साक्षात्कार
जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक
महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय (हि.प्र.) के कुलपति
डा. नन्द किशोर जी गर्ग से अन्तरंग वार्त्ता
डा. नन्द किशोर गर्ग महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश के कुलपति हैं। महाराजा अग्रसेन इन्स्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के चेयरमैन हैं। शिक्षा के क्षेत्र में गत 2-3 दशकों से जुड़े हैं। दिल्ली के स्कूल विद्यालयों विशेष रूप से सर्वोदय विद्यालय, आदर्श विद्यालयों के संदर्भ में इनका योगदान सराहनीय रहा है।
राजनीति में भी दिल्ली भाजपा के शीर्ष नेताओं में रहे हैं। विधायक भी रहे हैं। कई अस्पतालों की व्यवस्था में भी उनका सराहनीय योगदान है। मूलतः वह एक विचारक हैं जो समाज की नब्ज को पहचानते हैं और समाज के हित में होने वाले हर कार्य में सहयोग देते हैं।
प्रश्न: भारत में लोकतंत्र की दशा और दिशा क्या है? वह जनकल्याणकारी कैसे बने क्या-क्या सुधार किए जाएं?
उत्तर: लोकतंत्र जो मॉडल है व्यवस्था को चलाने के लिए, वह है ही लोकहितकारी। लोगों के लिए जो सरकार है लोगों को अच्छा जीवन देने के लिए इसकी अवधारणा यही है। हम गत 75 वर्ष से पहले 50 वर्ष तो हम एक्सीपेरीमेंट ही करते रहे कि हम रशियन मॉडल की वेलफैयर स्टेट बनाएं।
और हम 90-92 से सीधे ही अमेरिकन मॉडल पर आ गए। परन्तु भारतीय मॉडल पर सोचने के लिए किसी ने ध्यान नहीं दिया। जिसको दीनदयाल उपाध्याय जी ने अन्तोदय के माध्यम से हमारे सामने रखा था। लेाकतंत्र सब से अच्छी व्यवस्था है परन्तु इस में जो खामियां है वह भी जगजाहिर हैं। अमेरिका, यूरोप में या ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत रहे राज्यों में लोकतंत्र है। बाकी तो अधिकांश में एक पार्टी शासन है जैसे चीन है, रशिया है या फिर इस्लामिक कट्टरपंथियों में शेख और राजाओं के शासन हैं। उन्होंने अपने-अपने ढंग से कोशिश की है। भारत का ही उदाहरण लें तो भारत जब आजाद हुआ तो पाकिस्तान बना और फिर उसके दो टुकड़े बन कर बंगलादेश बना।
लोकतंत्र भारत में 75 वर्ष से ठीक चल रहा है। बंगला देश में भी पिछले 25-30 साल से ठीक चल रहा है पर पाकिस्तान में एक दिन भी सही ढंग से लोकतंत्र नहीं चला। लोकतंत्र का जो घोषित उद्देश्य है, भारत ने उसको प्राप्त करने की कोशिश की। सबको रोटी, कपड़ा, मकान आदि बुनियादी जरूरतें मिले। 1971 में गरीबी हटे आदि नारे इंदिरा जी ने दिए और लुभाने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दो, राजाओं के प्रिवी पर्स बंद कर दो, इस प्रकार कुछ समय के लिए लोगों को भ्रम में डाल कर रखा। परन्तु बाद में उदारीकरण के नाम पर उलटा क्रम शुरू कर दिया गया जिसके कारण से पूंजीवाद और फन्डेमेटंलिज्म आ गए।
