उन्हें नोबेल पुरस्कर से पुरस्कृत किया गया।
लेख गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’
विश्व प्रसिद्ध जीव रसायन शास्त्री, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एवं विज्ञान जगत में भारत का नाम देदीप्यमान करने वाले डॉ. हरगोविन्द खुराना का जन्म 9 जनवरी, सन् 1922 को पंजाब (भारत), जो अब पाकिस्तान में है, के गांव राजपुर में हुआ था। उनके पिता गणपतराय खुराना तत्कालीन ब्रिटिश शासन में एक क्लर्क थे। उनकी माता का नाम कृष्णादेवी था। हरगोविन्द अपने पांच भाई बहिनों में सबसे छोटे थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के विद्यालय में हुई। वे पढ़ने में बहुत तेज थे। वे जब 12 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई लिखाई का दायित्व संभाला। मिडिल क्लास में उन्हें पूरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। इससे उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली और उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए स्थानीय डी-ए-वी- हाईस्कूल में प्रवेश लिया। हाईस्कूल परीक्षा के परिणाम में उनका नाम मेरिट लिस्ट में था। इसके बाद वे डी.ए.वी. कालेज लाहौर में पढ़ाई की। वे सभी परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।
उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए हरगोविन्द इंग्लैंड के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय चले गए। सन् 1948 में उन्होंने वहीं पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वहां उन्होंने लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रो. राजर.जे.एस.बियर की देख रेख में अनुसंधान किया और डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। फिर वे ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) के फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रो.वी. प्रेलाग के साथ शोध कार्यो में लग गए। वहां से वे वर्ष 1951 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए, जहां उन्होंने अलेक्जेंडर टाड के साथ न्यूक्लिड एसिड पर शोध करना शुरू किया। वहीं पढ़ाने के बीच उनका परिचय एस्तेर एलिजाबेथ सिब्लर से हुआ, जिनसे उन्होंने वर्ष 1952 में विवाह कर लिया। 1952 में ही वे ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में कार्य करने के लिए कनाडा चले गए। वहां भी उन्होंने कई अनुसंधान कार्य किए। सन् 1960 में वे एंजाइम अनुसंधान के लिए विस्कान्सिन विश्वविद्यालय, अमेरिका चले गए और फिर वहीं बस गए। उन्होंने वहां की नागरिकता भी ले ली। वहीं पर उन्होंने कई अनुसंधान कार्य किए। सन् 1960 में वे एंजाइम अनुसंधान के लिए विस्कान्सिन विश्वविद्यालय, अमेरिका चले गए और फिर वहीं बस गए। उन्होंने वहां की नागरिकता भी ले ली। वहीं पर उन्होंने डी.एन.ए और आर.एन.ए को कृत्रिम तरीके से बनाने की विधि का आविष्कार किया इस उल्लेखनीय खोज के कारण ही आज अनेक पैतृक रोगों की चिकित्सा संभव हो सकी। उन्हें इस आविष्कार के लिए सन् 1968 में औषधि विज्ञान के नोबेल पुरस्कर से पुरस्कृत किया गया।
सन् 1969 में खुराना भारत वापस लौटे। भारत में उनका भव्य स्वागत किया गया। साथ ही भारत सरकार ने उन्हें पद्य विभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ ने उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि प्रदान किया। डॉ. हरगोविन्द खुराना ने भारत के नाम को विश्व में ऊपर उठाया है।
उन्होंने विश्व में पहले कृत्रिम जीन का निर्माण किया तथा अनुसंधान से जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी की प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया। उन्हें नोबल पुरस्कार के अतिरिक्त डैनी हैनिमैन पुरस्कार, लास्कर फेडरेशन पुरस्कार, लूसिया ग्रास हारबिट्ज, मर्क मैडल आदि पुरस्कार प्राप्त हुए।
दिनांक 9 नवंबर 2011 को इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया। वे कैंसर जैसे असाध्य रोग निवारण करने वाले चिकित्सकों के लिए आज भी प्रेरणास्रोत हैं। आशा है असाध्य रोगों का निदान शीघ्र प्राप्त हो सकेगा।