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मोटा अनाज और
सेहत के काज

लेख पूनम पांडे

जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

मोटा अनाज खाने के बाद कोई अतिरिक्त आयरन या
विटामिन मिनरल की जरूरत नहीं पड़ती।

एक फैशन परिधान की कार्यशाला में एक अनोखी बात देखने को मिली, जब दोपहर के भोजन के लिए सबके मनपसंद व्यंजन पूछे गये तो लगभग सभी ने कहा कि वह मोटा अनाज और हरी सब्जी ही लंच में खाना चाहते हैं। अब इसका कारण पूछा गया तो सबके जवाब लगभग एक समान थे। सबने कहा कि यह पाचन में सुगम है और मोटा अनाज खाने के बाद कोई अतिरिक्त आयरन या विटामिन मिनरल की जरूरत नहीं पड़ती। यह सचमुच एक सकारात्मक पहल थी। आज हर कोई सेहत को प्राथमिकता दे रहा है इसलिए अब इस पोषक आहार मोटे अनाज की पूरी दुनिया में डिमांड है। भारत सरकार भी मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने पर बल देना शुरू कर रही है। हमारे यहां दशकों से मोटे अनाज की खेती की परंपरा रही है। हमारे पूर्वज व किसान मोटे अनाज की उत्पादन पर निर्भर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक की माने तो देश में कुल खाद्यान उत्पादन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी लगभग चालीस फीसदी थी। मोटे अनाज के तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल है। इसे मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं। धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है। इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। साथ ही ये मोटे अनाज पोषक तत्वों का भंडार भी है।
चावल और गेहूं की तुलना में इनमें तीन गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में बीटा, कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन बी-6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिज लवण और विटामिन प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद डायटरी फाइबर भरपूर मात्र में पाए जाते हैं। पोषण और स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके फायदों के कारण ही इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है। इनका सेवन वजन कम करने, शरीर में उच्च रक्तचाप और अत्यधिक कोलेस्ट्राल को कम करने, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे रोगों के जोखिम को कम करने के साथ-साथ कोलेस्ट्राल को कम करने, हृदय रोग, मधुमेह, एनीमिया, हृदय और गुर्दे से संबंधित गैर संक्रामक बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। मोटे अनाज में मौजूद पोषणीय एवं औषधीय गुणों के आधार पर इन्हें भविष्य के भोजन के रूप में देखा जा रहा है। मोटे अनाज खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बढ़ती आबादी की पोषण जरूरतों को पूरा करने और तेजी से बढ़ रही जीवन शैली से संबंधित बीमारियां मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप आदि के रोकथाम में मोटे अनाजों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। उनके इस महत्व को देखते हुए अपनी थाली में उन्हें शामिल करना आवश्यक हो गया है। ऐसा करना हर प्रकार से लाभदायक होगा। पंजाब, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ इलाकों में मोटा अनाज की खेती बढ़ी है। दक्षिण भारत में भी मोटा अनाज का चलन बढ़ा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में रोज के खान पान में सरकारी सहायता से भी लोगों को मोटा अनाज को प्रदान किया जा रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल के सौ से अधिक गांव में कृषि वैज्ञानिक समूह ने साठ साल तथा उससे ऊपर की आयु वालों पर शोध किया। उनमें मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृदय रोग, रक्ताल्पता नहीं के बराबर थी। उनके आहार पर निगरानी रखी गई तो पता लगा कि ये सभी बुजुर्ग अपने भोजन में अधिकतर मोटा अनाज ही लेते रहे हैं। इसीलिए अभी तक नहीं के बराबर औषधि ले रहे हैं और सेहतमंद हैं। भारत सरकार इसके पोषक गुणों को देखते हुए इसे पूरे भारत में मिड डे मील स्कीम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी शामिल करने की सोच रही है। इससे हर रोज तीन करोड़ बच्चे पौष्टिक आहार पा सकेंगे। इससे पहले गेहूं और चावल तथा मैदा ही मिड डे मील के आहार को तैयार करने में उपयोग में लाया जाता था। खुद संकल्प लेकर राजस्थान और गुजरात में तो मोटे अनाज के जायकेदार व्यंजन भामाशाह योजना के अंतर्गत बच्चों को थाली में परोसे ही जा रहे हैं। अब आगे आने वाले समय में लगभग तीस चालीस प्रतिशत भारतीय रसोई में मोटा अनाज शामिल होता है तो इससे बहुत लाभ होंगे। यह भविष्य के लिए एक सुखद संकेत है।

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