लेख शीला सलूजा
नवविवाहिता लड़कियां अपने नये परिवार की
जरा-जरा सी बातें बढ़ा-चढ़ा कर अपने मायके पहुंचाती हैं
व अपने नये परिवार में अपने मायके का हस्तक्षेप कराती है।
मार्च, 2023
नवसंवत विशेषांक
और सास का क्या हाल है—-जेठानी तो ठीक है—–न——-तू किसी बात की चिन्ता मत किया कर—-हरीश तो तेरे वश में है न——— तुझे किस बात की चिन्ता——-तुझे कौन सा सास के पास रहना है—–मैं तो इसीलिये नौकरी वाला लड़का तेरे लिये चाहती थी, अपना कमाओ, अपना खाओ, न किसी की हाय-हाय न किट-किट।’
नवविवाहिता लड़की को ससुराल से विरक्त करने की ऐसी ‘सीख’ हमेशा मायके पक्ष से ही मिलती है। केवल इतना ही नहीं बल्कि नवविवाहिता लड़की वालों की यही शिकायत रहती है कि लड़के वाले लड़की को अच्छा नहीं रखते। उसके साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करते हैं। उसके पास वह नहीं—- ऐसा नहीं——-वैसा नहीं।
इस प्रकार की मानसिकता, आचरण, विचार और भावनाएं ही लड़की में एक प्रकार की मानसिक हीनता पैदा करते हैं और लड़की की दृष्टिकोण भी ससुराल पक्ष की ओर से संकीर्ण होने लगता है। ससुराल पक्ष की छोटी-छोटी बातें भी उसे बड़ी लगने लगती हैं। यही संकीर्णता उसके दाम्पत्य संबंधों में तकरार-दरार का कारण बनने लगते हैं।
वास्तव में नव-विवाहिता लड़कियों की ये समस्याएं वास्तविक कम और दिखावा अधिक होती हैं। इस समस्या के परिप्रेक्ष्य में समस्या न तो लड़की वाले हैं और न लड़के वाले। केवल थोड़ी सी समझ की कमी है, जिसे अपना कर आप इस समस्या को ही आने नहीं दे सकती। ये समस्याएं वहीं आती हैं जहां नवविवाहिता लड़कियां अपने नये परिवार की जरा-जरा सी बातें बढ़ा-चढ़ा कर अपने मायके पहुंचाती हैं। अथवा अपने नये परिवार में अपने मायके का हस्तक्षेप कराती है। ऐसी लड़कियां और उनका मायका पक्ष हमेशा लड़की के ससुराल में अभाव, दोष ही ढूंढता रहता है और इन दोषों के कारण ही वे लड़की के भाग्य को कोसते हैं। जबकि इस प्रकार से अपने भाग्य को कोसने अथवा ससुराल पक्ष की बुराइयां करने में कोई लाभ नहीं होता।
क्या कारण है कि शादी के पहले लड़के वाले लड़की और लड़के की प्रशंसा करते नहीं अघाते और शादी के बाद ही परस्पर टकराव की ये परिस्थितियां पैदा होने लगती हैं। जरा-जरा सी बातें भी हमें बड़े-बड़े दोष के रूप में दिखाई देने लगती हैं। इस संदर्भ में वास्तविकता यही है कि बहू और बेटी में अन्तर है, यद्यपि बहू भी किसी के घर की बेटी ही होती है। लेकिन यहां तो बहू और बेटी के आचरण से हमारे विचार और भावनाएं प्रभावित होती हैं। तात्पर्य यह है कि बहू की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं, जिनका पालन निर्वाह करके ही बहू अपने मान-सम्मान प्रतिष्ठा को पाती है। असली बात तो भूमिका की है। ससुराल में बहू के रूप में लड़की की भूमिका मर्यादित होना आवश्यक है। काम करने से ही इज्जत होती है, न करने से तो इज्जत नहीं बढ़ती, इसलिये बहू के रूप में नई लड़कियों को सुसराल में नये परिवार की अपेक्षाओं के अनुरूप अपने आपको ढालना चाहिये। जैसा देश वैसा वेश की रीति-नीति अपनानी चाहिये, चूंकि अब आपको ससुराल पक्ष के रीति-रिवाजों अपेक्षाओं का पालन करना होता है, इसलिए कभी भी टकराव की स्थिति पैदा न होने दें। अपनी किसी भी बात अथवा व्यवहार को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं। और न ही किसी व्यवहार को अनावश्यक रूप से तूल दें और न ही अपनी समस्याओं के समाधान को मायके पक्ष पर टालें। परिवार की इच्छाओं के विपरीत यदि कोई न करें तो इसके लिये दुराग्रह न करें। अपनी निजी पारिवारिक समस्याओं