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बदलाव के दौर में प्राथमिक शिक्षा

लेख
दिनेश प्रताप सिंह ‘चित्रेश’

20 लाख सुझावों के मंथन के बाद यह शिक्षानीति तैयार की गई।
इसमें आम आदमी की बड़ी भूमिका है।

स्वास्थ्य विशेषांक
जुलाई, 2023

अभी देश की प्राथमिक शिक्षा एक बड़े परिवर्तन की साक्षी बनने जा रही है। यह नई शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत होने वाली है। नई शिक्षा नीति इंगित करती है कि हम अपने पूरे शिक्षणतंत्र को व्यावहारिक, लचीला और रचनात्मक बनाएं, जो शिक्षा की ऐसी दुनिया रचने में कामयाब हो, जिससे जुड़कर बच्चे संवेदनशील, कौशलयुक्त, सुयोग्य और विकासमान बनें। वह भविष्य में जाति, धर्म, असमानता जैसी गोलबंदियों से मुक्त एक सशक्त नागरिक संरचना में परिवर्तित हो सकें। हम जिस समाज में रह रहे हैं, वह विभक्तियों के मकड़जाल, जातीय तनाव और अंतर्द्वन्द्व से घिरा है। इस समाज के बच्चों को शिक्षा की दुनिया में धकेलकर हम रातों रात किसी सार्थक परिवर्तन की आशा नहीं कर सकते। इसके लिए दीर्घकालिक योजना पर नए दृष्टिकोण से कार्य करने की आवश्यकता महसूस की गयी है।
मौजूदा सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही इस चुनौती को स्वीकार किया और सेवानिवृत कैबिनेट सचिव टी- आर- एस- सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके 2015 में ही इस संदर्भ में कार्य आरंभ करा दिया था। ‘सुब्रमण्यम समिति ने अपनी सिफारिशों की रिपोर्ट 2016 में सरकार को सौंप दी थी। सरकार ने इसे व्यापक और जमीनी स्तरों पर परखने के लिए इसरो के पूर्व प्रमुख डॉ- के- कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक अन्य कमेटी गठित कर उसे सौंप दिया। इस कमेेटी ने बृहत्तर संदर्भो में छानबीन करके 31 मई 2019 को अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया था। तत्पश्चात इस रिपोर्ट का प्रकाशन हुआ, आम लोगों और शिक्षाविदों से इसके विषय में सुझाव और संशोधन मांगे गए। व्यापक स्तर पर लोगों ने इसमें प्रतिभाग किया। किसान, छात्र, शिक्षक, जनप्रतिनिधि, अभिभावक, लोकसेवक, शिक्षाविद, टेक्रोक्रेट, बुद्धिजीवियों से मिले 20 लाख सुझावों के मंथन के बाद यह शिक्षानीति तैयार की गई। इसमें आम आदमी की बड़ी भूमिका है। इसीलिए नई शिक्षा नीति 2020 को लोकतांत्रिक और समावेशी कहा गया है।
यह पूर्व शिक्षा नीतियों से व्यापक और महत्वाकांक्षी है
इसका प्रारूप भारत की परंपराओं, संस्कृतियों और भाषाओं की विविधता को ध्यान रखते हुए तेजी से वे बदलते समाज की जरूरतों के आधार पर तैयार किया गया है। यह पहुंच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के पांच स्तंभों पर टिकी है। यह पूर्व शिक्षा नीतियों से व्यापक और महत्वाकांक्षी है। इसके साथ स्कूल सिस्टम में कई बदलाव प्रस्तावित हैं। इन बदलाव के बीच से ही लक्ष्य तक पहुंचने की राह निकलेगी। बदलाव, खासकर जो पाठ्य सामग्री में परिवर्तन हो रहा है, उस पर ढेरों विवाद सामने आ रहे हैं। मजे की बात यह है कि विवाद स्कूली शिक्षा के घटक, शिक्षार्थी, अभिभावक, शिक्षातंत्र के अधिकारी और शिक्षाविदों के बीच नहीं है। बल्कि इसे गति देने में कुछेक राजनेता और राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ताओं का हाथ है। पूरे बहस-मुबाहिसे का सार यह निकलकर सामने आ रहा है कि इस शिक्षा-नीति के क्रियान्वयन में सरकार अपना सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एजेंडा लागू कर रही है। यह पूरे का पूरा वाद-विवाद सेकुलरिज्म, वामपंथ और नव सांस्कृतिक पुनरुत्थानवाद के अखाड़े में जा पहुंचा है, जिसका शैक्षिक विमर्श से कोई वास्ता ही नहीं बचा है।
