कविता डॉ. उमेश प्रताप वत्स
जाह्नवी जनवरी 2023 युवा विशेषांक
बड़े तूफान से पहले सदा, शांत माहौल हो जाता है।
रोगी भी मृत्यु से पहले, स्वस्थ लक्षण दिखलाता है।
अनुभव करो शांत माहौल से, पहले की गहरी अथाह।
गऊ माता के मौन व्रत, विवशता की भयंकर व्यथा।
अर्थ व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु, भारत की पहचान थी।
हर घर में पूजा हो जिसकी, ऐसी वह भगवान थी।
भूले से भी न होता था, कभी अनादर गैया का
राजा और प्रजा दोनों से, मान लिया था मैया का।
अपने भोजन से पहले, गैया का भोजन जाता था।
बच्चे-बूढे़, महिलाओं से, परिवारों सा नाता था।
मधुर गीतों को गुनगुनाते, गैया को दुहवा जाता था।
तभी दूध औषध बनकर सब, संकट हर ले जाता था।
मां गैया के मूत्र को मानव, बेझिझक पी जाता है।
गौ गोबर सह पंचगव्य से, शुभ कारज कर पाता है।
गौ-पालक को सुखी मानता, था सारा खुशहाल समाज।
गैया के दुग्ध दही और घी पर, मलयोद्धाओं को भी था नाज।
हाय! विडम्बना गऊ माता की, भूख प्यास से व्याकुल आज।
दर-दर भटक रही है माता, एक-एक तिनके को मोहताज।
मंकी पॉक्स की महामारी से, तड़फ रही है माता आज।
अनदेखी गऊ भक्तों की, व्याधि रूप में गिरी है गाज।
गैया के अपमान से देखो, मानव गिरता जा रहा।
लाखों करोड़ों कमाकर के भी, तनाव में पिसता जा रहा।
कैसे मिलेगी शांति तुझको, मानव से दानव बनकर के।
घोर पाप के भागीदार तुम, खड़े बेशर्म तनकर के।
मौन है मैया देख रही, संत्रस चहुं दिशाओं में।
शांत धरा सी झेल रही, पीड़ा है दर्द निगाहों में।
खुदगर्जी के कारण तूने, मैया का ये हाल किया।
सौंप कसाई के हाथों में, उसका जीना बेहाल किया।
मौन वसुधा कब तक सहती, आते हैं भूकंप भूचाल।
गाय प्रताड़ित भैंस को पाले, बना रहा है मकड़-जाल।
मौनव्रत की गहराई को, अनदेखा कर ये भ्रम न पाल।
नासमझी कर नहीं जानता, होगी तबाही चहुं ओर विकराल।