी-जल्दी घर चलते हैं। घर जाकर पुराने कपड़े भी तो निकालने हैं। तभी निधि बोली-‘मेरी मम्मी के क्लीनिक में केयर फ्री के बहुत सारे पैकेट रखे हुए हैं जो सैम्पल के लिए आते ही रहते हैं। जिन्हें आने-जाने वाली गरीब महिलाओं को मम्मी अक्सर देती है। अब वे सारे पैकेट मम्मी से लेकर मैं भी झुग्गियों में वितरण करने के लिए शाम को तुम्हारे साथ चलूंगी।’ सब की बात सुनकर शालिनी ने सबको थैक्यू कहा और हवा में हाथ हिलाकर शाम को हनुमान चौक पर मिलने का वादा करते हुए स्कूटी से आगे निकल गयी।
-सरिता गुप्ता, हैदरपुर, दिल्ली
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