शिक्षा-जो दुनिया को बेहतरी की दिशा में ले जाए
दुनिया में जहां कहीं भी शिक्षा में संशोधन और परिवर्तन हुए हैं, वहां वाद-विवाद होते रहे हैं। यह बात सार्वकालिक और सार्वदेशिक हैं। किन्तु वाद-विवाद तू-तू मैं-मैं नहीं, बल्कि संवाद की गरिमापूर्ण सीमा में होना चाहिए। नई शिक्षा नीति 2020 भी बहस मुबाहिसे से परे नहीं हो सकती। मगर इसकी संवेदनशीलता को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। यह सिर्फ पढ़ाई लिखाई यानि समाज को साक्षर बनाने पर नहीं फोकस करती है, बल्कि लोगों को शिक्षित करने का सपना बुनती है। साक्षरता का संबंध पढ़ने लिखने और तकनीकी ज्ञान कौशल से है, शिक्षित करने में उपर्युक्त योग्यताओं के साथ नैतिक मूल्यों का भी समावेश होता है। शिक्षा का अर्थ सिर्फ इतना नहीं होता कि वह व्यक्ति को निर्मम संसार का सामना करने के योग्य बनाए, वास्तव में शिक्षा को ऐसे व्यक्तित्व गढ़ने का संकल्प लेना चाहिए जो दुनिया को बेहतरी की दिशा में ले जाएं। नई शिक्षा नीति कागजी रूप में इस संदर्भ में सचेष्ट है।
इसके अन्तर्गत स्कूली शिक्षा के प्रारूप में परिवर्तन किया गया है। इसकी पहली स्टेज पूर्व प्राथमिक शिक्षा की है। अब बच्चा 3 साल की आयु में विद्यालय में प्रवेश लेगा और नर्सरी से कक्षा 2 तक की शिक्षा ग्रहण करेगा। इसमें स्कूल प्रीपिरेशन मॉडयूल का जो 3 से 6 वर्ष के बीच का कालखण्ड है, उसमें बच्चे के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास हो जाता है। निश्चय ही इस अवस्था में बच्चे को विशेष देखभाल, सुरुचिपूर्ण खेलकूद आधारित शिक्षा, आनन्दमय और सृजनात्मक परिवेश में गतिविधियां करने का अवसर उपलब्ध होना आवश्यक है।
शिक्षा-शास्त्र में यह पूर्व प्राथमिक शिक्षा कही गई है। नई शिक्षा नीति में इसको शामिल किया गया है, यह हर्ष का विषय है। मगर इसका क्रियान्वयन हवा में नहीं हो पाएगा। इसके लिए विशेष मानवीय संसाधन यानि शिक्षक की आवश्यकता होगी। वह कहां से आएंगे? पूर्व प्राथमिक शिक्षा के सूत्रधार फ्रोबेल, मारिया मांटेसरी, मैकमिलन सिस्टर्स, गांधी जी सब ने इस श्रेणी के लिए उच्चकोटि के शिक्षकों की अनुशंसा की है। हालांकि अब नागार्जुन की कविता वाले सुरती मलते और बात-बात पर छड़ी लपलपाते दुखहरन मास्टर साहब का जमाना नहीं रहा।
शहर से लेकर गांव तक के अध्यापक अध्यापिका खूब शिक्षित, सजे-धजे और चमक-दमक वाले हैं, किन्तु उनमें दुखहरन मास्टर जैसी बच्चों की शिक्षा की चिंता और संवेदना नहीं है। पूर्व कथित शिक्षाविदों ने पूर्व बुनियादी शिक्षा के लिए ऐसी बालसेविका की चर्चा की है, जिसमें मां सदृश्य ममता व स्नेह कार्य के प्रति निष्ठा एवं समर्पण, सामाजिक कार्य में रुचि, सादगी, नम्रतापूर्ण व्यवहार, सृजनात्मक अभिरुचि और सुरुचि संपन्नता हो। जबकि मौके पर कार्यरत शिक्षक, शिक्षामित्र, अनुदेशक आदि अधिकतर शिक्षाकर्मी से आगे बढ़कर शिक्षक बन ही नहीं पाए हैं।
आरम्भिक शिक्षा मातृभाषा में
दी जाएगी

