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मुस्कानों का गीत

कविता प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

मुस्कानों को जब बाँटोगे, तब जीने का मान है।
मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।।

दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर
जो देता है सम्बल
पेट है भूखा, तो दे रोटी,
दे सर्दी में कम्बल
अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है।
मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।।

धन-दौलत मत करो इकट्ठा,
कुछ नहिं पाओगे
जब आएगा तुम्हें बुलावा,
तुम पछताओगे
हमको निज कर्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है।
मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।।

शानोशौकत नहीं काम की
चमक-दमक में क्या रक्खा
वही जानता सेवा का फल
जिसने है इसको चक्खा
देव नहीं, मानव कहलाऊं, यही आज अरमान है।
मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।।

जीवन का तो अर्थ प्यार है
अपनेपन का गहना है।
वह ही तो नित शोभित होता
जिसने इसको पहना है।।
जो जीवन को नहिं पहचाना, वह मानव अनजान है।
मानवता जीवन की शोभा, मिलता नित यशगान है।।

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