लेख डॉ. रघुनंदन प्रसाद दीक्षित ‘प्रखर’
मार्च, 2023 अंक
नवसंवत विशेषांक
नव संवत्सर हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर को पुष्ट करने का पुण्य दिवस है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह दिवस महत्वपूर्ण है। इसी दिन से बासंतिक नवरात्रि का प्रारंभ होता है।
भारतीय नववर्ष का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। हेमाद्रि के ब्रह्म पुराण में मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का निर्माण हुआ, अतः इसी दिन से भारत वर्ष की काल गणना की थी। हिन्दू समय चक्र सूर्य सिद्धांत पर आधारित है। नव संवत्सर के इतिहास की चर्चा करें तो इसका आरंभ शकारि महाराज विक्रमादित्य ने किया। भारतीय नववर्ष चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। हेमाद्रि के ब्र“म पुराण मेें इसी तिथि को पृथ्वी की रचना का वर्णन है। अतः यही तिथि काल गणना हेतु उचित मानी गयी। इस नव संवत्सर को भारतीय वर्ष भी कहा जाता है। महाराज विक्रमादित्य द्वारा आरंभ किया गया था तो इन्हीं के नाम पर विक्रम संवत कहा गया। भारतीय काल गणना पंचाग पर आधारित है। इसके पांच अंग तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग होते हैं।
भारतीय कालगणना अनुसार, नव दिवस, नव तिथि का आरंभ सूर्योदय काल से माना जाता है।
यथा-
सूर्योदयप्रमाणेन अहः प्रमाणिको भवेत्।
अर्धरात्रि प्रमाणेन प्रपश्यन्तितरे जनाः।।
इस कालखण्ड को मापने के हेतु मानव ने जिस विधा अथवा मंत्र का आविष्कार किया, उसे हम काल निर्णय काल निर्देशिका एवं कैलेण्डर कहते हैं। दुनिया का प्राचीनतम कैलेण्डर भारतीय है। इसे ‘सृष्टि संवत’ कहा जाता है। यह संवत एक अरब सत्तानवे करोड़ उनतीस लाख उनचास हजार एक सौ दस वर्ष प्राचीन है। वैदिक काल में साहित्य में ट्टतुओं पर आधारित काल खण्ड विभाजन का उल्लेख प्राप्य है। तत्पश्चात नक्षत्रें की गति, स्थिति, दशा और दिशा से वातावरण तथा मानवीय प्रभावों के अध्ययन के आधार पर काल निर्देशिकाएं बनायी गयीं। खगोल शास्त्रियों ने ब्र“मांड को 360 डिग्री को 27 बराबर भागों में विभाजित कर क्रमशः आश्विनी, भरणी, कृतिका इत्यादि 27 नक्षत्रें का निर्धारण किया। इन्हीं सत्ताइस नक्षत्रें में से बारह मासों का नामकरण इन्हीं नक्षत्रें में से किया गया। यथा-(चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर (1,3,5,8,10,12,14,18, 20,22,25 वां नक्षत्र) चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मृगशिरा, पौष, माघ तथा फाल्गुन।
भारतीय नववर्ष की प्रारंभ चैत्र से ही क्यों?—वृहद नारदीय पुराण के अनुसार ब्र“मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का प्रमाण दृष्टव्य है-तो
‘चैत्रमासि जगत ब्र“मससजप्रिथमे{इति।’
हमारे ट्टषि-मुनियों ने वैज्ञानिक गणना तथा सूर्य के महत्व को आत्मसात करते हुए उन्हें वारों निरुपित किया। उन्होंने आविष्कार करके सूर्य, चन्द्र, शनि, गुरु तथा मंगल ग्रहों को सुनिश्चित किया। उन्हें सात दिनों के नामों के लिए उपयुक्त पाया। निश्चित अवधि पर इन ग्रहों के आधार पर ही सप्त दिवसों के नाम रखे गए। रविवार को प्रथम दिन क्रमशः सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति (गुरु), शुक्र और अंतिम दिन शनिवार माना। इसके समुच्य का सप्ताह कहा गया। ज्योतिष गणित की भाषा में रात दिन को अहोरात्रि कहा जाता है। एक घंटा को ‘घेरा’ कहा गया है। समय की सबसे छोटी इकाई नितेश और सबसेे बड़ी इकाई कल्प है। अभी तक प्रचलित संवत्सर निम्न है-