मोटी फीस वसूलने वाले किन्डर गार्टन और प्लेवे मेथड स्कूल शहरों कस्बों में खूब हैं। उच्च और मध्य वर्ग के बच्चे इन स्कूलों में जाते हैं। किन्तु एक बहुत बड़े गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले विपन्न समुदाय के बच्चे कहां जाएं? इनके लिए तो सरकारी शिक्षा व्यवस्था ही एकमात्र सहारा है। नई शिक्षा नीति में पूर्व प्राथमिक को शिक्षा की मुख्य धारा में स्थान प्राप्त करना एक बड़ी बात है। इसे कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है, इस पर खुले मन से बात होनी चाहिए। मगर किसी के लिए यह गौरतलब मुद्दा नहीं है। शिक्षा के नए ढांचे में 1 और 2 की कक्षाएं भी जोड़ी गई है। खेल, संगीत, कला, योग जैसे विषयों को भी आरंभ से ही पढ़ने पढ़ाने का प्रावधान है। यह ऐसे विषय हैं, जो व्यक्तित्व में निखार ले आते हैं। आरम्भिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाएगी। किन्तु देश के अन्दर अंग्रेजी का ऐसा आकर्षण है कि जिसके पास भी कुछ पैसे होंगे, वह हिन्दी माध्यम के स्कूल से दूर भागेगा। कमोबेश कामन एजुकेशन सिस्टम के बीच शिक्षा से जुड़ी नीतियां बेहतर प्रदर्शन करती हैं। इसलिए सरकार के स्तर पर मुहैया कराई जाने वाली शिक्षा में हर वर्ग के बच्चे होंगे, तभी यह प्रभावी हो पाएगी। सिर्फ नीति और नीयत से पूर्ण उपलब्धि नहीं प्राप्त हो सकती है।
प्राथमिक स्तर पर भी शिक्षा
मातृभाषा में

