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भारत विश्व गुरु बनने की
राह पर

लेख डॉ. उमेश प्रताप वत्स


मार्च, 2023 अंकनवसंवत विशेषांक

भारत अपनी सनातन संस्कृति के प्रभाव से पूरे विश्व को एक समरसता में बांधने जो चल पड़ा है,

उस जज्बे की शिद्दत को कोई रोक नहीं सकता।

जीयो और जीने दो का भाव ही विश्व में भारत की अलग पहचान बनाता है। भारत का दर्शन ही व्यक्ति को महान बनाता है तथा प्रकृति का आराधक व संरक्षक बनाता है। अपने भारत देश की सभ्यता संस्कृति की महत्ता बताते हुए हमने अनेक जनों को तरह-तरह के नीति वाक्यों के दृष्टांतों के साथ बोलते हुए सुना है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’, ‘परोपकाराय सतां विभूतयः’, ‘अतिथिदेवो भव’, ‘सत्यमेव जयते’ इत्यादि नीति वाक्यों के इन कथनों के माध्यम से वे यह जताने की कोशिश करते हैं कि हमारे समाज की मान्यताएं बहुत ही सम्मानीय रही हैं।
हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है। भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता का देश है। यद्यपि वर्तमान समय में विश्वभर में हर एक की जीवन-शैली आधुनिक हो रही है तथापि अधिकतर भारतीय लोग आज भी अपनी परंपरा और मूल्यों को बनाए हुए हैं। विभिन्न संस्कृति और परंपरा के लोगों के बीच की घनिष्ठता ने एक अनोखा देश ‘भारत’ बनाया है। हर भारतीय का ये कर्तव्य है कि वह अपनी भारतीय संस्कृति और उसके वैदिक ज्ञान का अंतरात्मा से अनुकरण करें जिससे कि इस संस्कृति का और प्रचार प्रसार हो ये बढ़ती रहे तथा तेजस्वी रूप धारण करे। यह संस्कृति ज्ञानमय है और युतियुक्त कर्म करने की प्रेरणा देने वाली संस्कृति है। ये वह संस्कृति है जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अनुकरणीय और लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण की अनुसरणीय शिक्षाओं की साक्षी है। राम का चरित्र भारत के कण-कण में विद्यमान है। भारतीय संस्कृति का अर्थ है, सर्वांगीण विकास, सबका विकास। भारतीय संस्कृति की आत्मा छुआछूत को नहीं मानती। यह प्रेमपूर्वक और विश्वासपूर्वक सबका आलिंगन करके सब में अपनत्व का भाव भरने वाली संस्कृति है।
इतिहास के पन्नों में हमारे देश भारत को विश्व गुरु कहा जाता है जिसका स्पष्ट अर्थ यह है कि विश्व को पढ़ाने वाला अथवा पूरी दुनिया का शिक्षक, क्योंकि भारत देश की प्राचीन अर्थव्यवस्था, राजनीति और यहां के लोगों का ज्ञान इतना समृद्ध था कि पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी देश हमारे भारत की संस्कृति का लोहा मानते थे। प्राचीन भारत में जीवन मूल्यों पर निरंतर अनुसंधान हुए। आयुर्वेद पर बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग किये गये। संगीत एवं नृत्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। भरत नाट्यम का विकास भी भारत में ही हुआ था। विभिन्न क्षेत्रें में अद्वितीय योगदान करने के कारण एवं विश्व को नूतन मार्ग दिखाने के फलस्वरूप भारत को विश्वगुरु कहा जाता है।
शास्त्रें के अनुसार संसार के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना जाता है जिसके सप्तट्टषि गण शिष्य थे। उसके बाद गुरुओं की परंपरा में भगवान दत्तात्रेय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। पूरी धरती पर भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो पूरे विश्व को एक परिवार की तरह मानता आया है। वसुधैव कुटुम्बकम एक भाव है, जिसमें पूरे समाज को यह बताया गया है कि पूरा विश्व एक परिवार है फिर चाहे हम भौतिक दृष्टि से देखें या आध्यात्मिक दृष्टि से देखे। दोनाें में ही यह स्पष्ट है कि दुनिया के किसी भी इंसान में कोई भेद नहीं है। जिस तरह से एक परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, ठीक इसी तरह विश्व के हम सभी बन्धुजन भी एक दूसरे पर निर्भर हैं। विश्व बंधुत्व का यही भाव भारत दर्शन में ही विश्व के दर्शन कराता है।
