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मैं झेंप गया/गई

जुलाई, 2023
स्वास्थ्य विशेषांक

महंगा उपहार
मेरा सहपाठी विवाह के पश्चात अपनी पत्नी के साथ भोपाल लौटा। मुझे घर आने का निमंत्रण भी दिया। काफी महीने बीत जाने के बाद भी मैं उसके घर नहीं जा सका। एक बार वह काफी नाराज हुआ। तब जाकर मैं उसके घर गया। जब मुझसे अपनी पत्नी का परिचय उसने कराया। तब वह बोली, ‘भैया आप इतने दिनों तक क्यों नहीं आये?’ मैंने उन्हें बताया कि, ‘भाभी आपके लिए सुन्दर उपहार ढूंढने में इतना वक्त लग गया।’
तो वह बोली, ‘अपनापन और स्नेह बांटने के लिए सुन्दर उपहार की जरूरत नहीं होती है भैया।’ उनकी उक्त बातें सुनकर मैं झेंप गया।
-प्रियरंजन, गुड़गांव


चालीस रोटियां
मेरी शादी को पन्द्रह दिन हुए थे। घर के सभी लोगों से मेरा परिचय हो गया था। इसी बीच मेरी ननद के लड़के, जो मेरे पति से उम्र में पांच छह साल छोटे हैं, अचानक से आ गये। उनके बारे में मेरे पति ने बताया था कि वे एक बार में चालीस चालीस रोटियां खा लेते हैं। जब मेरी सास अंदर आयी तो मैंने धीरे से पूछा-‘मम्मी जी, जो एक बार में चालीस रोटियां खाते हैं वही आये हैं न?’
मैं अभी कह ही रही थी कि वे पीछे से आ गये, और हंसते बोले, ‘मामी, घबराइये मत, मैं वही हूं, लेकिन अब मैं चालीस चालीस रोटियां नहीं खाता।’
उनकी यह बातें सुन कर मैं झेंप गई व मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया।
-सीमा भारती, पटना


यादगार चीज
एक बार मेरे दूर रिश्ते के जीजा जी घर आये थे। बातचीत के क्रम में वे अचानक बोल गये, ‘विवाह में ससुराल से मुझे कोई भी यादगार चीज नहीं दी गई, जिसे मैं संजोकर रख सकूं तथा लोगों को बता सकूं कि यह मुझे ससुराल से मिली है।’ उनकी बातें सुनकर हम सभी अफसोस कर ही रहे थे कि हमारी दादी मां उनसे बोली, ‘बेटा उन्होंनेे अपनी घर की लक्ष्मी जैसी सुंदर, सुशील बिटिया दी, फिर भी तुम ऐसी बातें बोल रहे हो।’ दादी मां की बात सुनकर जीजा जी बिल्कुल झेंप गये और मुस्कराने का असफल प्रयास करने लगे।
-मोहनी राय, हैदराबाद


प्रस्तुत स्तंभ के लिए आप भी अपने अनुभवों को भेज सकते हैं। आप अपने संस्मरण इस पते पर भेजें जाह्नवी, डब्ल्यू जेड-41, दसघरा नई दिल्ली-110012

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