देश में जो अंग्रेजी का अंधा आकर्षण है, इससे कैसे मुक्ति मिले, इस दिशा में भी गंभीर मंथन की जरूरत है। हिन्दी के उपयोग की बात हो, तो तत्काल यह हिन्दी थोपने का मुद्दा बनकर माहौल में गर्माहट पैदा कर देता है। लेकिन अंग्रेजी से मुक्ति का आह्वान सदैव बेअसर रह जाता है। जबकि दुनिया भर के राष्ट्रों के अनुभव से यह बात सीखी जा सकती है कि प्राथमिक स्तर पर बच्चों को शिक्षा अपनी मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। अपनी भाषा में सीखना आसान, रूचिकर, स्थायी और गुणवत्तापूर्ण होता है। मातृभाषा में जो हम पढ़ते हैं, वह हमारे चिंतन तर्क और कल्पना के साथ सहज रूप से समायोजन करने में समर्थ होता है। मूलतः शिक्षा के दो पहलू होते हैं, एक ज्ञान और दूसरा समझ। नई शिक्षा नीति ‘समझ’ पर अधिक केन्द्रित है। समझ आधारित शिक्षा के लिए ज्ञान का विचार और व्यवहार से एकीकरण आवश्यक होता है। यह पूरी प्रक्रिया मातृभाषा में ही संभव हो सकती है। इसलिए इस महत्वाकांक्षी शिक्षा नीति को सफलता की मंजिल तक ले जाना है, तो मातृभाषा संबंधी मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा न हुआ तो लाखों बच्चों की मेधा के उचित संरक्षण, संवर्द्धन और प्रबंधन से हम चूक जाएंगे।
नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, पूर्व प्राथमिक के पांच साल पूरे करने के बाद बच्चा प्राइमरी में प्रवेश करेगा, यहां उसे 3,4 और 5 की कक्षाएं पढ़नी होगी। प्राथमिक शिक्षा पूरी शिक्षा व्यवस्था की नींव है। इसमें किसी प्रकार की कमी न रहने पाए, शिक्षा के नीति नियंता इस विषय में पूर्ण सचेत है। बच्चा अगर किसी कक्षा की दक्षता नहीं हासिल कर पाता, तो उसे फेल करके उसी कक्षा में दोबारा पढ़ाना निरर्थक होता है। इससे बच्चे की मासूमियत और स्वाभिमान आहत होता है। उसके मानस में विद्रोह के बीज पड़ने की संभावना बनती है और सीखने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसीलिए बच्चे को फेल करने की अवधारणा ही सर्व शिक्षा अभियान के दिनों में समाप्त कर दी गई थी। वैसे भी दक्षता न हासिल कर पाने का सारा दोष बच्चे का ही नहीं होता, अधिकतर मामलों में इसका दोषी शैक्षिक परिवेश होता है। जो भी हो, मगर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि पिछली कक्षा की दक्षता जिस बच्चे ने नहीं अर्जित की है, अगली कक्षा उसके लिए पहाड़ धकेलने जैसी दुष्कर हो जाती है। लिहाजा आने वाली शिक्षा नीति इसका भी समाधान ले आई है।
निपुण भारत मिशन में क्या है?
पहले भी इसके लिए शिक्षा विदों ने ‘उपचारात्मक शिक्षा’ की अवधारणा विकसित कर रखी थी। इसके अन्तर्गत पहले बच्चे की बौद्धिक अभिक्षमता का मूल्यांकन और निर्धारण किया जाता है, तत्पश्चात बच्चे के कमजोर पक्ष की बौद्धिक अभिक्षमता का मूल्यांकन और निर्धारण किया जाता है। तत्पश्चात बच्चे के कमजोर पक्ष को विशेष शिक्षण से न्यूनतम अधिगम स्तर तक ले जाने का प्रयास करते हैं। नई शिक्षा नीति 2020 में उपचारात्मक शिक्षा को परिष्कृत संवर्धित और व्यापक बनाकर ‘निपुण भारत मिशन’ का स्वरूप दिया गया है। 5 जुलाई 2021 को इसे अधिसूचित किया गया था।
‘निपुण एक नवाचार है, जो शिक्षण हेतु उन पुस्तकों, चित्रें, पोस्टर, माडल का चयन करेगा जो लैंगिक भेदभाव से मुक्त होंगे। कक्षा में वही कविता, कहानी, नाटक मान्य होंगे, जिसमें लड़के-लड़कियों की बराबरी वाली सामान्य भूमिका रहेंगी। वार्तालाप के बीच लिंग पक्षपाती कथन, जैसे गणित लड़कियों के लिए कठिन होता है आदि से पूरी तरह बचना होगा। शिक्षार्थियों को अपनी रुचि के पालन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसका मुख्य लक्ष्य आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान को सभी छात्रें के अन्दर विकसित करना है। स्कूल असेसमेंट में कक्षा तीन के जो छात्र निर्धारित दक्षता लक्ष्य से पीछे होंगे, उनको इस नवाचार के अन्तर्गत शिक्षक विशेष प्रविधियों से उन्नयन कक्षाओं में पढ़ाकर दक्षता की संप्राप्ति कराएंगे। इसके माध्यम से सन 2026-27 तक तीसरी कक्षा के अंत तक छात्र भाषा के पढ़ने, लिखने, समझने और मूल गणितीय संक्रियाओं को हल करने की क्षमता प्राप्त करेंगे। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ निपुण शिक्षकों के कौशल संवर्द्धन पर भी केन्द्रित है।
नई शिक्षा नीति के जो अगले चरण हैं-राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन, मिशन तक्षशिला, मिशन नालंदा और आगामी बीस वर्ष के अंदर देश के शिक्षा केन्द्रों को वैश्विक स्तर के शैक्षिक कॅम्पस के समकक्ष स्थापित करना, इन सारे उपक्रमों की सफलता का रास्ता गुणवत्ता पूर्ण प्राथमिक शिक्षा के बीच से ही निकलेगा। नई शिक्षा नीति में प्राइमरी शिक्षा को खास तवज्जो दी गई है, इससे संकेत मिलता है कि हमारी शिक्षा संबंधी सोच उचित दिशा में अग्रसर है।

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