(क) सप्तर्षि संवत्सर
(ख) कलियुग संवत्सर
(ग) विक्रम संवत (57 ई पू-से)
(घ) शकसंवत (57 ई-से)
समस्त संसार में काल गणना के सौर चक्र एवं चन्द्र चक्र आधार है। सौर चक्र के अनुसार पृथ्वी को सूर्य परिक्रमा में 365 दिन और लगभग छह घंटे लगते हैं। इस प्रकार कालगणना की जाए तो सौर वर्ष पर आधारित कैलेंडर में वर्ष पर्यंत 365 दिन होंगे। जबकि चन्द्र चक्कर पर आधारित कैलेण्डर में 354 दिन होते हैं।
शक संवत एवं
विक्रम संवत में अंतर
शक संवत को सरकार रूप से अपनाने के पीछे का तर्क यह है कि प्राचीन लेखों, शिला लेखों में इसका वर्णन मिला है। दूसरे विक्रम संवत्सर शक संवत के पश्चात आरंभ हुआ है।
विक्रम संवत
कहा जाता है कि विक्रम संवत महाराज विक्रमादित्य ने आरंभ किया था। उनके कालखण्ड में तत्कालीन सबसे महान खगोल शास्त्री आचार्य वराहमिहिर (जन्म स्थान काम्पिल्य तथा कार्यक्षेत्र उज्जयिनी) थे। जिनकी सहायता से विक्रम संवत्सर के प्रसार में वृद्धि हुई। यह अंग्रेजी कैलेण्डर से 57 वर्ष आगे है। (2022$57=2079 विक्रम संवत चल रहा है।) भारत में अनेक कैलेण्डर प्रचलित हैं, किन्तु विक्रम संवत्सर और शक संवत प्रमुख हैं।
डॉ- श्री प्रकाश मिश्र के अनुसार सर्वस्पर्शी एवं सर्वग्राही संस्कृति के दृष्टा, मनीषियों एवं प्राचीन भारतीय खगोल शास्त्रियों के सूक्ष्मचिन्तन मनन के आधार पर की गयी कालगणना से यह नव-संवत्सर पूर्णतः वैज्ञानिक व प्रकृति सम्मत है।
नव संवत्सर हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर को पुष्ट करने का पुण्य दिवस है। यह भी माना जाता है कि इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ था। आध्यात्मिक दृष्टि से यह दिवस महत्वपूर्ण है। इसी दिन से बासंतिक नवरात्रि (पराशक्ति के आराधना, उपासना, व्रत पारायण) का प्रारंभ होता है। शारीरिक तथा मानसिक ऊर्जा का नव संचार होता है। क्षीण शक्तियां सम्पुष्टि होती है। संचेतना करवट ले चरम उत्कर्ष को शुद्ध करती है। समाज को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना हेतु इसी दिवस का चयन किया। आज से 2079 वर्ष पूर्व राष्ट्रनायक सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांताओं शकों हूणों को भारत भूमि से खदेड़ा था।
समग्रतः भारतीय सौर काल गणना हमारे सनातनी परिपेक्ष्य में पूर्णतः सहज और स्वभाविक है। हमारे सभी तीज त्यौहार, मांगलिक कार्य, आध्यात्मिक अनुष्ठान, यज्ञादि तथा वास्तु मुहूर्त निर्धारण का केन्द्र नवसंवत्सर उपयोगी ही नहीं वरन संवर्धनीय एवं पुष्ट है। जब तक हम आंग्ल कलैण्डर के चश्मे से नवसंवत्सर के तिथि, वार आधारित तीज त्यौहारों का आकलन करेंगे तब तक विभ्रम की स्थिति बनी रहेगी। मकर संक्रांति वैदिक कालगणना का निर्धारण है न कि आंग्ल गुणा भाग का परिणाम।
आइए हम अपनी पुरातन विरासत को स्वयं आत्मसात करके आगत पीढ़ी को यथावत सौंप दें।