हमारा भी कर्तव्य है कि अपनी महान संस्कृति का अनुसरण करते हुए इस सृष्टि को अधिक सुंदर, अधिक सुखी अधिक समृद्ध करते हुए भारत मां को परम वैभव पर ले जाकर विश्वगुरु के सिंहासन पर आरूढ़ करें।
ये वह संस्कृति है जो अधिकार से ज्यादा कर्तव्य पालन पर बल देती है। भारत देश और यहां की संस्कृति अनेक धर्मो को और उनकी शिक्षाओं को न केवल अपने में संजोये हुए है अपितु इस देश ने या संस्कृति ने किसी भी धर्म को श्रेष्ठ या निम्न नहीं आंका। भारतीय संस्कृति यथार्थ के बहुआयामी पक्ष को स्वीकार करती है तथा दृष्टिकोणों, व्यवहारों, प्रथाओं एवं संस्थाओं की विविधता का अभिनंदन करती है। यह एकरूपता के विस्तार के लिए विविधता को स्वयं में समेटे हुए है।
भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य है-‘जीयो और जीने दो।’ भारत एवं भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भाव रखने वाली संस्कृति है। भारतीय संस्कृति ने न केवल भारत को अपितु समूची धरा को सदैव एक परिवार माना है जबकि अन्य देशों ने भारत को केवल बाजार माना है। विविधता, धार्मिक अतिवाद, असमानता और तानाशाही की समस्याएं व्यग्रतापूर्वक नए उत्तरों की प्रतीक्षा में हैं। भारतविद् बेशक तर्क देंगे कि उनके हल वेदों और महाभारत में छिपे हैं। ईसाई और मुस्लिम भी उनकी पवित्र पुस्तकों के विषय में ऐसा ही कहते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि भारत के पास अद्वितीय शक्तियां नहीं हैं। दरअसल इसके पास सार्वभौमिक दर्शन, स्वाभाविक सहिष्णु धर्म, बड़ा भू-भाग, युवा आबादी, लोकतंत्र और विविधता का ऐसा दुर्लभ संयोजन है जिसकी बराबरी कोई और देश नहीं कर सकता।
यद्यपि इस संस्कृति में रचे बसे लोग इतने उदार हैं कि हमने सदैव अन्य देशों की संस्कृतियों का दोनों बाहें फैलाकर स्वागत किया है। अनादि काल से भारतीय संस्कृति के महान अनुसंधानकर्ता ट्टषियों ने हजारों वर्षो की तपस्या, अनुसंधान के पश्चात इस संस्कृति को इतना समृद्ध कर दिया कि आज हम गर्व से कह सकते हैं कि हम महान संस्कृति के ध्वजवाहक, अनुगामी हैं। भारत की संस्कृति को विश्व कल्याण के लिए स्वीकार्य बनाने हेतु महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, महर्षि व्यास, बाल्मीकि, बुद्ध महावीर, शंकराचार्य, रामानुज, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नानक, कबीर, एवं महर्षि अरविन्द जैसी महान विभूतियां हुई जिन्होंने इस संस्कृति को आगे बढ़ाया और समृद्ध बनाया। वर्तमान में इस संस्कृति को समृद्ध करने का श्रेय डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार को जाता है जिन्होंने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए भारतीय लोगों को बताया कि ‘हिन्दू कोई जाति अथवा धर्म नहीं है अपितु भारत की लाखों वर्षो से समृद्ध संस्कृति की आत्मा, जीवन जीने का एक अनुपम ढंग है।’ डाक्टर साहब के अनुसार जीवन जीने के इसी ढंग को अपनाकर विश्व शांति संभव है। विश्वभर में केवल हिन्दुस्थान की संस्कृति ही ‘जीयो और जीने दो अथवा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करती है। इसी संस्कृति का अनुसरण करने वाला एक युवा संत सात समुद्र पार जाकर शिकागो की धर्मसभा में ‘अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों का प्रारंभिक उच्चारण करते ही उपस्थित जनसमुदाय को पांच मिनट तक तालियां बजाने पर विवश कर देता है, मंत्रमुग्ध कर देता है।
