कहानी
मान्यता या स्वीकृति
एस. भाग्यम शर्मा
आंखें खोलते ही आज चंदाबाई काम पर नहीं आएगी, यही बात मुझे याद आई। एक दीर्घ स्वास छोड़ते हुए मैं बिस्तर से उठी।
मेरे उठने के पहले ही उठ कर तैयार हो रहा था मेरा बेटा राजू, ‘मम्मी जल्दी से मुझे चाय बनाकर दोगी?’ वह बोला, ‘मम्मी आज मेरा 6-30 से 8-30 बजे तक गणित की कोचिंग है। इसलिए एक घंटा ज्यादा क्लास होगी।’ वह अपनी पुस्तकों और कॉपियों को इकट्ठा करने में लगा।
‘नम्रता——-दो दिनों से मुझे दाल की पकौड़ी खाने की बड़ी इच्छा हो रही है, शाम को बनाओ न। छोटी उम्र में मंदिर के पास जो लाला जी की दुकान के पास में गोविंद की दुकान में खाया था——-’ पति नरेन्द्र बोलते हुए मॉर्निंग वॉक के लिए रवाना हो गए।
अभी तक सूरज भगवान पूरी तरह से आए नहीं हैं, कुछ अंधेरा सा है। ऑफिस में आज 10 बजे एक मीटिंग है इसके अलावा सामने घर में रहने वाली शोभना भी मेरे साथ आने के लिए बोली थी, वह बात भी मुझे याद आई। मैंने गैस जलाकर खाना बनाना शुरू किया।
‘नम्रता—’ कहकर सासू मां आकर वहां खड़ी हुई। उनके पीछे ही ससुर जी उठकर बाथरूम की तरफ गए।
‘आज चाय बनाने में थोड़ी देर लगेगी मम्मी। चंदा छुट्टी पर है। आफिस में 10 बजे मीटिंग भी है। सब कुछ एक साथ हो जाता है।’ मैं बोली।
‘अच्छा, अरे! मैं तुम्हारी मदद करती हूं नम्रता। मैं सब्जी काट कर दे दूं।’ कहकर मेज की तरफ जा रहे सासू मां का हाथ पकड़कर मैंने उन्हें मना किया।
‘आप बैठिए मम्मी जी। मैं ही सब देख लूंगी। पिछले हफ्रते ऐसा ही तो आपने पालक काटते समय अपनी उंगली काट ली थी।’
‘ठीक। मैं दूध गर्म कर देती हूं नम्रता। चार पैकेट दूध ऐसे ही रखा है।’
अरे बाप रे। नहीं मम्मी जी। दो दिन पहले ही तो क्या हुआ था? दूध उबल कर गिरा तो आपको पता नहीं चला था दूध नीचे फैल गया और बर्नर में बुरी तरह से चिपक गया था। जिसको छुड़ाना मेरे लिए मुश्किल हो गया था।’
‘हां-हां। सही बात है बेटी। मुझे आंखों से भी कम दिखता है और कानाें से भी कम सुनाई देता है। चलो छोड़ो मैं झाड़ू पोछा आराम से कर देती हूं। ठीक है?’ सासू मां बोली।
‘अरे आप रहने दो। एक दिन झाड़ू पोछा नहीं हुआ कोई बात नहीं। गीला एकदम से सूख जाए ऐसा निचोड़ निचोड़ का पोंछना पड़ता है। पिछली बार गीले में पापा जी गिर गए थे। वह तो अच्छा हुआ उनकी हड्डी नहीं टूटी। उसके बाद आपके बेटे ने मुझे डांटा था ऐसे काम मम्मी से क्यों करवाती हो—’
सासू मां ने अपना चेहरा झुका कर अपने कमरे में चली गई। ‘क्या करें?’ सही बात ही तो मैंने कही थी? वे दोनों लोग 80 साल के करीब हैं। उन दोनों का शरीर कमजोर हो गया। उन्हें बहुत सारी बीमारियां लगी हुई हैं। फिर कुछ भी काम करते हैं तो गलत-सलत हो जाता है। यदि गिर जाए या हाथ पैर जल जाए तो फिर समस्या हो जाएगी ना?’
