कविता गनेशी लाल शर्मा (लाल)
जाह्नवी जनवरी 2023 युवा विशेषांक
कोख से पुकारता है, कोमल कली का स्वर,
दे दे एक बार जन्म, भार न बनूंगी मैं।
प्यार औ दुलार पा के, ममता की छांव तले,
पढ़ लिख नाम तेरा, रोशन करुंगी मैं।।
जैसा जो भी देगी कभी, जिद न कदापि करुं,
मिलेगा जो प्रेम से ही, पेट को भरुंगी मैं।
हाथ मैं बटाँऊं, निपटाँऊं काम बड़ी हो के,
दुःख दुविधाएं, सारे संकट हरूँगी मैं।।
पाना आप चाहती क्यों, मुझसे निजात मात,
करने समाप्त मुझे, ठान लिया आपने।
घृणा पात्र हूं नहीं मैं, किया न कसूर कोई
फिर भी क्यों दोषी मुझे, मान लिया आपने।।
रखना चाहती चाहती हो, भाई की कलाई सूनी,
राखी पर्व का भी, अवसान किया आपने।
लज्जित भी हो रही है, कंस क्रूरता की कथा,
जल्लादों के हाथों, कन्यादान किया आपने।।
कहूँ बार-बार मेरी, सुन लें पुकार मात,
कामना की सरिता में, मुझे न बहाईये।
ममतामयी हो तुम, पुत्र कामना के लिए,
मैं अबोध बालिका हूं, मत ठुकराईये।।
कर दो प्रदान प्राण-धन मांगती हूं भीख,
मानवीय आंचल पे, दाग न लगाईये।
मातृत्व का कर निर्वाह, प्रेम से कुशल
त्याग मत भ्रात सम, मात अपनाईये।।
पुत्र लालसा में मत, पुत्रियों का त्याग कर,
एक बार दे दुलार, लाडली पुकारती।
एक बार खिलने दे, जीवन की कलिका को,
जन्म से ही पहले मेरी, भेंट क्यों चढ़ावती।।
हो जाये न घात मन, कर ले विचार मात
होगा सुप्रभात बनि, चावला दिखावती।
स्वार्थ भावना से उठि, कामना का त्याग कर
स्नेह-सर अंबु माहिं, कमल खिलावती।।
हृदय में संजोये मैंने, जीवन के स्वर्ण स्वप्न
उन्हें तेरी छाया मेें ही, पूरा कर पाऊंगी।
बनूँ स्वावलम्बी, नहीं आने दूं दहेज आडे़,
भावी पति चुनि हाथ, पीले भी कराऊँगी।।
मेंहदी रचवाँऊं औ, कराऊँ सोलहों शृंगार,
घर-अंगना से पिया, घर चली जाऊँगी।
मिल जावे मधु-प्रेम, का प्रसाद मात तेरा,
आनन्द के सागर में, डुबकी लगाऊँगी।।