यह एक सामााजिक दर्शन है, जो एक आध्यात्मिक सोच से निकला है। एक बड़ा देश अपने साम्राज्य विस्तार की इच्छा पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है, वह आस-पास के छोटे देशों को मसलकर अपनी सीमाओं को फैलाने का प्रयास करता जा रहा है जो कि विश्वशांति के भाव को तहस-नहस कर रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि इन ताकतों को व्यर्थ गंवाने के बजाय उनका सही इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए कुछ सुझाव हैं।
भारत को एक नई शासन प्रणाली का आविष्कार करना चाहिए जो विविध आबादियों के प्रबंधन में विश्व को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाए। ऐसा स्थानीय स्वायतत्ता और राष्ट्रीय प्रभुत्व का मिश्रण उपलब्ध करवाकर किया जा सकता है। यह अन्य देशों के लिए उनकी विविधता में एकता के प्रबंधन को एक मॉडल हो सकता है।
धार्मिक कट्टरता नियंत्रित करने में भारत रोल मॉडल बन सकता है। भारत में वर्तमान सरकार ने इस क्षेत्र में काफी सराहनीय कदम उठाए हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों से ताकत के बल पर हमेशा के लिए छुटकारा पाना या उन पर शासन करना संभव नहीं। भारत को अपने अल्पसंख्यकों को देशभक्ति के माध्यम से मुख्यधारा में जोड़ना चाहिए ताकि वे हमारे राष्ट्र के पुनर्निर्माण में सच्चे भागीदार बनें।
विश्व भर में लोग तानाशाह सरकारों के अधीन पीड़ित हैं। भारत उन्हें आगे बढ़ने की राह दिखा सकता है। इसके पास दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रें में से एक है, परन्तु हमारी जनता की सहभागिता मतदान तक ही सीमित है। भारत अपनी संस्थाओं का विकेन्द्रीकरण कर भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र का एक मजबूत मॉडल बना सकता है। निःसंदेह ये समस्याएं बहुत बड़ी हैं। आखिरकार विश्व गुरु बनना कोई आसान उपलब्धि नहीं।
भारत सदा ही विश्वगुरु रहा है जिसका केन्द्र बिन्दु आध्यात्म रहा है। अध्ययन, आराध्य और अध्यात्म का समायोजन भारत को फिर से विश्व का सिरमौर बना सकता है। भारत की सनातन संस्कृति हजारों साल पुरातन है जब विश्व की आज की तथाकथित सभ्यताओं का आगाज भी नहीं हुआ था। समाज में बढ़ती राजनैतिक और धार्मिक विषमताओं और इतिहास में रचित विसंगतियों ने भारत की उन महान संस्कृति को पिछले सालों में कुछ हद तक विश्व के मानसपटल में विस्मृत कर दिया था। भारत का भौगोलिक वातावरण भी देश को अनेकानेक भीतरी और बाहरी समस्याओं से जूझने को मजबूत करता रहा है।
पाकिस्तान की समस्या, चीन की हरकतें, कश्मीरी घुसपैठ की चुनौती, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, इन सभी कारणों से देश विश्वपटल पर एक बार हाशिए पर चला गया था। लेकिन पिछले कई वर्षो में भारत में जो एक के एक बाद राजनैतिक बदलाव हुए हैं और दृढ़ संकल्प के साथ पिछले सालों में जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं जैसे कि कश्मीर से धारा 370 हटना, कश्मीरी पंडितों का कश्मीर वापस लौटना, नागरिकता बिल संशोधन अधिनियम, समान आचार संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून, यह कुछ ऐसी अहम बातें हैं जो राष्ट्र को विश्व के मानसपटल पर एक उच्च स्थान दिलाने में काफी सफल हो रही हैं। वर्तमान राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य में हमारी विरासत की संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहरों के पुनरुद्धार के लिए उठाए गए कदम सचमुच सराहनीय हैं।
कुछ वर्ष पहले तक आलम यह था कि देश में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निजी स्वार्थो के चलते अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी किन्तु देश की राजनीति में एक ऐसा बदलाव हुआ कि देश की दिशा ही बदल गई। पिछली सत्ताओं में वर्षो से चली आ रही कुत्सित राजनीति और ओछी मानसिकता ने देश को खोखला करके रख दिया था। अब काफी हद बदलाव हुए हैं। आने वाले वर्षो में देश विदेशी गुलामी की मानसिकता से सही मायने में स्वतंत्र होकर एक नये आयाम के साथ विश्व को एक नई दिशा देने की पूरी तैयारी करने में जुटा है।