मेरी सासू मां मेरी मम्मी की सहेली ही हैं। वे बहुत ज्यादा फुर्तीली थीं। मेरे ससुर जी भी बहुत गंभीर हंसमुख स्वभाव के ही थे। परन्तु समय सभी को ऐसे ही कहां रहने देता? सुंदरता तो उम्र के साथ-साथ खत्म होती जाती है। उसके अलावा उसके स्वास्थ्य को भी खराब करती है?
‘चाय तैयार है मम्मी ले लीजिएगा’ मैंने उन्हें पकड़ाया
उन्होंने मेरा चेहरा देखे बिना ही ले लिया। शायद दुखी हैं या गुस्से में ऐसा उनको देखकर मुझे लग रहा था।
‘क्या हुआ मम्मी?’
‘कुछ नहीं—’
‘ठीक है। आप आराम करिए। पापा जी को खांसी हो रही है लगता है, उन्हें आप गरम-गरम चाय पीने को बोलिएगा मैंने अदरक और तुलसी डालकर बनाई है—’
‘ठीक!’
मेरा सब काम खत्म हो गया। मुझे अच्छा नहीं लगा, जब पापा मम्मी ने अपना चेहरा उदास रखा था।
‘मम्मी जी ने अपना चेहरा क्यों उदास कर रखा हुआ है? बुजुर्गो की कमजोरी को भी नहीं समझ कर बहुत सी बहुएं उनसे सारे घर के काम करवाती हैं। कई घरों में तो उनके लिए लोग गर्म पानी भी नहीं रखते, सब कुछ सास को करना पड़ता है।’
क्यों वीणा को ही देख लो? उसके कपड़ों को भी उसके सास को ही तह बनाकर रखने के लिए कह कर जाती है। किराणे का सामान, साग सब्जी, दूध सब कुछ ससुर जी को ही जाकर लाने के लिए कहती है।
यहां तो आराम से ही तो रहने को मैं कह रही हूं? बिना प्रेम और स्नेह के मैं ऐसा कह रही हूं क्या? किस लिए इस तरह मुंह सूझाकर उन लोगों ने रखा है—-ऐसा सोचने लगी।
बाहर शोभना की आवाज आई। सामने का ही तो प्लाट है। हम दोनों एक ही कालेज में हैं। हमारा अपार्टमेंट भी आमने-सामने ही है। हमारा आपस में अच्छा रिश्ता है। शोभना एक अच्छी और मेरी खास सहेली है।
‘नम्रता मैं तैयार हूं। और पांच ही मिनट ओके?’ कहकर उसकी मधुर मुस्कान सुनाई दी।
‘हां शोभना। मैं भी तैयार हूं।’
शाम के दाल के पकौड़ी के लिए दाल को भिगोकर मैं घर से रवाना हुई। चप्पल पहनते समय सामने के घर से शोभना की बात करने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।—————-
आगे की कहानी काफी दिलचस्प है। जब नम्रता ने शोभना को बताया कि वह अपने सास-ससुर के कारण हमेशा तनाव की स्थिति में रहती है। तब शोभना ने नम्रता को एक सीक्रेट बताया——–
आगे पढ़ने के लिए जाह्नवी का दिसम्बर 2024 अंक देखें
आप चाहें तो जाह्नवी की वर्ष भर के लिए सदस्यता भी ले सकते हैं।
डिजिटल सदस्यता
1 वर्ष-200 रु.
प्रकाशित पत्रिका की सदस्यता
1 वर्ष (12 अंक) – 400 रु.
अभी संपर्क करें
9891788245, 011-45637849