मोदी जी ने 2014 के बाद इसमें संशोधन कर दिया। उससे पहले राज्य सरकार में भी गुजरात के अंदर यह दिखा दिया कि परिवर्तन किए जा सकते हैं। पूर्व शासक गांधी जी का नाम लेते रहे। परन्तु स्वच्छता पर ध्यान नहीं दिया। गांधी जी चाहते थे गोरक्षा परन्तु हमने कृषि व्यवस्था जो गो आधारित थी उस को हमने मशीन आधारित कर दिया। इसी ढंग से वह शराब बंदी की बात करते थे कहते थे कि मुझे एक दिन भी शासन मिलेगा तो मैं पहले यह काम करूंगा।
वही काम जो असंभव लगते थे 2014 से मोदी जी ने किए। आज पिछले 8-9 साल में दस करोड़ शौचालय बन गए। और कह दिया कि शौचालय और शिवालय में प्राथमिकता शौचालय को दी जाय। स्वच्छता की दृष्टि से भारत में जो 2014 से पहले की स्थिति थी वह आज नहीं है।
मकान सबको मिले लेकिन केवल चार दीवारी खड़ी करने के और लाख 2 लाख दे दे और उसे इंदिरा गांधी आवास योजना कह दें, पर्याप्त नहीं माना। मोदी जी का संकल्प था कि मकान का अर्थ है उसमें बिजली हो, पानी हो, पानी के निष्कासन की व्यवस्था हो, गैस हो आदि सुविधाओं के साथ मकान देंगे और लगभग 5 करोड़ लोगों को मकान दे देना, यह बड़ा लक्ष्य पूरा किया।
देश में लगभग 20-22 करोड़ परिवार हैं जिन्हें मकान देने का लक्ष्य 2025 तक का है। गांव में काम बड़ी तेजी से चल रहा है। परन्तु शहरों में क्योंकि स्लम बढ़ते जा रहे हैं। उतना तेजी से नहीं बढ़ रहा है। हर घर में नल हो जाए अभी दस करोड़ घरों तक नल पहुंचा है।
लोकतंत्र शासन की सब से बड़ी कमजोरी है कि इस में सब का हस्तक्षेप है, मीडिया का, जुडिशरी का एग्जयूटिव समूह जो ढीला ढाला है, और करप्ट है फिर राजनीतिक जगत में हर वर्ष चुनाव होते हैं। फिर कभी दो राज्यों के और कभी पांच कभी दस के और चुनाव के कारण कोई भी निर्णय लम्बी अवधि के विकास के नहीं लिए जा सकते। मोदी जी बार-बार कहते हैं एक राष्ट्र एक चुनाव पर उसे लागू कैसे करें। बार-बार चुनाव होने से एक दो महीने सब काम ठप्प हो जाते हैं और ध्यान चुनाव पर ही होता है।
अभी से 2 मास से सारा मीडिया 2024 के चुनाव के बारे में चर्चा कर रहा है। आप विकास पर बात करो, ज्यादा से ज्यादा निवेश हो, हर हाथ को काम मिले, उस के ऊपर बात न करके हर समय केवल हार जीत पर लगे रहना यह देश का दुर्भाग्य है। उसके बावजूद रास्ते निकल रहे हैं।
लोकतंत्र का कोई विकल्प नहीं है। 2000 साल पूर्व प्लेटो ने भी कहा था कि डेमोक्रेसी इज दी वर्स्ट फार्म आफ मैन्ट बट इल हैज नो स्वसीटयूटर।
भारत का लोकतंत्र आज उस काल में आ गया है जिसको हम अमृतकाल कह रहे हैं। इस साल नौ राज्यों के चुनाव हैं उसके बाद फिर 2024 के चुनाव आएंगे। लेकिन मोदी जी बात कर रहे हैं 2047 की। ऊंचे सपने देख रहे हैं और दिखा रहे हैं। और उसको पूरा करने के लिए बड़े संकल्प ले रहे हैं। किसी ने सोचा ही नहीं था कि दिल्ली मुम्बई का नया हाइवे बन कर 2023 में चालू हो जाएंगे और 24 घंटे का रास्ता 12 घंटे में तय होगा। चार घंटे में अमृतसर पहुंच जाएंगे, दो घंटे में देहरादून पहुंचेगे, यह कितना समय बचेगा।
