लेख नीलम गोयल
जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक
पुस्तकों की महत्ता किसी से छुपी नहीं है। भावी पीढ़ी को, बच्चाें और वृद्धों के लिए देश में अधिक से अधिक पुस्तकालयों का निर्माण होना चाहिए।
पश्चिम में अनेक दिवस मनाएं जाते हैं जैसे मदर्रस डे, फादर्रस डे, फ्रैंडशिप डे भारत में भी अब इनका प्रचलन बढ़ता जा रहा है। व्हाट्सएप इत्यादि पर इसकी धूम रहती है। परन्तु 12 अगस्त को लाईब्रेरी डे यहां मनाया नहीं जाता। अधिकांश लोगाें को तो इसका पता ही नहीं है। विदेशों में पुस्तकालयों पर अत्यधिक धन खर्च किया जाता है। परन्तु भारत में पुस्तकालयों पर खर्च न के बराबर है। दूर-दूर तक पुस्तकालय नजर ही नहीं आते। इक्का दुक्का कोई नजर भी आता है तो उसकी दशा अत्यधिक शोचनीय है।
पुस्तकों की महत्ता किसी से छुपी नहीं है। फिर भारत के पास तो हिन्दी संस्कृत का विशाल साहित्य है। बच्चे यदि इन्हें पढ़ेंगे तो अपनी संस्कृति और जमीन से जुड़ सकेंगे। टी-वी- सीरियलों से अधकचरी ज्ञान उन्हें नहीं मिलेगा।
कई स्कूलों में लाईब्रेरी है भी तो बच्चों के लिए अच्छी लाईब्रेरियन नहीं है। बच्चे समझ ही नहीं पाते कौन सी किताबें लें। लाईब्रेरियन के पद हमेशा खाली रहते हैं। अभी एक सर्वे के अनुसार केवल मुम्बई में लाइब्रेरियन के 1000 पद खाली थे। परिणाम स्वरूप बच्चे टी-वी- या मोबाइल से चिपके रहते हैं और युवा ‘यू टयूब’ से।
प्रतियोगिता परीक्षा देने वाले छात्रें और शोधार्थियों को तो पुस्तकालयों की और जरूरत है।
हमारा बुजुर्ग समाज जो कि बचपन से टी-वी- और मोबाइल से इतना जुड़ा नहीं होता वह भी पुस्तकालय को बहुत मिस करता है। कोई ऐसी जगह होनी चाहिए जहां घंटा-2-घंटा अपने पसंद के अखबार, मैंगजीनस, किताबें पढ़ सकें, घर के लिए ला सकें। बच्चे अपनी रूचि के अनुसार किताबें घर ला सके, मैगजीन के मजे ले सकें। जैसे हम बचपन में लेते थे चन्दा मामा, नंदन, जाह्नवी, सरिता, मुक्ता, गृहशोभा आदि कितनी ही पत्रिकाएं, एक व्यक्ति खरीद नहीं सकता पर पुस्तकालय में सबका आनन्द ले सकता है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद अनेक प्रयास हुए अनेक ट्रस्ट बने, 1948 में ‘मद्रास पब्लिक लाईब्रेरी’ अधिनियम पारित किया गया। 2014 में ‘नेशनल मिशन ऑन लाईब्रेरी’ का शुभारंभ हुआ। परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के सार्वजनिक पुस्तकालयों की भी हालत बदतर है। पुस्तकें ज्ञान ही नहीं देती, हमारे मन का अवसाद भी दूर करती है। नेशनल बुक ट्रस्ट ने कोविड अस्पतालों में कुछ पुस्तकालय बनाये थे। जिसका बहुत सकारात्मक प्रभाव मिला।
अन्त में बस यही कि कई पत्रिकायें व बहुमूल्य किताबें जो रद्दी में बिक जाती हैं यह भी पुस्तकालयों में जमा हो सकती हैं। भावी पीढ़ी को भटकने से बचाने, बच्चाें और वृद्धों को सुख देने के लिए। हमारे देश में अधिक से अधिक पुस्तकालयों का निर्माण होना चाहिए। बुद्धिजीवी वर्ग को इस बारे में सोचना चाहिए।
जो व्यक्ति आर्थिक रूप से सम्पन्न हो वे धन से इसमें सहायता करें तथा सरकारें विश्ेाष रूप से इस पर सोचे। भावी बच्चे सब पैदल जाकर अपनी मनपसंद पुस्तकें पाकर देश को और अधिक उन्नत कर सकें।