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बौद्धिक प्रखरता,
एकाग्रता, श्रेष्ठ स्मरणशक्ति
के लिए तरुण और युवा पढ़ें
गीता के कुछ श्लोक

लेख डॉ. मनोहर भंडारी
एम.बी.बी.एस.,एम.डी.


जाह्नवी फरवरी 2023 गणतंत्र विशेषांक

गीता भगवान श्रीकृष्ण जी के मुखारबिन्द से प्रवाहित हुई अतएव गीताजी का एक-एक शब्द निःसंदेह रूप से मंत्र ही है।
= मंत्रेां पर अनुसंधान करने वाले न्यूरोसाइंटिस्ट डा. जेम्स हार्टजेल के अनुसार, प्रत्येक संस्कृत मंत्र एक विशेष आवृत्ति की ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता है, जो हमारे शरीर की कोशिकाओं से मेल खाती है। जब ये दोनों तालमेल बिठाते हैं तो शरीर की कोशिकाएं कंपन करने लगती है। इससे शरीर से रोगकारी विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ होने लगता है। यह कम्पन मस्तिष्क की कोशिकाओं को रिलेक्स करता है और रोगग्रस्त कोशिकाओं को रोगमुक्त करता है। कम्पन में मस्तिष्क की उन कोशिकाओं और ऊतकों का भी पोषण होता है, जो जीवन की गहरी समझ के लिए उत्तरदायी होते हैं।
= एक अन्य विश्वसनीय वैज्ञानिक शोध के अनुसार मंत्र जाप से तन, मन, वाणी और श्वास में सम्यक तालमेल हो जाता है अर्थात् आन्तरिक सद्भाव की उत्पति होती है, जिससे आध्यात्मिक जागरण का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
= गीता जी के श्लोक भयमुक्त, शोकमुक्त, असमंजसमुक्त, चिन्तामुक्त, आशंकामुक्त करते हैं, और मानसिक स्थिरता प्रदान करते हैं।
= इस ग्रन्थ के विषय में विश्व के मूर्धन्य विद्वानों और वैज्ञानिकों ने अपने विचार व्यक्त कर इसकी महानता और विराटता के प्रति करोड़ो लोगों को आकर्षित किया है।
= अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन विश्व के अनेकानेक देशों में श्रीमदभगवतगीता के माध्यम से करोड़ों लोगों को कृष्णभक्ति और सनातन संस्कृति से जोड़ रहे हैं।
= गीता हमारा धार्मिक ग्रन्थ है।
= गीता को अनेक देशों में प्रबन्धन शास्त्र के रूप में पढ़ाया जाता है।
= न्यूजर्सी में 1856 में स्थापित स्वायत कैथोलिक सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में अनिवार्य पाठयक्रम के तहत गीता के अध्ययन को 2009 से सम्मिलित किया गया है।
= गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जिसका सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
= गीता पड़ने से मन शान्त होता है, भय, तनाव और नकारात्मकता दूर होती है।
= गीता का पठन-पाठन अर्थात् हताशा मुक्ति का गीत श्रीमदभगवतगीता एक धार्मिक ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित है, इस पावन ग्रन्थ के कुछ श्लोकों के पठन-पाठन से हम अपने चेतन और अवचेतन मन मस्तिष्क में अपनी संस्कृति और भगवान श्रीकृष्ण से निकटता का अनुभव कर सकते हैं।
= हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक महाग्रंथ गीता के श्लोक पढ़ते समय यह विचार भी अन्तस में सहज आ जाता है कि अर्जुन जैसा महापराक्रमी, विद्वान और राज परिवार का सक्षम व्यक्ति तक निर्णय लेने में गंभीर द्वन्द्वात्मक और असमंजस की स्थिति को प्राप्त हो सकता है एवं पलायन की सोचने लगता है। साक्षात भगवान का सखा भी निराशा हताशा का अनुभव कर सकता है। और भगवान की गीतावाणी को सुनकर वह जीवन के गीत गाने लग सकता है तो फिर हम क्यों इस संजीवनी अमृत से वंचित रहें।
मानव जीवन के गहन मनोविज्ञान और विपरीत परिस्थितियों में मानसिक और भावनात्मक स्थिरता को प्राप्त करते हुए अपने दायित्वों कर्तव्यों का कैसे निर्वहन करना, यह भी तो गीता एक ममतामयी माता की तरह सिखाती है।
कौन सिखाएगा संस्कृत का शुद्ध और सस्वर उच्चारण करना, निश्चिन्त हो जाइये, लर्न गीता है ना।
मेरे लिए भी यह एक गंभीर प्रश्न था कि शुद्ध उच्चारण के लिए 68 वर्ष की आयु में कहां जाऊं और भगवान श्रीकृष्णजी की असीम कृपा से आकाशवाणी इंदौर की वरिष्ठ सेवानिवृत उद्घोषिका श्रीमती अनिता जी जोशी ने मुझे घर बैठे ही गीताजी सीखने का सुगम रास्ता दिखाया। लर्न गीता शीर्षक से गीता परिवार नामक संस्था एक पावन अभियान विगत दो तीन वर्षो से चला रहा है और देश विदेश के लाखों लोग ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से गीता पढ़ना सीख रहे हैं। मैंने 18 नवम्बर को इस कक्षा में प्रवेश लिया था, हालांकि मैं पिछले साढ़े तीन दशकों से भी अधिक समय से श्री दुर्गासप्तशती पढ़ता रहा हूं, गीताजी का भी चार-पांच बार अर्थ सहित पारायण कर चुका हूं, परन्तु शुद्ध उच्चारण का शुभारंभ करने का श्रेय मैं लर्न गीता के अति धैर्यवान प्रशिक्षकों को देना चाहूंगा। प्रशिक्षकों का धैर्य और आदर्श प्रेरक के रूप में उनकी भूमिका अनुपम और अनुकरणीय है। मेरा सभी पाठकों से यह व्यक्तिगत निवेदन है कि गीता या संस्कृत पढ़ना सीखें अथवा न सीखें परन्तु गीता परिवार से जुड़े प्रशिक्षकों से जीवन में धैर्य और अन्यों की सराहना करना अवश्य सीखना चाहिए। यह धैर्य और सराहना का भाव परिवार और समाज विखण्डन से रक्षा के लिए अमोघ मंत्र है। गीता परिवार की सफलता का प्रमाण यह है कि एक 92 वर्षीय महिला ने भी गीता जी के कई श्लोक कंठस्थ कर मेरे जैसे लोगों का मनोबल बढ़ाया है। अनेक रोगग्रस्त व्यक्तियों ने लाभप्राप्ति के अपने अनुभव साझा किये हैं। हाल ही में एक पक्षाघात के रोगी को उल्लेखनीय और अविश्वसनीय लाभ प्राप्त हुआ है।
पाठकों को प्रथम चरण के तहत बीस दिनों के लिए लर्न गीता के तहत अनुभव अवश्य ही लेना चाहिए। इस अनुपम, अतुलनीय सुचिन्तित और सराहनीय अभियान का सूत्रपात परमपूज्य स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरिजी ने किया है, वे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थन्यास के कोषाध्यक्ष भी हैं।