आज वाहनों की संख्या बढ़ रही है। यह स्कूटर, मोटर साईकल आज कितने बन रहे हैं। हमारे जमाने में दस हजार कारें बनती थी देशभर में और बीस हजार टू व्हीलर थे। आज लगभग दो करोड़ बन रही हैं। अब उन सब को तेल मिले और जब सब को तेल मिलेगा तो पर्यावरण खराब होगा। उसके बावजूद यूक्रेन रूस युद्ध के बावजूद सब को सब चीजें सुलभ हैंं। पाकिस्तान में जो रेट है उससे हमारे 50 प्रतिशत रेट कम है, आटा 150 रु- किलो पाकिस्तान में बिका, जबकि वहां धरती अधिक उपजाऊ है मेरा परिवार तो वहीं से आया है।
हम लोकतंत्र में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। मोदी जी ने सिद्ध कर दिया है कि लोकतंत्र की पूरी मर्यादाओं को मानते हुए लोगों की जन भागीदारी से, लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ा जा सकता है। उसके मॉडल भी हैं। सब का विकास हो तो सब का ही विकास हो। घर मिल रहा है तो सब को ही मिल रहा है। किसी जाति का या धर्म का विचार नहीं है। इसके बावजूद समाज में ध्रुवीकरण करने के लिए कहीं राम चरित मानस को गाली ध्यान भटकाने की कोशिश होती है लेकिन इसके बावजूद देश आगे बढ़ रहा है। लोगों का विश्वास मोदी जी के प्रति है।
लोकतंत्र की दृष्टि से भारत विश्व का सबसे बड़ा देश है। पूरे विश्व ने स्वीकार किया है कि भारत का तिरंगा लेकर यूक्रेन में भारत के बच्चे निकले तो रूस ने युद्ध रोक दिया। यह कितनी बड़ी बात है कि हम सब को गेहूं दे रहे हैं। अफगानिस्तान समेत। और पाकिस्तान को शर्म आ रही है। पाकिस्तान भी मांगेगा तो देंगे, क्योंकि हम उदार दिल वाले हैं परन्तु देश की सुरक्षा के लिए गणतंत्र दिवस पर जो हथियार प्रदर्शित किए गए वह भारत द्वारा बने हुए हैं, स्वदेशी निर्मित ही हथियार हैं।
भारत की फौजों को जिनको कभी बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं मिलती थी आज सब हथियार अपने देश में बन रहे हैं। पनडुब्बी हम बना रहे हैं। आई एन एस विक्रान्त हम बना रहे हैं। आज कोई ऐसी चीज नहीं जो भारत बनाने में समर्थ न हो। भारत की मिसाइल, भारत का स्पेस प्रोग्राम सब भारत में बन रहा है।
आबादी में आज चीन को हम सरपास कर रहे हैं। यह हमारे लिए थोड़ी समस्या भी है। पर इसके फायदे भी हैं। डेमोग्राफिक नुकसान भी हो सकता है जिस कारण से भारत विभाजित हुआ था वह खतरे भी हैं। परन्तु देश जाग रहा है और जागना चाहिए। लोकतंत्र भारत की नसों में है।
राजाओं के समय भी भारत में लोकतंत्र था। जनता की बात सुनी जाती थी। धोबी के कहने से मां जानकी का त्याग किया गया। भगवान राम ने सब मर्यादाओं का पालन किया। हमारे चन्द्रगुप्त और चाणक्य के जमाने में भी लोकतंत्र मजबूत था। हमारे यहां राजतंत्र और लोकतंत्र का स्वरूप मिला जुला था। आज भी हम यह मान कर चलते हैं कि भारत का लोकतंत्र विश्व का सर्वश्रेष्ठ लोकतंत्र है। इस के माध्यम से जनकल्याण की सभी आवश्यक चीजें पूरी हो गई। 80-85 करोड़ लोगों की मुफ्रत भोजन मिला है आज 50 करोड़ लोगों को मुफ्रत इलाज है।