का समाधान साधनों से ही करें इसके लिए समस्याएं कम हाेंगी वहीं आप हमेशा प्रसन्न और सरल बनेंगी और अपने आपको मानसिक दृष्टि से भी स्वस्थ करेंगी। अपनी समस्याओं के समाधान के लिये दूसरों के हस्तक्षेप एक सीमा तक ही सहन करें। हमेशा अपने अभावों की चर्चा दूसरों के सामने करते रहना, अपने दुर्भाग्य को रोना रोते रहना, अपनी स्थिति के लिये ससुराल वालों को कोसते रहना, दूसरों की निन्दा करते रहना, बात-बात में मायके वालों की प्रशंसा करना और ‘हमारे वहां तो’ करते रहना उचित नहीं। ‘हमारे वहां तो ——–’ से आपकी प्रतिष्ठा घटती है। हो सकता है कि आप का मायका ससुराल की अपेक्षा अधिक प्रगतिशील, साधन सम्पन्न और प्रभावशाली हो लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि आप हमेशा ससुराल के अभावों कमजोरियों अथवा दोषों को ही कोसती रहें। अथवा अपनी सम्पन्नता पर ही इतराएं। आपकी मान प्रतिष्ठा शादी के बाद आपके मायके से नहीं ससुराल पक्ष से बनती है, इसलिये अपने व्यवहार को ससुराल पक्ष की सीमाओं के अनुरूप बनाएं। बल्कि अपने किसी भी व्यवहार में मायके पक्ष को न आने दें। अभावों को सहन करना अभाव ग्रस्तता नहीं है। ये तो क्षणिक व्यवहार है, हो सकता है कि आपके साधन बढ़ जाए और आप मायके पक्ष का जितना अधिक ध्यान रखेंगी आपकी सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ेगी। इसलिये इस बात का ध्यान रखें।
परिवार में आने वाले मेहमानों का सम्मान करना, अपना धर्म समझें। सभी को समान रूप से सत्कार दें। ध्यान यह रखें कि ससुराल पक्ष के मेहमानों पर अधिक ध्यान दें, उन्हें अधिक महत्व दें, उन्हें अपने सौजन्यता पूर्ण व्यवहार से प्रभावित करें। मायके में तो आपने 20-22 वर्ष व्यतीत किये हैं, वे तो आपके गुणों से परिचित ही है, इसलिए अब तो आपको अपने गुणों के लाभ ससुराल पक्ष को ही देने चाहिये ताकि आपके सौहार्द पूर्ण व्यवहार से दूसरे प्रभावित हो सकें। ससुराल में छोटे देवर,ननद आदि को स्नेहजन्यशाली प्रदान करें ताकि प्रत्युत्तर में आपको भी उतनी ही मान प्रतिष्ठा मिले जिसकी कि आप पात्र हैं।
इस पूरे विश्लेषण का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिये कि मायके पक्ष की भावनाओं और संबंधों की उपेक्षा की जाए, उसे छूटा गांव समझ कर उसके प्रति विमुख हो जाना चाहिये, वास्तव में यह नहीं होना चाहिये क्योंकि जिस मां-बाप ने पाल पोस कर आपको इस योग्य बनाया है उसके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य और जिम्मेदारियों तो हमेशा रहती है, लेकिन यहां केवल आशय इतना नहीं है कि ससुराल के प्रति समर्पित भावना आचरण और व्यवहार आपको मायके और ससुराल के परिवारों को अधिक निकट लाएगा और आप दोनों परिवारों में परस्पर स्नेह सेतू की भूमिका का निर्वाह कर सकेगी। इसलिये परस्पर स्नेह और विश्वास का वातावरण बनाएं। आप दोनों परिवारों को जोड़ें। जोड़ने ओर संबंधों में स्नेह बढ़ाने वाली यह क्रिया और व्यवहार ही हमें खानदानी बनाता है, तभी हम बड़े घर की बेटी कहलाने की अधिकारी बनती हैं। हमें अपने आचरण से ही दोनों परिवारों को प्रतिष्ठा प्रदान करनी चाहिए। स्नेह सेतु बनने और बनाने का यह दायित्व ससुराल और मायके पक्ष का भी है क्योंकि लड़किया तो वही बनती है जो परिवार के लोग उन्हें बनाते हैं। जैसी प्रेरणा और प्रोत्साहन उन्हें मायके से मिलता है, उसी की खुशबू ससुराल में फैलती है और ससुराल का सौरभ ही बहू की शालीनता है। अतः ससुराल और मायके का यह स्नेह सेतु ही परिवारों के संबंधों मधुरता देता है, आप तो इस में केवल सहयोगी बनें, सुंगन्ध तो फैलती ही है।