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महिला सशक्तीकरण की अग्रदूत :जीजा बाई

लेख विजय सिंह

यह सदी महिलाओं की सदी है। महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में अग्रणी रहकर समाज व राष्ट्र निर्माण में महती भूमिका निभा रही है। सर्वत्र महिला सशक्तीकरण दिखाई दे रहा है। महिला सशक्तीकरण के इस कार्य को सदियों पूर्व माता जीजा बाई ने किया। इन का जीवन हमारे लिए प्रेरणास्त्रेत है। जीजा बाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को महाराष्ट्र राज्य के बुलढाणा जिले के सिंदखेड में लखुजी जाधव की धर्मपत्नी महालसा बाई उर्फ गिरिजा बाई की कोख से हुआ। चार भाईयों की लाडली बहन बचपन से ही प्रतिभा सम्पन्न वीरव्रती व सेवाव्रती थी। रंगपंचमी 1607 ई- को जीजा बाई का संबंध मालोजी भोंसले के पुत्र शहाजी के साथ हो शीघ्र ही विवाह हो गया।
1623 ई में जीजा बाई ने संभाजी को तथा 1630 ई- में शिवनेर के किले में शिवाजी को जन्म दिया। जीजा बाई 1636 ई- में अपने पति की आज्ञा से पुणे पहुंची। जीजाबाई ने वहां कस्बापेठ में गणपति मंदिर बनाया। कोंडदेव के निर्देशन में शिवाजी की शिक्षा का समुचित प्रबंध किया। जीजा बाई ने शिवाजी के शौर्य साहस व चरित्र को गढ़ा। देश के महापुरुषों वीरांगनाओं की कहानियां सुनाकर बाल शिवाजी में संस्कार पोषण किया। 16 मई 1640 को शिवाजी का विवाह सई बाई निबालकर के साथ किया। शहा जी के आदेश पर जीजाबाई शिवाजी को लेकर बीजापुर गए। शिवाजी बीजापुर के दरबार में भी गए।
शिवाजी और जीजा बाई पुनः पूना लौटे। जीजा बाई की प्रेरणा से रोहिडेश्वर के शिव मंदिर में स्वराज्य की प्रतिज्ञा ली। 1646 ई- में औरगंजेब ने अपने मामा शाईस्ता खां को भेजकर पूना पर अधिकार करा लिया । शिवाजी पन्हालगढ़ के किले में सिद्धी जौहर द्वारा घेरे हुए थे ऐसी स्थिति में जीजाबाई ने मोर्चा संभाला। जीजा बाई ने अपने सैनिकों के माध्यम से छापामार पद्धति से संघर्ष किया। इसी दौरान शिवाजी की पत्नी सई बाई बीमार हो गई उसकी देखभाल सेवा सुश्रुषा भी जीजा बाई ने की लेकिन उसे नहीं बचाया जा सका। अब पोत्र संभाजी की देखभाल व संगोपन का कार्य भी जीजा बाई के जिम्में आ गया लेकिन जीजा बाई ने धैर्य और बुद्धिमता के साथ सभी संकटों का समाधान कर महिला सशक्तीकरण का उदाहरण प्रस्तुत किया। 1664 ई में शिवाजी ने शाईस्ता खां की उंगुलियाँ काटकर उसे वापस भागने पर मजबूर कर दिया। 23 जनवरी 1664 को जीजा बाई के पति शहाजी भोंसले की मृत्यु हो गई। जीजा बाई के दुख की सीमा नहीं रही। 1666 में शिवाजी के निवेदन पर स्वराज्य की रक्षा के लिए पुनः कार्य में जुट गई तथा शिवाजी को आगरा यात्र की अनुमति दी। शिवाजी की अनुपस्थिति में जीजा बाई ने मोरोपंत पिंगले को राजकाज का प्रमुख बनाया। निलो सोनदेव को हिसाब किताब साैंपा गया। प्रताप राव गुजर को सेना की देखभाल व नई सैनिक भर्ती का कार्य दिया। जीजा बाई माह में एक दिन सभी अधिकारियों को बुलाकर कार्य वृत्त सुनती थी और आगे के लिए आदेश देती थी। जीजा बाई व्यक्तिगत व्यवहार में कोमल थी परन्तु राजकाज में दृढ़ और कठोर थी। जीजा बाई ने दुलर्क्षित दुर्गो का पता लगवाकर अपनी सेना भेजकर कब्जा करवाया। न्यायदान, राजस्व वसूली प्रजा संरक्षण, गुप्तचर संस्था, सभी विभागों पर कड़ी निगरानी रखी। सेना का निरीक्षण किया। जहाजों पर चढ़ी। मिर्जा राजा जय सिंह ने भी औरंगजेब को लिखे पत्र में शिवाजी से भी बढ़कर कार्यदक्ष व व्यवहार कुशल बताया। शिवाजी के आगरा से सकुशल वापसी पर वह प्रसन्नचित्त हुई। उन्होंने शिवाजी को कोंडाना किले को जीतने का आदेश दिया। शिवाजी के सहयोगी तानाजी मालसुरे ने यह दायित्व अपने जिम्मे लिया। कोंडाणा जीता पर मालसुरे वीर गति को प्राप्त हुए। जीजाबाई ने तानाजी के गांव पहुंचकर सम्पूर्ण परिवार को सांत्वना दी। योग्य मुहुर्त निकालकर रायबा का विवाह इस ढंग से सम्पन्न किया मानो वह उनके ही घर का कार्य हो। 1671 ई- में शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। यहां की ठंडी जलवायु 70 वर्षीय जीजा बाई के लिए स्वास्थ्यकर नही थी। अतः उनके रहने की व्यवस्था नीचे पाचाड़ गांव में की गई। अब वे अपना पूरा समय भजन पूजन में लगाती।
7 जून 1674 को काशी के पंडित वैदिक विधि-विधान पूर्वक शिवाजी का राज्याभिषेक करवाया। जीजाबाई का सपना साकार हुआ। इस अवसर पर उपस्थित अंग्रेज वकील हेनरी अविजन्डेन ने दुभाषिए नारायण शेणबाई से जीजा माता को मिलने की इच्छा व्यक्त की। हेनरी जीजाबाई की ओर देखता रह गया। जीजा बाई की सादगी से वह काफी प्रभावित हुआ। उसने कहा यह तपस्विनी है, देवी है, इनको देखकर मेरा भारत आना सार्थक हुआ। इसी दिन जीजाबाई पाचाड आ गई। 17 जून 1674 को जीजा बाई की प्राण ज्योति अनंत में समा गई। सर्वत्र शोक की लहर फैल गई। जीजाबाई प्रभावी प्रतिवद्ध महिला थी जिसके लिए आत्मसम्मान व मानवीय मूल्य सर्वोपरि थे। वह दूरदर्शी वीर योद्धा कुशल प्रशासक थी। शिवाजी में कर्त्तव्य पालन साहस मुश्किल परिस्थितियों का सामना साहस के साथ करना मानवीय रिश्तों की अहमियत महिलाओं का मान सम्मान धार्मिक सहिष्णुता न्याय राष्ट्रप्रेम का भाव जीजा बाई ने ही सींचा और पल्लवित पुष्पित किया। वह शिवाजी की केवल माता ही नहीं बल्कि मित्र मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत थी। सचमुच वह उस सदी में महिला सशक्तीकरण की अग्रदूत थीं।

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