आदमी की मूलभूत आवश्यकताएं हैं रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ, शिक्षा, सड़कें, परिवहन की व्यवस्थाएं आगामी वर्ष भी मिलेगा। गंगा से लेकर गोहाटी तक वाया बंगला देश हमारा एक छोटा जहाज भी चलने लगा है। हमारी वाटरवेज विकसित हो गए हैं। ढाई लाख गांव में हमारी संचार सेवाएं जैसे 4 जी, 5 जी आदि विकसित हो रही हैं। 98 के अंदर 16 रु- प्रति मिनट का खर्चा टेलीफोन में आता था आज यह पैसों में आता है। वह विकास कर रहा है। क्षमताएं और ज्यादा हैं। भारत अपने ऊपर विश्वास करने लग गया है। शिक्षा पद्धति का जो परिवर्तन है उसको तेजी से तीन चार साल में पूरी तरह लागू कर सकें, उससे हमारा आत्मविश्वास आत्म गौरव बढ़ेगा। आर्थिक शक्ति के साथ हमारी सेनाओं का मनोबल बढ़ रहा है। लोगों का आत्म बल बढ़ रहा है।
हमारे देशवासी विश्व के जिन 80-85 देशों में रहते हैं। वहां लोग हमारे प्रति एक अच्छा भाव रखते हैं। कि हमारे लोग जहां है वहां भारत के प्रति भी अपना संबंध रखते हुए उस देश के प्रति पूरी निष्ठा रखते हैं अभी ब्रिटिश का प्रधानमंत्री भी भारत मूल का बन गया है। इसी प्रकार गुआना, जमैइका, त्रिनिदाद आदि 15 देश हैं जहां हमारे भारतीय अच्छे पदों पर हैं। अमेरिका में भी कुल टैक्स का आठ प्रतिशत भारतीय देते हैं। भारतीय न वहां अपनी निष्ठा, अपनी प्रतिभा और मेहनत को सिद्ध किया है।
उस प्रतिभा का उपयोग हम भारत में नहीं कर पा रहे हैं हम आने वाले पांच सात साल में उस प्रतिभा का हमने तेजी से उपयोग करना है और एक आदर्श लोकतंत्र कैसा हो, यह विश्व को दिखाना है।
लोकतंत्र के माध्यम से विश्व में शांति हो, क्योंकि वसुधा पर रहने वाले हर प्राणी को, पेड़ पौधे में भी हम भगवान का रूप देखते हैं। इसलिए पर्यावरण की जो नई समस्याएं हैं उनका समाधान भी भारत की सोच में है। सोलर एलाएंस बनाकर हमने विकल्प दिए हैं और सूर्य भगवान की कृपा से बिजली बनेगी। हवा से बिजली बनेगी और हमारे वेदों पुराणों में जो ज्ञान था उसका उपयोग हम अपने लिए भी करेंगे और विश्व को भी उसका लाभ देंगे। पूरे विश्व को यदि हम सही सन्देश दे सकेंगे तो हमारे माध्यम से विश्व में शांति हो। विश्व का कल्याण हो।
लोकतंत्र को कोई विकल्प नहीं है। क्योंकि हमारा देश बहुत ही रंग बिरंगा है अलग-अलग जातियां भाषाएं होते हुए भी हम सब भारतवासी हैं। हमारा लक्ष्य भारत मां की सेवा है। वह श्रद्धा भाव में होना चाहिए और मां के लिए सब समान हैं। समान हैं तो हम सब भाई हैं। उसी भाव के लिए मोदी जी काम कर रहे हैं और हमारा मूल संगठन रा-स्व-संघ जो अब शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है उसके विचार की स्वीकृति तेजी से पूरे विश्व की ओर फैलेगी। विश्व एक दूसरे के साथ सद्भाव रखते हुए एक दूसरे का मुकाबला की भावना के साथ आगे बढ़ेगा। यह भावना हमारी संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म में हैं। मोदी जी उसके प्रतीक रूप में है। हम उनके प्रति पूरा विश्वास लेकर बढ़ेंगे तो भारत निश्चित रूप से वह स्थान प्राप्त करेगा जिसका वह हकदार है।
