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बेटियां

कविता अ. कीर्ति वर्द्धन

जाह्नवी जनवरी 2023 युवा विशेषांक

सुनती नहीं हैं बेटियां, मां बाप की आजकल,
बचा नहीं लिहाज बच्चों में, बूढ़ों का आजकल।


जब से चली बयार, आधुनिकता की देश में,
अर्द्धनग्न घूमने लगी बेटियां, समाज में आजकल।


मां बाप व्यस्त कमाने में, निज दायित्व भुलाकर,
भौतिक सुविधाओं को मान बैठे, खुशियां आजकल।


नियंत्रण में नहीं रहे बच्चे, संस्कार बिखर गये
टूटने लगे हैं संयुक्त परिवार, नया चलन आजकल।


सुनना नहीं चाहता कोई सीख, किसी की भी यहां
मुंह फेरकर चलने लगे सब, घर वालों से आजकल।


इश्क का मतलब, जिस्मानी रिश्ते जब से हुआ
कत्ल होने लगा बेटियों का, डर लगता है आजकल।

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