इसी तरह लेखन के क्षेत्र में भी देश ने काफी प्रगति की है। पुराने ध्वस्त विश्वविद्यालयों की लेखनियों को फिर से संजोया जा रहा है जिससे आने वाली पीढ़ी शैक्षिक लाभ उठा सके और भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, स्थापत्य कला, विज्ञान, संस्कृति आदि को अपनाकार विश्व का मानसिक और बौद्धिक स्तर का कद ऊंचा उठ सके।
आर्थिक स्तर पर भारत ने पिछले सालों में द्रुत गति से विस्तार की राह पकड़ ली है। कोरोना के कहर ने राष्ट्र की अर्थ प्रगति को धीमा जरूर किया है पर इस अवरोध से तो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था अस्त व्यस्त हुई है। पर पिछले पांच छः सालों के आर्थिक पहलुओं को अगर देखें तो भारत ने इलेक्ट्रानिक्स, दूरसंचार, इंटरनेट, यातायात आदि क्षेत्रें में काफी लंबा और सफल सफर तय किया है। जिसके आने वाले प्रभाव काफी असरदार और दूरगामी सिद्ध होने वाले हैं, इस बात पर शक की कोई गुंजाइश नहीं।
डिजिटल इंडिया का सपना भी बड़े पैमाने पर पूरा हुआ है और एक लंबा रास्ता तय करने की प्रक्रिया जारी है। भारत में व्यवसाय और रोजमर्रा के लेन-देनों में लोगों का रूझान डिजिटल माध्यम की ओर अधिक हो गया है जो देश को एक त्वरित आर्थिक व्यवस्था की ओर ले जाता है। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले इस विशाल भारत में यह सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है। हजारों साल पुरानी योग विद्या को विश्व में पुनः स्थापित कर और स्वीकृति दिलाकर भारत ने सन् 2015 में ही विश्वगुरु बनने की आधारशिला रख दी थी।
आज अमेरिका ने स्वीकार किया कि तुलसी और पीपल सर्वोत्तम है। चीन ने मान लिया कि दाह संस्कार ही सर्वोत्तम विधि है। इजराइल ने माना कि हवन और यज्ञ से विषाणु दूर होते हैं। फ्रांस ने माना कि शंख ध्वनि बहुत लाभदायक है।
संपूर्ण विश्व ने माना कि नमस्ते सर्वोत्तम है। यह सब इस बात का परिचायक है कि भारत अपनी सनातन संस्कृति के प्रभाव से पूरे विश्व को एक समरसता में बांधने जो चल पड़ा है, उस जज्बे की शिद्दत को कोई रोक नहीं सकता। भारत की वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी ने जैसे कई नवोदित और प्रखर चेहरों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया है, उससे भारत सरकार की राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर की जाने वाली अवधारणाओं में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की पूर्ण संभावना है जिससे भारत की छवि में आने वाले दिनों में अभूतपूर्व सुधार होगा और यह भारत के विश्वगुरु बनने की राह में एक मील का पत्थर साबित होगा। वसुधैव कुटुम्बकम सोचने का एक तरीका है, जो बताता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है। जो इस सोच को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है कि संपूर्ण मानव जाति एक परिवार है। जिसमें कहा गया है कि पूरी मानव जाति एक जीवन ऊर्जा से बनी है। यदि परमात्मा एक है तो हम अलग कैसे हो सकते हैं? हम सबको बनाने वाला परमात्मा ही है और वह एक है। इस तरह हम सब भी एक ही परिवार के सदस्य हैं फिर चाहे हम भारतीय हो या अमेरिकन। चाहे एशिया से हो या यूरोप से। वसुधैव कुटुम्बकम एक संस्कृत अभिव्यक्ति है, जिसका अर्थ है कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है।
वर्तमान में मानव जाति विशाल सामाजिक और पारिस्थितिक कठिनाइयों का सामना कर रही है। इस समय हम न केवल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, अपितु साथ में एक ऐसी लड़ाई भी चल रही है जहां इंसान की पहचान मानवता भी दांव पर लगी है। ऐसे में भारत दर्शन ही विश्व के लिए अनुकरणीय है।

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