प्रश्न: आपने जो बताया उसका सार तो यही है कि योग्य नेतृत्व से लोकतंत्र सफल होता है। लेकिन आज तो जो चुन कर आते हैं। उसमें एक बड़ी संख्या अपराधी वृत्ति के लोगों की है। उनमें कुछ तो रेप, हत्या और फिरौती में अपराधी है। क्या सुधार किए जाएं जिससे अपराधी वृति वाले न चुन कर आ सकें। अच्छा नेतृत्व बना रहे।
उत्तर: गणतंत्र में सबसे कठिन काम है सही चुनाव करना है। देश अभी बिखराव में भी है। मीडिया अपराध की अवधारणा भी गलत बना देता है। मैंने स्वयं जीवन में सात बार चुनाव लड़ कर देखा है। मीडिया यह अवधारणा बना देता है कि छोटे मोटे केस राजनीतिक व्यक्ति पर बनते रहेंगे। अपराधिक केस तो 20 पर भी नहीं गिना सकता। लेकिन मीडिया में जो तथाकथित रिर्पोटर हैं वह इस धारणा को बनाते हैं।
जातिवाद है उसके कारण कुछ रिजर्व सीटें हैं उनका स्तर, शिक्षा कम हो सकती है। हरियाणा में तय हुआ था कि पंचायत का प्रत्याशी कम से कम मिडिल पास हो तो धीरे-धीरे सभी सरपंच पढ़े लिखे आ गए। अगली पीढ़ी में हमारी महिलाएं ज्यादा आएंगी। आने वाले एक दो साल में एक तिहाई महिलाएं आएंगी। शुरू में लगता है कि महिलाएं पुरुषों के पीछे चलती है परन्तु यह भी बात रिसर्च में आई है कि जहां-जहां महिलाएं आगे आई है वहां भ्रष्टाचार कम हुआ है। एक दो बार बढ़ती हुई नजर आ सकती हैं लेकिन भ्रष्टाचार अपराध की बात करना यह सच्चाई होते हुए भी पूरा सच नहीं है भ्रष्टाचार कहां नहीं है।
चुनाव के अन्दर प्रलोभन की आदत डालना। नोट बांटना, 6 सौ रु-में वोट खरीदने तक की बात, कर्नाटक में सामने आई, दक्षिण भारत में सब से ज्यादा नकद नोट बंटता है परन्तु दक्षिण भारत की डेनोक्रेसी उत्तर भारत से कई मायनों में अच्छी है। आंध्र में, तेलगांना, तमिलनाडू में चुनाव बहुत महंगे हैं लेकिन वहां आया राम, गया राम तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। बिहार में जातिवाद और गुंडागर्दी बहुत ज्यादा थी लेकिन टी-एन- शेषन के चुनाव सुधारों के कारण बूथ लूटने वाली चीजें बंद हो गई हैं।
चुनाव सुधार हो रहे है। एक बार चुनाव हो पूरे देश में एक वोटर लिस्ट हो। उससे 7-8 करोड़ तो फालतू का वोटर है वह हटेगा। फिर घर बैठ कर वोटिंग हो, इसकी तैयारी चल रही हैं। यदि एलोकट्रोनिक माध्यम से करोड़ों रु- का कारोबार विश्व में हो सकता है तो वोट के लिए क्यों नहीं व्यवस्था हो सकती है। उसके लिए उचित सावधानियां बरती जाय। यदि वोंटिग मशीन व्यवस्था के कारण पंजाब सरकार बनी, हिमाचल में सरकार बनी। इसका मतलब वोटिंग मशीन से चुनाव ठीक हो सकते हैं। सभी राजनीतिक दलों को तय कर लेना चाहिए कि इतनी व्यवस्था ही कर लें कि हर साल चुनाव न होकर दूसरे साल हों। दो-दो चार महीने बढ़ा कर ऐसी व्यवस्था बना दी जाय।