विश्व के मूर्धन्य विद्वानों के गीताजी विषयक कथन


= रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बाकाचार्य, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, संत ज्ञानेश्वर आदि अनेक मध्यकालीन आचार्यो ने भी तत्कालीन युगानुकूल आवश्यकतानुसार भगवदगीता के ऐसे ऐसे भाष्य भाषण एवं व्याख्यान विश्लेषण प्रस्तुत किए कि शासन संचालित धर्मान्तरण की आंधी में भी हमारा समाज पूरी तरह से स्खलित नहीं हुआ और राष्ट्र की सांस्कृतिक अक्षुण्णता कायम रही।
= जब मैंने गीता पढ़ी तब मैंने विचार किया कि कैसे ईश्वर ने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है तो मुझे बाकी सब कुछ व्यर्थ प्रतीत हुआ। विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक और नोबेल विजेता अल्बर्ट आइन्स्टाइन।
= नोबल विजेता विश्वविख्यात साहित्यकार टी.एस. इलियट गीता से अत्यंत प्रभावित थे। उन्होंने सन 1911 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत सीखी और फिर श्रीमदभगवत् गीता का अध्ययन किया था। वे गीता से कितने प्रभावित थे, इसका प्रमाण यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रसिद्ध कवि के-एस- नारायण राव ने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है टी.एस. इलियट एण्ड द भगवद्गीता
= श्री मद्भगवत् गीता में मानव की आत्मा का गहन प्रभाव है, जो इसके कार्यो में झलकता है। मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत प्रसिद्ध दार्शनिक और चिकित्सक अल्बर्ट श्वाइत्जर।
= श्रीमद्भगवत् गीता ने समृद्ध आध्यात्मिक विकास का सबसे सुव्यवस्थित बयान दिया है। यह आज तक के शाश्वत दर्शन का सबसे स्पष्ट और बोधगम्य सार है, इसलिए इसका मूल्य केवल भारत के लिए नहीं, वरन संपूर्ण मानवता के लिए है।’ प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक और मानववाद तथा शान्तिवाद में विश्वास करने वाले यूरोपीय विचारक अल्ड्स हक्सले।
= हर सुबह मैं अपने हृदय और मस्तिष्क को श्रीमद्भगवद्गीता के उस अद्भूत और देवी दर्शन से स्नान कराता हूं जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और इसका साहित्य बहुत छोटा और तुच्छ जान पड़ता है। अमेरिकी दार्शनिक, प्रकृतिवादी, निबन्धकार हेनरी डी थोरो।
= श्रीमदभागवद्गीता को विश्व की सबसे प्राचीन जीवित संस्कृति, भारत की महान धार्मिक सभ्यता के प्रमुख साहित्यिक प्रमाण के रूप में देखा जा सकता है। एक अमेरिकी ट्रैपिस्ट भिक्षु, लेखक, धर्मशास्त्री, कैथोलिक थियोलाजियन, रहस्यवादी, कवि, सामाजिक कार्यकर्ता और तुलनात्मक धर्म के विद्वान थॉमस मर्टन।
= पाश्चात्य जगत में भारतीय साहित्य का कोई भी ग्रन्थ इतना अधिक उद्धृत नहीं होता, जितना कि श्रीमद्भगवद्गीता, क्योंकि यही सर्वाधिक प्रिय ग्रंथ है। दक्षिण कैलीफोर्निया के दर्शन शास्त्र के प्रसिद्ध प्राध्यापक डॉ- गेदीज मैकग्रेगर।
= भगवद्गीता का अनूठापन जीवन के विवेक की उस सचमुच सुंदर अभिव्यक्ति में है जिससे दर्शन प्रस्फुटित होकर धर्म में बदल जाता है। एक जर्मन उपन्यासकार, कहानीकार और कवि और नोबेल विजेता हर्मन हेस।
= मैं श्रीमद्गवद्गीता का आभारी हूं। मेरे लिए यह सभी पुस्तकों में प्रथम थी, जिसमें कुछ भी छोटा या अनुपयुक्त नहीं किन्तु विशाल, शांत, सुसंगत एक प्राचीन मेधा की आवाज, जिसने एक दूसरे युग और वातावरण में विचार किया था और इस प्रकार उन्हीं प्रश्नों को तय किया था, जो हमें उलझाते हैं।’ प्रसिद्ध निबंधकार, वक्ता तथा कवि रौल्फ वाल्डो इमर्सन———- वे अमरीकी नवजागरण के प्रर्वत्तक तथा लोकोत्तरवाद के नेता थे, जो एक सहृदय, धार्मिक, दार्शनिक एवं नैतिक आंदोलन था।

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