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यज्ञ और विज्ञान

प्रेरक प्रसंग
लक्ष्मी प्रसाद गुप्त ‘किंकर’, ईशानगर (म.प्र.)

अप्रैल 2023
शिक्षा विशेषांक

जैसे गाय का दूध मानव मात्र के लिये समान रूप से उपयोगी व लाभकारी है। उसे मात्र किसी एक धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति तक सीमित नहीं रखा जा सकता, न ही उसके वैज्ञानिक महत्व को झुठलाया जा सकता। वैसे ही भारतीय वैदिक संस्कृति में प्रचलित, वेद शास्त्रें में वर्णित यज्ञ के महत्व को नहीं नकारा जा सकता। न ही यज्ञ के वैज्ञानिक सत्य को झुठलाया जा सकता। यज्ञ वायु की शुद्धि और पुष्टि हेतु प्रकृति का सर्वसुलभ वरदान है।
यज्ञ हवन के हविष्य में दिव्य औषधियों के मिलाने का विधान है जो वायु को शुद्ध कर जन जीवन को रोग मुक्त और स्वस्थ्य करने की क्षमता रखती है। अग्नि में हवन से वही औषधियां सूक्ष्म अणुओं के रूप में वायु में मिल कर अनंत गुणा प्रभावकारी सिद्ध होती है। इसीलिये आयुर्वेद की परम दिव्य औषधि गिलोय को हविष्य में मिलाकर-‘रोगान शेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हयाश्रयतां प्रयान्ति।’ मंत्र से विधिपूर्वक हवन कर सभी के स्वस्थ और सुखी रहने की मंगल कामना की जाती है। उक्त श्लोक श्री दुर्गा सप्तशती में प्रमुख प्रार्थना मंत्र है।
हमारे यहां यज्ञ द्वारा पर्यावरण शुद्धि का इतना सरल उपाय बताया गया है लेकिन उसकी चर्चा तक बुद्धिजीवी वर्ग, विचारकों या सरकार द्वारा नहीं होती है।
यज्ञों के बारे में अनुसंधान के लिये कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं इसीलिये हमारे लिये वह मात्र एक कर्मकाण्ड से अधिक कुछ नहीं है। जब हमारे प्राचीन शास्त्रें में इतनी महिमा है तो हमें यज्ञों की इस शक्ति पर शोध तो करने चाहिये।

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