भारत की न्याय व्यवस्था भी दादागिरि दिखा रही है। 28-30 लोग उच्चतम न्यायालय में जज हैं अब उन्हीं के बेटे उन्हीं के रिश्तेदार आएंगे आधे से ज्यादा। और फिर उनका कहना कि हम ही चुनाव करेंगे जबकि उनके ऊपर कोई जवाबदारी नहीं है। तो यह सब अड़चनें हैं।
इसी खींचतान में से रास्ते निकलेंगे। समय लगता है। लोकतंत्र बहुत धीरे चलता है। लोकतंत्र सब से धीरे चलने वाली गाड़ी है। समय लगेगा एक हजार साल गुलाम रहे तो यह सब समय के साथ बीता है। 75 साल से अभी आजाद हुए हैं, 25 साल और लगेंगे। हम ध्यान रखें कि हमारा चरित्र बना रहे, देश के प्रति प्रेम बना रहे। उसके लिए अध्यात्म का सहारा लेना ही पड़ेगा, धर्म कहने से लोगों को चिढ़ होगी। हमारी जो सनातन परंपरा है उस पर ध्यान दें। पैसे के बजाय चरित्र पर अधिक ध्यान दें। तो सब ठीक हो जाएगा। निराशा की जो बातें हैं उन में से ही मार्ग निकलेगा। मोदी जी पर विश्वास था। अब योगी जी ने दिखा दिया। हेमन्त विश्व सरमा ने दिखा दिया। नवीन पटनायक अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने प्रदेश को भुखमरी से निकाल दिया। छत्तीसगढ़ पर कुछ चीजें अच्छी हो रही हैं जैसे गाय का गोबर खरीदने की बात है। किसान को मजबूत किया है। मोदी जी ने दो लाख करोड़ की फर्टीलाइजर खरीदी है परन्तु यदि गाय के ऊपर ज्यादा जोर दें और कृषि में बैल का उपयोग फिर से शुरू हो जाए तो यह यान्त्रिकता से पर्यावरण बचेगा और छूटा पशु की जो समस्या है उस पर समाधान निकलेगा। इनके सहारे कभी कृषि चलती थी। आज वह उपयोग नहीं आ रहा तो इससे एनर्जी उत्पादित हो सकती है। विकल्प खोज सकते हैं। उस को फैंके कहां? उसका उपयोग करना ही पड़ेगा।
आज सभी सोसाइटियां सोच रही हैं, नेता भी सोच रहे हैं कि सब को देश के लिए समर्पित होना ही पड़ेगा, काम करना ही पड़ेगा। काम हो रहे हैं। अब सभी पार्टियां परस्पर स्पर्धा भी करेंगी कि मेरे राज्य के अधिक काम हो। तो फिर सही लोग ही चुने जाएंगे।
बीच में अगर कोई गलत आदमी चुना जाता है तो फिर उस पर मुकदमा होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय जो फालतू के मुकदमों में लगा रहता है उसे इस काम को प्राथमिकता देनी चाहिए। हिजाब पहना जाय या नहीं, ऐसी मुकदमों की बजाय जो तीन साल पहले कहा था कि इन भ्रष्ट विधायकों को फास्ट ट्रैक में डालकर निपटारा होना चाहिए। क्यों नहीं कर रहे। चुने हुए लोग तो स्वयं अपने ऊपर फैसला नहीं कर सकते। बहुत चीजों पर सुधार की जरूरत है। न्याय व्यवस्था चाहिये सता में ज्यादा सुधार चाहिये। उसके खिलाफ बोलने में लोग डरते हैं। ज्यूडिशयरी अपना काम ज्यादा न करके मीडिया में ज्यादा आएं। ज्यादा उदार बनाने के चक्कर में, आधुनिक बनने के चक्कर में ज्यादा समय इन सब चीजों में लगा रहे हैं। मैं लॉ का विद्यार्थी होते हुए यह कह रहा हूं, समझते हुए कि नहीं कहना चाहिए। लेकिन कुछ लोगों को बोलना पड़ेगा। सारी गालियां तो राजनीति के लोग खाएं और उनकी उसमें कोई सुनाई न हो। चुना हुआ आदमी तो हर पांच साल में वोट मांग कर जीत कर आएगा। यह कैसे आ रहे हैं। इसलिए मीडिया के माध्यम से जागरूक किया जाना चाहिए कि सब का दायित्व है और सब से ज्यादा दायित्व भारत की न्याय व्यवस्था का है। न्याय देने वाले तुरंत न्याय दें, बीस-बीस साल न रोके रखें। जो न्याय का काम नहीं उसमें अपना समय व्यर्थ न करें।
इसी ढंग से मीडिया है वह भी पैसा लेकर फालतू के काम दिखा रहा है। यह बाबा हैं और उन्हीं के काम दिखा है। बाबा राम रहीम को कितने चैनल दिखा रहे हैं। एक बाबा रामपाल जेल में है उसके प्रवचन एक चैनल दिखा रहा है। वह जेल में है तो नीचे लिखो कि वह आज जेल में है। सिगरेट और शराब के नीचे लिखा होता है कि यह हानिकारक है तो चैनल वाले उन को गलत क्यों नहीं कहते। अपने ऊपर नहीं झांकते हैं। केवल राजनीतिक लोगों पर ही कटाक्ष करेंगे राजनीतिक लोग खुद भी गाली गलौच करें और दूसरे भी करें तो लोगों के मन राष्ट्र के प्रति जो समर्पण का भाव है, वह कम होता है।
प्रश्न: जनता जागरूक हो, यह लोकतंत्र की पहली शर्त है। जितनी जनता जागरूक होगी वह योग्य और ईमानदार लोगों को चुनेगी। अतः जनता को जागरूक करने के लिए, शिक्षित करने के लिए और क्या उपाय किए जाने चाहिए।
उत्तर: इसके लिए शिक्षा ही उपाय है। शिक्षा के अन्दर संस्कार हो। उसके अंदर गलत काम करने का जो भय है वह शिक्षा के माध्यम से, धर्म के माध्यम से आता है। हर आदमी के अन्दर एक चौकीदार बैठा है भगवान बैठा है। वह आदमी को टोकता था कि यह काम गलत है और उसे गलत काम करने से रोकता था। फिर से उसे शिक्षा के द्वारा जगाएं और कोई रास्ता नहीं है। कोई शार्टकट नहीं है।
जनता का जागरूक करने का माध्यम केवल शिक्षा है। अंग्रेजों ने डेढ़ दो सौ साल में जिस प्रकार अपना पूरा वर्चस्व स्थापित किया। उसको ठीक करने में हमें दस साल लगेंगे। अभी बसंत पंचमी से नया सिलेबस शुरु हो जाएंगे। आज अखबार में पढ़कर अच्छा लगा कि दूसरी कक्षा का पाठ्यक्रम इसी साल से लागू होगा।
शिक्षा के माध्यम से संस्कार से शिक्षित समाज हो, बलशाली समाज का निर्माण करें और जातियों के भेदभाव मिटाएं। यह भारत की सबसे बड़ी दुर्बल व्यवस्था है जो पहले नहीं थी। और आज चार वर्णो से छह हजार जातियां बना दी गई। यह सब कमजोरियां पैदा की गई जो हम हटाएंगे। यह अच्छी शिक्षा के माध्यम से हटेगी। सब को जब सीट मिल जाएगी तो आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। सब को यदि पूरी शिक्षा मिल जाए तो फिर आरक्षण सीट की क्या जरूरत है। आज संस्थानों में सीट ज्यादा है और लेने वाले कम हैं। मेडीकल में अभी सीटें दुगनी कर दी हैं। और एक बार और दुगनी कर दी जाएं तो आरक्षण की जरूरत ही नहीं बचेगी। डाक्टर ज्यादा उपलब्ध होंगे। स्वास्थ्य के माध्यम से आयुर्वेद के माध्यम से सारा विश्व आज लाभान्वित हो रहा है पर हम अभी तक उस रास्ते पर उतना नहीं चल पाए। प्रधानमंत्री और बाबा रामदेव जैसे लोग इस रास्ते में क्रांति तो लाएं हैं परन्तु अभी हम उतना नहीं चल पाएं।
प्रश्न: हमने संविधान में बिट्रिश पार्लियामेंट व्यवस्था से अनेक बिन्दु लिए हैं। उसमें एक व्यवस्था है ‘शेडो मंत्रलय’ की। अर्थात् विपक्ष हर मंत्रलय के समानान्तर एक शेडो मंत्रलय बनाता है जो शासन के उस मंत्रलय के कामकाज की देख रेख करता हैै। उसमें आई कमियों को उजागर करता है। और जनता में उसे प्रचारित करता है। आप की क्या राय है।
उत्तर: आप जिस से तुलना कर रहे हैं वहां कितनी पार्टिंया हैं? मुख्य रूप से दो पार्टियां हैं। तीसरी एक छोटी सी है। अमेरिका में हैं तो दो पार्टियां हैं। हमारे यहां राजनीतिक दलों की संख्या 2 हजार हो गई है। यूरोप में जहां एक दल का राज्य नहीं बन पा रहा, मिल जुलकर सरकार बन जाती है। इजरायल में भी यही स्थिति है। परन्तु उन देशों में लोकतंत्र परिपक्व है, देश के प्रति समर्पण है। हमारे यहां प्रधानमंत्री को गाली देते-देते लोग देश को गाली देने लगते हैं।
हमारे यहां विपक्ष है कहां? मान्यता प्राप्त विपक्ष नहीं है। पहले 1977 तक 10 प्रतिशत की संस्था वाला नहीं था। आज फिर वही स्थिति आ गई है। 2014 के बाद मान्यता प्राप्त विपक्ष संसद में नहीं है। कई विधानसभाओं में नहीं है। जो आप कर रहे हो, वह होना चाहिये। सुभाष चन्द्र बोस जब कांग्रेस अध्यक्ष बने तो उन्होंने अपना प्लेनिग कमीशन भी बनाया। आजादी न होते हुए भी मंत्रलय भी बनाया। तो इस टेªनिंग की आवश्यकता है।
विपक्ष शैडो मंत्री बनाए तो अच्छा है परन्तु पहले विपक्ष तो एक जुट हो। लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष होना आवश्यक है। शैडो कैबिनट होना बहुत अच्छी बात है। वह स्वस्थ आलोचन करें वह बताए कि विकल्प यह है तो इस से लोकतंत्र का सही विकास होगा।
लोकतंत्र में सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि हम विध्ंवस तत्वों पर रोक नहीं लगा पाते क्योंकि कठोर कारवाई से इनको कुचल नहीं सकते। क्योंकि लोकतंत्र है लोकतंत्र की कमजोरियों को फायदा अराजकतावादी उठाते हैं। कम्यूनिस्ट की सोच अधिनायकवादी है और यह यूरोप में भी है। ये विकास को रोकते हैं। भारत को बहुत सावधानी से बढ़ने की जरूरत है। यहां एकरूप भारत बनाने की बात आ रही है और दूसरी तरफ जातियों में बांटने की बात हो रही है।
एक ही जैसा काम करने वालों ने दस दस जातियां लिखवाई। आज पिछड़ा कहलवाने की होड़ लगी है। 1950 तक तो कोई पिछड़ा कहलवाना पसंद नहीं करता था हरियाणा में हम देखा करते थे, यादव अपने आप को राव कहते थे। आज ब्राह्माण भी आधे पिछड़े, जाट भी आधे पिछडे़, बनिए भी आधे पिछड़े। तो अगड़ा कौन है यह सारी कमजोरियां है जो अगली पीढ़ी आने तक हल होंगी।
प्रश्न: आप ने जो कुछ बताया कि सब से प्रमुख सुधार जनता को शिक्षित करना है और अध्यात्म की ओर ले जाना है।
उत्तर: संस्कारित और अध्यात्म की ओर ले जाना, यह शिक्षा का ही भाग है। हर नागरिक को शिक्षित करके ही लोकतंत्र मजबूत होगा।